किछु कविता : गिएविक
अनुवाद एवं प्रस्तुति : नारायणजी
गिएविक (1907 – 1997) बीसम शताब्दीक फ्रांसीसी साहित्यक एक टा महत्वपूर्ण कविक नाम थिक। बीस वर्षक आयुसँ ओ कविता लिखब आरम्भ कएलनि आ अपन कविताक पहिल संग्रह तीस वर्षक आयुमे प्रकाशित करबओलनि।
गिएविक अपन कवितामे शाब्दिक मितव्ययिता आ संवेदनाक गहन अनुभूतिकेँ ओहि सभ वस्तु द्वारा अभिव्यक्ति देलनि अछि, जेसभ मनुष्यक चतुर्दिक विद्यमान रहैत अछि आ मनुष्यक जीवनक सम्बन्धकेँ विश्वसनीयताक संग उद्घाटित करैत अछि, से हिनकर कविता पढ़ि बूझल जाए सकैत अछि।
|| गिएविकक किछु कविता ||
1). समाचार
की एतेक झमेला आवश्यक छल
एक टा कुर्सीक लेल?
कुर्सी कोनो अपराध नहि थिक
पुरान काठसँ ई बनल अछि
आ अपन गाछकेँ झुलबैत अछि
निश्चिंतसँ पड़ल अछि
आ एकर विद्वेषमे
कोनो बल नहि
आब एकरा नहि ककरोसँ
किछु लेबाक अछि आ ने देबाक अछि
एकर बिरड़ो एकर भीतर अछि
आ ई सम्पूर्ण अछि स्वयंमे।
2). चुट्टी
अहाँ एक टा चुट्टीक लहासक गप क' रहल छी
कनेक टा ओ
हरियर घास पर
दुनिया
मनुष्य लेल बनल छल
हम नीक जकाँ जनैत छी
हमरा विधाताक दोषकेँ
धांगि देबाक चाही
तों एक टा डराओन वस्तु
जे मनुष्यक ज्ञानसँ
बाहर चलैत रहैत छह
तोरा स्वर्ग फेर पठाए देबाक चाही
अरे, जँ तोँ हजार गुना नमहर होइतह
आ बन्दूक ल' क' चलितह
तँ तोरा राजकीय सम्मान देल जइतह
खौलैत पानिक बदला।
3). पहाड़
अपने ठाम ओकरा छोड़ि देब' पड़तैक
अपने भाग्य पर
माटिक बनल ई पहाड़
आ स्तनक आकारमे
साँस लैत
ओकरा छोड़ि देब' पड़तैक
ओहि नीलवर्णी मस्तककेँ रचबाक लेल
जकर सोझाँसँ हम जाइत छी
हम, अपन तामस
आ मारतेरास माउस लेने।
4). कटोरा
तोँ सेहो
किछु रखबाक लेल बनल छह
हमर चतुर्दिक
किछु आएब-जाएब लागल अछि
आब
हम अटकि गेल छी
सोझाँ-सोझी
व्यवहारसँ मुक्त
मुदा, सत्यनिष्ठ।
5). सीमेंट
हम बड़ माथ धुनलहुँ
सीमेंट संग
ओ किछु नहि जनैत अछि
ओ संग-संग लड़ल नहि
ई कतहु नहि रहैत अछि
ने केओ एहिमे रहैत अछि
एकरा कोनो डर नहि।
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नारायणजी समादृत कवि-कथाकार-अनुवादक छथि। हम घर घुरि रहल छी, अँगना एकटा आग्रह थिक, धरती पर देखू, जल धरतीक अनुरागमे बसैत अछि, कोनो टूटल अछि तंतु, दिगन्तसँ उठैत लहरि कविता-संग्रह), चित्र, साँझबाती (कथा-संग्रह), अनार (बालकथा) हुनक प्रकाशित कृति सभ छनि। बालकथा-संग्रह अनार लेल साहित्य अकादमीक बाल-साहित्य पुरस्कार। हुनकासँ njha.ggh@gmail.com पर संपर्क कएल जा सकैत अछि।
नीक अनुवाद।साधुवाद समवेत।
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