रवीन्द्र-महेन्द्र |
|| रवीन्द्र नाथ ठाकुरक किछु गीत ||
१).
चिट्ठी के तार बुझु, बुढ़िया बेमार बुझु
गोले बात जानी तँ उघरल भरार बुझु
गाम चलि अयबा लय, मुँह देखि जयबा लय
बुढ़िये के कहला पर एकरा हकार बुझु...
जे से डीहे बचल, ल’ द’ सेहो बिकैत
माटी हबकब तँ नै, लोक अन्ने तँ खैत
जन्म देलनि माय थीकि सेहो कने सोचु
हमरा की हमरा तँ उसरल बजार बुझु
चिट्ठी के तार बुझु, बुढ़िया बेमार बुझु
मास जाड़ ठाड़ बुझु, इज्जति उघार बुझु
एतबहि लिखैत छि जे गाड़ी ओनार बुझु...
बरद एक्केटा छल, सेहो पहिने मरल
खेत अनके दखल, तै पर करजा लदल
तँ जैह-सैह आबि, जैह-सैह कहि जाइछ
सहिते-सहैत आब भथि गेल इनार बुझु
चिट्ठी के तार बुझु, बुढ़िया बेमार बुझु
काया लचार बुझु, वैदक उधार बुझु
कतेक बात लिखब की आफत हजार बुझु...
कनियाँ के कहबनि, जौं अबितथि तँ ठीक
सासु हुनको छथिन, से जौं बुझितथि तँ नीक
आबथि तँ धिया-पुता संग नेने आबथि
अहाँ आबि नै आबि से अपने बिचार बुझु
चिट्ठी के तार बुझु, बुढ़िया बेमार बुझु
उतरी के हार बुझु, सदिखन तैयार बुझु
हमरा की हमरा तँ चलता कहार बुझु...
२). राम केर नाम सँ...
चारि पाँति सुनू रामकेर नाम सँ
पत्र लिखलनि जे सीता धरा-धाम सँ
भेल जिनगीकेर गेंठ फुलवाड़ी केर भेंट
नाम तहिये जोड़ाएल अहाँक नाम सँ।
प्रथमहि धरैत तीनि माताकेर ध्यान
कहि राजाकेर जय हो! हे प्रियतम परिणाम
अहाँ कोनाक हमरा बिसारिये गेलहुँ
बाट तकिते छी एखनहुँ अपन गाम सँ।
यदि हमरे सिनेहवश लंका गेलहुँ
तँ पातालहुँ मे आउ किये पाथर भेलहुँ
संग चूड़ी आ सेनुर एतहु अछि हमर
अहाँ बारल नहि जाएब कोनहुँ सम्मान सँ।
पातालहुँ मे सागर बहैत अछि पिया
चान कारी एतय आ सुरुज करिया
समइतहुँ नहि धरती तँ जैतहुँ कतय
कहु जीवितहुँ कोना हम घटल मान सँ।
हरण होयबाक बाद हम लंका मे जैब
सेतु सागर पर साजि अहाँ विजयी कहैब
अयोध्या मे आनि फेर जंगल पठायब
अहाँ परिचित छलहुँ सब परिणाम सँ।
आबि अहाँ देखाएब झलक जहिया
हम कोना ख़साएब पलक तहिया
हम ककरा सँ करबै कोनहुँ याचना
अहाँ कम छी कहू कोन भगवान सँ।
कने बाजू हे प्राण अहाँ ई की केलहुँ
कोना सोना के अहाँ मानि सीता लेलहुँ
हम विदेहक धिया तें विदेही भेलहुँ
तथ्य राखब नुकाय हमर सन्तान सँ।
नहि एखनहुँ अहाँ सँ इतर भेल छी
आब रघुकुल केर हमहुँ पितर भेल छी
धिया ससुरहि मे नीक, बाद स्वर्गहि मे नीक
हम मानिनी कहाबी अपन मान सँ।
३). बिलमि जो गुजरिया
बिलमि जो गुजरिया एहि मिथिलाक धाम गै
तोहरा लै खाली
गाछक मड़ैया
स्वागत तोहर
क' रहलौ चिरैया
एतय अशोक, शोक हरइछ सबहक
डूबल सेनूर मे सुरुज भगवान गै।
अपना सिनेहक
दियरा जरायब
दूबिक नरम सेज
तोहरा सुतायब
सिरमा मे सीता बीयनि डोलौथुन
सपनहुँ मे रहथुन दहिन भ' राम गै।
कोइली आ भँवरा
पराती सुनौतौ
शीतल पवन आबि
तोहरा जगौतौ
कोशी नहाय गोरी, गंडक नहइहें
एतहि बहैत अछि कमला-बलान गै।
सस्ते मखान-पान
हँसि-हँसि क' खैहें
गंगाकेर जल पीबि
युग-युग जुड़ैहें
हिमालय केर आँगन फुले पहरुआ
शिवकेर सासुर आ गौरी केर गाम गै।
४).
भरि नगरी मे शोर
बौआ मामी तोहर गोर
मामा चाँद सन
नानी नाना दुनू तोहर
खाली गाल बजाब
बाबी तोहर गंगा सन छ
बाबा बनल हिमालय
मौसा तोहर चोर
मौसी मुँहक बड्ड जोर
मैया पान सन
भरि नगरी मे शोर...
थैया थैया चलु कन्हैया
जहिना भोर बसात
धरती मैया सब दुख हरणी
खसब ने कोनो बाट
बौआ मोती सन ई नोर
बिछत खाली आँचर मोर
अपनहि प्राण सन
भरि नगरी मे शोर
बौआ मामी तोहर गोर
मामा चाँद सन।
५).
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम
किरपा महादेव कुशले कुशल छै
अहाँ लए सबहक अतमा विकल छै
मोनो नै हैत पिया मुंहों हमर मुदा
बिसरल नै होयब सासुर के नाम
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
भोरे उठै छी पानियो भरै छी
अपनहि हाथे भानस करैत छी
एसगर मे आँगन दाँते कटैए
माय चलि गेलैए नानी के गाम
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
बीचहिं मे एलखिन बुच्ची केर ओझा
कहलनि कत्ते तँ गेलियनि सोझाँ
बैसबो नै केलियै लाजे परेलियै
जाइते पुछलखिन ओ साढू के नाम
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
बन्हने छलियै केश फलकौआ
कोंचा बला नुआ छलै आँचर घुमौआ
लेलक अझक्के मे देखि मुँहझौंसा
अहीँ के गामक बुढ़बा हजाम
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
बाबू बिगड़ला माँओ बिगड़ली
नाके कटौलें जो गे अभगली
गलती जे भेल पिया माफी से करबै
रखबै पिया संगे रखबै धियान
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
बहिना सिखलौनि ताशक खेल
कोट-पीस खेलैले आबियो गेल
इक्का के बढ़ती रंगक बीबी
आबय अहाँ सन साहेब गुलाम
पिरिये पिराननाथ सादर परनाम।
६). भरि राति जरैत छी
भरि राति जरैत छी दीप पिया
साँझ रहियहि हम मिझाय गेलौं
कनगुरियहिं लागलि जाइत हम
नहि जानि कोना भुतियाय गेलौं
भोरक फक भेल चान जकाँ
गाछक टूटल पान जकाँ
खूजल खोंइछक धान जकाँ
जँह-तँह सगरो छिड़ियाय गेलौं
हम खढ थिकहुँ हम पात थिकहुँ
हम बिसरल कोनहुँ बात थिकहुँ
बिनु करूआरिक नाव जकाँ
जेम्हरे-तेम्हरे भसियाय गेलौं
थाकि गेलहुँ चलिते-चलिते
तारा डुबलै गानिते-गानिते
काजर बहलै कनिते-कनिते
हम अपनहि नोर नहाय गेलौं
पाथर रहितहुँ, रहबे करितहुँ
हम काठक जान धुनाय गेलौं
कह रवींद्र सब ठामक ठामहि
हम माँझहिं ठाम बिलाय गेलौं।
७). जय! जय! मिथिला जय बंगाल
गरदनि सँ लागल गरदनि हो
जनु, सटल गाल सँ गाल
तहिना भारतकेर मानचित्र पर
मिथिला आ बंगाल
दूनुक संगम पर शोभित अछि
संस्कृतिक पण्डाल, कही तेँ...
जय! जय! मिथिला! जय बंगाल।
जय काली! कलकत्ते बाली
वचन जाय हमर नहि खाली
बंगक काली, दक्षिण-काली
मैथिल घर पूजिति भा रहली
मिथिलाकेर बमभोला माड.थि
बंगालक बघछाल ।कही तें...
तंत्र-मँत्रकेर सम अधिकारी
समरूप परीक्षण कयलहुँ
सब सँ बड़का वैभव ज्ञाने
दूनुक दूनू बुझलहुँ
दू नाव धार-लिपि एक
एकहि करूआरि, एकरङ पाल। कही तें...
तेँ, बिसरी आइ सब हाल
तोड़ि क' सब चिंता, भ्रम-जाल
बनू हे गीत हमर तत्काल
दुहू गरदनिक एक जयमाल
मिथिला भजनियाँकेर हाथ मे
चैतन्यक करताल। कही तें...
बंगाली खाढ़िक चलल हवा
मिथिला मे रिमझिम बरसल
हमर माटिकेर गंध-गीत
बंगालक नभपर पसरल
एक पानकेर दू टुकड़ी सँ
अछि दूनू मुँह लाल। कही तें...
खानपान आ' रहन-सहन मे
बहुतो समता एखनहुँ अछिये
से गछियै वा नहि गछियै
ममता किछु ने किछु तँ अछिये
सुख-दुख मे हम एक रहल छी
साक्षी छथि दिग्पाल। कही तें...
८). बाँहि मे रहू
बाँहि मे रहू ने रहू
आँखि मे रहू
दुनिया मे चारि दिन जे रहू
सामने रहू।
छी फूल अहाँ माटिक
हक आदमीक हो
भँवरा के अहाँ सदिखन
फटकारने रहू।
आँगन मे तोरा राखब
गोबर सँ ठांव द
माथ पर रहू तँ रहू
बामने रहू।
हम लौल-चौल खूब करब
आओर कहब जे-से
हमरा पियास धरि केँ
परतारने रहू।
हम बैसि जैब नहि तँ
अपने सँ रूसि क'
कहता 'रविन्द्र' हँसि क'
लट-झार ने करू।
९).
हम झेलम नहायब, हम सतलजो नहायब
हम गंगो मे नहायब हम त्रिवेणीयो नहायब
मुदा मिथिले के जल सँ भरब गगरी
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
किरण उगलो नै हेत हम कातिक नहायब
माघ मासो नहायब बैसाखो नहायब
अकासे मे आइ अपन नुआ सुखायब
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
एकर कण-कण मे बास करय सपना हजार
एकर सुरभित बयार एकर हरियर दयार
अकासे मे आइ हम दीप जरायब
हम एकर लाज आ ई हमर चुनरी
हम छी सीता...
अपन ज्ञानो बढायाब विज्ञानों बढाएब
अपना मिथिला के नया नया रंग मे सजाएब
उच गगनक घटा हम ओकर बिजुरी
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
१०). आम-जाम-महुआ
आम, जाम, महुआ आ नीमक मजर देखि
झड़लो सब पात मुदा तैयो मन मजरल
डारि-डारि लचरल अछि
ज्ञानी सन, दाता सन
मजरो से छारल अछि
घुघरू सन, छाता सन
बिजुरी चमकिहें नहि आन्ही तो उठिहें नहिं
बने-बने भँवरा, विकल मन बिहरल।
मधु अओर मदिराकेर
समगम छै' मजरहि मे
जादू छै टोना छै
सब छै नजरियहि मे
बेली - चमेली केँ झूला झुला क'
दोरस बयार चलय, तन-मन सिहरल।
लाले तँ टुह-टुह
लालो तँ लाल टेस
सेमरकेर फूल उपर
सुगाकेर छैक देश
सूगाकेर भागकेर रूइया जे उड़ि-उड़ि क'
धूमिल आकाश मे किरन बनि पसरल।
उजरे तँ धप-धप
कारी तँ भौंरे सन
पीयर तँ डोहित,
हरियर कचोरे सन
बनहिं-बने फूल-पात लतिका लोभाओन
कोइलीकेर सङे-सङे हमर मन कुहुकल।
होरीकेर झोरी मे
चैतक जे गर्दा छै
बैसाखक पछबाकेर
मुँहपर से पर्दा छै
पर्दा उठल देखि गोपी सुपक्व कोनो
नेना सन लोभी मन, लरजल ललचल।
रौदहि मे मिलल - जुलल
कने-कने छाया छै'
चिका-चिकी मेघ सेहो
ममता छै माया छै
आषाढ़क पहिल मेघ औताह आबथु
टुस्सी सँ पात भेल, हमरे मन फलकल।
११).
सदाशिव
बात उचित नहि थीक
विलटल सकल मनोरथ मोनक
टूटल ध्यानक सीक। सदाशिव...
तन-मन-वचन, पात-फूल-जल
भार भेलहुँ धरतीक। सदाशिव...
क्षत-विक्षत हम, हे हर बाजू
अक्षत देब कथीक। सदाशिव...
अपने महल अटारी सेवल
बेटा मांगय भीख। सदाशिव...
एहेन बापकेर घर रहबा सँ
माइक नैहर नीक। सदाशिव...
कहथि रवीन्द्र कृपा करू शंकर
यदि हम कहल सटीक। सदाशिव...
बहुत आभार 🙏 एहन सुंदर जानकारी और सुंदर गीत लेल
जवाब देंहटाएंWah sankalan karta k seho anek anek badhaee. Aa peivar dis sau aabhar byakt Kay rahal chi. AVNINDRA thakur.
जवाब देंहटाएंबहुत नीक जनतब आदरणीय रविंन्द्र नाथ ठाकुर जीक सम्बंध मे । गीत सभ के चयन एक पर एक ।
जवाब देंहटाएंएहि महान गीतकार के सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंरविंद्र अधूरा छथि महेंद्र के बिना
महेंद्र जी के अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
बड्ड नीक जनतव्य , साधुवाद
जवाब देंहटाएंकिछु आओर गीतक लिरिक्स दितहुँ तँ उत्तम
बहुत नींक रचना भेटल आई हमरा अद्भुत 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंअइ में इ गीत नय अई।। गीतक नाम:- आई लगईये वैदेही के नइहर बड़ झुझुआन सन।। कृपया ई गीत देल जाऊ।।
जवाब देंहटाएंकिसलयजी ! लेख नीक लागल।
जवाब देंहटाएंमुदा उदाहरणमे देल गेल गीतक आखर/शब्द/पद आदिमे बहुत हेर-फेर अछि।
बहुत सुंदर रविन्द्र मामा के गीत संग्रह 🙏
जवाब देंहटाएंAap jaante Hain inko ...aap saurath se ho kya ?
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