धीरेन्द्र प्रेमर्षिक किछु गीत


धीरेन्द्र प्रेमर्षि मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ गीतकार छथि। प्रेमर्षि अपन गीत  मे जतबा प्रयोगधर्मी छथि ततबा संस्कृतिनिष्ठ सेहो। सांस्कृतिक संक्रमणक एहि विद्रुपित समय मे प्रेमर्षिक गीत मे सन्निहित लौकिक सम्पृक्तता, श्रम-संस्कृतिक सुगन्ध, माटि-पानिक सुवास आ मिथिलाक मौलिक परिचिति केँ रेखांकित करए बला विशिष्ट तत्व सभक उपस्थिति मैथिली गीतक अजस्रता केँ अक्षुण्ण रखैत भविष्यक प्रति आश्वस्त करैत अछि।

प्रेमर्षि अपन गीतक हेतु एकटा पृथक भाषा बुनैत छथि। मिथिलाक माटि-पानि, लोक-वेद आ सर-समाजक परिचिति सँ संपृक्त लौकिक भाषा। मैथिलीक विपुल शब्द सम्पदा, मिथिलाक लोकजीवन मे बसल प्रतीक, बिम्ब आ लोकोक्ति सभक समुचित प्रयोग सँ प्रेमर्षि जाहि भावक निर्माण करैत छथि से सहजहि लोकग्राह्य भए ठोर पर चढ़ि जाइत अछि। एही भाषिक विशिष्टताक आ लोक संपृक्तताक कारणेँ प्रेमर्षिक एकाधिक गीत 'लोकगीत' जकाँ मिथिलाक कंठ मे रचि-बसि गेल अछि। ‘हमरे डाला पनपथिआ सँ’, ‘कोइली कानए किओ ने जानए’, ‘प्रियतम हमर कमौआ यौ’ प्रभृति किछु गीत उदाहरणक रूप मे अकानल जाए सकैत अछि। एहि विशिष्टता केँ प्रेमर्षिक गीत सभक 'ट्रेडमार्क' कहल जाए सकैत अछि। 

पलायन, रौदी, दाही आ सामंतवादी शोषण सँ आछन्न मिथिला केँ प्रेमर्षिक गीत संघर्षक हुब्बा दैत अछि आ सामाजिक वैमन्सयताक परित्यागक आग्रह करैत जीवनानुराग सँ सम्पृक्तताक हेतु  संघर्षक बाट देखबैत अछि। अपन काया, अपन माटि, अपन मेहनतिक उचासक हेतु सचेष्ट करैत अछि। अपन लोक, समाज आ ताहि मे सन्निहित तत्व सभक प्रति अगाध सिनेह आ गौरवबोध प्रेमर्षिक गीत सभ मे आद्यन्त रचल- बसल अछि। एहि  समाजक कुप्रथा आ रूढ़ अवधारणाक वर्णन जखन गीत मे समाविष्ट होइत अछि तखन प्रेमर्षिक विद्रोही स्वर मुखरित भए उठैत अछि। एहि द्वंदक स्पष्ट रेखांकन प्रेमर्षिक सृजनात्मक गुरुता आ दायित्वबोध केँ स्पष्ट करैत अछि। जनपक्षीयता प्रेमर्षिक गीतक 'यूएसपी' भए गेल अछि। 

प्रेमर्षिक एकाधिक गीत सभक निहितार्थ मे जिजीविषा अपन सम्पूर्णताक सङ्ग संबोधित होइत अछि। मनुष्यक अस्तित्वादी संघर्ष मे इएह जिजीविषा जीवनक संबल बनैत छैक। एहि जिजीविषाक भाष्य जखन श्रम, संघर्ष आ स्थानीय विशिष्टताक संगोर पबैत अछि तखन गीतक शब्द चेतनाक चिनगी बनि कोनो सीमांत गामक अन्यतम लोकक दैनिन्दिनी मे व्याप्त बाधा आ बोधक प्रतिध्वनिक संवाहक बनि जाइत अछि। एहि गीत सभक एकगोट महत्वपूर्ण पक्ष लोकतत्वक नैसर्गिक अभिव्यक्ति सेहो अछि जतए ‘फैंटेसी’क लोभाओन परिधि सँ पृथक माटिक निजताक सुवास भेटैत अछि। प्रेमर्षिक गीत मे मिथिलाक श्रमिक संघर्ष, घाम सँ गमकैत हरियर चास, हरक मुहेंठ केँ कनेक आओर दबेबाक हुब्बा, वैमानस्यताक पसरैत विकृतिक लगाम, अस्मितावादी  विमर्श, वंचित आ शोषित समाजक हेतु चेतना आ विथुतिओ मे जीवन केँ सुखेदगर बनेबाक आकांक्षा विद्यमान अछि। 

प्रेमर्षिक गीत मे सन्निहित पात्र आ परिवेश अलौकिकताक आवरण सँ पृथक मिथिलाक लौकिकता केँ आत्मसात करैत कखनहुँ हिलसैत अछि तँ कखनहुँ हिंचुकैत अछि, कतहुँ कर्तव्यक प्रति सचेष्ट होइत अछि तँ कतहुँ अपन अधिकार हेतु संघर्षक बाट चुनैत अछि। प्रेमर्षिक एहि यात्रा मे मैथिल अस्मिताक रेखांकित करए बला उपमान सभ केँ आत्मसात करैत मिथिलाक चौका-चिनमार, खेत-पथार, सर-समाज आ लोक-वेद सँ एकमेक भेल जाए सकैत अछि। समकालीन समयक यथार्थ बोधक संगहि प्रेमर्षिक गीत मिथिलाक लोकव्यवहार आ लोकजीवनक सँ सम्बद्ध अन्यान्य भाव सभक संगोर सेहो करैत अछि। एहि गीत सभ मे कतहुँ प्रेमक उद्दाम लालसा अछि तँ कतहुँ जीवनक उमंग केँ स्पंदित करए बला हास-परिहास आ उल्लासक भावोद्गार अछि जतए प्रेम करब जँ पापो छैक तँ  एकगोट निश्चल पाप करबाक प्रस्तावित आग्रह विद्यमान अछि। प्रेमर्षिक गीतक आंतरिक सौंदर्यशास्त्रक एकगोट निहतार्थ इहो अछि।

— विकास वत्सनाभ 


|| धीरेन्द्र प्रेमर्षिक किछु गीत ||


 १). प्रेमलक्ष्य

 

भाइ रे, एमकी जतरा निम्मन छै

देखही सालक पहिलहि दिनमे, रोटीपर आइ तिम्मन छै

 

निसफिकरी भऽ खटलि बहुरियो, एमकी चौरी-चाँचरमे 

कोनो गिरहतबा हाथ ने देलकै, ओइ लजबिज्जीक आँचरमे 

चिल्हका मूहसँ छीनल दूधक, गहबरमे ने टघार भेलै

बहु-बेटीके इज्जति मीता, कतहु ने देख उघार भेलै

भोरे नन्हकू इसकुल गेलै, जलखै कऽ बस्ता लेने

कएल काजके बोनि जे पेलकै, धुथरो आइ बिनु खेखिएने

सबके भेटलै सुपत मजुरी, एमकीके बोनिहारीमे

ककरो सपना उधिएलै नइ, हओ भोँटक पैकारीमे

कोनो मजूरक एमकी भाइ रे, अपटी खेतमे गेलै ने जान

लाश गनाकऽ कोनो हकिमबा, बनलै नइ रौ कतौ महान

दुख-दलिदरा जते छलै से, टिशनेपर जनु छूटि गेलै

खुशहालीक जेँ टेन ससरलै, चट्ट दऽ निन्ने टूटि गेलै

 

हमहीँटा छली सपनलोकमे, सबकुछ पुरने ठिम्मन छै

भाइ रे, अखनो कुछ नइ निम्मन छै

हमरासबके खून-पसेना, ओकरे सँझुका तिम्मन छै

 

मुदा भाइ रे आबि गेल अछि हमरो हाथमे ई अवसर

एकरे बलपर सजा लेबै हम अप्पन सपनाके नव घर

आइतलिक जे दर्द पिअलिअइ आब हेतै गऽ तकर निदान

सपनेसन खुशहाली पाबऽ चल लिखबाबी अपन विधान

 

 २). प्रेमक भास

 

कलकल छलछल बहनिहार, स्वच्छन्द आ निर्मल धार हम

बागसँ बेरबैत काँट-कूश, सजबी फूलक संसार हम

कल्हुको सूर्यक सहजि किरण, लऽ आनब नवका भोर हम

डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

 

राग-द्वेशके बात ने जानी, गाबी प्रेमक भास हम

बारि लगनसँ दीप सृजनके, परसी सदति उजास हम

भरि सकै छी खुशहालीसँ, धरतीक पोरे-पोर हम

डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

 

जोशक सङ्ग-सङ्ग जूति भिड़ा, केहन पर्वत हम नांघि चली

जाति-पाति वा धन-वैभव नइ, प्रेमसँ जनमन तागि चली

केहनो जकथल बर्फ गलाबी, छी बरकैत इनहोर हम

डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

 

कर्महिमे हम देखी ईश्वर, मानवता विश्वास हमर

हाँकब नवयुगके हमहीँसभ, प्रेम-परिश्रम आश हमर

चलू लबै छी सुखसागरमे, मिलिजुलि सहज हिलोर हम

डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

 

३). प्रेम-इतिहास

 

जइ धरतीपर प्रेम फुलै छै कुसमा आ सलहेसके

गीत गबै छी हँ हौ बगड़िया सएह तिरहुतिया देशके

जइ धरतीपर प्रेम फुलै छै कुसमा आ सलहेसके

गीत गबै छी हँ हे बहिनपा सएह तिरहुतिया देशके

 

पुरखासभ जे मिलिजुलिकऽ पुरखारथ रोपलनि माटिमे

बाँटि लेने छी तकरो हमसभ छोट आ नमहर जातिमे

सभ अपनाकेँ बूझए शम्भू क्यो ने गने गणेशके 

गीत गबै छी हँ हौ बगड़िया सएह तिरहुतिया देशके

 

गौरवकेर हौदा झलकै छै जइ इतिहासक हाथीमे

तकरो नकुआ बनल छलैए धुथरे बापक भाथीमे

अजब ताल अछि, घूर तपै छी दुत्कारैत निङहेसके

गीत गबै छी हँ हे बहिनपा सएह तिरहुतिया देशके

 

नेहक खेतमे एना किए हमसभ घिरना उपजाबै छी !

प्रातीक मिठगर भासमे मीता डहकन किए सजाबै छी

सभटा अमरित चूबि रहल अछि, आबो जोगबी शेषके

गीत गबै छी हँ हौ बगड़िया सएह तिरहुतिया देशके

 

 4). प्रेमक खेती

 

मानैत छी जे नहि अछि अक्खन दुनियाकेर भूगोलमे

तैयो हमसभ बचाकऽ रखलहुँ जकरा माइक बोलमे

सोहर, लगनी, जटाजटिन कि झिझिया, साँझ, परातीमे

एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

 

लोहछल नस-नसमे एखनहु तिरहुतिया सोनित बरकैए

केहनहु बज्जर मैथिलकेर धड़कनमे मिथिलहि धड़कैए

जिनगीक तुलसी चौरामे नित बरैत दीपक बातीमे

एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

 

बगय-बानि बदलल रहितो माथा संस्कारक पाग जतऽ

विद्यापतिकेर गीतक सङ्ग पसरल मधुमय अनुराग जतऽ

होरीक रङ्ग, धुरखेलक सङ्ग सुकरातीक उक्कापातीमे

एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

 

सुरुजक अगुआनीलए जइठाँ महिँस-पीठपर पसर खुलै 

सैर बराबरि गबैत जतऽ पौरखिया चाँचर प्रेम झुलै

करसी जरबैत घूरमे आ कनकन्नी पचबैत गाँतीमे

एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

 

मन-मनमे दहकैत चिनगीकेँ हवा लगाकऽ प्रखर करी

अन्हड़िमे बहकैत जिनगी ठेकनाएल पथपर मुखर करी

कतऽ-कतऽ बौआएब कते, जोड़ी मन-तार गतातीमे

एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे

 

५). प्रेम-अभिसार

 

भलहि संसारसँ हम अघायल रही

मुदा नेहक पियासे सोन्हायल रही

किछु कहब ने हम ने किछु अहाँ कही

बस जुट्टीजकाँ हम गुहायल रही

 

राति ससरैत रहए चाहे भऽ जाइक भोर

बात पसरैत रहए चाहे भऽ जाइक शोर

अछि अजबारल मोनक मटकूरी प्रिये

सुसुम नेहसँ जमाबी एहि जिनगीक दही

किछु कहब ने हम ने किछु अहाँ कही

बस जुट्टीजकाँ हम गुहायल रही

 

लेलहुँ आइए प्रिये अपन मनमे हम ठाइन

अहीँ हम्मर छी जिनगी, हमर भेलेन्टाइन

जे गलए ने जरए आ ने फाटए प्रिये

दुनू दिलमे झट कऽ ली एक-दोसरक सही

किछु कहब ने हम ने किछु अहाँ कही

बस जुट्टीजकाँ हम गुहायल रही

 

६). प्रेम-वेदना

 

बीत-बीतपर लछमन रेखा डेग-डेगपर आरि

केहन विधना लिखल विधाता सदिखन गारीए-मारि

अक्खज भऽ जीवैए नारि अपनाकेँ अपनहि परतारि

 

केहनो दरदमे इस्स नइ बाजए सीबिकऽ बैसल ठोर

एतबए छै अधिकार ओकर जे कानि लिअए दू नोर

जीवन-मरणसँ खा कऽ हारि तिलतिल गलैत रहैए नारि

अक्खज भऽ जीवैए नारि अपनाकेँ अपनहि परतारि

 

जकरा जाइए मानल देवी तकरो विधना वाम छै

ताधरि सीता जरबे करतै बौक बनल जा राम छै

ककरा लग जा करति गोहारि गुम्मी लधने बैसलि नारि

अक्खज भऽ जीवैए नारि अपनाकेँ अपनहि परतारि

 

समय कहैए पाँचो आङुर मिलिकऽ मुट्ठी बान्ह

तखनहि हटतै जोर-जुलुमकेर सबटा पगहा-छान

दमनक दुनिया देतै उजाड़ि जँ सङ्ग मिलिकऽ चलतै नारि

अक्खज भऽ जीवैए नारि अपनाकेँ अपनहि परतारि

 

ओना कहै सभ नारि-पुरुख जिनगीक रथकेर दू पहिया

मुदा हृदयसँ नारीक महिमा लोक ई बुझत कहिया

सृष्टिक गाछक दुनू ठाढ़ि जहिना पुरुष तहिना नारि

अप्पन दुनिया लेतै सम्हारि पुरुषक सङ्गसङ्ग चलतै नारि

 

७). प्रेम-प्रमाण

 

हमरे डाला-पनपथियासँ देवतो-पितर पुजाइ छै

कहू यौ बाबू तैयो हम्मर देह ई किए छुआइ छै

 

मेहनति हम्मर चलै छै सगरो मुदा चलै नइ पानि यौ

हमरा-अहाँमे छोड़ि गरीबी अन्तर की नइ जानि यौ

हमरे दूध आ जाँत-पीचसँ अहूँके नेन्ना पोसाइ छै

कहू यौ बाबू तैयो हम्मर देह ई किए छुआइ छै

 

अहिँक देहसन लाले सोनित बहै छै हमरो देहमे

जीबै छी हमहूँ यौ भलमानुस सरधा आर सिनेहमे

हमरे गढ़ल मुरुत भऽ गोसैयाँ मन्दिरमे सजि जाइ छै

कहू यौ बाबू तैयो हम्मर देह ई किए छुआइ छै

 

कहबी छै जे लोकके नमहर बनबै ओकर विचार यौ

तैयो कैलए अछोप कहिकऽ करै छी दुरबेहवार यौ

भेदभावसँ गाम-समाजक रोग-बिआधि जुआइ छै

आबो नइ कहियौ यौ बाबू लोकसँ लोक छुआइ छै

 

८). निशस्त्री प्रेम

 

कनहापर लटकौने बन्दूक, हाथमे लऽ बल्लम-भाला

अबल-दुबरके मूहपर भले लगा दहक कतबो ताला

मुदा आइधरि दुनियामे नइ बनलै ओ हथियार हौ

छकडि़ सकै आ कतरि सकै जे मानवताक विचार हौ 

 

कोनो वीरके भलहि लगैत हो इएह कमसीन बहुरियासन

मुदा एकर छै जुलुम जुआनी पहुँचल कोनो पतुरियासन

बड़ मारुक होइ एकर सङ्ग आ रङ्ग-रभस-बेवहार हौ

किछु दिन मजा लुटौतह फेरो करतह तोरे शिकार हौ

 

धरती कतहु आवाद भेलै की पटाकऽ खूनक धारसँ !

तखन किए तोँ शस्त्र उठेबह, कहऽ कोन अधिकारसँ ?

स्नेह सिँचिकऽ बनबी उर्वर, ई दुनिया-संसार हौ

पार उतारी जीवन नैया, चला प्रेम-पतवार हौ

 

९). प्रेमशस्त्र


जाहि हृदयमे प्रेम बसए से हएत किए भयभीत रे

'दीवाना दिल' मगन भऽ गाबए बस एक्कहिटा गीत रे

प्रीत ने मानए रीत रे

 

निश्छल मनसँ चाखिकऽ देलकनि बैर जे भिलनी सबरी

रामचन्द्रकेँ ओहीमे भेटलनि प्रेमक अनन्त भभरी

जाति-पाति आ ऊँच-नीच एहिसभकेँ लै छै जीत रे

प्रीत ने मानए रीत रे

 

राधा-कृष्णक प्रेमक सगरो दै छै लोक दोहाइ

सएह प्रेम जँ घरमे अँकुरए से ने किए सोहाइ

प्रेमक खेतमे उपजै घिरना रीत अजब विपरीत रे

प्रीत ने मानए रीत रे

 

कहए कबीरा जीवनमे बस्स अक्षर छैक अढ़ाइ

प्रेमसँ बढि़कऽ एहि दुनियामे छैक ने कोनो पढ़ाइ

प्रेमक पथपर लड़खड़ाइक जे से नहि थिक मनमीत रे

प्रीत ने मानए रीत रे

 

१०). प्रेमविराग

 

जीबालए परान हम कतऽसँ बेसाही

सिनेहक वनमे लागल पसाही

 

जकरेलए जिनगीक गाछ झखेलियै

सएह बनल भुम्हुर माछ हम भेलियै

मिठका भरमके परदो तँ खसलै

इएह उपकार भेल आओर की चाही !

जीबालए परान हम कतऽसँ बेसाही

सिनेहक वनमे लागल पसाही

 

पहिने तँ मनमे दूभिसन चतरि गेल

मन जेँ उड़ाँत भेल कि पाँखिए कतरि गेल

भरिहऽ ने दैवा हओ, जिनगीक कलममे

एहन निदरदी प्रेमक सियाही

जीबालए परान हम कतऽसँ बेसाही

सिनेहक वनमे लागल पसाही

 

११). मातृभाषा-प्रेम

 

मोन कनैए दहोबहो

लोक बुझैए महोमहो

हरियर पाँखि आ लाल ठोरसँ 

नाचि-गाबिकऽ व्यथा कहैछी— पट्टू सीताराम कहो!

 

देश आ दुनिया सभ हमरालए अपने गामक पिँजड़ा अइ

नारि-पुरुष नइ बूझए किछुओ मानैत हमरा हिजड़ा अइ

कहि-कहिकऽ पुष्टइ सदति ओ

खुआ लाल मेरचाइ कहैए— पट्टू सीताराम कहो!

 

गिरहस्थीमे रहियोकऽ हम बनल सदति संन्यासी छी

सभकेँ परसैत-परसैत हम भनसे घरमे उपवासी छी

हमर गीत सभ गेल निखत्तर

टहङ्कारसँ उएह गबैए— पट्टू सीताराम कहो!

 

गुदगरहा गादी फरमाबए, आजुक इएह जनवाद छियै

मुहमे लगा गढ़निगर जाबी, कहए अहाँ आजाद छियै

शासनकेर सौतिनियाँ सड़सी 

जीह पकडि़कऽ उकसाबैए— पट्टू सीताराम कहो!

 

१२). प्रेम-पराग

 

आमिल पीबैत कहलनि ओ छोडू हमरा परतारू नइ

बज्जर भऽ गेल मोनक धरती चासेविना समारू नइ

 

ओना तँ हमहीँ जनकदुलारी, हमहीँ रामपियारी छी

तहूसँ बढ़िकऽ लवकुशसन बङ्का-वीरक महतारी छी

प्रेम-सृजन-शक्ति कहबैतो असलमे अवला नारी छी

तहीसँ जीवन-ओलतीमे टपटप चूबैत एकचारी छी

छोडू कहुना चोखाएल घाओक खैँठी एना ओदारू नइ

बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नइ

 

त्रेता युगके सीता छी आ द्वापरके द्रौपदी छी हम

तीरभुक्तिमे बहैत सभटा निज नोरहिके नदी छी हम

कोमल-प्रेमिल-हृदयवासिनी युगयुगन्तसँ यदि छी हम

आइ चेतनासँ परिपूरित नव एक्कइसम सदी छी हम 

दर्दक दस्तावेज लिफाफा, विनु तैयारी फारू नइ

बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नइ

 

नारी-मानक विन पुरखारथ, तकरा आब फजूल बुझू

सदिखन आगू बढ़बालए पगपग दुन्नूक समतूल बुझू

सहयात्राकेँ दुनियाभरिकेर खुशी आ सुखक मूल बुझू

तखनहि जीवनके बगियामे महमह गमकत फूल बुझू

विनु जुटियौने प्रेमक खुहरी झुट्ठे आँच पजारू नइ

बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नइ

 

१३). प्रेमधरा

 

अपन कहल इएह माटि अइ, जाएब कतऽ ई छोड़िकऽ

पुरखासभसँ भेटल अइ जे, स्नेह-ज्ञानमे बोड़िकऽ 

 

अही माटिमे लड़ैत-पड़ैत हम सिखलौँ देबऽ गुड़कुनियाँ

एकरे ममता-गुण-गौरवसँ लगए सुहाओन सगर दुनियाँ

नस-नसमे दौगैत परिचयसँ रहब कोना मुह मोड़िकऽ 

अपन कहल इएह माटि अइ, जाएब कतऽ ई छोड़िकऽ

 

अपने हाथेँ सिरजैत पूजी हम कर्मक भगवानकेँ 

संसारहिकेँ हीत बुझी हम छोड़िकऽ बस बइमानकेँ 

तन-मन-जीवन उर्वर बनबी सभटा परती तोड़िकऽ

अपन कहल इएह माटि अइ, जाएब कतऽ ई छोड़िकऽ

 

अपनाबीचक औल-झौलकेँ अपनेसँ फरिएबै हम

स्नेहक सिञ्चनसँ ई धरती युगयुगतक हरिएबै हम

खगन भेलापर देबै देहसँ सभटा खून निचोड़िकऽ

अपन कहल इएह माटि अइ, जाएब कतऽ ई छोड़िकऽ

 

१४). प्रेमगीत कोरोनाक छाँहमे 


मजरल आमक एहि मौसममे हम छी भेल बबूर प्रिये

प्रेमसँ बढ़ि जेँ प्रेम करै छी तेँ छी अहाँसँ दूर प्रिये

 

रहू सोन्हओने मन-मटकूरी प्रेमक मदिरा खूब पियब

ताबे सुख-संन्यास जियाबी गिरहस्थीमे तखन जियब

सौँसे कोला अछि अहीँके तैयो बन्हबी धूर प्रिये

प्रेमसँ बढ़ि जेँ प्रेम करै छी तेँ छी अहाँसँ दूर प्रिये

 

निकट भेलासँ विकट हुए ने, जीवन- बुझब जरूरी छै

पते चलत नइ कतऽ भोँकाएत हाथे सबहक छूरी छै

अन्हार घर सौँसे छै साँपे बन्द करी सब भूर प्रिये

प्रेमसँ बढ़ि जेँ प्रेम करै छी तेँ छी अहाँसँ दूर प्रिये

 

विरहक एहि बर्बर बेलामे नवका एक व्यापार करी

मिलनक दुश्मनसँ लड़ि एसगर संसारक उपकार करी 

अहाँ छी हियमे तेँ बस लिलसा जिनगीसँ भरपूर प्रिये  

प्रेमसँ बढ़ि जेँ प्रेम करै छी तेँ छी अहाँसँ दूर प्रिये


१५). नेहक उठत हिलोर


कोइली कानए, क्यो नइ जानए

किए ई बहबय नोर ! 

बिसरि पराती बैसल सुग्गा 

किए सिबीकऽ ठोर ! 


चारि दिनक ई जीवन-धाम 

हरखक पल ताहूमे वाम 

कलिका खोंटिकऽ फेकैत हम 

ताकिरहल छी फूलक गाम 

घी निकालि छाल्हीसँ किए- 

आइ अवहेलित अछि घोर ! 

बेटीए नइ जनमैत तँ कोना- 

भेटितए माइक कोर!


झखड़ि गेलैए जामुन-आम 

भेल अलोपित तूति-लताम

 मानवतेसन आइ इहोसभ

 बनि गेलए इतिहासक नाम

 जोहैत चानक बाट किए- 

आइ अकछा-रहल चकोर ! 

उगए सभ दिन सुरुज, मुदा

 नइ परसए हरियर भोर


सत्यक जननी सृष्टि तमाम

 कर्मक सिञ्चन हम्मर काम 

अछि बहसल अज्ञानक घोड़ा

तकरा पहिरा दियैक लगाम

 नभमे बिजुरी चमकत-छमकत

 मगन भऽ नाचत मोर

आस्था बिहुँसत, मेहनति बरिसत 

नेहक उठत हिलोर


१६). हम्मर बेटा रामसन


बीस बरखा टेरलिङिया कुरता

तैपर साटल चेफरी छै 

शीतलहरीमे ओक्कर ओढ़ना 

पोतीक फेकल केथरी छै

सोना गढ़िकऽ इएह फल पौलक 

अपने बनि गेल तामसन

वाह बुढ़बा तैयो बाजैए 

हम्मर बेटा रामसन


हरबाहीक अपराधमे बुढ़बा 

समाजसँ बहटारल गेल

ब्राह्मण जातिक कलङ्क बनिकऽ 

आगि-पानिसँ बारल गेल 

जे देखए से बाजए एक्कर 

विधने छै जनु वामसन 

मुदा कहैए बुढ़बा, स्वर्गहु 

हएत ने हम्मर गामसन


मिठगर बोलहिसँ बुढ़बा

बॉटैए सभकेँ पान-मखान

बाँहि डोलाएब पुरहिताइ, आ 

काजकें बूझैत अछि जजमान

 घोकचल चमड़ी रौदमे तबिकऽ 

आओर लगै छै झामसन

मुदा ओ बूझए गङ्गोजल नहि

काजुल देहक घामसन


१७). एकटा पाप करs दिअ


प्रेम करब जँ पाप थिक तँ 

एकटा पाप करऽ दिअ

 तिलकोरिया युग-अधरपर

अधरक सही छाप करऽ दिअ


लिअ पहिरिए आइ अहाँ

हमर सिनेहक मुन्द्रिका

दू तन एकाकार भऽ जाए 

मना ली मधु-चन्द्रिका

रखने छी यौवन ककर बखड़ा 

देखबै छी एना किए नखड़ा

जीवन-पथपर यौवन रागमे

प्रेमालाप करऽ दिअ

प्रेम करब जँ पाप थिक तँ 

एकटा पाप करऽ दिअ


बिहुँसैत फूलक गमकैत यौवन 

दुइए दिनक से जानि लिअ 

मुरझाकऽ पछताएब से एखने 

हमर कहल अहाँ मानि लिअ 

बड़ मोश्किलक उपज जिनगी 

धधरा करू सुनगाउ चिनगी 

नेहक तागमे देह गाँथिकऽ

माला जाप करऽ दिअ

प्रेम करब जँ पाप थिक तँ

एकटा पाप करs दिअ

 

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धीरेन्द्र प्रेमर्षि सँ dhipre@gmail.com पर गप्प कयल जा सकैत अछि। 

धीरेन्द्र प्रेमर्षिक किछु गीत धीरेन्द्र प्रेमर्षिक किछु गीत Reviewed by ई–मिथिला on मई 03, 2025 Rating: 5

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमर प्रिय गीतकार मे सँ एक प्रेमर्शी सरक गीत सभ पढ़ि भाव विभोर भ' गेलहुँ। गीत जँ एहन वैचारिक होए त' समाज मे परिवर्तन आनब संभव।
    -प्रिय रंजन

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  2. भाई धीरूक गीतक श्रोता हम आरम्भहि काल सँ रहल छी. शानदार गीतकार छथि. मुदा गीत सब पर अहाँ टिप्पणी अत्यन्त समसामयिक, समीचीन आ सारगर्भित सेहो अछि. दुनू सर्जकक अभिनन्दन आ अभ्यर्थना . -किशोर केशव, पटना

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  3. धीरू भाय नीक गीतकार आ गायक छथि से सर्वविदित ऐ, मुदा गीतक चयन आ आइ पर टिप्पणी प्रशंसनीय. जं एहि तरहें कोनो रचनाकारक रचनाक परिचय देल जाय तं सही मे ओ थाती बनत. मोन जुड़ा गेल.

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  4. वाह बहुत निक चित्रणक सङ्ग उत्त्कृट लेखन
    -दिलिप मण्डल धानुक

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  5. emithila मैथिली साहित्य सन्सार मे सम्मानित portal छैक । गीत सब वैश्विक पाठक के लेल सुलभ भेलै ।बहुत बधाई ।-कर्ण संजय

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