अग्निजीवी पीढ़ीक प्रतिनिधि कवि व पत्रकार अग्निपुष्प सत्तरि-अस्सीक दशक मे विमर्शकक रूप मे बेस चर्चित रहलाह। मूल रूप सँ दरभंगाक तरौनी गाम निवासी अग्निपुष्प अध्ययन केलाक बाद दरभंगा आ फेर पटना केँ अपन कार्यक्षेत्र चुनलनि। नक्सलबाड़ी आंदोलन मे सक्रिय भूमिका निभेलाक बाद ओ भाकपा-माले मे पार्टी कैडरक रूपमे काज कएलनि। साहित्य मे नक्लसबाड़ी आंदोलन सँ उपजल अग्निजीवी पीढ़ीक आधार स्तंभ अग्निपुष्प मिथिला मे साम्यवादी आंदोलन केँ धार देलनि। अपन वैचारिक प्रतिबद्धताक कारणें विभिन्न मोर्चा पर लड़ैत रहलाह मुदा कहियो झुकलाह नै। हुनक रीढ़ सदैव सीधा रहल। हुनक समानधर्मा संगी कुणाल, राज, ज्योतिवर्द्धन, शैवाल, नरेंद्र आदि एक समय मे मार्क्सवादी विचारक कारणें मैथिली साहित्य आ मिथिला मे चर्चाक केन्द्र मे रहैत छलाह। ओ मैथिली साहित्य मे वरिष्ठ रचनाकार रामलोचन ठाकुरक कहला पर अयलाह। पहिने ओ केवल साम्यवादी विचारधाराक प्रचारक लेल हिंदी मे लेखन करैत रहथि। पटना मे प्रतिबद्ध पत्रकारिता आ प्रतिबद्ध साहित्य लेखनक केंद्र बिंदु बनल रहलाह अग्निपुष्प। कतोक संस्थाक स्थापना मे सेहो सक्रिय रहलाह। मैथिली मे ओ सब सँ पहिने शिखा नामक पत्रिकाक संपादन कुणालक संग मिलि क’ केलनि। आपातकालक दौरान ई पत्रिका अपन वैचारिक तेवरक कारण अत्यंत चर्चा मे रहल। ओकर बाद जीवकांत जीक संग वैचारिक विमर्श (ढेलमौस प्रकरण) ओ मिथिला मिहिरक वैचारिक विरोधक कारणें शिखा चर्चा आ बहस मे रहल। हुनक सहस्त्रबाहु पोथीक भूमिका विमर्शक एकटा नव द्वारि खोललक। ओकर बाद कतोक पत्रिकाक मुद्रण आ संपादन मे हुनक सहभागिता रहल। संवाद नामक मैथिली पत्रिकाक ओ अंतिम बेर संपादन केलनि, जे वैचारिक रूपें हुनका प्रतिष्ठा दियौलक। एहि सँ पहिने समकालीन जनमत हिंदी पत्रिकाक दीर्घ अवधि तक संपादन कएने रहथि। एहि क्रम मे संयुक्त बिहारक कतोक ऊर्जावान पत्रकार एहि सँ जुड़ल रहलाह आ कतोक पत्रकार अपन पहचान बनौलनि। अग्निपुष्प चाकरी लेल आर्यावर्त आ जागरणक संपादकीय विभागक वरिष्ठ पद पर काज केलनि। मैथिली मे मूल रूप सँ ओ कविता लेखन मे अपन पहचान बनौलनि। ओना ओ किछु कथा सेहो लिखलनि। राजकमल चौधरीक मुक्ति प्रसंगक मैथिली अनुवाद सँ ख्याति भेटलनि। कम लिखय बला अग्निपुष्प अपन वैचारिक प्रतिबद्धता सँ कहियो हटलाह नहि। संस्कृतक प्रकांड विद्वानक परिवार मे जन्म लेबय बला अग्निपुष्प बिहार मे मुद्रण आ संपादनक एकटा नव अध्याय रचलनि। नाम सँ बेसी काज पर विश्वास करय बला अग्निपुष्प हिंदी-मैथिलीक चर्चित किताबक प्रकाशन-संपादन केलनि। हिनक देखरेख मे मुद्रित आधा दर्जन सँ अधिक पोथी केँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटि चुकल छै। बर्ल्ब लिखबा मे दक्ष अग्निपुष्प सँ वैचारिक रूपें धुर विरोधी सेहो ई काज करबैत छलाह। हुनका मे किताब आ पत्र-पत्रिका केँ कम संसाधन मे सुन्नर बनेबाक हुनर गजब छल। हुनका सँ दीक्षित दर्जनों पत्रकार देशक विभिन्न जगह पर काज करैत छथि। पत्रकारिता आ वैचारिक साहित्य लेखनक स्कूल रूपें चर्चित अग्नपुष्प अपना केँ कहियो विज्ञापित नहि केलनि। सभ सँ मधुर संबंध रहितो वैचारिक मतभिन्नताक कारणे ओ मंच-पाग सँ दूरे रहलाह। अपन शर्त पर मैथिली पोथी आ पत्रिकाक संपादन करय बला अग्निपुष्प मैथिली साहित्य मे प्रगतिशील परंपराक विशिष्ट खोज कर्ता छलाह। यात्री, डॉ धीरेंद्र, सोमदेव, रामलोचन ठाकुर, मोहन भारद्वाज, कुलानंद मिश्र आदि सँ वैचारिक समानता रखय बला अग्निपुष्प अपन पीढ़ीक सभ रचनाकारक प्रिय आ प्रवक्ता छलाह।
— कुमार राहुल
|| अग्निपुष्पक किछु कविता ||
१). की चुनू
रातुक शृंगार चुनू
आ कि भोरक सिंगरहार
आकाश मे छिड़िआयल तरेगन
चुनू आ कि टूटल सितार
ऊँच गाछ तारक चुनू
आ कि काँट लुबधल खजूर
कुसियारक काप चुनू
आ कि सघन बोन बबूर
खढ़-पतवार चुनू आ कि
तिजौरीक खूजल ताला
सगरो घोटाला चुनू
आ कि षड्यंत्रक हवाला
स्वप्न मे फुलायल
पारिजात चुनू आ कि
धूरा मे लेढ़ायल निर्माल
उफनैत नदीक कछेर चुनू
आ कि टूटल नाह मे मझधार
फेर अपन अलच्छ हाथ चुनू
आ कि हथलग्गू हथियार
२). कुहेसल अन्हार
नदीक एक कछेड़ मे
थमकल तों नाह आ
दोसर कछेड़ पड़ल हम पतवार
हमरा तोरा बीच मे
पसरल अइ कुहेसल अन्हार
जतबे लागीच देख’ चाहैत छी
हम अपन दुनू हाथ
ततबे फराइ अइ
जेना हो बरेड़ी आ चिनवार
अन्तहीन यात्राक
निस्तब्ध सड़क हम
आ तों क्रूर सवार
कतबो ढेहु उठए
नइं भेटल-ए सागरक तल मे
नेह स’ गढ़ल तोहर आकार
राजमुकुटक उच्चाकांक्षी तों
आ हम सिंहासनक पहरेदार
साज ओहिना सजौल अइ
मात्र टूटल अइ संवादक सितार
आसक पलाश हम
आ तों ऊसर पहाड़
३). इजोतक लेल
अन्हार गुज्ज गाम दिस
आस्ते-आस्ते
बढ़ल आबि रहल अछि
कोनो हमर संगी
इजोतक लेल
लतरल जाइत हो जेना
कजरी लागल देबाल पर
कोनो मुक्तिकामी अपराजिता
फूलक लत्ती।
गाम जत’ अनघोल होइ
जत’ रीलीफक रोटी
फाँसीक फन्ना सन बुझाएल होइ
सामन्त, मुखिया आ पुलिसक
एकटा छुट्टा गोल होइ
गाम अनघोल होइ
अन्हार घरक डिबियाक
ममरी लागल बत्ती कें
कने आर उसका देलकै’ए
हमर संगी -- इजोतक लेल
हमर घरक इजोत पसरि गेलै’ए
सौंसे गाम मे।
गाम जत’ युवक कें
पकड़ि लेलकै’ए कोतबाल
देबाल पर नारा लिखबाक अपराध मे
आ अपराधी बसल हो
पुलिस-कैम्पक देखभाल मे
गाम जत’ आब सिंगरहारक
फूल नइं झड़ैत होइ
सब टोल बबूरबोनी बुझाइत होइ
कतौ बाढ़ि होइ
कतौ दरारि होइ।
बाबू साहेबक डरें आब
लोक गाम छोड़ि नइं पड़ाइए
अन्हारो मे एक-दोसराक
बाँहि पकड़ि आगू बढ़ि जाइए
एक गाम स’ दोसर गाम धरि
बढ़ि जाइए हमर संगी
इजोतक लेल
हमर संगी जे हमर विचार अछि
हमर संघर्ष अछि
अन्हार गुज्ज गाम दिस।
४). ई आँखि
सागर सन ई गहींर आँखि
ओहि पर अफगानिस्तानक
कारी-कारी धुआँइत मेघ
पालविहीन नाह
लहरि केँ चिरैत चलैए
डुबकी लगबैए अथाह तल मे
तकै लेल मूँगा आ मोती
मुदा नाह स’ टकराइ-ए नरमुंड
ई आँखि जखन तनैए
एकहि संग होइए
गाम, नगर, गुफा आ कन्दरा मे
नरसंहारक अष्टयाम
मुठभेड़क मनगढ़ंत नाम
मोती, मूँगा छोड़ि
आँखि हेरैए अपन-अपन लाश
जरैत अपन गाम
जंगलक शांति होइए
जखन उठैए दावानल एहि आँखि मे
जंगल जरैत रहैए
चिड़ै उड़ैए आकाश मे
लोक कोनो एकांत गुफा मे समा जाइए
इन्द्रधनुष भ’ जाइए जखन ई आँखि
एकहि संग सिंगरहार झरैए
सागर मे तूफान उठैए
जरल जंगलो मे लोक कतारबद्ध भ’ जाइए।
५). दादागिरी
अपन धरती पर
अपने फसिल हम
आइ काटल अछि
अहाँ अनेरे तमतमाएल छी
हम एकरा खातिर
दिन-राति बितौने छी
चान नहि रुकै छै
आकाशमे
लहरि नहि रुकै छै
समुद्रमे
नव पल्लव होएब
नहि रुकै छै
कोनो गाछ पर
कोनो प्रतिबन्ध स’
बारुदक ढेर पर बैसि क'
शान्तिक लेल अहाँक
ई केहन दादागिरी अछि
ई केहन साझी बिरादरी अछि
६). न’व वसंतक लेल
भाइ, अहाँ आइ धरि
गामक सिमान टपि जेबाक
एकटा व्यर्थ चेष्टा करैत रहलहुँ
महानगरक मोह मे
नचैत मशीन मे
ट्रामक भीड़ मे
काली मंदिर स’ कॉफी हाउस धरिक
कोलाहल मे आ
एकटा इंद्रधनुषी साँझ मे
अपना केँ तकैत रहलहुँ
च'र स’ घर घुमैत
हेंजक हेंज चोंच खोलने चिड़इ
चुनमुन्नी केँ बिसरैत रहलहुँ
अहाँ नदीक दूटा कछेड़ सन
दूटा परस्पर विरोधी वर्गक बीच
एकटा पुल बनल रहब
मुदा अपन हेरायल बाट नहि ताकि सकब
अहाँ ओत' एकटा भुखायल भीड़क
चिचियाइत स्वर भ' सकै छी
अहाँक स्वर सदिखन
दबाइत रहत बूटक स्वर मे
धुआँइत रहत टियर गैस मे
राजमार्गक दुधिया इजोत मे
अहाँ बिसरि गेलहुँ
गामक बीच बाट पर चतरल
एकटा गाछ
बाड़ी मे अनेरुआ जनमल
मिरचैयाक झाड़
अपन आड़ि पर ससरैत शंखडोका
तिजोड़ी मे बन्न होइत औंठा निशान
अहाँ बिसरि गेलहुँ
पोखरिक दाउर भ' गेल लोक
कुहेस मे डूबल सौंसे गाम
आबा जकाँ धधकैत गामक सिमान
भाइ, फेर बेर घुमि आउ
अपन गामक सिमान मे
अपन टूटल मचान मे
गामक एहि आइनिक अंत लेल
एकटा न' व बसन्त लेल।
७). वनक श्रृंगार
श्वेत हिरण सन सरपट दौड़ै-ए
दिन दुर्निवार
तैयो कुसुमक कली-कली करै-ए
वनक श्रृंगार
बहै पछवा आ कि पुरबा
बेमाइ हमरे टहकत
दरकत हमरे ठोर
जेना पड़ल हो खेत बीच दरार
साझी दलान बटल
पड़ल पुरान आंगन मे नव देबाल
नइं बनत आब सांगह
हमर घरक....
ई टूटल हथिसार
सागर मोन मे आस्ते-आस्ते
उतरै-ए डगमग करैत नाह
हाथ नइं पतवार
आंखि मे जंगलक अन्हार
सगरो इजोत ता’ बिदा होइत छी,
खूजल अइ छोटछीन खिडकी
मुदा अपन घरक निमुन्न अइ केवाड़
के मारल गेल, पकड़ल के गेल
से कह’ आ ने कह’
भोरक अखबार
मुदा सेनुर स’ ढौरल अइ हमर चिनवार
कोइली कुहुकि-कुहुकि कहत
कखन हैत भोर आ
कत’-कत’ अइ ऊँच पहाड़
कारी सिलेट पर
लिखल अइ बाल-आखर
जेना सड़क पर सगरो
छिड़िआएल हो सिंगरहार
८). मरीचिका
हमर देशक संविधान
किछु लोकक
सुविधा लेल बनाओल गेल छैक
आ
जनतंत्र कखनो संसद मे
आ कखनो सड़क पर
खाली कनस्तर जकाँ
गुड़कि रहल छैक।
तीस बरखक बाद
संसद मे दोसर स्वतंत्रता
घोषित कयल गेल छैक
फेर एक
लाशक अम्बार पर
तबक साटि देल गेल छैक।
फोटो बदलैक संग
फ्रेम नहि बदलि जाइ छैक
मुखिया बदलि गेला स’
गाम नहि बदलि जाइ छैक
सरकार बदलला स’
व्यवस्था नहि बदलि जाइ छैक
एहि संविधान केँ अहाँ
कखन धरि संजोगने रहब
जनतंत्रक जाल कहिया धरि बुनैत रहब
संसद स’ बाहर
आबि जेबाक लाथ
कहिया धरि धरैत रहब
गामक बसात बदलि गेल छैक
पतझड़क बाद
अमलतासक पात बदलि गेल छैक।
९). सुगंधि पसरैत रहय
(अस्मिताक लेल)
सिनेहक सुगंधि पसरैत रहय
ने ऊँच पहाड़ रोकय
ने रोकि सकय पवन
ने टोकि सकय कोनो चलन।
सिनेह कखन आँखि स’
पसरि जायत आँचर पर
बालु पर बनल आकृति सन
भखड़ि जायत कखन,
सिनेह बिजलौका सन
कखन चमकि जायत
पसरि जायत मौसमक मज्जर पर
कोइलीक कूक सन कखन।
सिनेहक आँगन तुलसी चौड़ा नञि
अकादारुण बबूरवन
धवल आकाश मे कारी-कारी मेघ
लोल मे जोगौने एक टा काठी
आकि एक टा खढ़
अपन सिनेहक घर लेल
उड़ल जाइत अज्ञात जन वन मे
चिड़ै-युगल
ने पाछू पगहा ने आगू लगाम
सिनेहक आँगन स’ अथाह महानगरक
एकांत यात्रा
ने सजल महफा ने हकमैत कहार
सोझाँ मे पसरल
भुतही गाछीक अन्हार
सिनेहक सुर आ संवेदना स’
छारि ले अपन घरक चार
आत्मसम्मानक बड़ेरी पर
उगा ले सहस्र तरेगन
आँगन स’ गगन धरि
पसारैत रहै सिनेहक सुगंधि...
१०). काल
अपनहि रोपल एक टा
चतरल गाछ
सूर्यक अवसानक संग
अहाँ केँ भुताह बुझाय लागत
अहींक बनाओल घरक
सभ टा खाम्ह
ओछौन पर पड़ैत
अहींक देह पर खस’ लागत
अँखियासल बाट पर बढ़ैत डेग
अतीत दिस घुसकैत बुझाय लागत
यथास्थितिक विरोध मे
उठल अहाँक हाथ दिस
कतेको घबाह आँगुर उठ’ लागत।
११). कालचक्र
मनुख कखन मशीन भ’ जाइए
मशीन मे पिसाक’ कखन चिक्कस
भ’ जाइए, से नञि बुझि पबैए
भूमंडलीकृत बाजारक बेगरताक
मोताबिक ई मशीन समान गढ़ैत रहैए
कखन आ कत’ एहि मशीनक मोल
केना घटि आ बढ़ि जाइए
सेहो नञि बुझि पबैए।
मशीन बनल ई मनुख
कखन आ केना
कबाड़खाना धरि पहुँचि जाइए
से नञि बुझि पबैए।
१२). भोर
बाजल कौआ भेल सिनुरिया भोर
सिंगरहारक सुगन्धि स’ माँतल कन-कन ओस
गाम जागल
मजूर-किसान जागल
भागल अन्हरिया आ कुहेस
किला जकाँ ठाढ़ छै पुलिस
गामक चारू ओर।
उड़ल चिड़इ चोंच भरि दाना लेल
खेतहिमे सुखाएल कुसियार दिस
आँखि मे फाटल धरती
भूखें कनैत बच्चाक नोर।
कोठी भरल
उमरल छल दलान
मालिकक आँगन मे
आइ नाचत
सोलहो कला स’ इन्द्रधनुषी भोर
केहन ई भोर
गुड्डी जकाँ कतबो ओ
उड़ए आकाश
हमरे सक्कत हाथ मे छै अनन्त डोर
उमड़ल बलान सन
बढ़ल जा रहल' ए लोक
अही माटि पर खसल छल
घाम हमर इनहोर।
अपन साम्राज्य बढ़ेबाक
चारू कात छै होड़़
हमरे शोणित स’ सुग्गा सन छै
रूसी आ अमरीकी शासकक ठोर
हमरे गाम सन छै एल-साल्वाडोर
१३). संकेत
एना होइत छैक भाइ
हरियरकंच बाध-बोनक
सबटा धानक खखरी भ' जाइत छैक
मेहक चारूकात घुमैत
बड़दक मुँह मे जाबी लगा देल जाइत छैक
ललाट स’ चुबैत घाम
नासिकाग्र धरि अबैत-अबैत सुखा जाइत छैक
ह'रक लागनिक ठेला
बेर-बेर कजरौटी पर पड़ैत छैक
आ
पन्द्रह दिनक अन्हरिया स’ त्रस्त
आकाशक ओरियानी मे
एकटा कचिया हाँसू चमकि उठैत छैक।
14). अहीं छलौं
कार्तिक पूर्णिमाक
भीजल दुधिया राति
एकहि बाट पर
फुलायल कचनार
सटले गमकैत सिंगरहार
दुनूक बीच हम आ अहाँ
अपन-अपन एकांत मे ठाढ़
कचनारक छाया
सिंगरहार स’ आलिंगनबद्ध
अहाँ अपन सुगंधि द’ रहल छी
हम अपन रंग
एहने छल हमर सभक मार्ग।
सुगंधि स’ माँतल
रंग स’ सराबोर
यैह छल हमर मुक्तिक मार्ग
हमर रंग मे
मुक्तिक हमर अनथक रण मे
अहीं छलौं, अहीं छलौं!
१5). स्नेहक समस्त सुर
अहाँक नाम नागफनीक
दुर्लभ फूल
अहाँक एकान्त प्रतीक्षा मे
हम बिनु बसातक धूल
अहाँक नाम सांगह बिनु
लतरैत अपराजिताक लता
हम बरिसातो मे अतृप्त
झोझरिक पात
अहाँक नाम निर्जन वनमे
अविरल बहैत अमृत धार
आतुर आकांक्षाक संग
कछेड़ मे हम ठाढ़
अहाँक नाम मन्दिर मे
आराध्य भव्य मूर्ति
हम कोनो कात मे फेकल निर्माल
अहाँक नाम उगैत सूर्यक
विस्तृत लाल क्षितिज
हम चहुँ दिस पसरल
अन्हार गुज्ज अन्हरिया
अहाँक नाम स्नेहक समस्त सुर
चारू पहरक समस्त राग
अहाँक नाम साधल
वीणाक तार
हम असमय हहाइत
बाँसक बेसुरा स्वर
ज्ञात-अज्ञात गन्ध
हम इन्द्रधनुष सन
सतत बदलैत अपन रंग
अहाँक नाम शाश्वत
चतरल वटवृक्ष
हम जेना नदी छोड़ि
देने हो अपन मूल कूल
१6). लोढ़ाक धान
लोढ़ाक धान स’
आचर भरि अनैत छलौं
लाइ, मुरही आ पान
आब उगल चान सन
एक टा प्याज किनै छी
अपन आँखि हम
अपने हाथे मलै छी
अहाँ किए
बेर-बेर हँसै छी
बेर-बेर चिकरै छी
लोढ़ाक धान
कातिकक बाद हमर प्राण छल
हमर अस्तित्वक गुमान छल
अहाँ बेर-बेर लुझि क’
सरकार बनबै छी
आ बेर-बेर तोड़ै छी
१7). नव बाट बनाबी
आउ, आरो लग आउ
किछु डेग संग-संग
एहि अनजान महानगर मे चली
आड़ि पर जेना
आगू-पाछू चलैए लोक
परछांइ हमर सभक
टकड़य एहि स्याह सड़क पर
मुदा, भीतर चुपचाप बैसल मोन
बाहर निकलय
जेना नव दूभि
निकलैए खेत मे
आउ, आरो लग आउ
चली ओइ नुक्कड़ दिस
अस्त होइत सूर्य केँ रोकि दी
अफवाहक अन्धकार केँ
छाउर क’ दी
बरू एकपेड़िए सही
अइ सुनसान मे
एक टा नव बाट बना दी
•••
अग्निपुष्प:
[13 सितम्बर 1950 – 03 मई 2025]
जन्म स्थान : तरौनी, दरभंगा, बिहार
प्रमुख कृति :
सहस्त्रबाहु (कविता संग्रह)
मुक्ति प्रसंग (राजकमल चौधरी)क मैथिली अनुवाद
संपादन :
शिखा, संवाद, आरंभ आदि (मैथिली पत्रिका)
समकालीन जनमत
मैथिलीक कतोक पत्रिकाक संपादन सँ जुड़ल रहलाह।
मैथिली कविताक हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषामे अनुवाद।
आर्यावर्त व जागरणक संपादकीय विभागमे वरिष्ठ पद पर कार्य।

स्मृति तर्पण
जवाब देंहटाएंकॉमरेड अग्निपुष्प कें लाल सलाम! ✊🏾
जवाब देंहटाएं-Aaditya Krishna
विनम्र श्रद्धांजलि।–अशोक
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