लोकतंत्रक लोक, तंत्रसँ अछि तंग


|| अम्बिकेश कुमार मिश्रक दस गोट कविता ||


). पिताक कबुलामे अछि हमर जीवन


एकटा बेंत हाथमे नेने टुघरि रहल छथि पिता,

जेना आकाशसँ चलल उत्साहित मेघ

टघरैत हो ओलतीसँ अँगनामे

टुघरै छथि पिता 

जेना पीठक खोल भरोसे कोनो कछुआ 

चलैत अछि डेगा-डेगी।

 

साँझक ओंघायल ओसारापर कोनो दीप सन

चमकैत पिता,

अवस्थाक आधासँ अधिक व्यथाक दिन भोगि नेने पिता

अदहनक ओरियाओन करैत कोनो आकाश दीप सन चमकैत पिता,

चलैत छथि डेगा-डेगी

जेना चलैत अछि फसल चक्र

जेना चलल होथि विष्णु आहार बाँट’

चलैत छथि हमर पिता।


रौदमे, जाड़मे, मेघमे,

हमर स्नेहमे पड़ल पिता

चलैत छथि एक हाथमे हाँसू आ दोसरमे पथिया नेने।


). लोकतंत्र


माथपर बोझ उठबैत 

धान फटकैत

राहरि झारैत

मौसरी डेंगबैत

खखरी फटकैत

टहल-टिकोरा करैत

मालिकक,

सलहेस खेलाइत

ब्रम्ह पुजैत

क्षुधित आस्थाक पातरि लगबैत

रार, मुसहर, डोम, दुसाध, ब्राह्मण, गुआर 

सब छी लोकतंत्रक रखबार

 

लोकतंत्र?

मुँहमे ऊक रखने लोकतंत्र

गाबि रहल अछि मल्हार

लोकतंत्रक अंगैठी मोड़े

कुम्हला रहल कचनार

 

कचनार जाहिसँ तागल जाइत अछि माला

भ्रष्टक इमानसँ

गुदरीमे ओझरायल आकाश

भीख माँगि रहल सूर्य-चानसँ

 

लोकतंत्र?

लोकतंत्रक लोक, तंत्रसँ अछि तंग

गाबि रहल अछि औपचारिक स्वाधीनताक गीत

 

लोकतंत्र?

जत्त धर्म बले बदलल जाइत अछि

लोकक विवेक

अनकर सोचमे

निन्नमे, सपनामे

भरि देल जाइत अछि

अपन आह्लाद

अपन अभिलाषा

धर्मक रस्ते

 

लोकतंत्र?

लोकतंत्रक बले अनकर आगिमे जरै आन

अछैते लोक सह-सह

गाम लगै सकदम्म

कतहुँ-कतहुँ रुदन गान

 

लोकतंत्रक सरकार गद्दीपर बैसि

उखरिमे ध'

तंत्रक मुड़ी

धर्मक ठीकेदारसँ ठोकबैत अछि

देशक भाग्य

मुँहमे खुद्दी द'। 


). की लिखैत अछि छागर?


बलि प्रदानक बाद
शोणितसँ सनल
अर्धमृत दुधमुँहा छागर
टांगसँ किछु लिखैत अछि—
शून्यमे
बेर-बेर चारु टांग तानि

की कहै छै?
की लिखै छै? 
एक नहि, दू नहि, तीन नहि 
चारु टांग ऊर्ध्वाधर क'

हमरा जनैत
प्रसन्न भ' लहराब' लगैछ चारु टांग
जे एहेन भाग्य कटलहुँ देवी लेल
जा सकैछ हलालामे
नहि हलालीमे

दुनू एक्कै

हलाला वा हलाली

मुदा नहि
किन्नहुँ नहि होयत ई ठीक आकलन
कटि क' कोना होयत ओ प्रसन्न! 

ई भ' सकैछ बलिकट्टाक विरुद्ध 
जोरगर विरोध
वा किनसाइत दयाक याचना करजोरि

किछु भ' सकैछ 
कविताक सामर्थ्य नहि स्पष्ट क' पायत गोट-गोट 
बात फरिछा

एकर उत्तर अहाँक मोनमे अछि
की लिखैत अछि छागर?

 

४). अनुत्तरित प्रश्न


नेन्नासँ जुआनी धरि
सुनैत अयलहुँ
हरहरा होइत अछि बड्ड घातक
जँ शनि दिन काटि लियए तँ बाँचब मोसकिल
ओना नहि कहियो देखल
नहि सुनल ककरो कटने होइ हरहरा

तहिना आइ धरि नहि बुझलहुँ
कोना चुट्टी नहि भुतियाइत अछि अपन बिल?
कोन सेंसेटिव सेंस मुर्गाकेँ उठा दैछ अन्हर भोरे?
कौआ साँझमे कोना ताकि लैछ अपन गाछ?

किछु अनुत्तरित प्रश्न अछि एहिना
जे नहि बुझि पयलहुँ आइधरि
माँ हमरासँ बेसी प्रेम करैछ वा हमर बहिनसँ?
रौरवमे ठीके डाहल जाइछ लोकक आत्मा?
की प्रधानमंत्रीक सपनामे अबैछ फांसी लगा लटकल किसान?
की मंडल कमिशनक अधिकारीकेँ लागि गेल रहै भूतसप्पा?
लोकक मानवता खा गेलै बनबिलाड़ि?
की अहाँक बुझल अछि—
हरहरा ठीके कटैछ?


५). साम्यताक देहपर नचैत अछि हमर गामक लोक


जखन बाबी खरनाक ओरिआओनमे रहैत
चाउर फटकैत रहै छथि
जहन हम खाइत रहै छी
मुरही-कचरी
जखन दुमसिया बुदरु किनैत रहैत अछि
फुकना
पिपही बजबैत
ठीक तहने निशा पूजाक नियारमे लागल
गामक चटबाह
पखारैत रहैछ छागरक खूर
हाथमे अक्षत-फूल-जल रखने
परीक्षाक बाट देखैत ओंघाइत पूजेगरी
कुश आसनपर बैसल रहैत अछि

जखन होइत रहैत अछि भगवतीक आरती
कपूरक इजोतमे
"अय गिरी नंदिनी" आ "देव्यपराधक्षमास्तोत्रम"मे
दबि जाइछ कत्ते कनैत मायक नोर

बलिप्रदानक वास्ते
थथमारै लेल छागरक नेनाक
बनाओल बाँसक ढाठमे
कुदैत-तरमराइत-खसैत छागर
कटल सखाक शोणित देखि
साकांक्ष सहमल ओ
डरक कोन सीमा तक जाइछ
नहि कहि!
धरि तखने अहाँ मेलाक भीड़मे
देखि सकै छी
ताड़ी पी छागरे सन तड़पैत
गारि गबैत
चिचियाइत डोमकेँ
जे साँझ सँ प्रातमे लैत अछि नव जन्म

देखि सकै छी
डायनक डरे
नेनाक हाथमे बान्हल नव जंतर
गरामे लहसून 
ब्राम्हणक बस्तीमे कचड़ी बेचैत चमार-खतबे-धानुक-तेली
फुक्का बेचैत मोहम्मद मुस्ताक, सुफियान, आशिक़
बिन डोम पूजाक डाला-पनपथिया कोना सम्भव?
बिन चमार के बाजाओत पिपही-ढ़ोल?
सभ रहैत अछि, सभ किछु होइछ नीक-बेजाय
ओना हमरा मोनमे घुरियाइत रहैछ
एकटा प्रश्न—
जे पैंतीस बरखक जवान नव विवाहित पूजेगरी
कुस आशनपर बैसि मोनमे राखि पबैछ दुर्गा?
जकर कनिया सेहो होइ दुर्गे सन।

(पूजामे हल्ला भेल जे भूखल बाभनक दुमसिया
फांकि लेलकै डोमक सिदहा)


६). दुःखक देहमे बसैत अछि हमर चैतन्य


नल छी हम
दमयंती विहीन
अमरावतीसँ निष्कासित
वियोगी हेममाली हम

हिटलरक गैस चैम्बरमे 
हाइड्रोजन सायनाइड पिबनिहार
अंतिम यहूदी हमहीं छी
हमरे आँखिक समक्ष मरल छल गोट-गोट नेन्ना
गोट-गोट स्त्री

स्टॉलिनक गोलीसँ बाँचल
एकमात्र गरीब
औरंगजेबक हाथे मरल
पहिल हिन्दू
त्रेताजुगक शुद्र शम्बूक
बाली छी हम
द्वापरक बर्बरीक
हमहीं छी

पुष्यमित्र शुंग हाथे मरल
सबसँ जुआन बौद्ध
भगवतीक बाट जोहैत
महामूर्ख कालिदास छी हम
वृहद्रथ छी
जूलियस सीजर हमहीं छी

निन्नसँ मातल
सुतै लेल जगह ताकैत ठेहियायल रिक्शाबला
जकरा सुतला पाँछा सपनामे
सभ दिन अबै छै 
हँसैत एलान कुर्दी
ओ हमहीं छी

संसद भवनक गुम्बजकेँ चूनसँ ढोरैत 
जनुअरीमे घाम पोछैत मजदूर
हमहीं छी।


७). मूँह जाबल द्रौपदी छथि

 

गेल छल खीचल

बीतल दिन

द्रोपदीकेँ चीर

नहि रुकल अखनो प्रथा ई!

जा रहल खीचल पुनः आइ द्रोपदीक चीर

द्रोपदीक चीर खीचल जा रहल अछि तीव्र गतिसँ

भ' जेती आब शीघ्र लज्जित द्रोपदी

छनि मुँह जाबल धाख सँ!

कोना बजतीह?

ककरा बजौतीह अहि विजनमे?

लोक तँ अछि मग्न मैथुन क्रियामे!

ककरा बजौतीह?

पाँचों पांडव मग्न छथि गाँजाक नशामे!

कोना सुनताह?

की बचा पौताह सभामे हमर इज्जत

भीष्मक सोझाँ?

कर्णकेँ हत' क' पौता, हमर सुभीते

अहि सभामे?

कृष्णकेँ कोना बजौतीह?

कृष्ण तँ छथि साम्प्रदायिक

दुनूक छनि जाति अप्पन, भिन्न-भिन्न

आँखि सबहक गड़ि चुकल अछि द्रौपदीक देह

खुजि जायत चीर लगले आब

नग्न भ' जायत मनुजता पौरूषक पुनि

आधुनिक हस्तिनापुरमे।

 

८).  लोकतंत्रमे कुलोक


मंचसँ मंत्री कहैत अछि हम सभ छी सनातनी

आ अपन जीत सुनिश्चित करबाक लेल लगबैत अछि फूसिक ढ़ेरी।

हम पुछै छी, यौ नेता जी की अहाँक नहि अछि पढ़ल फूसि बजबाक दण्ड, मनुस्मृतिमे?

ओ उत्तर नहि देबाक लेल भरि लैत अछि अपन मुँहमे रामक नाम।

 

मंचसँ मन्त्री बूझबैत अछि अस्सी-बीसक भेद

आ अपन जीत सुनिश्चित करबाक लेल तत्पर अछि करबा लेल नरमेध।

हम पुछै छी, यौ नेता जी की अहाँक नहि अछि पढ़ल रमचरितमानसमे मुखियाक लेल लिखल तुलसीक परिभाषा?

ओ उत्तर नहि देबाक लेल भोकर' लगैत अछि— राम मंदिर-कृष्ण मंदिर, राम मंदिर-कृष्ण मंदिर।

हमर विचारमे पनपि रहल अछि कंशक छवि।

 

मन्त्री जे खाइत अछि बड़दक माउस ओ मञ्चसँ लगबैत अछि होहकारा गायक रक्षार्थ।

बौद्ध समारोहमे बुद्धक चरित्र आत्मसात करबाक आग्रही,

चुनाव समारोहमे बुझा रहल अछि धर्मगत वैमश्यक गुण।

यू.एन. मे जा शांतिक भभडाक कयनिहार नेता

देशक दंगापर खा नेने अछि पान।

 

नेता चुनाव जितबाक लेल करबैत अछि जाति-धर्मक दंगा 

लुटैत अछि सरकारी खजाना,

जरबैत अछि गाम, शहर

चलबैत अछि संविधान पर बुलडोजर 

कलपैत नेन्नाक नोरसँ भीजल माटिकेँ अपन पेशाबसँ मेटा दैत अछि नेता।

एहि कालखंडमे नेता, कनबाक सभ सबुतकेँ लोक स्मृतिसँ मेटेबाक ब्योंतमे अछि।

 

नेताक घोषणा पत्र लिखबाक लेल फेर ताकि लेल गेल अछि नरहिया।

घोषणा पत्रक मानी तँ एहि कार्यकालक बाद देवता सभ भू लोक लेल करताह माइग्रेट।


९). ओ कहने छलीह

 

ओ कहने छलीह—

'जे हम आयब'

आयब जहिया पड़त अहाँक खगता

आयब अहाँक सुतल वा जागलमे

अहाँक सपनामे आयब

जेना अबैत अछि गाछमे मज्जर 

जेना अबैत अछि ऋतुक देहमे वसंत

जेना अबैत अछि देहमे कोरोनाक वायरस

आ जेना अबैत अछि देहमे कमजोरी,

चुप्पे चाप जेना अबैत अछि मृत्यु 

हम आयब,

कोनो बस, कोनो ट्रैन, कोनो टमटमसँ 

जेना अबैत अछि सजल-धजल बिम्ब कोनो कवितामे

हम आयब 

सूरजक किरण सन,

आममे जेना अबै छै आँठी, 

कोलीक बाद, ठीक तहिना आयब।

 

आ चातक बनल हम हकबका क'

उठि जाइ छी सपनामे

जेना अनचोके उठि जाइछ पछुआ

सेमरक माथ चुमबाक लेल

गुलमोहरक देह जँतबाक लेल।

उठि जाइ छी हम।


१०). अहाँक आँखि


अहाँ अबैत छलहुँ हमरा सपनामे

सपनामे देखल अहाँक आँखि

सुत’ नहि दैत छल हमरा

शेष राति।

 

आब राति भ' गेल अछि पैघ

बिना निन्नक,

नहि अबैत अछि निन्न

नहि अबैत अछि सपना

नहि अबैत छी अहाँ।

 

जागलमे विस्मृत सन भ' गेल अछि अहाँक मुँह

जागलमे बाँचल अछि साँस लेबाक स्मृति

जागल स्मृतिमे बाँचल अछि गाम,

बाँचल अछि नाम। 

 

सपनामे अहाँ आँखिये हर्ष हमरा मस्तिष्कमे प्रवेश करैत छल। 


•••


अम्बिकेश कुमार मिश्र मैथिली कविताक टटका पीढ़ी सँ सम्बद्ध कवि छथि। ई पहिलुक अवसर अछि जखन हिनक दस गोट कविता एक संग   प्रकाश मे आयल अछि। ई कविता सभ जाहि प्रश्नाकुलता, व्यग्रता, वैचारिकी आ मानवीय संवेदना सँ अम्बिकेश सम्भव कयलनि अछि—  अपना समय आ परिवेशक ओहि तह धरि जाइत अछि, जतय पहुँचब प्रत्येक नीक रचनाकारक अभीष्टे नहि दायित्व सेहो होइत छैक। एहि दृष्टिये अम्बिकेशक कविता देखब सुखद अछि आ सम्भावना जगबैत अछि। उमेद अछि हिनक कवि समय आ समाजक आर तह धरि धँसत, सूचना-विवरण आर बेसी ग्राह्य आ विकसित फॉर्म मे गढ़त एवं कविता कहबाक अपन भाषा आ शैली विकसित करत— जाहि सँ पाठ अधिक सम्प्रेषणीय आ सहज बनि सकत।  ‘ई-मिथिला’ पर प्रकाशनक पहिल अवसर पर हिनका बहुत रास बधाइ आ शुभकामना। 

अम्बिकेश सतघरा, बाबूबरही, मधुबनीक रहनिहार छथि। सम्प्रति दिल्ली मे एकटा मल्टीनेश्नल कंपनी मे फाइनेंशियल एनालिस्ट छथि। हुनका सँ ambikeshk95@gmail.com पर गप्प कयल जा सकैत अछि।

लोकतंत्रक लोक, तंत्रसँ अछि तंग लोकतंत्रक लोक, तंत्रसँ अछि तंग Reviewed by emithila on जनवरी 25, 2025 Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. नीक कविता सभ. देखिते पढ़ि लेल हम. नव आस्वादक कविता. कविक उत्तरोत्तर प्रगतिक कामना.

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  2. छागर लिखैत छैक जे ओ अत्यंत प्रसन्नचित्त थिक कियैक त' ओकरा भगवतीक अनुग्रह भेटलै आओर आब ओ उच्च प्रजातिक श्रेणी मे उद्विकासित भ' गेल।

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  3. बहुत नीक कविता। कवि केँ बहुत-बहुत शुभकामना। हिनक स्वागत अछि कियेक तँ कविता एखन मैथिली मे अंसतोष द' रहल अछि ओहि मे ई मैथिलीक एकटा सुफल लागि रहल छथि।

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