सम्पादकीय ::
औखन जखन सोशल मीडिया पर प्रायः सभकेओ कवि अछि, लेखक अछि, टिप्पणीकार अछि— ओतय वैचारिकताक आग्रह, कथ्यक गम्भीरता, लेखकीय सुचिता सन-सन प्रश्न बेस पाछाँ भ' गेल अछि। आगाँ एतेक पैघ खतरा अछि, शत्रु एतेक बेसी पैघ आ आक्रमक अछि आ हमरालोकनि तकरा देखि नहि पाबि रहलहुँ अथवा देखियोक एहि गप्प केँ अनठबैत रहलहुँ अछि वा तकरा गछबा सँ पड़ाइत रहलहुँ अछि— ई हमरालोकनिक अवस्था आ दीनता दुनू एक संग प्रदर्शित नहि क' रहल तँ की क' रहल अछि? कोनहुँ सम्राट एहन नहि होइत छैक जकरा दिस आँखि नहि उठाओल जा सकय, कोनहुँ एहन सत्ता नहि जकरा खेहारल नहि जा सकय। कोनो युद्ध एहन पैघ नहि जे लड़ल नहि जा सकय। युद्ध कतबो पैघ हो, ई लड़निहारक साहस सँ तय होइत छैक। हार आ जीतक सभटा प्रश्न कोनहुँ मानी नहि रखैत अछि। मानी रखैत अछि अहाँक चयन। अहाँ जे चुनैत रहैत छी एकदिन अहाँ वैह बनि जाइत छी— कहबाक आवश्यकता नहि की ई चयन अहाँक स्वयंकेर निर्णय थिक। चहुँदिस कतबो शोर हो, उठाओल एक-एकटा स्वर ई तय करैत अछि, समयक दिशा केम्हर होयबाक चाही। सदिखन ई अहाँ केँ तय करबाक अछि, अहाँक स्वर की होयबाक चाही आ तखन, जखन कि ओकर सर्वाधिक आवश्यकता हो ओ कतेक तीव्रताक संग सोझाँ आबि रहल अछि— कहबाक समय तकर सतर्कता आ तीक्ष्णताक प्रति बेस गम्भीरता सँ सोचबाक चाही।
'ई-मिथिला' अपन प्रकाशनकालक आरम्भहि सँ एतय प्रकाशित रचनात्मकता प्रति एहि तरहक भाव-बोध रखबाक आग्रही रहल अछि, आ जेना-जेना समय बेस विकृत भेल जा रहल अछि, एहि बातक अनुभूति रखैत अछि जे— एकर होयबाक अथवा नहि होयबाक मध्य की आ कतेक अंतर रखबाक चाही। आइ जखन की 'ई-मिथिला' अपन आठम वर्ष दिस डेग बढ़ा रहल अछि— हम अपन लेखक बंधु सँ ई आग्रह पुनः दोहरबैत छी की एतय रचना प्रकाशन हेतु प्रेषित करबाक पूर्व उपरोक्त कथ्यक सदिखन ध्यान राखल जयबाक चाही। एकर अतिरिक भाषा-साहित्य मे कनोजरि दैत रचनाशीलता प्रति 'ई-मिथिला' सदिखन स्नेहवश एकटा उमेदक प्रत्याशा मे देखैत रहल अछि— ई बुझैत की ओतय बहुत किछु एखनहुँ काँच अछि, बनि रहल अछि, पकबाक प्रक्रिया मे अछि— जाहि पर कोनहुँ टीका-टिप्पणी अथवा निर्णय देब एखन पूर्णतः ओहिपर माटि देब होयत— तकरा ओहिना, संदर्भक गम्भीरता आ इजोतक लुप्सा मे देखैत रहत आ एहन समस्त रचनात्मकता समय-समय प्रकाशित करैत रहत, जेना प्रकाशित करैत रहल अछि, समस्त आशंकाक बुझैत रहबाक बादहुँ।
संदर्भवश, 'ई-मिथिला'क प्रकाशनक आठम वर्षक एहि पहिल संध्या पर हम आ हमर सम्पादक मित्र विकास वत्सनाभ दिस सँ 'ई-मिथिला'क पाठकक प्रति आत्मीयतापूर्वक आभारी छी जे एहि गुमकी भरल समय मे सेहो 'ई-मिथिला' संग ठाढ़ रहलनि अछि आ भाषा-साहित्यक प्रति हमरालोकनिक एहि अभियान केँ अपन पाठकीयता सँ एकर होयबाक सार्थकता बुझबैत रहलनि अछि— अहाँलोकनिक स्नेह आ आशीर्वाद सदिखन एकर प्रकाशनक नियमितता आ निरंतरता प्रति सोचबाक लेल बाध्य करैत अछि। हमरालोकनि प्रयासरत छी जे निकट भविष्य मे एहि दिशा मे आर सचेत, आर गम्भीर, आर साकांक्ष भ' सकी। स्वाभाविक अछि— आगाँ युद्ध आर नम्हर होमय जा रहल अछि, एकटा समाजक रूप मे हमरालोकनिक आर एकत्रित होयबाक आवश्यकता अछि, अपन काज आ रचनात्मकता प्रति आर गम्भीर आ विचारवान होयबाक अछि। समय एहिना परीक्षा लैत रहल अछि, लैत रहत— हमरा सभकेँ एकर विरुद्ध ठाढ़ होयबाक अछि। अन्हार कतबहुँ किएक नहि बढ़ि जाए— तकर विरुद्ध इजोतक गीत उठबैत रहबाक अछि। 'ई-मिथिला' अभिव्यक्तिक एहि खाधि केँ पार करबा मे सेतुक काज करय— एहि हेतु प्रयास करैत रहबाक अछि। सदिखन आगाँ बढ़ैत रहबाक अछि।
बालमुकुन्द
सम्पादक
'ई-मिथिला'
सार्थक दखल।
जवाब देंहटाएंबहुत नीक।उत्साहवर्धक।नब कलेवरक हार्दिक स्वागत।
जवाब देंहटाएंदिलीप कुमार झा
मधुबनी
वाह, फेर सं पुनगैत नवगछुली।❤️
जवाब देंहटाएं