एनी एरनॉ (जन्म : 1 सितम्बर 1940) सुप्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका छथि। हुनका साहित्य मे उत्कर्ष योगदान लेल वर्ष २०२२ केर नोबेल पुरस्कार सँ सम्मानित कएल गेलनि अछि। हुनक लेखन निश्चलता आ निडरता सँ ओत-प्रोत छनि। अपन डायरी मे ओ लिखैत छथि कि हमरा अपन प्रेम मे परिपक्वता चाही जे हमरा A woman's story लिखै काल मे भेटल। जे मात्र देब' टा सँ भेट सकैत छै, सभ डर-भय केँ हवा मे उड़ा क'। अपन पुस्तक A simple passion मे ओ एकटा नारी के, एकटा विवाहित व्यक्ति सँ अटूट प्रेमक बात करैत छथि जाहि मे ओ अपन मोनक व्यथा, दैनिक क्रिया मे व्यस्त होइत देखा पबैत छथि।
|| एनी एरनॉ केर किछु उद्धरण ||
अनुवाद, चयन एवं प्रस्तुति : डॉ. सुजाता झा
१.
लिखब एकटा राजनीतिक क्रिया अछि, जे सामाजिक असमानता दिस हमरा सभक ध्यान ल' जाइए।
२.
भरिसक हमर जीवनक उद्देश्य छल हमर शरीर, हमर अनुभूति आ हमर विचार केँ लेखन मे परिवर्तित करब। दोसर शब्द मे कही तँ किछु एहन बनि जाएब जकरा सब बुझि सकैत अछि आ जे सार्वभौमिक होइ, जे हमर अस्तित्व केँ आनक जिनगी तथा सोच सँ मिला दिए।
३.
स्वाभाविक अछि जे हमरा ई सब लिखै मे कोनो लाज नहि अबैत अछि, कारण एकटा समयक अंतर छै ई जखन लिखल गेलैए, जखन एकरा मात्र हम देखि सकैत छी, आ ओहि समय मे जखन ई पढ़ल जाओत दोसर लोकक द्वारा, ओ समय जे हमरा लगैत अछि कखनहुँ नहि आओत।
४.
ओ हमरा सिखेलक जे एहि दुनियाक आनंद ल' क' जियल जाइत छै, आ कोनो कारण नहि छै अपना आप केँ पाछाँ रोकबा केँ।
५.
कखनो काल केँ हम सोचैत छी जे हमर लेखनक उद्देश्य की ई अछि जे हम पता लगाबी कि लोग सब एहिना कयने अछि अथवा अनुभूति कयने अछि वा नहि, आ जँ नहि कयने अछि तँ ओ सब एहन अनुभव केँ स्वाभाविक मानैत छथि वा नहि। भरिसक हम चाहब कि ओहो सब एना अनुभव करथि, ई बिसरि क' जे कखनो एहि सम्बन्ध मे कतहु पढ़ने रही।
६.
दर्द केँ ओहिना नहि राखल जा सकैत अछि, ओकरा बुझि क', हास्य मे परिवर्तित क' देबाक चाही।
७.
भेनाइ मतलब अपना आप केँ बिना तृष्णा केँ पिनाइ।
८.
हम अपना-आप केँ एकटा साहित्यिक जीव बना लेलहुँ जे एना जीबैत अछि जेना ओकर अनुभव कोनो दिन लिखल जेतैक।
९.
हम बुझैत छी जे हम अपन कोनो हिस्सा ओतय छोड़ि देने छी जतय हम कहियो आपस नहि जाएब, भरिसक।
१०.
समयक प्रतिक्षण मे, जतय जे कहब सब सँ सरल आ स्वाभाविक बुझाइत अछि आ जेना हमरा सब केँ सोचबाक लेल कहल जाइत अछि-- ओ सब मेट्रो मे पुस्तक वा विज्ञापन सँ कम रुचिगर किस्सा नहि अछि-- एहन अन्य चीज सभ छैक जकरा समाज नुकबैत अछि, बिन बुझने जे ओ एना क' रहल अछि। एहना मे ओ सब आदमी केँ एकटा एसगर पीड़ा दिस धकलैत अछि जतय लोक अनुभूति तँ करैत अछि मुदा तकरा कोनो नाम नहि द' पबैत अछि। एकदिन अचानक ओ चुप्पी टूटि जाइत अछि, थोड़ थोड़ क' वा एकदिन अचानक, सब शब्द धरफरा क' निकलैत अछि, ओकरा पहिचान भेटैत छै जखन कि अंदर दोसर चुप्पी सब अपन स्थान ग्रहण क' लैत छै।
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डॉ. सुजाता झा सम्प्रति IIT पटना मे ICSSR पोस्ट डॉक्टोरल फेलो छथि। डॉ सुजाता मिरांडा हाउस दिल्ली, कमला नेहरू कॉलेज दिल्ली, क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर आ जामिया मिलिया इस्लामिया मे अध्यापन कार्य कएने छथि। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सब मे हुनक लेख आ कवितादि प्रकाशित छनि। हुनका सँ sujata.jha85@gmail.com संपर्क कएल जा सकैत अछि। एतय प्रस्तुत उद्धरण goodreads.com सँ चुनल गेल अछि।
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