गद्य ::
सोशल डिस्टेंसिंग : हाय-हाय रे ई दूरी
रमण कुमार सिंह ■
कोरोना वायरसक एहि भयावह दौर मे अंग्रेजीक ई दू टा शब्द सेहो वायरल (तेजी सँ प्रसारित आ प्रचलित) भेल अछि— 'सोशल डिस्टेंसिंग'। एकर शाब्दिक अर्थ होइत अछि सामाजिक दूरी। कोरोना वायरस सँ बचय खातिर शारीरिक दूरी बना क’ राखब जरूरी अछि, सामाजिक दूरी नहि। तखन पता नहि सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) पर एतेक जोर किएक देल जा रहल अछि। एक बेर जँ कोनो मोहाबरा प्रचलित भ’ जाइत छैक तँ सब ओकरे नकल करय लगैत अछि। एहि तरहक प्रवृत्ति केँ अपना एहिठाम कहल जाइत अछि—भेड़िया धसान। खैर, एतय प्रश्न उठैत अछि जे की एहि सोशल डिस्टेंसिंग केँ बढ़ावा देबाक पाछू कोनो आन उद्देश्य तँ नहि छैक? की एकर कोनो इतिहासो छैक? जखन कहल जाइत छैक जे मनुक्ख एकटा सामाजिक प्राणी थिक तखन सामाजिक दूरीक आह्वान कियैक? मनुक्ख सर्वशक्तिमान तँ अछि नहि जे सबटा काम 'वन मैन आर्मी' जकाँ अपने क’ लियए! जनम सँ ल’ के मरण धरि मनुक्ख केँ सामाजिक सहयोगक बेगरता रहिते छैक— एहना मे सामाजिक दूरीक पालन क' लोक कोना जीबि सकैत अछि?
मोन मे हुड़दंग मचबैत एहने-एहने प्रश्न जखन बेस दिक करय लागल तँ एक बेर पाछू घुरि क' तकबाक बेगरता महसूस भेल आ तखन बुझायल जे सामाजिक दूरी तँ अपन समाज मे अदौ सँ अछि—भने ओ स्वयं मे एकटा अलग तरहक वायरसक रूप मे समाज केँ नोकसान पहुँचा रहल अछि। जँँ हमर बात अपने सभ केेँ नहि बुझा रहल हुअय तँ एक बेर अपन समाजक मुआयना क' लेल जाउ। ई तँ लगभग सभ केओ देखने होयब जे किछु खास जातिक लोक गामक बस्ती सँ दूर रहैत छल। ओकरा सभ केेँ गामक बीच मे घर बनेबाक अनुमति नहि होइत छल। बाद मे जखन ओहि मे सँ किछु लोक आर्थिक दृष्टि सँ मजगूत भेबो कयल तँ ओकरा ई साधंस नहि भेलैक जे मुख्य बस्ती मे घर बना लियअ आ जखन केओ एहन साधंस कयबो कयलक तँ ओकरा चैन सँ रहय नहि देल गेलैक। बहुत रास एहन लोक समाज मे एखनो भेंट जायत जे कोनो खास जातिक लोकक हाथ सँ छुअल पानि धरि नहि पीबैत छथि। एकर पाछू तेहन कोनो वैज्ञानिक सोच नहि होइत छल—बरू अगबे ओहि खास जाति-संप्रदायक प्रति घृणाक भावना प्रबल रहैत छल। बहुत रास लोक एकटा कोनो खास धर्मक लोकक प्रति अपना मोन मे एखनो ढाकीक-ढाकी घृणा संजोगि केँ राखने छथि आ समय-समय पर ओकरा उगिलैत रहैत छथि। कहल जाइत छैक जे "मरता की ने करता", तेँ मजबूरी वश एहन तरहक सामाजिक दूरीक छान-पगहा सेहो टूटलैक अछि मुदा एखनो एहन तरहक उदाहरण समाज मे विद्यमान छैक। हालक किछु साल मे एहनो खबरि पढ़बा-सुनबा मे आओल छल जे स्कूल मे जे मध्याह्न भोजन वितरित कयल जाइत छलैक ओहू मे जातिगत भेदभाव रहैत छलैक आ कथित उच्च वर्णक लोकक धियापुता निम्न वर्गक धियापुताक संग भोजन नहि करैत छल।
इतिहास इहो बतबैत अछि, जे पहिने जँ कोनो तरहक लसहरि बेमारी ककरो होइत छलै तँ ओहि लसहरि बेमारी केँ आगू पसरय सँ रोकय लेल बीमार लोक केँ आन लोकक संपर्क सँ अलग-थलग राखल जाइत छल। ई सावधानी बाद मे घृणाक रूप सेहो ल' लेलक। दार्शनिक मिशेल फूको तँ अपन अनुसंधानक आधार पर एतय धरि कहने छथि जे पहिने बहुत पैघ संख्या मे कुष्ठक रोगी केँ जहाज पर जबरन लादि कें समुंदर मे फेंक देल जाइत छल। एतबे नहि, जखन कोनो समुदाय केँ खतम करबाक होइत छलै तँ वर्चस्वशाली समुदाय ओकरा कोनो महामारी अथवा संक्रामक रोग सँ संक्रमित बता एहिना खतम क' दैत छल। हिटलर सेहो यहूदी सभ केँ बीमार आ बीमारी पसारय बला कहैत छल। कुष्ठरोग अथवा ओकर रोगीक प्रति अपना सभक समाज मे केहन तरह धारणा पसरल अछि, एकर ई एकटा विरल उदाहरण थिक। तहिना जँ कोनो समुदाय, कोनो व्यक्ति केँ सतेबाक होइत छलै अथवा ओकर संपत्ति पर कब्जा करबाक होइत छलै तँ वर्चस्वशाली वर्ग अथवा व्यक्ति, ओहि व्यक्ति अथवा समुदाय केँ एकटा खराब नाम धराय समाज मे ओकरा विरुद्ध एकटा खराब धारणा आ छवि निर्मित करैत छल आ तखन ओहि समुदाय अथवा व्यक्तिक खिलाफ सामूहिक अभियान चलाओल जाइत छल। कोनो कमजोर अथवा विधवा स्त्री केँ डायन कहि प्रताड़ित करब एही तरहक अवधारणाक प्रतिफल थिक— जे एखनो ग्रामीण समाज मे देखल जाइत अछि।
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रमण कुमार सिंह |
खराब नाम धराय केँ केना ककरो प्रताड़ित कयल जाइत छैक अथवा विवाह आदि मे बाधा पहुंचायल जाइत छैक—एहि संबंध मे एकटा सांच घटना हमरा मोन पड़ि रहल अछि। भेलै ई जे एकटा होनहार युवकक ओतय एकटा कन्यागत विवाहक प्रस्ताव ल' के पहुंचल छलाह। ओहि सँ पहिने ओहि वर लेल आरो कतेको प्रस्ताव आयल छल मुदा कोनो ने कोनो कारणवश कथा तय नहि भ' पबैत छलैक। सुनबा मे ई आबैत छल जे वर पक्षक मांग ततेक छैक, जे सुदर्शन, कमाऊ हेबाक बादो ओहि युवकक बियाह नहि भ' पाबि रहल छैक। दूटा लगन गुजरि गेल छलैक। वरपक्ष एहिबेर तय क' लेने छल जे वधू नीक होयत तँ कथा क' लेब। एहि बेर जे कन्यापक्ष आयल छलाह, ओहो सब वरपक्षक सभटा कुंडली पता क' अपन डांर मजगूत क' केँ आयल छलाह। सांझ मे ओ सभ वरपक्षक ओतय पहुंचलाह। हुनका सभक खूब आदर सत्कार भेलनि आ कहल गेलनि जे अपने सभ राति मे ठेही उतारि लियअ, गप शप भोर मे हेतै। ई ताहि समयक घटना थिक—जाहि समय मे गाड़ी-घोड़ाक एतेक सुविधा उपलब्ध नहि छलैक आ ने सबहक हाथ मे फोन आयल छलै। गाम-घरक तँ बाते नहि, शहरो मे ककरो-ककरो घर मे लैंडलाइन फोन होइत छलैक। खैर, राति मे पाहुन सभ तरह-तरह केँ सचार लागल सुअदगर व्यंजन सभ अफरि केँ भोग लगेलाह आ ठेहियायल रहलाक कारणें सुति जाइ गेलाह।
भोरे उठि जखन ओ पाहुन सभ शौचादि सँ निवृत्त हेबा लेल बाह्यभूमि दिस गेलाह तँ गामक तार-भियार लेबय लगलाह। ओहि क्रम मे दूटा अधवयसु हुनका सभ केँ भेंटलनि आ कहलकनि— महराज, अपने सभ तँ एहि गामक नहि बुझाइत छी? कतय सँ अपने सभक सवारी आयल अछि। किनका ओहिठाम अपने सभक पदार्पण भेल अछि आ कोन प्रयोजनें? पाहुन लोकनि मे सँ एक गोटे खखसि केँ अपन परिचय देलनि आ फेर अपन उद्देश्य कहलनि जे फल्लांबाबू ओतय कथा करबाक प्रसंग मे आयल छी। ओहि दुनू अधवयसु मे सँ एकगोटे जे दतमनि चिबबैत छलाह, थूक फेकैत बजलाह—राम-राम, भोरे-भोर भगवान झूठ नहि बजाबथि। अहांक कन्या मे कोनो ऐब अछि की? जँ नहि अछि, तखन ओहि 'चरकाहा' पर बरतुहारी करय खातिर कियैक आयल छी? औ महराज, दुनिया मे वरक कोनो कमी छैक की? आब ई पाहुन सभ तँ चकित रहि गेलाह, सब एक-दोसराक मुंह देखय लगलाह। फेर ओहि मे सँ एक गोटे हिम्मत करैत पूछलनि— मुदा वर कें चरक तँ नहि फूटल छैक, तखन अपने सभ एना कियै बाजि रहल छी ? की हुनका सँ कोनो आराड़ि अछि की? गामक दोसर अधवयसु तखने बाजि उठल, हौ काका, कहलकै जे "बेटा-बेटी ककरो, घिढारी करय मंगरो"। तूँ कियै एहि मे बलधिंगरो बनैत छहक, हिनका सभ केँ जँ वैह वर पसिन्न छैक, तखन तोरा की? ओ अधवयसु लोटा सँ पानि ल' कुर्रा फेकैत बजलाह, हौ बाबू, इहो कहल जाइत छैक जे "जारी नै जंगल, बिगारी नै बियाह"। हम कथी लेल कथा मे भंगठी करबै। बस बात एतबे जे ई सभ कोनो खनदानी परिवारक लोक बुझेलाह। बेटीक बियाह लोक बड़ जतन आ सौख सँ करैत अछि। तखन ई लोक कहीं ठकाय नहि जाथि, तें हिनके भलाइ लेल कहल। जँ हिनका सभ केँ वैह पसिन्न छनि तँ बड़-बढ़िया।
पाहिन लोक मे सँ एक गोटे पूछलखिन— मुदा बाबू साहेब, वर के तँ कतहु चरक फूटल नहि देखाइत छैक तखन अहाँ कोना ई गप कहैत छियैक?
ओ अधवयसु जवाब देलखिन—अहाँ सभ कोना देखबै, कोनो देखार जगह पर चरक फूटल रहतैक तखन ने? हम सभ तँ ओकरा नेने सँ देखने छियै, ओकरा ओकर नानाक लसहरि लागल छैक। डारंक निच्चा झांपल अंग मे चरक फूटल छैक। खैर, अपने सभक जे विचार। पाइ अहांक, बेटी अहांक, हमरा की ? कथा हेतै तँ बरियातियो जेबाक अवसर भेटत। बाद मे ई लोक खोज-पुछारि कयलनि, तखन पता चललनि जे ओहि वर पर इहो सभ अपन कोनो रिश्तेदारक बेटीक कथा ल' के आयल छलाह मुदा बात नहि पटलनि, तें ओकरे ओलि सधेबाक लेल बियाह भंगठयबाक कोशिश क' रहल छलाह। तँ एहि तरहें देखल जा सकैछ जे कोना अपन दुश्मनी सधेबाक लेल लोक ककरो खराब नाम द' दैत छैक।
डर तँ एहि बातक अछि जे जाहि तरहें सोशल डिस्टेंसिंगक अवधारणा केँ बढ़ावा देल जा रहल अछि, ओ समाज मे भेदभाव केँ बढ़ा सकैत अछि आ एक अलगे तरहक दुश्मनीक भाव पैदा क' सकैत अछि। आब एखुनके एकटा उदाहरण लेल जाय—एहि कोरोनाक संकट काल मे अपना देशक मीडियाक अधिकांश हिस्सा एकटा खास कौमक किछु लोकक अज्ञानता अथवा मूर्खताक कारण ओहि पूरा समुदाय केँ सेहो लांछित करबाक कोशिश शुरू क' देने अछि। एहनो तरहक खबरि पढ़बा-सुनबा मे आयल जे अपनहि देशक कोनो खास क्षेत्रक लोक केँ, जकर मुंह-कान कने चीनक लोक सँ मिलैत-जुलैत छैक, 'कोरोना' कहि केँ संबोधित कयल गेल। हालांकि बाद मे एहन एकाध घटनाक खिलाफ कानूनी कारवाई सेहो भेल। इहो कोनो नुकायल बात नहि अछि जे शहरी भारतक लोक ग्रामीण लोक केँ, उच्च-संपन्न वर्गक लोक वंचित-गरीब लोक केँ बीमार मानैत अछि। जँ एहन नहि होइत, जँ गरीब-गुरबाक प्रति संपन्न लोकक मोन मे स्नेह आ सहयोगक भावना रहितै तँ लाखो लोक कें पैदल अपन गाम-घर जयबा लेल कियैक मजबूर हुअय पड़ितय! ई लसहरि बेमारी बहुत रास पूंजीपति वर्ग आ नियोक्ता सभक लेल वरदान बनि क' आयल आ ओ सभ सामाजिक दूरी बनेबाक नाम पर ऑफिस मे कम लोकक उपस्थितिक बना कें रखबाक आ व्यवसाय ठप हेबाक बहन्ने लोक छंटनीक अभियान जोर-शोर सँ शुरू क' देलक अछि।
सब सँ चिंताजनक बात तँ ई अछि जे ई जे सामाजिक दूरीक आह्वान कयल जा रहल अछि, तकर आबय बला दिन मे राजनीतिक-सामाजिक आ आर्थिक संरचना पर सेहो असरि पड़ि सकैत अछि। आ जँ ई भावना राजनीतिक-सामाजिक मनोविज्ञान पर स्थायी रूप सँ अपन कब्जा जमा लेलक आ एहि सामाजिक दूरीक मनोविज्ञान केँ जातिगत, धर्मगत आ राजनीतिक विरोधक आधार पर दुरुपयोग कयल जा लागल तँ हमरा सभक लोकतंत्र (जकर मूल भावना समता, समानता, न्याय, भाईचारा आदि अछि) पर एकर कतेक खराब प्रभाव पड़त, तकर कल्पनो धरि क' मोन सिहरि उठैत अछि।
अपना सभक समाज मे सब सँ अलग-थलग रहबाक नीक नहि मानल जाइत रहल अछि। तें एकटा फकरा सेहो प्रचलित अछि-"सभ छौंड़ी गाम पर घेघही लताम पर"। बहुत रास काज एहन अछि, जाहि मे सामूहिक सहयोग बहुत जरूरी होइत छैक। जँ ई सामाजिक अलगाव समाजक स्थायी भाव बनि गेल तँ ग्रामीण समाजक एकरस जिनगी मे उमंग-उल्लासक किछु क्षण उपलब्ध कराबय बला मेलाक की होयत। मेला-ठेला मे दस गोटे सँ भेंट-घांट होइत छैक, देश-दुनियाक गप-सरक्का होइत छैक, राजनीतिक मुद्दा पर एक सँ एक तर्क-वितर्क आ बहस होइत छैक, जाहि सँ निरक्षरो लोक मे राजनीतिक चेतना जन्म लैत छैक। ग्रामीण समाज एखनो बहुत हद धरि सामूहिक मनोरंजन लेल नाटक आ नाच पर निर्भर करैत अछि, भने घर-घर टीवी कियैक नहि पसरि गेल होउ। मुदा जे मजा गाम-समाजक संग नाटक-नाच देखबा मे अछि, जे एसगरे घर मे बैसिक' टीवी देखबा मे कहां अछि। नाच आ नाटक एहन प्रदर्शनकारी कला अछि, जाहि मे सामूहिक सहभागिता जरूरी अछि।
मुदा स्वास्थ्य संबंधी तेहन तरहक समस्या आबि तुलायल अछि, जे एकरो अनदेखी नहि कयल जा सकैत अछि। कहबियो छैक, जे हाय रे समांग दालि-भात। मने समांग अछि तँ मेहनत-मजूरी क' दालि-भात खा सकै छी, भने बहुत ऊंच मनोरथ पूर नहि क' सकी। तखन की कयल जाय? एतय हमरा एकटा पुरान धार्मिक कथा मोन पड़ैत अछि, जे नेनपन मे बुजुर्ग लोकनि सं सुनने रही। कथा एना अछि— जे एक बेर देवता आ दानव लेल एकटा भोजक आयोजन कयल गेल। दुनू वर्गक लेल अलग-अलग पंडाल बनल छलैक। मुदा एकटा शर्त ई रहै जे सब केँ एकटा पैघ चम्मच खयबा लेल देल गेल रहय। भोज जखन शुरू भेलै तँ दानव लोकनि टूटि पड़ल, मुदा चम्मच ततेक पैघ छलैक, जे भोजन मुंह मे जाय के बदला निच्चा खसि पड़ैत छलैक। ओम्हर देवता लोकनि देखलक जे चम्मच पैघ अछि, जाहि सँ अपना मुंह मे भोजन नहि जा सकैछ मुदा अनका तँ खुआओले जा सकैछ। तखन देवता लोकनि एक-दोसराक मुंह मे खुअबय लगलाह आ एहि तरहें परस्पर सहयोग सँ सुअदगर भोजनक आनंद ल' सकलाह। कहबाक तात्पर्य ई जे परस्पर सहयोगक भावना जँ हम सब राखी तँ एहू कठिन समय सँ पार पाओल जा सकैछ। अपन स्वास्थ्यक धियान रखैत जँ हम सभ अनको सुख-सुविधा आ जरूरतक धियान राखी तँ ई शारीरिक दूरी सामाजिक दूरी नहि बनि सकत आ हमसभ जिनगीक आनंद पहिने जकाँ उठा सकैत छी।
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बहुत नीक समसामयिक घटनाचक्र पर आलेख अछि। एहन आरो आलेख सभ आबय
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