वसंत विदा भ' गेल अछि तत्काल



रमण कुमार सिंह केर पाँच गोट कविता 


1). हम फेर सपना देखय लगलहुँए

केदार भैया,
हम फेर सपना देखय लगलहुँए

देखैत छी जे
दूर धरि पसरल अछि धानक खेत
दू-चारि टा नेना उल्लसित
लगा रहल अछि दौड़,
आरि पर, माथ पर धानक बोझ उठौने
मजूरक पाँति रचैत अछि अनुपम दृश्य
हवा मे एकटा अजबे संगीत अछि
आब ई रुनझुन धानक शीशक अछि
आ कि मजूर स्त्रीगणक पायल केर
कहि नहि सकैत छी!

दूर बस्तीक घर सँ उठैत अछि धुआं
साइत रतुका खेनायक ओरिआओन भ' रहल अछि
दृश्य बदलैत अछि आ
देखा पड़ैत छथि पिता
सिरमा मे बैसि जेना
दैत होथि आश्वासन

 हम उठि कें छुबय चाहैत छी
 हुनक पयर कि तखनहि
 टूटि जाइत अछि हमर निम्न
 भोरहरबा मे देखल एहि सपना मे
 अनेक कालखंडक दृश्य मिज्झर अछि
 खैर, खुशीक गप ई अछि केदार भैया
 जे हम फेर सपना देखय लगलहुंए।


2). कविता पर भरोस

समयक धार बहल जा रहल अछि
आ ओकरा संग बहि रहल अछि बहुत किछु
सब किछु समय मे घटित होइत अछि
जेना सूर्यास्त आ सूर्योदय सेहो
जीवन आ मृत्यु सेहो समय सँ बान्हल अछि
कविता समये के रचैत अछि
मुदा कविता समय सँ बन्हाइत नहि अछि
ओ समय केर प्रतिवाद सेहो रचैत अछि
कविता वर्तमान टा मे नहि रहैत अछि
ओ समयक पार जाय चाहैत अछि

जिनगीक घमासान मे रहैत कविता
अपन लहुलुहान काया सँ
भविष्यक खिड़की फोलैत
ओ सुंदरतम सत्यक नव छंद रचैत अछि

तें अपना समयक पहिचान हम
कविताक माध्यमें करय चाहैत छी
हमरा मौजूदा समय सँ बेसी
कविता पर भरोस अछि।

3). अन्हार मे ठाढ़ लोक

बाजार सजल अछि चहुँदिस
जगमग प्रकाश अछि एतेक बेसी
जे आँखि चोन्हराय रहल अछि
सगरो कीनय आ बेसाहय के होड़ अछि

कतहु आतिशबाजी भ'रहल अछि
तँ कतहु तोप गरजि रहल अछि
केओ धने-वित्त अघायल अछि
तँ ककरो नेना एक कौर भात खातिर
तोड़ि रहल अछि दम

चहुँदिस लोक सब भागि रहल अछि
मुदा कतहु पहुँच नहि रहल अछि
सामान सभ महंग भेल जा रहल अछि
मुदा मनुक्खक मोल घटल जा रहल अछि

खसब एगो राष्ट्रीय परिघटना भ' रहल गेल अछि
खाली अर्थव्यवस्था आ राष्ट्रीय मुद्रा नहि
लोको खसि रहल अछि मनुक्खता सँ

मुदा एहि जगमग इजोत आ
चोन्हराबय बला प्रकाश सँ दूर
अन्हरिया मे ठाढ़ जे किछु लोक
क' रहल अछि अपन अधिकारक लेल संघर्ष
आ नित देखैत अछि नव-नव स्वप्न
वैह अछि हमरा संग ठाढ़ एहि दु़श्काल मे
ओकरे लेल हम लिखैत छी कविता
वैह अछि हमर अपन समांग।

4). एकरस तँ नहिए रहत जिनगी

हे हमर प्रिया,
जहिया भेटल रही हम एक दोसरा कें
उम्मीदक कतेक रंग छल आसमान मे,
कतेक गंध पसरल छल चहुँओर
भविष्यक कतेक सपना बुनने रही हम

ई भेंट मात्र हमरे अहाँक नहि छल
कतेक रास लोक, कतेक संबंध
कतेक रास बाट आ यात्राक नेयार
आबि जुड़ल छल हमरा सभक संग

एकाकी दिनक दुख आ उदासी
छुटि गेल छल कतौ पाछू
जिनगीक नव-नव रंग
आबि रहल छल सोझां
बुझा रहल छल जे जिनगी
आर किछु नहि मात्र वसंतक नाम थिक

कहाँ सोचने छलहुँ जे जिनगी मे
समय एहिना पसारैत रहैछ भ्रम
ऊ उमिरे एहन छल, जतय
बुझाइते नहि छल जे समयक संग
बीति जाइत अछि सब किछु
भोरक बाद साँझो होइत छैक
आ माझ जिनगी आबि जाइत छैक राति

जिनगीक रंग-रभस मे डूबल
पते नहि चलैत छैक जे
चहुँदिस पसरल बाजार सँ
घेरा जाइत छैक जिनगी

बाजार सँ घेरायल जिनगी मे
मोन पड़ैत अछि जे हमरा सभ
देखने रही कहियो पैघ-पैघ सपना
किछु नवजात अबोध इच्छा छल
जकरा पोसि केँ करबाक छल सियान

मुदा की करबै जे मोनक बात मोने रहि गेल
वसंत विदा भ' गेल अछि तत्काल
जे सब लोग प्रेम करैत छलाह
से सब बिसरि गेल छथि हमरा सभ कें
मुदा एखनो ई उम्मीद ते बाँचले अछि
जे रातिक अन्हारक बाद होइत भोर
फेर सँ हरियाओत नवगछुलीक डारि
फेर जिनगी मे रंग आ फूलक आओत बहार
एकरस तँ नहिए ने रहत जिनगी!

5). के माफ करत हमरासभ कें

के माफ करत हमरासभ केँ
हम सभ हवा मे माहुर घोरलहुँ
नष्ट कयलहुँ जंगल-पहाड़
चिड़ै सभ लेल नहि रह' देलहुँ
खोंता बनबै खातिर गाछ
एतबे नहि किछु गाछ केर कद घटा
कयलहुँ अपन अहं केर तुष्टी

इनार-पोखरि भरि बनेलहुँ अपन कोठा
जीवनदायिनी नदीक प्रवाह नष्ट कयलहुँ
माछ केँ सजेलहुँ अपन एक्वेरियम मे
कतेको वन्य आ जलजीवक
बनलहुँ विनाशक कारण
नै गौरैया बाँचल अंगना मे
आ ने गंदगी साफ करय बला गिद्ध

की एहन जुलूम करी हमसभ
अपने तँ गिद्ध नहि बनि गेलहुँ 

के माफ करत हमरा सभ केँ
नेना सँ ओकर नेनपन छिनलहुँ
आ उजाड़ि देलहुँ ओकर खेलक मैदान
माल-मवेशी लेल चारागाह सेहो कहाँ
बांचि सकल हमरा सभक लालच सँ

के माफ करत हमरा सभ केँ
कोन मुंहे कहबै अबै बला पीढ़ी केँ
जे बौआ, माफ करि दिहअ हमरा सभ कें
जे नहि रहय देलक अपन संतति लेल
दुनिया केँ ओहन सुन्नर आ समृद्ध
जेहन भेटल छल हमरा सभ कें पुरखा सँ।
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रमण कुमार सिंह मैथिली आ हिन्दीक चर्चित कवि छथि। एखन धरि हिनक मैथिली मे दू गोट काव्य-संग्रह 'फेर सँ हरियर' आ 'दुःस्वप्नक बाद' शीर्षक सँ तथा हिन्दी मे 'बाघ दुहने का कौशल' शीर्षक सँ एकटा काव्य-संग्रह मे प्रकाशित छनि। एकर अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिका मे निरन्तर रचना सभ प्रकाशित-प्रशंसित। सम्प्रति दिल्ली मे 'अमर-उजाला' दैनिक मे सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रमुख उपसंपादकक रूप मे कार्यरत। हिनका सँ kumarramansingh@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। 
वसंत विदा भ' गेल अछि तत्काल वसंत विदा भ' गेल अछि तत्काल Reviewed by emithila on मार्च 05, 2020 Rating: 5

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