जीवनानंद दास (17 फ़रवरी 1899-22 अक्टूबर 1954)
प्रख्यात बंगाली
कवि-साहित्यकार छथि। 1926 ई. मे हिनक पहिल कविता-संग्रह
प्रकाशित भेलनि। हुनका मरणोपरांत साहित्य अकादमी द्वारा 1955 ई. मे पुरस्कृत कएल गेलनि। ई सम्मान प्राप्त कएनिहार ओ बांग्लाक पहिल कवि
छथि। हुनक किछु प्रमुख कृति छनि - झरा
पालोक, धूसर पाण्दुलिपि, वनलता सेन, महापृथिबी, सातटि तारार तिमिर, रूपसी बांगल, बेला अबेला कालबेला, सुदर्शना, आलो पृथिबी, मानव बिहंगम आदि। प्रस्तुत कविताक
मैथिली अनुवाद नारायणजी द्वारा सम्भव भेल अछि।
कविता : जीवनानंद दास
आकाशलीना
सुरंजना, ओत' जुनि जायब अहाँ
कोनो
गप नहि करब ओहि युवक सँ
फिरि
आउ सुरंजना !
तरेगन
सँ सुसज्जित अगियायल राति मे
फिरि
आउ, लहरि पर चलि, एहि प्रांतर मे
हमर
हृदय मे फिरि आउ
दूर
सँ दूर, आर दूर
ओहि
युवक संग अहाँ जुनि जायब
किएक
गप करैत छी ओकरा सँ ? ओकर संग !
आकाशक
अ'ढ़ मे आकाश
मूर्ति
सदृश छी अहाँ आइ:
ओकर
प्रेम घास बनि अहाँ पर पसरल अछि
सुरंजना
हमर
हृदय आइ घास सँ आवेष्ठित अछि;
बसात
पारक बसात
आकाश
पारक आकाश।
•••
नारायण जी मैथिलीक समादृत कवि-कथाकार
छथि। हम घर घुरि रहल छी, अंगना एकटा आग्रह थिक, धरती पर देखू, चित्र, जल - धरतीक अनुराग मे बसैत अछि आदि हिनक प्रमुख कृति छनि। एकरा
अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिका मे रचना प्रकाशित- प्रशंसित।
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