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सागर | क्लिक : शशांक मुकुट शेखर |
बहुत हालेक बात थिक जे सागर अपन बेधक आ मार्मिक टिप्पणी सब सँ उत्फाल मचबैत सोशल मीडिया पर प्रकट भेल छलाह। मुख्य वस्तु जे हमर-अहांक ध्यान आकृष्ट करै छल से छलनि हुनकर एकाग्र निरीक्षण-दृष्टि। हमरा सब दिन ई लगैत रहल जे हो न हो, ई तरुण जँ कविता लिखथि तँ जुलुम लिखता। बहुत प्रीतिकर अछि ई देखब जे सागर कविता लिखि रहला अछि।
ई पांचो कविता पढ़ि क' तँ सब सँ पहिल बात हमरा यैह लागल जे ओ पैघ साँसक कवि छथि। बहुत व्यापकता मे जा क' निहितार्थक अन्वेषण करै छथि आ धैर्यपूर्वक सबटा केँ गूथि एक सुनिश्चित आशय दिस बात केँ पहुंचाबै छथि। सांच कही तँ हमरा लोकनिक समकालीन मैथिली काव्य-परिदृश्य मे आइ एहन कवि अत्यल्प छथि।
प्रेमक समर्थन आ रूढ़िक विरोध अनिवार्य थिक। एहि बिनु कवि होयब तँ छोड़ू, क्यो एक ठीकठाक मनुक्खो भ' सकता कि नहि, हमरा संदेह अछि। असली चीज थिक ओ संवेदना जे उसरल डीह केँ उदास भेल देखि क' ई बूझि सकैत अछि जे डीह केँ अपन कदै लागल पयर सँ अभिषिक्त केनिहार घरबेक केहन प्रतीक्षा छैक।
चाबस सागर !
— तारानंद वियोगी
पाँच गोट कविता : सागर
1. हमर-अहाँक कविता
जाहि ठाम
देहक वस्त्र जकाँ अहाँ सँ उतरैत छी हम
आ कि उतारल जाइत अछि कोनो आन बहन्ने,
जाहि ठाम इजोतक अबरजातक बीच
अन्हार अबैत अछि घोघ लटकओने
जिनगीक नायिका बनि,
देहक वस्त्र जकाँ अहाँ सँ उतरैत छी हम
आ कि उतारल जाइत अछि कोनो आन बहन्ने,
जाहि ठाम इजोतक अबरजातक बीच
अन्हार अबैत अछि घोघ लटकओने
जिनगीक नायिका बनि,
किछु नशा आ बेस पीड़ाक कॉकटेलक बले
जखन निसाभाग रातिक माझ
विपत्तिक उत्सवक हकार दैत
सड़क लटपटाएत भगैत अछि
विरहक ताल आसमान धरि पहुँचेने
पसिखानाक झमार सँ लौटैत बटोहीक दिस
जखन निसाभाग रातिक माझ
विपत्तिक उत्सवक हकार दैत
सड़क लटपटाएत भगैत अछि
विरहक ताल आसमान धरि पहुँचेने
पसिखानाक झमार सँ लौटैत बटोहीक दिस
जाहि ठाम
केस केँ फोलि माटि देखबैत
हमर प्रेयसी अबैत छथि
भखरैत सर्दीआएल राति मे
स्नेहे सँ छोड़बाक ओरिआन करैत,
केस केँ फोलि माटि देखबैत
हमर प्रेयसी अबैत छथि
भखरैत सर्दीआएल राति मे
स्नेहे सँ छोड़बाक ओरिआन करैत,
जाहि ठाम गुलाब सँ बेस गुलाबी होइत अछि
हमर कविताक अर्धांगिनीक
लाल लहंगा केँ समर्पित
रत्ती बसातक सिहकी सँ
डिबियाक टेमी परहक आगि सन डोलैत, समूचा देह,
हमर कविताक अर्धांगिनीक
लाल लहंगा केँ समर्पित
रत्ती बसातक सिहकी सँ
डिबियाक टेमी परहक आगि सन डोलैत, समूचा देह,
जाहि ठाम
मोलाएम गर्म हाथक कोनो कोन मे
मेहदीक रचाओल हमर नाम
होबए लगैत अछि रक्तक लाली सँ
हल्दिआएन पीयर,
हमर कविता रंगबाक चेष्टा करैत अछि
लालो सँ सहस्त्रों जोजन आगाँ, एसगर ठाढ़
हमरा अहाँक पीड़ाक शब्दक रंग सँ
मोलाएम गर्म हाथक कोनो कोन मे
मेहदीक रचाओल हमर नाम
होबए लगैत अछि रक्तक लाली सँ
हल्दिआएन पीयर,
हमर कविता रंगबाक चेष्टा करैत अछि
लालो सँ सहस्त्रों जोजन आगाँ, एसगर ठाढ़
हमरा अहाँक पीड़ाक शब्दक रंग सँ
प्रेम सँ माहुरक शब्द जनमैत अछि सदिरकाल
दुखक भमरा फूटैत अछि पन्ना सँ कीबोर्ड धरि,
प्रेमक पीड़ा केँ असोथकित बाट पर
हमर कविता गढ़ैत अछि अहाँ केँ स्वरूप
अपना केँ पूर्ण करबा लेल
दुखक भमरा फूटैत अछि पन्ना सँ कीबोर्ड धरि,
प्रेमक पीड़ा केँ असोथकित बाट पर
हमर कविता गढ़ैत अछि अहाँ केँ स्वरूप
अपना केँ पूर्ण करबा लेल
प्रेमक चौबटिया पर ठाढ़ एहि दुनियाक
एकहेकटा प्रेम कएनिहार
ककरहुँ वस्त्र मात्र छथि
उतारल जएताह कोनो दिन (!)
एकहेकटा प्रेम कएनिहार
ककरहुँ वस्त्र मात्र छथि
उतारल जएताह कोनो दिन (!)
जाहि ठाम आँखिक बीच
बाँचल गिनतीक किछु श्वांसक संग
चमकैत अछि अंदेसा
वस्त्र जकाँ बदलल जएबाक,
ओहिएठाम पूर्ण होइत अछि कविता
जेना 'हमर-अहाँक'।
बाँचल गिनतीक किछु श्वांसक संग
चमकैत अछि अंदेसा
वस्त्र जकाँ बदलल जएबाक,
ओहिएठाम पूर्ण होइत अछि कविता
जेना 'हमर-अहाँक'।
2. आगम
फुलाइत अन्हारक, ससरैत साँझक ललाओन मे
कोनो दूधिया पएर नचैत अछि आँखिक बीच,
धएने साँझक नाथ, छेकने रातिक दुआरि
अंतिम धरि बचओने रहैत अछि भरोस
दू जोड़ी आँखिक घेंटाजोड़ी होएबाक
कोनो दूधिया पएर नचैत अछि आँखिक बीच,
धएने साँझक नाथ, छेकने रातिक दुआरि
अंतिम धरि बचओने रहैत अछि भरोस
दू जोड़ी आँखिक घेंटाजोड़ी होएबाक
कत्ता घोंकाइत उमेद छनने, गहींर आँखि
औलैत अछि हमर इच्छाक काँच बिया
अपन पपनीक ताग पर,
काजरक अओढ़ सँ झीकब चाहैत
बेफिजूलक बेगरता, अपना डीम्हा मे
औलैत अछि हमर इच्छाक काँच बिया
अपन पपनीक ताग पर,
काजरक अओढ़ सँ झीकब चाहैत
बेफिजूलक बेगरता, अपना डीम्हा मे
अन्हारक केबार सँ बहराइत आँखि
टुकटूकी लधने, ठिकिअबैत
सियाह ठोड़ पर छताएल जुआन जिगेसा
आँखि सँ कंट्रोल होइत पृथ्वीक भूगोल
आ हुलकी दैत अन्हारक विवशता, हमरा अहाँक बीच
टुकटूकी लधने, ठिकिअबैत
सियाह ठोड़ पर छताएल जुआन जिगेसा
आँखि सँ कंट्रोल होइत पृथ्वीक भूगोल
आ हुलकी दैत अन्हारक विवशता, हमरा अहाँक बीच
एहि दुनियाक गाछ मे अहाँक आगम
नबगछुलीक कोनो फुनगी पर जेना
नब पल्लबक झुरमुट मे देखार होइत
कतेको बाँझ बरखक बाद, मनोरथक एकगोट आम
नबगछुलीक कोनो फुनगी पर जेना
नब पल्लबक झुरमुट मे देखार होइत
कतेको बाँझ बरखक बाद, मनोरथक एकगोट आम
जेना आँगनक कदै
चिन्हने होइ, बरखो एसगर छोड़ि गएनिहारक तरबा
चिन्हने होइ, बरखो एसगर छोड़ि गएनिहारक तरबा
जेना बाबाक चौकी, बेटाक गर्जे
श्राद्घ-कर्मक भिनसर हँसी-ठहक्का करैत, दलान
श्राद्घ-कर्मक भिनसर हँसी-ठहक्का करैत, दलान
जेना सर्दिक धुएन सँ, रौदक धाह घुसिआएत अछि
कोनो टूटल खिड़कीक फाँक सँ
कोनो टूटल खिड़कीक फाँक सँ
जेना कोसक यात्राक बाद
यात्री केँ भेटैत अछि आफियतक, पीपरक छाँह
यात्री केँ भेटैत अछि आफियतक, पीपरक छाँह
सुतल अन्हार घरक कोन मे जेना
बुन्न भरि तेल पर डोलैत, डीबियाक नान्हि टा इजोत
जकर बन्न होइते, फुजैत बेआकुल बिछाओनक भक
बुन्न भरि तेल पर डोलैत, डीबियाक नान्हि टा इजोत
जकर बन्न होइते, फुजैत बेआकुल बिछाओनक भक
जाहि दिन
संसारक मैप सँ मनुखक छाप धोखरि
बिलिन होएत असंख्य परमानुक आबाज मे,
लासक सड़क बहारल जाएत
ओकरहि रक्तक धार सँ, ओही ठाम
संसारक मैप सँ मनुखक छाप धोखरि
बिलिन होएत असंख्य परमानुक आबाज मे,
लासक सड़क बहारल जाएत
ओकरहि रक्तक धार सँ, ओही ठाम
नासक आसमानी झूला पर मचकैत समय मे
कोनो रँगाएल पएर सँ अबैत हकार आ
कजराएल निमुन आँखिक सिहन्ता
मेटा सकत ककरो गोदऔस कच्छमच्छी
उड़ा सकत किछुए काल, थोड़बे अफबाह
ककरो आगम केँ।
कोनो रँगाएल पएर सँ अबैत हकार आ
कजराएल निमुन आँखिक सिहन्ता
मेटा सकत ककरो गोदऔस कच्छमच्छी
उड़ा सकत किछुए काल, थोड़बे अफबाह
ककरो आगम केँ।
3. नो एग्जिट गेट
प्रेमक चओर मे
जाहि तरहेँ भुतिआए रहलहुँ अछि हम
नहि कहल जा सकैछ, छी मनुख
आकि एहिठामक खुटेसल कोनो चेतन जीव
जाहि तरहेँ भुतिआए रहलहुँ अछि हम
नहि कहल जा सकैछ, छी मनुख
आकि एहिठामक खुटेसल कोनो चेतन जीव
अपन सिहंताक बारी मे कएलहुँ कऐक चास
उपजबैत गेलहुँ किछु स्वप्न
मेटबैत गेलहुँ दुखक सभ दरारि
निन्नक फाड़ सँ
उपजबैत गेलहुँ किछु स्वप्न
मेटबैत गेलहुँ दुखक सभ दरारि
निन्नक फाड़ सँ
हरियर कचोर नीमक गाछ केँ चीरि
अहाँक नाम संग
लिखल गेलैक हमरहुँ नाम
अहाँक नाम संग
लिखल गेलैक हमरहुँ नाम
नहि जानि किएक, ककर डर सँ
दलानक ताख पर
नुकओने रहलहुँ लिखल किछु पत्र
बिनु नाम, एड्रेसक
जकरा देबार पढ़ि कए लेलकै अछि प्रेम
दलानक ताख पर
नुकओने रहलहुँ लिखल किछु पत्र
बिनु नाम, एड्रेसक
जकरा देबार पढ़ि कए लेलकै अछि प्रेम
सिहंते रहल
जे अहाँ कहिओ रुसि, फुला सकितहुँ गाल
आ चौठचानक आँगन बुझि
हम बना सकितहुँ रंग-बिरंगक अड़िपन
अनदिनों, दिन-राति
जे अहाँ कहिओ रुसि, फुला सकितहुँ गाल
आ चौठचानक आँगन बुझि
हम बना सकितहुँ रंग-बिरंगक अड़िपन
अनदिनों, दिन-राति
एहि एसगरुआ प्रेम मे
भाँगल गेलैक आत्मा
पटकल गेलैक चार परहक कुम्हर जेना
आ चिन्हार हाँसू पर फाँक कएल गेलैक हमर प्रेम
भाँगल गेलैक आत्मा
पटकल गेलैक चार परहक कुम्हर जेना
आ चिन्हार हाँसू पर फाँक कएल गेलैक हमर प्रेम
आब होएबाक अछि आओर एसगर
अनंत धरिक लेल बनाओल
एहि प्रेमक अबडेरल निवासक संग
अनंत धरिक लेल बनाओल
एहि प्रेमक अबडेरल निवासक संग
हमर अभिलाष
फुलाएल जा रहल अहाँक लेल बेतरेक,
फुलाएल अभिलाष केँ जोगाएब
चढ़ेबा लेल अहाँक स्नेहक मिझाएल आँच पर
एखनहुँ!
फुलाएल जा रहल अहाँक लेल बेतरेक,
फुलाएल अभिलाष केँ जोगाएब
चढ़ेबा लेल अहाँक स्नेहक मिझाएल आँच पर
एखनहुँ!
4. सन दु हजार अस्सी
जाहि दिन ससरि जाएत
अहाँक रुइयाक मेहियाएल ठोड़ सँ
सिनुरिया इजोतक मिसिया भरि लाली,
जाहि दिन अहाँक गाल गुलाबी सिकुड़ि
बेजन्तिक सुखाएल पात बनबा पर होएत बीर्त,
केस उड़ि बन्न कए देत भेट करब
आँखिक कारी काजर सँ
अहाँक रुइयाक मेहियाएल ठोड़ सँ
सिनुरिया इजोतक मिसिया भरि लाली,
जाहि दिन अहाँक गाल गुलाबी सिकुड़ि
बेजन्तिक सुखाएल पात बनबा पर होएत बीर्त,
केस उड़ि बन्न कए देत भेट करब
आँखिक कारी काजर सँ
जाहि दिन रुसि जाएत अहाँक श्रृंगार
उतरि जाएत अएना मोनक देबाल सँ,
ओहिठाम हमर कविता कए सकत श्रृंगार
निसंदेह, एखन सँ नीक, अहाँ सँ नीक
टांगि देत अहाँक एकहेक डेग पर आसमानी अएना
उतरि जाएत अएना मोनक देबाल सँ,
ओहिठाम हमर कविता कए सकत श्रृंगार
निसंदेह, एखन सँ नीक, अहाँ सँ नीक
टांगि देत अहाँक एकहेक डेग पर आसमानी अएना
अहाँ सँ पड़ाइत समयक लगाम पकड़ि
हमर कविता देखा सकत अहाँक ओ रुप
जे नहि देखाओल अछि कोनो अएना,
जे नहि देखा सकल अहाँक कतेको प्रेम कएनिहार मे
किओ एक, एखन धरि
जखन कि अहाँक रुप पर लिखल गेल
कतेको कविता, कतेको कविक कलमे, अहींक लेल
कीट्स, पाब्लो आ कि करावास बैसल
हिकमतक पन्ना पर सेहो
हमर कविता देखा सकत अहाँक ओ रुप
जे नहि देखाओल अछि कोनो अएना,
जे नहि देखा सकल अहाँक कतेको प्रेम कएनिहार मे
किओ एक, एखन धरि
जखन कि अहाँक रुप पर लिखल गेल
कतेको कविता, कतेको कविक कलमे, अहींक लेल
कीट्स, पाब्लो आ कि करावास बैसल
हिकमतक पन्ना पर सेहो
ओहि समय मे हमर कविताक कोनो एक आखड़ राँगि देत
अहाँक ठोड़क भखड़ैत लौलीन रंग,
कए देत काजरक कारी सँ बेसी कारी अहाँक केश
अहाँक ठोड़क भखड़ैत लौलीन रंग,
कए देत काजरक कारी सँ बेसी कारी अहाँक केश
ओहिठाम सन 'दु हजार पनरहक'
सोलह बरखक
अहाँक जुवानिक, एकगोट प्रेमिक पसीनक फोटो सँ
सुन्नर होएब अहाँ,
हमर कोनो अपूर्ण कविताक पुरान कागत पर
सन 'दु हजार अस्सी' मे।
सोलह बरखक
अहाँक जुवानिक, एकगोट प्रेमिक पसीनक फोटो सँ
सुन्नर होएब अहाँ,
हमर कोनो अपूर्ण कविताक पुरान कागत पर
सन 'दु हजार अस्सी' मे।
5. किछु मंचक वेटलेस पाग
हमरा सभ एखन धरि अकुआएल रहलहुँ अछि
देखबा लेल अपना माथा, एकगोट लौलीन पाग
ठाढ़ होएबा लेल मिथिलाक बैनर लगाओल
मिथिला सँ दिल्ली धरिक कोनो मंच,
बजबा लेल ओ बात, जे करैत काल
मोन पड़ैत अछि प्रवास
आ कि अपन सामर्थ्यक ओकायत,
जाहि सँ बेस बाजि लेलहुँ अछि
किछु आओर थोपड़ी सुनबाक बास्ते।
देखबा लेल अपना माथा, एकगोट लौलीन पाग
ठाढ़ होएबा लेल मिथिलाक बैनर लगाओल
मिथिला सँ दिल्ली धरिक कोनो मंच,
बजबा लेल ओ बात, जे करैत काल
मोन पड़ैत अछि प्रवास
आ कि अपन सामर्थ्यक ओकायत,
जाहि सँ बेस बाजि लेलहुँ अछि
किछु आओर थोपड़ी सुनबाक बास्ते।
हमरा सभक मुँह, मुँहक स्वर
बान्हि रखने अछि मंचहि केँ माइक्रोफोन।
बान्हि रखने अछि मंचहि केँ माइक्रोफोन।
जा धरि मंच परहक माइक
नहि लेल जाइ छीन,
पाग केँ नहि फेक देल जाइ जुमा मंचहि सँ
हम बजैत रहब,
पूजैत रहब इतिहासक गौरब केँ
जा धरि मिथिला टेक नहि दैछ मुड़ी,
थोपड़ी सुनैत रहब
जा धरि संस्कारक देह
नहि सनिहा जाइ आधुनिकताक चूल्हा मे।
नहि लेल जाइ छीन,
पाग केँ नहि फेक देल जाइ जुमा मंचहि सँ
हम बजैत रहब,
पूजैत रहब इतिहासक गौरब केँ
जा धरि मिथिला टेक नहि दैछ मुड़ी,
थोपड़ी सुनैत रहब
जा धरि संस्कारक देह
नहि सनिहा जाइ आधुनिकताक चूल्हा मे।
पाग केँ माथ पर उठओने
उघैत रहलहुँ एहि मंच सँ ओहि मंच,
टाँगेट रहलहुँ विदेसक देबाल पर पेंटिग
अखियास नहि रहलए
कहिया टाँगि अएलहुँ विरोधक स्वर,
मीठ सँ आओर मीठ होएबाक बाट मे
उजड़ि गेल शरीर आ
आधुनिकताक लपेट मे
ठाम परहक संस्कार।
उघैत रहलहुँ एहि मंच सँ ओहि मंच,
टाँगेट रहलहुँ विदेसक देबाल पर पेंटिग
अखियास नहि रहलए
कहिया टाँगि अएलहुँ विरोधक स्वर,
मीठ सँ आओर मीठ होएबाक बाट मे
उजड़ि गेल शरीर आ
आधुनिकताक लपेट मे
ठाम परहक संस्कार।
पाग नहि छोड़ल हमर माथा
आ मुड़ी टुटलाक बादो नहि धएल जमीन।
किछु माथक पाग,
किछु मंचक, मंचहि भरिक चालि देखि लगैत अछि
ओजनगर तँ 'नहिये टा भ' सकैछ' ओहिठामक पाग!
आ मुड़ी टुटलाक बादो नहि धएल जमीन।
किछु माथक पाग,
किछु मंचक, मंचहि भरिक चालि देखि लगैत अछि
ओजनगर तँ 'नहिये टा भ' सकैछ' ओहिठामक पाग!
***
सागर 'मैथिली कविताक नव्यतम पीढ़ी' सँ संबद्ध एक नव नाम छथि। त्योंथ, बेनीपट्टी, मधुबनीक निवासी छथि आ एखन सम्प्रति पटना कॉमर्स कॉलेज मे स्नातक द्वितीय वर्षक छात्र छथि। हिनका सँ hysagar05@gmail.com पर सम्पर्क संभव अछि।
तारानंद वियोगी मैथिलीक सुप्रतिष्ठित कवि, कथाकार आ आलोचक छथि। सागर द्वारा एतए प्रकाशनार्थ प्रेषित प्रस्तुत कविता सभ पर टिप्प्णीक लेल 'ई-मिथिला' हिनका प्रति आभार प्रकट करैत अछि। वियोगी सँ tara.viyogi@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि।
देहक वस्त्र जकाँ अहाँ सँ उतरैत छी हम
Reviewed by e-Mithila
on
August 24, 2019
Rating:

चाबस सागर
ReplyDeleteबहुत सुन्नर लिखलंव। लिखैत रहू। ❤️
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