अशोक कुमार दत्तक काव्य-गुण सँ प्रथम परिचय 'पुर्वोत्तर मैथिल' पत्रिका सँ भेल छल. बाद मे अशोक जी 'साहित्यिक चौपड़ि' मे सेहो अपन काव्य-संसारक संग सहभागिता दर्ज करौलनि. आब 'झिझिरकोना' नाम सँ हिनक पहिलुक कविता संग्रह बहरौलनि अछि. कायदे सँ तँ ई कविता सभ कम सँ कम तीन दशक पूर्वहिं पाठकक समक्ष आबि जयबाक चाही छल मुदा अहाँ पूछि सकैत छी जे आबिए जयतैक तँ की भ' जयतैक ? यैह गप्प एकर ठीक विपरीत अर्थ मे सेहो पूछल जा सकैछ ? जे-से, औखन हिनक किछु कविता कविक आत्म-वक्तव्यक संग प्रस्तुत अछि. पढ़ल जाए- मॉडरेटर.
प्रवेशिकाक बाद महाविद्यालयक अध्ययन वास्ते जखन पटना अयलहुँ, 'आर्तावर्त' आ 'मिथिला मिहिर' अपन उच्च शिखर पर छल। आर्यावर्तक 'चुटकुलानन्द की चिट्ठी' आ मिथिला मिहिरक 'बहिरा नाचे अपने ताले' बेस रसगर लागए। ओहि समयक विद्यापति समारोह मैथिल समाजक वास्ते एक महापर्व सदृश। मधुरताक लोकप्रियता एहन जे आन-आन भाषा-भाषी सेहो सभ रसपान करए वास्ते उमड़ि पड़थि। हेंजक हेंज मिथिलावासी, धरोहि बान्हि छावनी सदृश विस्तृत पंडाल मे गज-गज करथि। ओहि मे रविन्द्र-महेन्द्र जोड़ीक गान सुनबा लेल मारि पड़ए। श्री रवीन्द्र जीक गायन- "के छथि मैथिल की थिक मिथिला, हम कहैत छी ओरे सँ, मिथिलावासी सुनू पिहानी, हम कहैत छी जोरे सँ।" सुनि रोमांचित भ' जाइ। जेना मिथिलाक राज्य गान हो ! ओहि समय मे गोलघर मुहल्ला मे डेरा छल। समारोह सँ छुटि क' डेरा आबी तँ किछु-किछु लिख' बैसी। कहियो काल लिखयलाक बाद पुरना अंगनाक मध्य मड़बा पर बैसि लिखल रचना सभ केँ सुनाब' बैसि जाइ। छपयबाक वास्ते नहि अपितु मात्र मनोरंजनक वास्ते।
किछु सालक बाद घरेलु बाध्यताक कारणें हमरा पटना छोड़ि दरभंगा आबय पड़ल। स्नातकोत्तर मे जखन दरभंगा मे छलहुँ तँ विद्यापति समारोह ओहो ठाम खूब घूम-धाम सँ मनाओल जाइत छल। ओतहु रविन्द्र-महेन्द्र जोड़ीक रंग-विरंगा गाना सुनि श्रोतागण झूमि उठथि। आर्यावर्त-मिथिला मिहिर बन्न भेलाक बाद कहियो काल 'माटि-पानि' पत्रिका पढ़बाक लेल भेंटि जाएल करए। ओहि समय तीन गायकक एकटा समूह तिजोड़ी बनि सेहो अभरलाह। ओहो सभ नीक गाबथि। विद्यापति समारोहक ओहि समय जेना दुन्दुभी बजैत छल। लहेरियासरायक एम.एल. एकेडमी उच्च विद्यालय मे संकल्प लोकक तत्वाधान मे साहित्यिक आयोजन भेल छल जाहि मे गायकक एक आर जोड़ी उभरलाह। शशिकान्त-सुधाकान्त। ओहि जोड़ीक मुँह सँ किछु गीत सुनल- मोन होइए अहाँ केँ देखिते रही, किछु बाजी अहाँ हम सुनिते रही; तोरा अंगना मे बसन्त नेने आएब सजना। सुनि मोन गदगद भ' उठए।
ई पोथी दू कालखण्डक थिक। हम कोनो काव्यक गूढ़ बातक चर्च नहि कयल अछि, मुदा अपन जीवन मे गाम-घर मे रहैत आ एखन शहर मे अपन जीवन व्यतीत करैत जे मैथिल संस्कारक बदलैत स्वरूप केँ अनुभव कएल अछि ओकरे शब्दक माध्यमे अभिव्यक्ति देल अछि।
अशोक कु. दत्तक काव्यकृति 'झिझिरकोना' सँ किछु कविता
कन्यादान करबा मे बाप बिका गेल !
जिनका लेल देवो करैत भक्ति
देवीक पाछाँ घुमैत छल देवो
सीता लेल मिथिला अयला रामो
यौ बाबू आब हद्द भ' गेल !
मंडन अयाची भारतीक मिथिला
जतय कोठी बखारी मे लक्ष्मी मुनल छल
सुग्गो झुमि झुमि देव भाषा पढ़ै छल
यौ बाबू आब हद्द भ' गेल !
जतय गंगा कहथि 'दानी बनू'
गंगा मे पैसि कविकोकिल कहल-
'सदिखन देवीक सेबी बनू'
यौ बाबू हे आब हद्द भ' गेल
बरक बाप निष्ठुर भ' लात मारैत छथि
बिनु कलंके बेटी कलंकित भ' गेलि
घरक लक्ष्मी बेमोल बिकि गेल
यौ बाबू आब हद्द भ' गेल
कन्यागतक भक्षण करय
कखन सँ कानन मे कोइली कनैए
पाथरक आगू मे दुखड़ा सुनबैए
यौ बाबू आब हद्द भ' गेल ।
हम हेरै छी अपन मिथिला, राजा विदेहक शान यौ।
नहि टीका, नहि अग्निहोत्र, नहि देखी संध्यावंदन
बिनु गायत्री-जप कोना पायब, तीनू ताप सँ त्राण यौ।
जनेउ मे तँ कुंजी झुलैए, शौचो चढ़े नहि कान
मिथिलाक्षर नहि, मैथिली बाजब, कत' मिथिलाक पहिचान यौ।
अढ़ेला पर हुनका घाम छुटन्हि, संगे ओ जीवथि केउना
जेठक बोली सुनि कान पकन्हि, अपना केँ बुझथि महान यौ।
मोबाइल सँ दिन भरि चैट करे, क' रहल ओ नाम
बाहरे अपने बियाहल तँ कोना, बाप करौ कन्यादान यौ।
केओ सलवार-समीज पहिरने, बिनु दुपट्टा रखने
अहिवातीक अँचरा, नहि देखी कोना, खोइंछ भरल दूभि-धान यौ।
झिझिया, छठि गीत नीक ने लागे, बजाबी म्यूजिक जाॅज
सोहागिन सीथ ने सेनुर देखी, कोना पूजब हनुमान यौ।
पुष्प-वाटिका उजड़ल, कोना होयत राम-सिया के दर्शन
कतहुँ ने नचारी गूँजैए, ने मधुश्रावणीक गान यौ।
गाम मे आब बेन की देब, नहि दुरगमनिया भार
नहि सौजनि, नहि पाथेय होए, ने समधि-मिलान यौ।
डबरा-पोखरि सभ भथायल, कुमही तोड़ए तान
कोजगरा मे आब कोना, बाँटब पान-मखान यौ।
सड़ल आन्ध्रा माछ सभ तरि, टटका नहि पोखरिक माछ
बिनु तिलकोर, खम्हारू कोना, करू सन्मान यौ।
बिनु नेओंते भरदुतिया मे कोना, भैयाक बढि क' जोर
सजबी-दही बिनु मड़र कोना, देखब चौठी चान यौ।
सोलहो कला सँ उगला सुरूज, देखि मिथिला करूणायल
सँगहि शक्ति समेटू सभ केओ, राखू मिथिलाक मान यौ।
चीनियाँ झालरि, चहुँ दिस चतरल
चीनियाँ चाउमिन, चीनियाँ मोमो
चीनियाँ जाल सगरो परसल
तुलसी चौराक दीप कत' भुलायल ?
नहि जानि धरोहरि कत' हेरायल ?
जुट्टी बन्हने पहुना बैसल
सुटुक्का जीन्स, ड्रेगन टी-शर्ट
गोगल्स लटकौने कनियाँ घमकलि
अहिबातक सेनुर कत' बिलायल ?
नहि जानि धरोहरि कत' हेरायल ?
अपने मोने बियाह रचौलक
अपन महिस कुड़हरिए नाथब
लिभइन रिलेशनक पाठ पढ़ौलक
अहिबक फर, कत' ओंघरायल ?
नहि जानि धरोहरि कत' हेरायल ?
पहिरब आँगल, रहब आँगल
मंडनक सुग्गा मोन बैसल
सौराठ सभा थाकल हारल
कैथी-तिरहुता कत' लुटायलि ?
नहि जानि धरोहर कत' हेरायल ?
बेटी उडंत भ' खोप तानल
मातु-पिता टग हनथि खाट पर
छोड़इ सरबन लंक पड़ायल
मनुक्खक ममता कत' मेटायल ?
नहि जानि धरोहरि कत' हेरायल ?
अशोक कुमार दत्त
गोला रोड, दानापुर, पटना
मो. 09431645105
Reviewed by बालमुकुन्द
on
अगस्त 04, 2017
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भागम-भाग आ उहा-पोहमे हेराएल धरोहरिक खोज करब आ ओकरा लोकक समक्ष अनबाक लेल धन्यवाद !
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