|
शरदिंदु चौधरी | क्लिक : बालमुकुन्द |
हमरालोकनिक देश मे बौद्धिक जगतक मध्य विचार-विमर्शक विभिन्न प्रकारक श्रृंखला निरन्तर रूप सँ अनवरत चलैत आबि रहल अछि एवं वर्तमान समय मे ई विमर्श सभ अनावश्यक रूप सँ हमरालोकनिक जिनगी मे अनघोल मचौने रहैत अछि, मुदा देश-राज्यक शिक्षा-व्यवस्था आधारित विमर्श, ओकर पतनशीलता औखन धरि विमर्शक मुख्यधारा मे जग्गह नहि बना सकल अछि, से दुर्भाग्यपूर्ण अछि।
ई कहबाक मिसियो आवश्यकता नहि कि अध्यापक, कोनहुँ शिक्षा-व्यवस्थाक कतेक पैघ महत्वपूर्ण अंग होइत अछि ! शिक्षा मे गुणवत्ताक बहाली हेतु समुचित संख्या मे योग्य शिक्षकक नियुक्त्ति अत्यन्त आवश्यक आ महत्वपूर्ण अछि। शिक्षा-व्यवस्थाक नींव छथि शिक्षक, एकर सम्पूर्ण संरचना कतहुँ ने कतहुँ प्रत्यक्षतः शिक्षकेक ऊप्पर आश्रित रहैत अछि।
हमरासभक ई दुर्भाग्य अछि जे भाषा एवं साहित्यिक स्तर पर एतेक समृद्धशाली होयबाक बादहुँ मैथिली प्राथमिक स्तर पर पठन -पाठन सँ फराक राखल गेल अछि मुदा ईहो सर्वविदित अछि जे संघ लोकसेवा आयोगक परीक्षा सँ उच्च स्तर पर महाविद्यालय- विश्वविद्यालय धरि मैथिली शिक्षा-व्यवस्था मे प्रयुक्त्त होइत रहल अछि। औखन मैथिलीक वरिष्ठ पत्रकार, सम्पादक, लेखक, प्रकाशक ओ पुस्तक विक्रेता शरदिन्दु चौधरी मैथिलीक प्राध्यापक वर्गक वर्तमान स्थिति सँ साक्षात्कार करा रहलनि अछि :
मैथिली आ मैथिलीक प्राध्यापक
आचार्य रमानाथ झा, सुरेन्द्र झा सुमन, शैलेन्द्र मोहन झा, नवीन चन्द्र मिश्र, डाॅ आनन्द मिश्र आ फेर डाॅ बासुकीनाथ झा, डाॅ रामदेव झा, डाॅ अमरेश पाठक, डाॅ लेखनाथ मिश्र, डाॅ भीमनाथ झा, डाॅ यशोदानाथ झा आदि प्राध्यापक लोकनिक नाम लैते एकटा सामर्थ्यवान व्यक्तित्वक आभा सोझाँ ठाढ़ भऽ जाइत अछि आ मैथिली सँ सम्बन्धित समस्याक निदान भऽ जाएत तकर विश्वाश रहैत अछि। एहि कड़ी मे आर कैक प्राध्यापक छलाह जिनक प्रखरता, योग्यता ओ सामर्थ सँ मैथिलीक पठन-पाठन, अनुसंधानक प्रक्रिया अपन मानक ठाढ़ कयलक। मुदा आजुक की स्थिति अछि से सभ केँ बूझल अछि। वैह महाविद्यालय-विश्वविद्यालय अछि, वैह विभाग सभ अछि, चकाचकी बढ़ि गेल अछि, तकनीक उन्नत भऽ गेल अछि मुदा अधिकांश प्राध्यापक लोकनि मे ओ तेज नहि छनि जनिका सभक नाम हम ऊपर मे वर्णित कऽ मैथिलीक प्रति विद्वताक विश्वाश प्रकट कयलहुँ अछि।
ई किएक भेल, एना विद्वताक महल भरभरा कऽ किए खसि पड़ल ताहि सँ सभ मैथिली प्रेमी चिन्तित अछि। ई मानल जे समाजिक जीवन मे सुविधा पयबाक दौरक कारण सभ क्षेत्र मे स्खलन भेल अछि मुदा ई स्खलन प्राध्यापक वर्ग मे किएक भेल से बहुत गंभीर विषय अछि। कारण एहि वर्ग केँ आदरणीय होयबाक कारणे अनेरे अनेक सुविधा प्राप्त भऽ जाइत अछि आ भौतिक सुविधा तँ एहि कारणे सुलभ छैक जे वेतन आ आन मद सँ अन्य नोकरिहारा सँ बेसी टाका भेट जाइत छैक। सत्य पूछल जाय तँ मेहनतिक अपेक्षा बहुत बेसी आमदनी होइत छैक। आ यैह कारण अछि जे एहि वर्ग मे दिनानुदिन ज्ञान अर्जनक भूख मरल जा रहल छैक आ मिथ्या विद्वान होयबाक स्वांग कयल जा रहल अछि।
हमरालोकनि प्राध्यापकक पर्यायवाची विद्वान बूझैत छी खास कऽ विषय विशेषक रूप मे। कारण जखन क्यो स्नातक डिग्री पौलाक बाद स्नातकोत्तर करैत, पी. एच. डी करैत अछि तँ ओकरा सँ अपेक्षा रखैत छी जे ओ व्यक्ति ओहि विषयक 'मास्टर' ज्ञाता तँ अछिहे जे अनुसंधान द्वारा ओहि विषयक विशेषज्ञ सेहो भऽ गेल अछि। होयबाको यैह चाही, कारण लोक ओकर एहि भारी-भरकम डिग्री देखि यैह अपेक्षा रखैत अछि। पहिलुक विद्वान लोकनि एकरा बुझलनि आ तेँ श्रेष्ठ प्राध्यापकक रूप मे प्रशंसित ओ चर्चित रहलाह। सभ दिन अपन विद्वताक बलें किछु-किछु नव करैत मैथिली केँ बहुत किछु देलथिन।
आइ स्थिति एकदम भिन्न अछि। सभ केँ वैह डिग्री छनि, वैह पद छनि मुदा विद्वताक ओज आ तेज नहि रहबाक कारणें ने प्रतिष्ठा छनि आ ने क्यो मोजर दैत छनि। एतेक धरि जे विद्यार्थियो वर्ग हुनका लोकनि केँ देखि नाक-भौंह सिकोड़ैत छनि। डाॅ जयकांत मिश्र, राधाकृष्ण चौधरी, दुर्गानाथ झा 'श्रीश', बाल गोविन्द झा 'व्यथित', ओ दिनेश कुमार झा आ देवकान्त झाक बाद क्यो मैथिली साहित्यक इतिहास लिखबाक सामर्थ नहि जुटा सकलाह। जँ प्रो. मायानन्द मिश्रक मैथिली साहित्यक इतिहास 2014 मे नहि अबैत तँ एहि वर्ग केँ विद्वानक रूप मे स्वीकारो नहि करैत ओ जाइत-जाइत लाज रखलनि। हम जनैत छी जे हम एहि वर्ग पर बहुत पैघ आरोप लगा रहल छी मुदा ईहो सत्य अछि जे आजुक कोनो विश्वविद्यालयक अध्यक्ष मे सामर्थ नहि छनि जे ओ 1990 सँ लऽ कऽ 2010 धरिक समेकित इतिहास लेखन कऽ सकथि। परिणाम ई अछि जे ई लोकनि विद्यार्थी वर्ग केँ उपरोक्त पोथी सभ पढ़बा लेल कहैत थकैत नहि छथि आ पोथी अछि जे कतहु भेटैत नहि अछि। ई लोकनि कोनो सेमिनार अथवा भाषणमाला मे जँ पेपर पढ़ैत छथि तँ ओतवेक चर्च करैत छथि जतबाक उल्लेख ओ लोकनि कऽ चुकल छथि। नव किछु नहि।
हमर मान्यता अछि जे प्राध्यापकेवर्ग विद्वान होइत अयलाह अछि आ होयबाक चाहियनि। मुदा विद्वानक अर्थ ई लोकनि प्रायः साहित्यकार बुझय लगलाह अछि। आ प्रायः तेँ मैथिलीक अधिकांश प्राध्यापक अध्ययन-अध्ययापन, अनुसंधान छोड़ि साहित्यकार बनबा लेल अपन निजता केँ, अपन परिचिति केँ बिसरल जा रहलाह अछि। कविताक, कथाक पोथी छपायब आ पुरस्कार लेल दौड़ लगायब जेना हिनका लोकनि केँ सभ सँ आवश्यक कार्य बुझाय लगलनि अछि। कविता, कविता अछि की नहि से भने क्यो साहित्यकार मानय वा नहि; ओकरा पाठ्यक्रम मे लगा विद्यार्थी केँ बकानि पिआयब अनिवार्य बूझल जाय लागल अछि। साहित्यकार आ विद्वान दुनूक दिशा दू होइछ। साहित्यकार निरंकुश होइछ आ विद्वान कर्तव्यनिष्ठ ज्ञाता; साहित्यकार प्रेरणास्त्रोत- विद्वान प्रेरक अर्थात एक दोसराक पूरक। एकक बिना दोसराक अस्तित्व कायम नहि भऽ सकैछ। प्रवर्तक-मीमांसकक सम्बन्ध होइछ साहित्यकार-विद्वानक बीच। साहित्यकार समाज केँ प्रेरणा दैथ, विद्वान ओकरा आत्मसात कऽ पीढ़ी दर पीढ़ी तैयार करैत अछि। तेँ ई काज साहित्यकारक काज सँ श्रेष्ठ अछि अतएव प्राध्यापकक विद्वान होयब आवश्यके नहि अतिआवश्यक।
एहि परिपेक्ष्य मे हमर प्राध्यापक लोकनि अपन दायित्व सँ प्रायः फराक भऽ गेल छथि। विषय ज्ञाता तँ जाय देल जाय विषय-वस्तुक परिचयो राखऽ सँ परहेज करैत छथि। संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षा मे प्रश्न पूछल गेल - 'मैथिली भाषाक विकास मे राजेश्वर झा आ सुभद्र झाक योगदानक उल्लेख करू ?' विद्यार्थी वर्ग मे अनघोल भेल "आऊट ऑफ सिलेबस" प्रश्न पूछल गेल अछि। एकटा मैथिलीक प्राध्यापक जे एहि परीक्षाक एक्सपर्ट मानल जाइत छथि, हमरा शिकायत कयलनि प्रश्न पूछनिहारक प्रति। संगहि कोना परीक्षार्थी सफल होयत एहि अनटोटल प्रश्न उठबैत बहुत उटपटांग बात कहलनि। मुदा जखन हम दुनू विद्वानक योगदानक संक्षेप मे हुनका जानकारी देलियनि तँ बकर-बकर हमरा दिस देखैत रहलाह।
एहिना एकटा प्राध्यापक जखन संघ लोकसेवा आयोगक कापी देखय दिल्ली गेलाह तँ कापी देखबाक हेतु हुनका जे निर्देश देल गेलनि से नहि बूझि सकलाह। हारि कऽ ओहिठामक कर्मचारी केँ ओहि निर्देश केँ बुझयबाक आग्रह कयलथिन। परिणाम ई भेलनि जे ओ जे दुर्गति कयलकनि से फराक सम्पूर्ण मैथिल केँ हुनका सामने उद्धार कऽ देलकनि। मुदा हुनका लेल धनि सन। पुनः श्वानु प्रवृति जकाँ देह झारि , ओकरा पटा काज सम्पन्न कयलनि। जँ विद्वान रहितथि तँ ओ दिन नहि देखय पड़तनि।
मैथिलीक विकास मे जतेक बाधा अछि ताहि मे सभ सँ महत्वपूर्ण अछि मैथिलीक प्राध्यापकक मैथिली सँ नहि जुड़ब। वर्तमान मे अधिकांश प्राध्यापक नोकरी टा करैत छथि। सुविधा पाबि नेहाल छथि। ने अपना केँ मैथिलीक विकास लेल उपयोगी बना रहल छथि आ ने हुनका सँ जुड़ल जे पीढ़ी दर पीढ़ी विद्यार्थी बनि अबैत अछि तकरा मे योग्यता - क्षमता बढ़यबाक प्रयास करैत छथि। जँ एना नहि होइत तँ वर्तमानो मे सुयोग्य शिक्षकक पाँती लागल रहैत। जँ किछु सक्षम प्राध्यापक छथियो तँ ओ अव्यवस्थित माहौलक कारणें अपना केँ मुख्यधारा सँ फराक कऽ लेने छथि। परिणाम ई अछि जे अजुको विद्यार्थी केँ मैथिली सँ ओ ऊर्जा नहि भेट पाबि रहल छैक जे भेटबाक चाहैत छलैक। लोकसेवा आयोगक परीक्षार्थी लोकनि केँ सेहो हिनका लोकनि सँ सम्यक सहयोग नहि भेट पाबि रहल छनि जाहि कारणे पटना आ दिल्ली मे मैथिली सँ छुति नहि रखनिहार कोचिंग संचालक सभ परीक्षार्थीक दोहन करैत अछि।
कतोक वर्षक बाद किछु मैथिलीक प्राध्यापक लोकनिक बहाली भेलनि अछि। एहि मे किछु कुशाग्र युवा सेहो शामिल छथि। सर्वश्री सुधीर कुमार झा, अरविन्द कुमार सिंह झा, सुरेन्द्र भारद्वाज, शैलेन्द्र मोहन मिश्र, सुरेश पासवान, चक्रधर ठाकुर, वन्दना कुमारी, कृष्णमोहन ठाकुर, अजीत मिश्र, अरूण कुमार सिंह, नरेन्द्र नाथ झा आदि नवनियुक्त प्राध्यापक लोकनि सँ आशा कयल जाइछ जे ई लोकनि अपन सक्रिय गतिविधि सँ मैथिलीक विकास मे योगदान अवश्ये देताह। ओना 'खो मंगला पड़ल रह' बला जे स्थिति वर्तमान मे मैथिलीक शैक्षणिक जगत केँ गछारने छैक ताहि मे ईहो सभ मिज्झर भऽ जाथि तँ कोनो आश्चर्य नहि। तथापि आशा पर दुनिया चलैछ हम सभ सेहो आशान्वित छी जे नित-नवीन नव-नव खुजि रहल विकासक द्वारि लेल एही मे सँ क्यो भाषा विज्ञानीक रूप मे, क्यो साहित्यिक इतिहासकारक रूप मे तँ क्यो वैयाकरणाचार्यक रूप मे पुनः मैथिली केँ प्रतिष्ठापित करैत विद्वानक रूप मे परिगणित कयल जयताह।
★★★
संपर्क:
शरदिन्दु चौधरी
शेखर प्रकाशन, पटना
बहुत सार्थक पोस्ट। आ एहन व्यक्ति क हमरा सबहक सौझा आनय ला आहाँ के साधुवाद
जवाब देंहटाएंSarwtha Sahi vishleshan . Neek lagai .
जवाब देंहटाएंE ta sudhh ripen aainaa dekhaulani Han.....
जवाब देंहटाएं