अन्हार घर मे टांगल मिझायल लालटेन


महाष्टमीक दिन. महिसीक तारा थान मे एहि दिन मे बहुत गहमा-गहमी रहैत अछि. पछिला बर्ख, माने २०१५ केर महाष्टमी. की मोन  मे फुरल, सोचलहुँ जे आइ महिसी जयबाक चाही. संयोग सँ रमणजी (रमण कुमार सिंह) दिल्ली सँ आयल रहथि. सुभाष भाइ केँ खबरि कयलियनि. सुष्मिता आ हमर छोट बेटी ऋजिश्वा. एकटा गाडी कयल आ सुपौल सँ महिसी लेल विदा भेलहुँ.

तारा थान मे उत्सवी आ सुगन्धित वातावरण. मन्त्रोचार करैत पंडितलोकनि. दूर-दूरक स्त्रीगण आ पुरुष. लाल-पीयर वस्त्र मे सुसज्जित. इनार पर भीड़. अछिञ्जल भड़बाक शीघ्रता. भगवती दर्शनक आतुर आकर्षण. भक्तिमय  वातावरण. नानाप्रकारक सुगंध. हाथ मे फूलडाली. मिठाइक दोकान पर लोकक अपार भीड़. भगवतीक ठीक आगाँ बाहर मे होइत बलि. बलिप्रदानक बाद रक्त आ रक्त. अगबे रक्त. ओहि रक्त केँ आँगुर मे भिड़ा लोक ठोप करैत अछि.

हमसभ जेना-तेना भीतर घुसि भगवतीक पूजा-अर्चना कयल. पंडालोकनि मंत्र पढ़ैत आ लोक सभ तकर अनुकरण करैत. सुनैत छी जे ई उग्रतारा दिनभरि मे अपन स्वरुप आ भाव-भंगिमा परिवर्तित करैत रहैत छथि. कखनो अपार करुणा आ प्रेममय आकृति, कखनो मुस्काइत, कखनो ममता आ परम सिनेहमयी, कखनो आलस भाव मे मातल तँ कखनो अपन सोलहो कलाक संग प्रचण्डतम रूप मे, उग्र तीव्र. ई कतेक सत्य कतेक  असत्य- तकरा विषय मे किछु कहब संभव नहि. राजकमलक परम ममतामयी उग्रतारा केँ प्रणाम करैत हमसभ मंदिर सँ बहार भेलहुँ.

सुभाष भाइ मन्दिरक मुख्य द्वार पर अन्नत भीड़ मे एकसरे ठाढ़. ओहिठामक दृश्यक अवलोकन करैत छलाह. ताधरि तारानन्द केँ हमर सभक  अयबाक, माने महिसी पहुँचि जयबाक आ पूजा-पाठ क' लेबाक सूचना नहि रहनि. हुनका पहिनहि सूचना द' देने रही तेँ ओ मन्दिरक मुख्य पुजारी केँ हमरा सभक पूजा-अर्चनाक मादे कहि चुकल रहथि. मुख्य पुजारी प्रतिक्षे करैत रहि  गेलाह, ताबत हमसभ तारानंदक ओतय पहुँचि गेल रही. तारानन्द प्रतिक्षे मे छलाह. भेटिते कहलनि- चलह पहिने भगवतीक दर्शन करी, सभ व्यवस्था ओतय भेल छैक. मंदिर आ तारानंदक आवास लगभग एक्कै ठाम. पाँच - छओ बाँसक दूरी मात्र.


उग्रतारा मन्दिर, महिसी | फोटो : गूगल 


ओही आवास पर एक प्रतिभाशाली युवक प्रभात (कथाकार अशोकक पुत्र) हमर सभक प्रतीक्षा मे छलाह. ओ दू घंटा पहिने सहरसा सँ महिसी आयल रहथि. तारानंदक आवास पर अबिते मोन पड़ल १९७८ सँ १०८५ धरिक महिसीक रामशालाक आयोजन सभ. कवि - सम्मेलन, गीत-नाद आ अगबे राजकमल चौधरीक स्मरण. चर्चा. अनेक योजना. अनेक विमर्श.

मंच पर विराजमान रहैत  छलाह - मायानन्द मिश्र, शालीग्राम, महेन्द्र , महाप्रकाश, सुभाष चन्द्र यादव, कृष्णचन्द्र झा मस्ताना, भवेश मिश्र , ललितेश मिश्र, जयानन्द झा, तारानन्द झा तरुण, देवशंकर नवीन, तारानन्द आ हम. आचार्य योगेश्वर जनिकर मोछ कहल नहि जाय. हिन्दी -मैथली में धुरझार काव्यपाठ करयबला.  राजकमलक प्रति समर्पित. कविताक अलावे ओ अपन झमटगर मोछक कारणे सभक आकर्षणक केन्द्र रहैत छलाह. गामोक अनेक नव-नव कवि आ कवियत्री. ताहि मे निशा मोन पड़ैत छथि जे राजकमलेक कुल-खूटक छलीह. आगाँ मे बैसल महिसीक अपार जनसमूह. एकनिष्ठ भावे तन्मयताक संग काव्यपाठ सुनैत. तकर बाद भोजन-भात. बेसी काल राजकमलेक डीह पर. माँगुर -कबइ. अद्भुत दही. सचार लागल थारी -बाटी.

मणिपद्म जी सेहो बेसी काल ओही मंच केँ गरिमा प्रदान करैत छलाह. हुनका सँ हमरा पहिल भेंट महिसीए मे भेल छल. आचार्य सोमदेव सेहो कोनो-कोनो बर्ख उपस्थित भ' जाथि। नृत्यमुद्रा मे छोट-छोट कविता सुनबैत सोमदेव आकर्षणक केंद्र रहैत छलाह. ओह , जो रे ज़माना.

मनोरंजन झा,धीरज आ नन्द-नवलक जोड़ी. अरविन्द मिश्र-नीरजक स्त्रैण स्वर गीत . अद्भुत आ अविस्मरणीय आयोजन रहैक ओ सभ. नीलू, माने नीलमाधव (राजकमल सुपुत्र) तखन  छोट रहथि आ हुनक आँखि पर चश्मा लागल रहैत छलनि. हमरा सभ अत्यंत स्नेहपूर्वक हुनका सँ भेंट करियनि. दुलार  -मलार. आयोजन सभ मे शशिकांता जी अत्यंत सक्रिय रहथि. सभतरि आभास होइ जे राजकमल एतहि कतहु छथि. सभ कथू मे सक्रिय - सन्नद्ध. अपन चश्माक तर सँ देखैत, बिहुसैत. नव पीढ़ीक आदर आ सम्मान केँ आत्मसात करैत आशीर्वाद दैत...

मोन पड़ल १९६७ मे राजकमलक मृत्युक पश्चात दिसम्बरक जाड़ - ठाढ़ मे रामकृष्ण झा किसुन पहिल बेर एहि कवि-सम्मेलनक सूत्रपात महीसी मे केने रहथि. १९६७ सँ १९६९ धरि महिसी मे कवि -सम्मेलन आ   राजकमल पर विचार गोष्ठी हुनका नेतृत्व मे भेल.  तकर बाद ई परम्परा समाप्त भ' गेल. फेर एतेक बर्खक पश्चात् १९७८ -७९ सँ तारानन्द अपन समर्पित मित्र-मंडलीक सहयोगें ई आयोजन सभ शुरू  कयलनि. ओ बहुत यशस्वी भेलाह आ तारानंदक कारणे राजकमल चौधरी  अपन गाम आ परिवेश मे, धेमूरांचल मे कोशी परिसर  मे सदैव कोनो ने कोनो कारणे चर्चित-अर्चित रहलाह. आइ मोन पड़ैत छी तँ ठीके सभक मूल मे तारानंदक उपस्थिति आ सक्रियता मोन पड़ैत अछि. ओकर व्यग्रता मोन पड़ैत अछि. ओकर आतुरता आ भावविह्वलता मोन पड़ैत अछि.

मोन पड़ैत अछि फूलबाबूक बंगला. एक समय मे महिसी मे सभ सँ आकर्षक, भव्य-दिव्य आ देखनुक बंगला छल ओ. अत्यंत चर्चित. एहि बंगलाक चर्चा दू गोट लेखक कयने छथि मैथिली में. पहिल प्रख्यात आलोचक रामानुग्रह झा आ दोसर रामानंद रेणू. आब दुनू स्वर्गीय. रामानुग्रह झा १९६७ मे राजकमल चौधरीक ओहि बंगला पर गेल छलाह, हुनका सुपौल अनबाक लेल. राजकमलक एकमात्र साक्षात्कार भेटैत अछि, जे रमानुग्रहे झा लेने रहथि हुनका सँ महिसी में. अत्यंत रोचक आ औत्सुक्य सँ भरल ई संस्मरण 'आखर'क राजकमल विशेषांक मे प्रकाशित अछि. सुपौल मे नवकविता सेमिनार मे राजकमल केँ अयबाक रहनि. सुपौले हुनक अंतिम साहित्यिक मंच रहल. आ रामानन्द रेणु , जीवकान्त, कीर्तिनारायण जी एहि सेमिनार आ कवि -सम्मेलनक पछाति राजकमलक संग महिसी गेल रहथि. आ रेणु जी ओही बंगलाक चर्चा आखर पत्रिका मे कयलनि.

ओही चर्चित बंगला केँ अंतिम अवस्था मे हम  देखने रही. चमक आ भव्यता तँ ओ नहि छल मुदा तैयो ओ बंगला जेना-तेना ठाढ़ छल. अपन अतीतक अनेक कथा -उपकथा कहैत. सुनैत छी, राजकमल हिंदी कवि अज्ञेय केँ आमंत्रित कयने रहथि गृह-प्रवेशक अवसर पर उपस्थित रहबाक लेल. मुदा, से कोनो कारणे संभव नहि भ' सकल. अज्ञेय नहि आबि सकलाह आ राजकमल अपन बनाओल बंगला मे प्रवेश कयलनि. ई ओ समय छल जखन राजकमल अपन पिताक मूल डीह त्यागि नव बंगलाक निर्माण कयने छलाह. बहुत बाद मे , राजकमलक ओही उजरल-उपटल बंगला मे पशुपालन विभागक कार्यालय खुलि गेल छल. कथा बहुत अछि. उपकथा बहुत अछि. हरि अनंत हरि कथा अनंता.

तें कहैत रही जे महिसीक तारानंदक आवास.  आवास पर उपस्थित हमसभ. थोड़ेक गप्प-शपक उपरांत हमरालोकनि तारानंदक अध्ययन सह पुस्तकालय कक्ष मे जाक' बैसि गेलहुँ. ढंग सँ सरिआओल सुसज्जित पोथी आ पत्रिका. हिन्दीक अलग आ मैथिलीक अलग. सभक सूची अलग-अलग विधावार संधारित. व्यवस्थित लेखकक ई संसार मोहक छल. कोनो पोथीक नाम कहू , क्षणहि में उपस्थित. गप -शप  शुरू भेल तँ योजना सभक स्वरुप आ आकार ग्रहण करय लागल. हमरा लगैत छल जे कीड़ा घुसि गेल छल से बहरयबाक नाम नहि लैत छल.

हम गप्पक बिच्चहि मे सभ केँ रोकैत कहलियैक - 'तारानन्द पूजा-पाठ भेल. गपशप भेल. आब राजकमलक डीह पर चलबाक अछि. चल, आइ लगभग बीस बरखक बाद ओहि माटि -पानिक स्पर्श करबाक मोन होइत अछि.' ई बात हम ओकरा बड्ड विकलताक संग कहलियैक. ओ हमर उद्वेग तँ बुझलक मुदा थकमका गेल. ओ मयंक दिस देखलक. मयंक भाइ अनन्य साहित्य प्रेमी. होम्योपैथिक चिकित्सक. वियोगीक अभिन्न आ तें हमरो. मयंक भाइ मैथिली आ हिन्दी साहित्यक भयंकर पाठक.

कने काल लेल समय जेना थमि गेल छल. प्रभात सेहो उत्सुक रहथि. 'राजकमल का सफर' क लेखक सेहो परम उत्सुक बुझयलाह. भरिसक ओहो हुनक मूल डीह पर नहि गेल   छलाह. अंततः विदा भ' जयबाक योजना बनल तँ तारानन्द चिंतित मुद्रा मे फेर मयंक भाइ कें कहलक- केदार नहि मानत. जिदिआयल अछि. ककरो फोन करह चौधरी टोल मे. मयंक भाइ आब कमान थामि लेने रहथि. ओ जखन कमान थामि लेलनि तँ हम निश्चिन्त भेलहुँ.

सीढ़ी सँ उतरि सभकेओ गाड़ी मे बैसलहुँ आ विदा भेलहुँ. पाँच मिनट मे हमसभ चौधरी टोल मे रही. महिसीक प्रसिद्ध रामशाला. यैह ओ रामशाला थिक जतय सभटा आयोजन होइत छल. राजकमलक घर सँ लगभग सटले अछि रामशाला. नेतृत्व करैत छलाह मयंक. आउ हमसभ ओहिठाम चली, जतय कहियो फूलबाबूक बंगला छलनि. हमसभ हुनका पाछाँ - पाछाँ ओहि गली मे पैसलहुँ. राजकमलक अनुज स्व. सुधीर चौधरीक हिस्सा मे ओ ज़मीन छल आब. जाहि पर हुनक जेठ पुत्र अपन फूसिक घर बनौने छथि. हमसभ निधोख आँगन मे पैसि गेलहुँ. गृहस्वामी अमोल चौधरी अकचकयलाह. परिचय-पात भेल. अदरक संग स्वागत कयलनि. जल पीलहुँ, फेर शरबत. अमोल जी सभटा खेरहा सुनबैत रहलाह. हमसभ सुनैत रहलहुँ. फेर ओ हठात कहलनि जे एकता चीज़ साबुत अछि हमरा लग , फूल कक्काक चौकी. ओ बहुत आदर सँ ओ चौकी देखौलनि. पूर्ण ज़मानाक चौकी. ओही पर राजकमल सुतैत रहथि. एकटा चीज आरो छैक  चौकी में.... हमसभ चौकलहुं. फूल कक्का जे पात्र ग्रहण करैत छलाह तकर निशान बनल छैक चौकी मे. हमसभ ओहि घर मे पैसलहुँ. मुदा ओहि चौकी पर तँ राखल छल ट्रंक. बोरा. अगड़म - बगड़म. गांजा बनबैत काल चक्कू सँ ओकरा काटय पड़ैत छैक. ताहि चक्कूक दाग ओहि पर बनल रहैक. सैह अमोल जी देखबय चाहैत छलाह मुदा ओतेक रास समान कें ओ हटा नहि सकलाह, प्रयास ओ बड्ड कयलनि.

हमसभ धीरे- धीरे ओहि घर सँ बाहर भेलहुँ आ राजकमलक पैतृक डीह पर आबि आबि गेलहूँ. पुरना खाटक पैघ सन मकान. पैघ-पैघ ओसार. गोल-गोल खाम्ह. पलस्तर उजरल. कतहु-कतहु भाँगल देबाल, चिरकल. दू-तीन टा कोठरी. घर मे ताला बन्न. घरक चारूकात लत्ती-फती , अनेरुआ गाछ सभ. गाछक सीर सभ मोटायल. जेना जंगलक बीच घेरायल हो मकान.

सुभाष भाइ ओहि घरक एकटा खिड़की केँ ठेललनि तँ ओ खुजि गेल. एकटा अजीब सन आवाजक संग. जेना कतोक बर्खक बाद बाहरक हवा पहिल बेर घर मे प्रवेश कयलक. सुभाष भाइ खिड़कीक छड़ पर अपन आँखि सटौलनि, हमहुँ सभ सहटि केँ लग गेलहुँ. एकटा छत्ता, पलंग. अनेक कबाड़. छोट-छोट चीज सभ यत्र -तत्र पसरल. लागल जेना बीस-पच्चीस बर्ख सँ ओहि घरक खिड़की-केबाड़ खोलल नहि गेल हो.

सुभाष भाइ कहलनि - केदार , देखहक एकटा लालटेन सेहो टाँगल छैक. मिझायल लालटेन. लालटेनक चारुकता मकड़ाक पैघ जाल. देखलहुँ , ठीके एकटा लालटेन ओहि अन्हार घरक एक कोन मे टाँगल छल. कहियो ई घर कतेक प्रकाशित छल. जगमग करैत.

यैह ओ घर छल मधुसूदन चौधरीक जतय फूल बाबू ,धीर, सुधीरक बालपन बीतल हेतनि. मदालसाक जन्म एहि घर मे भेल हेतनि. किलकारी सँ गूँजित भेल हैत ई सम्पूर्ण परिसर. जतय राजकमलक सन्तान दिव्या, मुक्ता आ नीलूक जन्म भेल हेतनि. गृहवधूक रूप मे आयल हेतीह बसैठ चानपुराक शशिकांता जी. कतेक, कतेक रास घटना-दुर्घटनाक मूक  साक्षी बनल ई मकान आइ जंगल सँ आच्छादित भेल ठाढ़ अछि.  सूनसान, जनविहीन. बड़ी काल धरि ओहि आँगन मे ठाढ़ भए हम, सुभाष भाइ, तारानन्द, सुष्मिता, मयंक भाइ , रमण जी, आमोलजीक धाराप्रवाह आख्यान  सुनैत रहलहुँ. अतीतक अनेक खेरहा सुनबैत रहलाह ओ.

ज्ञात नहि हमसभ अमोलजीक सुनि रहल छलहुँ वा कतहु दूर , कोनो एकांत मे , कोनो अज्ञात पीड़ा आ यंत्रणा मे डूबल छलहुँ. मुदा हमरा मोन मे राजकमलक ई पाँति घुरि-घुरि अबैत रहल- अपने गाछीक फूल - पात नहि चिन्हैत छी.

ठीके एतय चिन्हबाक लेल किछु नहि बचल अछि. हमरा सभक चेहरा पर एकटा नमहर आ बोझिल उदासीक निर्गुण पसरल छल. ठीके कहैत छल तारानन्द- केदार, ओम्हर जयबाक आ किछु देखबाक विचार छोड़ह. ओतय आब किछु नहि छैक. ओतय अगबे दुख छैक, उदासी छैक, भयावहता छैक आ अनचिन्हार सन परिवेश छैक.

बहुत अवसन्न आ उदास भेल भारी पएरे ओहि घर सं विदा भेले रही कि ताबत एक ओजस्वी युवक सोनू प्रकट भेलाह. ओ प्रकट होइते सुष्मिताक चरण स्पर्श कयलनि , फेर हमरो. ज्ञात नहि कोना ने कोना ओ सुष्मिता कें बहिन कहलनि. फेर सोनू जी सं गपशप भेल. बड़ी काल धरि सड़क पर ठाढ़ रही लगपासक घर सं अनेक स्त्री पुरुख हमरा सभ कें तकैत रहलाह. हुनका सभक मोन मे प्रश्न सभ रहनि प्रायः, मुदा हमसभ गोटे बहुत गहीर अवसाद मे डूबल रही. जानि नहि, जेना कतेक दिनक थाकल होय, झमारल होइ. ठीके किछु नहि छल. उदासी छल, अनंत उदासी. ■



केदार कानन मैथिलीक सुपरचित कवि, साहित्यकार आ प्रकाशक छथि।  प्रस्तुत संस्मरणान्तमक लेख प्रथमतः 'पूर्वोत्तर मैथिल' (सं शरदिन्दु चौधरी) सँ एतए साभार प्रस्तुत अछि।  
अन्हार घर मे टांगल मिझायल लालटेन अन्हार घर मे टांगल मिझायल लालटेन Reviewed by बालमुकुन्द on जून 19, 2017 Rating: 5

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