रजनीश प्रियदर्शीक किछु कविता



प्रिय पाठकगण, "ई-मिथिला" पर आइ मैथिलीक एकदम्म नव्यतम पीढ़ीक कवि रजनीश प्रियदर्शीक किछु कविता प्रस्तुत कयल जा रहल अछि. रजनीश पटना विश्वविद्यालयक छात्र छथि आ औखन राजनीतिशास्त्र मे पीजी क' रहलनि अछि. सम्प्रति मिथिला स्टुडेन्ट यूनियनक राष्ट्रीय प्रवक्ता सेहो छथि आ छात्र राजनीति मे विशेष रूचि रखैत छथि. हिनक ई कविता सभ पहिलुक बेर कोनो माध्यमे मैथिली मे पाठकक मध्य आबि रहल अछि. पढू आ पढ़ि केँ अपन विचार साझा करू -मॉडरेटर 




(१).  "जीबैत लहास"

काल्हि दू टा होइत अछि 

एक टा अतीतक....! 
दोसर  भविष्यक....! 

आ दुहूक मध्य आइ...! 

जाहि मे घुरियाइत मनुख 

रंगकर्मी जकाँ 

अपन पात्र बदलैत अछि। 



ओना प्रकृति सेहो 

बड्ड  पैघ  रंगकर्मी  अछि  ! 

जे मनुखक कतेको ... 

दोसरका काल्हि केँ 
जीबाक लेल ......! 
एक्कहि क्षण मे 
उत्कृष्ट पात्र गढ़ैत अछि! 

ताहि सभक बीच.. 
मसोमातक पात्र जीबैत 
कोनो नव युवती .... 
समाधि पर जयबा सँ पूर्व ! 
धधकैत ज्वाला सँ .. 
अपना कें संयमित क' 
कुलटाक अभिशाप सँ बचैत । 
प्राणयुक्त लहास ! 
अपन भविष्य केँ ... 
अतीत बनेबाक लेल आतुर अछि 
हे समाज ! अहाँ चुप्पहि रहू ।।


(२). "जीवनक रंग" 


अखरा रोटी जे नहिं खेलक 
ओ की बूझत रोटिक मोल 

जुन्ना भ' गेल पेट ऐंठि क' 

अंत भेटल मृत्युक सङ्गोर 



अगराही लागल अछि सगरो 

कत्तो भूख त' कतो पाई के 

ठिठुरि रहल कोरा मे नेन्ना 

आँचर भरि ने वस्त्र माय के 



निसभेर समूचा जगत भेल अछि 
महल-अटारी, बाट-घाट पर 
पाँजर लगा कुकुर सँग सुतल 
कतेको रहथि मनुख बाट पर 

आँखि पसारि कने जों देखब 
क्षण-क्षण छलकत आँखिक नोर 
आसक फुंही सँ कहिया भीजत 
बारल मनुखक सूखल ठोर ।। 



(३).  "अन्नक मोजर" 


फल्लाँ बाबूक डस्टबीन मे 

प्रतिदिन रोटी-भात फेकाय 



जठराग्नि सँ बिलखि मरैत अछि 

कतेको मनुक्ख कहल नहि जाय 



अन्नक मोज़र ओ की बुझत 

भरल पेट, भरि दिन अगराय 



भीठ खेत केर कोडि-तामि  
भरि दिन खेतिहर घाम चुआय  

बड्ड परिश्रमे अन्न उपजै छै  
कहियौ तँ लगत कनुआय 

अतिवृष्ठि आ आनावृष्ठि सँ  
अन्न अकाल, जन मारल जाय 

अन्नक धौजनि, जे करैत अछि  
अपना कें बड़का बुझैत अछि 

अन्नपूर्णा कखन दिन फेरती  
समयक चक्र कहल नहि जाय 

फल्लाँ बाबूक डस्टबीन मे  
प्रतिदिन रोटी-भात फेकाय 

(४).  "भाव छै" 


आँखि मीर नोर बहल,  

भाव केर अभाव छै 

पीर भेल, धीर टूटल,  

नोर बहल... भाव छै   



पीर भेल पहाड़ सन,   

तेँ धीर भेल अधिर यौ 

की हेतैक न्याय जतय,  

बहीर छैक वज़ीर यौ   


मरैत अहि मनुख नित्य..   
अहार केर अभाव सँ  
अछि  आवाम त्रस्त भेल,  
कुशासनक प्रभाव सँ   

लोकतंत्र भ्र्रष्टतंत्र....  
के बनल पर्याय अहि  
मनुख ले बचल मात्र,  
धर्म केर लड़ाइ अछि 

जे हेतैक से हेतैक...    
एतय एते चलैत छै 
पीर भेल, धीर टूटल,  
नोर बहल... भाव छै 



(५).  हेरा रहल हरयरी



हेरा रहल हरयरी, हम त औना रहल  छी 

खेत बनल अछि  झाम ,  तैयो कोरा  रहल  छी 

सुखी गेल अछि  धान,  तइयो  पटा रहल  छी 

तें ने  उपजे चास, विधि किये  कना रहल   छी 



क' बैठलों हम  गलती  तैयो अछि ठेसी  

देलिय  ज़े हम  खाद , से छले  ने  देसी  

अपन बथान तर परले रहले,  गोबर  ज़े देसी  
तखन कोना  ने  परती रहते ,  देशक खेती  

बाकुट धेयर अछि धान, तकरे  लुझी  रहल  छी 
अपन स्वदेशक कोठी में हम मुस रखे  छी 
आनक देश में जा जा  कोठी खूब भरे   छी 

खाय विदेशी अन्न लोक  नहीं पचा रहल अछि  
भोगक रोगे राष्ट्रक  काया सुखा रहल  अछि 
आ ,  तैयो  राष्ट्र विकाशक वर्षी  मना रहल अछि 
तैयो  राष्ट्र विकाशक वर्षी  मना रहल अछि

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रजनीश प्रियदर्शी सँ rajanishpriyadarshi@gmail.com पर संपर्क  भ' सकैत अछि. 


रजनीश प्रियदर्शीक किछु कविता रजनीश प्रियदर्शीक किछु कविता Reviewed by बालमुकुन्द on सितंबर 05, 2018 Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. लड़का चंसगर छैक। विचार बिंदु नामक वेब पोर्टल के संपादक-संस्थापक सेहो छथि रजनीश। नव पीढ़ीक एकटा सक्कत लेखक के रूप मे बहुत कम समय आ बयस मे अपना के स्थापित करबा सफल भेलाह अछि। रजनीश के सबसँ बड़का गुण छन्हि जे ईमानदार लेखक छथि आ अप्पन परिवेश के चीन्है छथि आ लिखै छथि। बहुत बधाई आ शुभकामना रजनीश के।

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  2. Rajnish jee bahut prabhavi rachnakaar chhaith.. ahina likhait rahu.. shubhkaamna

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  3. Prasaad gun SA yukt rajnishak Kavita bad deeb lagaich. Go ahead Bandhu...

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