अकानल डेग


अमरनाथ झा 'अमर' केर किछु कविता ::


आभासी पटल (सोशल साइट्स) विगत किछु वर्ष मे लोकक द्वारा अपन मोनक अभिव्यक्ति साझा करबाक एकटा सशक्त माध्यमक रूप मे सोझाँ आयल अछि, आ ई मैथिली भाषा-साहित्यक प्रचार-प्रसार मे सेहो महती भूमिका निभा रहल अछि। आइ रचनात्मकताक सभ सँ बेसी उर्वर जमीन कहए जाय बला फेसबूकक माध्यमे मारिते रास नव लोक मैथिली मे अपन अभिव्यक्ति प्रकट क' रहलनि अछि, अमरनाथ झा 'अमर' सेहो ताहि श्रेणीक रचनाकार मे सँ एक छथि। वयस सँ रिटायर्डक अवस्था मे लेखन प्रारम्भ कएनिहार 'अमर' जे 'कक्काजी' नाम सँ सेहो प्रसिद्ध छथि, बात-बात पर लयबद्ध टिप्पणी करबाक लेल जानल जाइत छथि। प्रकाशनक एहि प्राथमिक अवसर पर हुनका 'ई-मिथिला' दिस सँ बहुत-बहुत बधाइ आ शुभकामना। प्रस्तुत अछि हुनक सात गोट कविता, पढ़ल जाओ :

१). मोन

मोन मे उमड़ल-घुमड़ल भावक
अछि छपाएब नहि नीक
भाव-व्रण सँ बचवा खाँहिस
उगिलब होइ छइ ठीक।
मन-मयूर सभ लोक कए
खोलय लागय पाँखि
सिंहावलोकन नेनपन केर
जहिखन देखय आँखि।
मनक सुनरता अनुपम, होइछै
सौंदर्यक परिभाषा
भाव भेटय जँ एहने मोनक
पुनि नहि ककरो आशा।
मोन जुआएल होइ कदपि नहि
मोन झुलइ अछि मचकी
वाल अवस्था मोन पड़य तँ
आबऽ लागइ हिचकी ।
मोन भने ई बज्जर भऽ जाउ
हिय नहि पाथर होइ
ईच्छा शक्तिक बलें मनुक्खो
जीवन ई जी लेइ।
मोनक ताकुत होइत रहै जँ
नहि ओ पड़तइ फाँस
मुक्त भाव सँ विहरत, जहिना
मान सरोवर हाँस।

२). निषेधक बेध

मद्यपान केर बढ़ल चलनि
दूषित समाज भऽ गेल
वाल, वृद्ध आ युवक, की कहू
सब बेमत्त अछि भेल ।
कर राजस्वक वृद्धि लेल तँ
खुजि गेल टोले टोल
जानि कते परिवारो उजड़ल
प्राण गमा अनमोल।
चाँकि एलइ सरकारो के तैं
घोषित भेल मदिरा बन्न
किंतु, रोक सँ रुकतै वा नहि
सोचि लोक अछि सन्न।
मानुष मानस होइछै अजगुत
जौं किछु होइ निषेध
बरजइ नहि, बरजौने कतबो
काज करइ अरबेध।
सुरसा सन जनसंख्या बढ़इछ
नहि हो कोनो विरोध
बे-लगाम भऽ बढ़ले जाइ छइ
कतबो कहय निरोध।
कक्कर बुत्ता छइ जे रोकत
मदिरा केर टघार
झाँपि-तोपि के चलिते रहतै
नै बरु चलौ उघार।
मद्य-निषेधक मंशा पाछाँ
चाही निस्सन डेग
वाम-दहिन सँ काज चलै ने
तखने रुकतइ वेग।

३). अनुत्तरित प्रश्न

एकटा प्रश्न ठाढ़ समक्ष
भोरे सँ, अनचोक्के
की छिअइ ई ?
सामाजिक विधान, की विभाजन
सनातनक अंग अभिन्न
जे भऽ गेलैये व्याधिग्रस्त
कर्म सँ विमुख, अगबे गौरव
मिथ्याभिमान
एकटा हथकंडा, पाबि ठाओं संविधान
लऽ लेलकैये विकृत रूप।
ओना, शनैः शनैः, दोगादोगी
गेंठ फुजि रहलैये
कतेको बहुरिया अयलीहे परछि घ'र
आ, अंगीकृत भेलाहे कतेक ब'र
मुदा फूज' कहाँ देतै !
बोल-वचन किछु, आ करनी किछु आओर
भिन्नता उद्वोधन आ संवर्द्धन मे
तैं तँ ने, अजर, अमर ?
विवेचन समाजशास्त्री करथु।
मुदा, हम ओझराएल छी
सात बरखक पोतीक प्रश्न मे
जे आइ भोरेभोर अनचोक्के पुछलक
"बाबा! जाति की होइ छै ?" 

४). ओह !!!

छी अवाक; निस्शब्द
की बाजू ?
कएल गेलै लोमहर्षक काज
घोंटल गेलै एक अवलाक घेंट
फेर चढ़लै दहेज-दानवक भेंट
रोइयाँ भुलकल अछि
लज्जित छी, समाजक ऐहि रूप पर।
के करतइ एहन कल्पना
एहनो होइछै कुदरूप मनुक्ख
भावनाक गरदनि मचोड़ि
हरि लेलकै परान
नहि रहलै पिहुओक धियान
हा दैव ! हे भगवान !
भारतीय संस्कृति मानैये
जकरा घ'रक लक्ष्मी
मिथिला मे लक्ष्मी घ'र होथि
कोजगराक साँझ मे
मुदा, ओही साँझ झाँपल गेलीह
घरक लक्ष्मी ।
कहबैछै व्रह्म जननिहार
मुदा छै व्रह्मराक्षस
ओह! ओह!!ओह !!!

५). अकानल डेग

सूनू अकानि
कान दूनू खोलि के
दियौ धियानि।
रखियौ कात
अनसोहाँत बात
हो अढ़घात।
गप जे बेस
मोनक पेटारी मे
हो अँटाबेस।
बात विचारि
हिय जे कहय से
मन मे ताड़ि।
करू ओ काज
हारिसँ वा जीतसँ
कोनो ने लाज।
चलय लागू
सिंहावलोकन नै
तकियौ आगू।

६).उतरल उतरा : बरसल बुन्न

भेल अकास मे जलद मिलन
बरसि रहल अछि बुन्न
तरसल धरती भीजि रहल
'उतरा' रहल ने सुन्न।
अन्हरा मे होइ कनहा राजा
सूनल छल ई बात
अदहा 'कनहा' बीति गेलै
तखन भेल बुनपात।
कहिया सँ ने सुनल रहय
पुक्ख ने राखय रुक्ख
मनचातक पियासल रहलै
हेरिते रहल मनुक्ख।
पुनर्वसू बरिसल बेमोने
आधा-छिदहा ढंग
वसुधा रहल अतृप्त, आ
उतरल गिरहथ रंग।
जौं कनियों-किछु आबि जेतै
गिरहथ सभ केर 'हाथ'
धान-पान सँ सज्जित होइतै
एहि धरती केर माथ।

(कनहा=उतरा नक्षत्र, हाथ=हस्त नक्षत्र , पुक्ख= पुष्य नक्षत्र )

७). अपने खूनल खाधि मे

अपने खूनल खाधि खसलहुं
हाथ अप्पन अपने कटलहुं
गरदनि देल आनक हाथ
जाल के अपने ओझराओल
अगराही मे अपनहिं जरलहुं। आब के बचौत।
अलक्ष्य कएल परोपकार
देखौलियै जे दयाभाव
बड़ उपकारी बन' गेलहुं
दया भऽ गेल पैघ दाव
अनंत लेल हक्क,ककर सक्क ? आब के हटौत।
रच्छ रहितय रक्ष करितहुं
बुद्धि, विवेक आ ग्यांन
निरवल आ अल्पजनक
रखितहुं ओकर ने ध्यान
मुदा देल वहुजन के दान। आब के बुझौत।
कृपा, दया, माश्चर्य
सदिखन ले कोना होइ
पौल वस्तु घुरबै क्यो
वरू बर्ष सहश्र होइ
यावत् लेल ई संविधान। आब के उठौत।
दौगि रहल निधोख, मुदा
छोड़य नै बैसाखी
चाहै छै सुविधा ई
पुश्त दर पुश्त राखी
लचरल तँ लचरले छै। आब के फरिछौत।
पटरी पर बैसल 'बैंसला'
पेटकुनियाँ देथि पटेल
जतेक वंचित वर्ग अछि
सभ उताहुल भेल
पसाही जौं पसरि जाएत ।आब के मिझौत ।

संपर्क

अमरनाथ झा 
ग्राम+पो0 महरैल(वार्ड नं 12), भाया-झंझारपुर, जिला - मधुबनी, बिहार
पिन नं 847404
मोबाइल:-07352654120
अकानल डेग अकानल डेग Reviewed by बालमुकुन्द on दिसंबर 22, 2015 Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. ई सब मात्र कविता नहि छियै ! ई सात टा डेग ! सप्तपदी थिकैक ! सब कविता पढ़ल अछि मुदा कक्काक ( अमरनाथ झा ) लिखबाक खासियत अछि जे कतबो बेर पढि जाउ मन नहि भरैछ ! मिथिला क्षेत्रक विशेषता छै जे अतय अमरनाथ नाम के एक स एक बिभूति भेला आ अखनो छथि ! कक्का सेहो अप्पन नाम के सार्थक करैत छथि ! हुनकर छोट छोट टिप्पणी सब बिहारीक सतसैयाँ जेकाँ मारुक होइछ ! कक्का स भेंट त फेसबुक के माध्यम सँ भेल मुदा गप त ई – मिथिलाक कारणे सम्भव भेल ! ताहि लेल हम बाल मुकुंद पाठक के सदिखन आभारी रहब ! कक्का जहन लिखय छथिन त हुनकर काव्य में कै बेर एहन एहन बिसरायल खाँटी मैथिली शब्दक बिलक्षण प्रयोग भेटत जे आश्चर्य चकित करय के अलावे कतेक नव चीज प्रयोग सिखबाक मौका द जाइ छै ! हिनक कविता अहाँ सब प्रायः पहिनहो अवश्य पढ़ने होयब मुदा एक संगे पुनः पढ़बै त पुनः आनन्द नहि भेंटत से असम्भव अछि त आनंद लै जाउ आ संगे पुरान शब्दक नव प्रयोग सेहो सिखने जाउ !
    हम कक्का के सुंदर स्वास्थ्यक कामना करैत आर नव रचना सब के उत्कण्ठा सँ बाट जोहि रहल छी !
    प्रणाम !!
    ---------- ( अश्विनी )

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