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मनीष झा 'बौआभाइ' |
1. सरगम
स
स
सदबुद्धि दिय' सदज्ञान दिय'
सदमार्ग चली से वरदान
सरल स्वभाव हो गुणक प्रभाव हो
सहजहि से विद्यादान दिय'।
सरल स्वभाव हो गुणक प्रभाव हो
सहजहि से विद्यादान दिय'।
र
रहू सत्तत माँ दाहिनी भ' क'
राखू विद्या बैभव द' क'
रहि जतय माँ बनि प्रभावी
रवि समान तेजस्वी भ' क'
ग
गहल चरण जे स्वच्छ भाव सँ
गति सदगति से पओलक
गला बीच अहाँ जकर बिराजी
गायन मे से यश पओलक
म
मन मे आश लगा जे आयल
मनोरथ पूर्ण केलौ माँ क्षण मे
'मनीषक' विनती सुनु वरदायिनी
मिथिला वास करू कण-कण मे
रहू सत्तत माँ दाहिनी भ' क'
राखू विद्या बैभव द' क'
रहि जतय माँ बनि प्रभावी
रवि समान तेजस्वी भ' क'
ग
गहल चरण जे स्वच्छ भाव सँ
गति सदगति से पओलक
गला बीच अहाँ जकर बिराजी
गायन मे से यश पओलक
म
मन मे आश लगा जे आयल
मनोरथ पूर्ण केलौ माँ क्षण मे
'मनीषक' विनती सुनु वरदायिनी
मिथिला वास करू कण-कण मे
2. नीक-बेजाए
बेटा छनि वरदानक जोगर
नोकरी सेहो सरकारी
भाए- बहिन मे असगरुआ आ
संपति अचल केँ अधिकारी
कन्यागत सभ होयते अवगत
छुटला हेजक- हेंज
वरागतक मुँह फुजइ सँ पहिने
गछलनि मोट दहेज
किछुए दिन बितते सबकिछु
बेटा छनि वरदानक जोगर
नोकरी सेहो सरकारी
भाए- बहिन मे असगरुआ आ
संपति अचल केँ अधिकारी
कन्यागत सभ होयते अवगत
छुटला हेजक- हेंज
वरागतक मुँह फुजइ सँ पहिने
गछलनि मोट दहेज
किछुए दिन बितते सबकिछु
होमय लगलनि सत्य देखार
लोकलाज सँ गुम्मे सदिखन
फुटनि नहि बोल बकार
बुझि हाकिम जे ब'र उठेलनि
से चपरासी छलनि जमाए
जँ समय अछइते नहिं चेतल तँ
लोकलाज सँ गुम्मे सदिखन
फुटनि नहि बोल बकार
बुझि हाकिम जे ब'र उठेलनि
से चपरासी छलनि जमाए
जँ समय अछइते नहिं चेतल तँ
आब की नीक आ की बेजाए
3. अप्पन-आन
अप्पन आन शब्द अछि तेहने
जे बुझना जाएत सम्बन्ध घनिष्ठ
आन कहैत देरी मुँह बिचकत
अप्पन शब्द बुझैत विशिष्ट
बजियौ एक बेर अप्पन -अप्पन
सटि जायत अपनहि दुनु ठोर
आन बेर मे एहो दुनु टा
ध' लेत अलगे ओर आ छोड़
फुसियों अप्पन डींग हँकइ छी
दै छी अनकाके उपराग
बाजि निर्थरक मुँह दुइर करै छी
सभक अप्पन - अप्पन भाग
सटि जायत अपनहि दुनु ठोर
आन बेर मे एहो दुनु टा
ध' लेत अलगे ओर आ छोड़
फुसियों अप्पन डींग हँकइ छी
दै छी अनकाके उपराग
बाजि निर्थरक मुँह दुइर करै छी
सभक अप्पन - अप्पन भाग
आपकता केँ बड बड़का लक्षण
मिलि बनाउ परिपूर्ण समाज
अप्पन -आनके भेद हटा के
सफल करु संकल्पित काज
अप्पन -आनके भेद हटा के
सफल करु संकल्पित काज
अप्पन मे सब स्वार्थ भेटत
अनका मे उपकार
अपना संग संग आन लए जीबु
सार्थक जीवन केँ इएह आधार
अनका मे उपकार
अपना संग संग आन लए जीबु
सार्थक जीवन केँ इएह आधार
***
मनीष झा 'बौआभाइ' सुचर्चित कवि, गीतकार ओ उदघोषक छथि तथा मिथिला-मैथिलीक क्षेत्र मे निरंतर सक्रिय छथि। विभिन्न पत्र-पत्रिका सभ मे सेहो हिनक रचना सब प्रकाशित-प्रशंसित होइत रहलनि अछि। एहि ठाम प्रस्तुत कविता सब हिनक पहिल काव्य संकलन 'नीक-बेजाए' सँ साभार प्रस्तुत अछि.
आब की नीक आ की बेजाए
Reviewed by Mukund Mayank
on
November 13, 2015
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