मनीष झा 'बौआभाइ' |
स
सदबुद्धि दिय' सदज्ञान दिय'
सरल स्वभाव हो गुणक प्रभाव हो
सहजहि से विद्यादान दिय'।
रहू सत्तत माँ दाहिनी भ' क'
राखू विद्या बैभव द' क'
रहि जतय माँ बनि प्रभावी
रवि समान तेजस्वी भ' क'
ग
गहल चरण जे स्वच्छ भाव सँ
गति सदगति से पओलक
गला बीच अहाँ जकर बिराजी
गायन मे से यश पओलक
म
मन मे आश लगा जे आयल
मनोरथ पूर्ण केलौ माँ क्षण मे
'मनीषक' विनती सुनु वरदायिनी
मिथिला वास करू कण-कण मे
बेटा छनि वरदानक जोगर
नोकरी सेहो सरकारी
भाए- बहिन मे असगरुआ आ
संपति अचल केँ अधिकारी
कन्यागत सभ होयते अवगत
छुटला हेजक- हेंज
वरागतक मुँह फुजइ सँ पहिने
गछलनि मोट दहेज
किछुए दिन बितते सबकिछु
लोकलाज सँ गुम्मे सदिखन
फुटनि नहि बोल बकार
बुझि हाकिम जे ब'र उठेलनि
से चपरासी छलनि जमाए
जँ समय अछइते नहिं चेतल तँ
अप्पन आन शब्द अछि तेहने
जे बुझना जाएत सम्बन्ध घनिष्ठ
आन कहैत देरी मुँह बिचकत
अप्पन शब्द बुझैत विशिष्ट
सटि जायत अपनहि दुनु ठोर
आन बेर मे एहो दुनु टा
ध' लेत अलगे ओर आ छोड़
फुसियों अप्पन डींग हँकइ छी
दै छी अनकाके उपराग
बाजि निर्थरक मुँह दुइर करै छी
सभक अप्पन - अप्पन भाग
अप्पन -आनके भेद हटा के
सफल करु संकल्पित काज
अनका मे उपकार
अपना संग संग आन लए जीबु
सार्थक जीवन केँ इएह आधार
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