प्रेमपर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतैक

चंदन कुमार झा

मैथिली गीत काव्यक परम्परा आरम्भहिं सँ बेस ललितगर आ समृद्धशाली रहल अछि। मैथिली भाषाक जे अप्पन गुण -धर्म आ भाषाइ संरचना छैक ताहि मे एक गोट विशिष्ठ प्रकारक गेयधर्मिता घुलल-बसल अछि। जँ हमरासभ मैथिली साहित्यक आरंभिक काल पर गंभीरतापूर्वक धिआन केंद्रित करी तँ ई चीज स्पष्ट देखबा मे अबैत अछि जे मैथिली पूर्व मे सम्भवतः  गीत-काव्यक भाषा केर माध्यम टा छल। तहन एम्हर आबि क' कालांतर मे  मैथिली गीतकार लोकनि पहिने सँ कायम मैथिलीक चास-बास कें कतेक कायम राखि सकलाह अछि से विचारणीय प्रश्न अछि ? 

चंदन कुमार झा मैथिली काव्य-संसारक युवा पीढ़ी सँ सम्बद्ध एक गोट चर्चित, गंभीर आ अंखिगर नाम छथि। मूलतः कवि, किन्तु गीत-गजल,  कथा, निबंध-समीक्षा आदि सेहो समय-समय पर पत्र-पत्रिका सभ मे बहराइत रहलनि अछि। मात्र कवि मानि अन्य विधा मे सृजित हिनक रचना-संसार केँ सेहो अबडेरल नहि जा सकैत अछि। मैथिली गीत-साहित्य पर लिखनिहार-बजनिहार लोक कें चंदन जीक गीत-काव्य पर सेहो विचार करबाक चाहियनि।

चंदन कुमार झाक तीन गोट गीत ::

    
१).

प्रेम पर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतै
प्रेम आखर-खण्ड उनटे जगतभरि छिड़िया जेतैक

घृणा परसय लोक बिच किछु लोक जे संसार मे
ठाठ जे देखइत कियो अछि लोक-अत्याचार मे
ऊँच नहि कहियो दनुज ओ मनुजता सँ भ' सकत
भविष्यो एहि इरखे सँ प्रेम केँ अपना लेतैक
प्रेम पर तलवार कतबो चलत ताहि सं की हेतैक
प्रेम-आखर-खण्ड उनटे जगतभरि छिड़िया जेतैक

रौद मे तपि स्वयं शीतल ज्योति बिलहय चन्द्रिका
क्षणहि मे केहनो सघन तम चीरि दइए दीपिका
त्याग, तप, संघर्ष सँ की दुष्ट कहियो सकि सकत
पुण्य केर आभा सदति दिनमान सन बढ़िते जेतैक
प्रेम पर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतैक
प्रेम-आखर-खण्ड उनटे जगतभरि छिड़िया जेतैक

प्रेम मधुरस पीबिते भ' जाइछ तिरपित आत्मा
प्रेम तँ थिक ब्रह्म, प्रेमहि मे बसथि परमात्मा
सृजन केँ निज धर्म बूझि ई सर्जना करिते रहत
एकर संहारक प्रयासी केँ सफल नहि भ हेतैक
प्रेम पर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतैक
प्रेम-आखर-खण्ड उनटे जगतभरि छिड़िया जेतैक

२).

लगै छल भार जे जीवन
लगैछ उपहार से जीवन
अहाँक मुस्कीक स्पर्शेँ
भेल भकरार सन जीवन

रहय उन्मुक्त ई जहिया, छनने छलैक जड़ता
सिनेहक सूत मे बन्हिते, पैसिलै अङ्ग चंचलता
सुखायल ठोढ़ सटलै ठोढ़ सँ कि मधु सँ भिजलै
बहल जे नयन सँ सरिता
बनल रसधार सन जीवन

रहय छल कान पाथल बाटपर, पदचाप सुनबा लए
कुचरिते काग केर मन दोड़ि जाए सम्वाद सुनबा लए
मिलनक बेर आयल अछि कि मधुमास अछि आयल
अहाँक दू-बोल कि छुलकै
बाजल तार सन जीवन

लगय छल रूप ई अप्पन केहन कुदरूप सन पहिने
लगय छल चित्र अहूँ केर नहि अपरूप सन पहिने
निहारै छी अहाँ हमरा, निहारी हम अहाँ केँ
अनुपम रूप देखि नेहक
भरल श्रृंगार सँ जीवन
लगै छल भार जे जीवन
लगैछ उपहार से जीवन
अहाँक मुस्कीक स्पर्शेँ
भेल भकरार सन जीवन

 ३).

आइ उचितवक्ता जे जग मे, से कहबैत मरखाह अछि
जानय लल्लो-चप्पो जे बड़, से सभ बनल गवाह अछि

जे जनैत अछि उनटा-फेरी
मंत्र जकर छओ-पाँच
से पबैत अछि उँचगर आसन
दसटा लोकक माँझ
लोक बुझैए सज्जन ओकरे, जक्कर मोन घवाह अछि
जानय लल्लो-चप्पो जे बड़, से सभ बनल गवाह अछि

जे जनैछ नहि पेँच-पाँच से
कहबय-बुद्धिक काँच
हितहुँ-मीत नचाबय ओकरे
दसगर्दा मे नाच
परतारब'क प्रताड़न सहि-सहि, शुद्धा भेल तबाह अछि
जानय लल्लो-चप्पो जे बड़, से सभ बनल गवाह अछि

केहनो शीत-बसात चीड़ि कऽ,
लहकि उठैत अछि आँच
झूठक बढ़ि जाइ जतेक प्रवलता
जीतय सदिखन साँच
अज्ञानी केँ ज्ञानक ज्योति, लगैत बड़ झरकाह अछि
आइ उचितवक्ता सभ जग मे, तेँ कहबैत मरखाह अछि
●●●

चंदन कुमार झा सँ cjha83@gmail.com पर सम्पर्क सम्भव। 

प्रेमपर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतैक प्रेमपर तलवार कतबो चलत ताहि सँ की हेतैक Reviewed by बालमुकुन्द on जुलाई 16, 2015 Rating: 5

2 टिप्‍पणियां:

Blogger द्वारा संचालित.