'आनक नै किछु, अपने काजक दोष छल'


राजीव रंजन मिश्रक छओ टा गजल ::


1).

कहियो रौदी तँ कहियो तुफान मारि गेल
किछुओ बाँचल तँ धसना धँसान मारि गेल

छोड़ल फज्जैत नै किछु कसाइ बाढि पानि
जुलमी सगरो घरारी बथान मारि गेल

पूजल देवी सरिस मानि लोक धरि कपार
कहियो कोशी तँ कहियो बलान मारि गेल

कखनो राखल कहाँ लोक थोड़बो विचार
मौका फबिते सटासट निशान मारि गेल

खातेमे खेत खरिहानटा बचल भजार
करगर मिहनत अछैतो लबान मारि गेल

देखल मिथिलाक राजीव हाल बेर काल
चुप्पेचापे तँ सभदिन सियान मारि गेल

(२२२२ १२२ १२१ २१२१)

2).

हियक अहलादकेँ फुसियाएब मोसकिल छल
सुनल सभ बातकेँ बिसराएब मोसकिल छल

उगल छल चान जे पूनमकेर रातिमे ओ
तकर मारल हियक सरियाएब मोसकिल छल

सलटि लेलहुँ जगतकेँ सहजे सँ नित मुदा बस
बढल अनुरागकेँ अनठाएब मोसकिल छल

गुलाबक फूलसन जगती खुब बिहुँसलए धरि
भरल मधुमासमे मुसकाएब मोसकिल छल

बड़ा राजीव छल ललसा दौग मारएकेँ
झटकि धरि डेग नित चलि पाएब मोसकिल छल

(१२२ २१२ २२२१ २१२२)

3).

देहक लहसन आ सम्बन्ध कहियो नै मिटाइ छैक
कतबो चाहब धरि मुइलाक बादो संग जाइ छैक

उनटा सोचक ई अपने सभक फल भेल जे बिसरिकँ
लोकक जिनगीमे देखब त' सभकिछु आइ पाइ छैक

नेहक मूरति छल सभदिनसँ घर घर नारि जाहि ठाम
तहिठाँ कुबिया मारल जा रहल नित माय दाइ छैक

अबिते माँतर जे छल जन्म जन्मक बनल भजार
तकरा बिसरा शोणितकेँ पियासल भाइ भाइ छैक

खहरल अपनेमे गुमसुम परल राजीव भोर साँझ
विधना बाजू ने एकर जँ किछु मिरचाइ राइ छैक

(२२२२ २२२१ २२२१ २१२१)

4).

किछु लोहाक आ किछु लोहारक दोष छल
धरि लोकक हिसाबे सभ भागक दोष छल

नित बुधियार मानल एक्के टा गप्पकेँ
आनक नै किछु अपने काजक दोष छल

सभ निकहा तँ अरजल अपने सुधि बुधि बले
बस अधलाह खन सभटा आनक दोष छल

नै पलखैत अछि ककरो लग देखत सुनत
घर बिलटल तँ सेहो सरकारक दोष छल

धरि ठेकान राखल करमक राजीव जे
तकरा नै कनिकबो जोगारक दोष छल

(२२२१ २२२२ २२१२)

5).

लोक ऐठा हँसि हँसि क' सभ बात कहि जाइ छैक
आर किछु हो नै हो थमल नोर बहि जाइ छैक

के सहत सदिखन बात ककरो ठरल आइ आब
मोन नेहक नेहाल पतिया क' सहि जाइ छैक

किछु रहल नै हाथक अपन साध कहियो त' भाइ
सोच सुलझल बेबाक नै सभकाल लहि जाइ छैक

देखबामे आओल सभदिनसँ जे सोझसाझ
बुरिबलेले आ सभसँ बेकार रहि जाइ छैक

सत्त मोनक राजीव सहजोर टा नित बचल ग'
झूठ ठामेकेँ ठाम सरकार ढहि जाइ छैक

(२१२२ २२१२ २१२ २१२१)

6).


बुझबाक आ सुनबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
किछु सोचि बुझि गमबाक लेल धनबाद कोटि कोटि

नै जानि कोना चीर मोन आभार हम जताउ
भाखल हियक पढबाक लेल धनबाद कोटि कोटि

चुपचाप रहि बुधियार बनि रहल छाँटि गप्प बेश
सरकार दम धरबाक लेल धनबाद कोटि कोटि

भाबक भरल दू चारि पाँति बाजल जँ भूल चूक
निष्पक्ष किछु कहबाक लेल धनबाद कोटि कोटि

राजीव हारब नै हियाउ ई ठानि हम त' लेल
नित संग रहि चलबाक लेल धनबाद कोटि कोटि

(२२१ २२२१ २१२२१ २१२१)

●●●

राजीव रंजन मिश्र विगत किछु वर्ष सँ मैथिली गजलक क्षेत्र मे निरन्तर सक्रिय छथि।  गजल कहबाक अपन विशिष्ट ढंग आ शिल्प-शैलीक कारण मैथिली गजलकार सभक मध्य हिनका फराक सँ चिन्हल जा सकैत छनि। विभिन्न पत्र-पत्रिका सभ मे नियमित रचना प्रकाशित-प्रशंसित। 
'आनक नै किछु, अपने काजक दोष छल' 'आनक नै किछु, अपने काजक दोष छल' Reviewed by बालमुकुन्द on अप्रैल 27, 2015 Rating: 5

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.