कमसँ-कम शब्दमे पैघसँ-पैघ बातकेँ मोनमे उतारि देबाक नाम अछि
लघुकथा. जकर विषय जरूर पूर्ण रूपे विकसित रहबाक चाही, से मिथिलेश कुमार झाक
पोथी 'टीस' पढ़ैत काल हमरा बुझनामे आयल. ओ स्वंय पोथीक भूमिकामे कहैत छथि
जे लघुकथा मात्र एक गोट घटनाकेँ लऽ कऽ बिना कोनो भूमिका, पृष्ठभूमि,
डारि-पात, नोन-मसल्ला किंवा वर्णन-विन्यासक नापल-जोखल शब्दमे चोटगर ढंगे
गढ़ल गेल कथा अछि. जकर अंत बेस रिब्बरिब्बी बला होइछ आ पाठकक मानसकेँ बड़ी
काल धरि झमारैत रहैत अछि.
मिथिलेश जीक लघुकथा संग्रह 'टीस'मे कुल 45 टा लघुकथा अछि जे
पछिला किछु बर्खमे हमरा सभक भीतर विभिन्न स्तर पर भेल परिवर्तनक कथा कहैत
अछि.
लघुकथा 'गाड़ी आ नाह' बीतल जमानाक जमींदार आ हुनक खबास
पँचकौड़ियाक कथा अछि. जहिया मालिकक एका-हुकुम सौंसे गाममे चलैत रहनि तहिया ओ
पंचकौड़ी आ ओकर टोलबैया सभकेँ भोट खसाबऽ नहि दैत छलथि आ गामक राजनीति अपना
हिसाबे चलबैत छलथि. आब जखन हिनक जमींदारी खत्म भऽ गेलनि तँ ओ पँचकौड़िया
हिनका कहि जाइत छनि जे आब अहाँ बूढ़ भऽ गेली तें काल्हि बूथ पर नै जाएब आ
जमींदार साहेब विचलित भऽ जाइत छथि. एहि ठाम गमैया कहबी कहियो गाड़ी पर नाह,
कहियो नाह पर गाड़ी चरितार्थ होइछ.
समाजमे व्याप्त अंधविश्वाशकेँ खंडित करैत लघुकथा 'डर'मे लेखक
गाम-देहातमे पसरल भूत-प्रेतक डरकेँ बड़ी सूक्ष्मताक संग देखबैत छथि. आ बातो
सहिये छैक एखनो मिथिलाक गाममे राति-बिराति किओ ककरो उज्जर धोती, साड़ीमे
देख लैत छैक तँ डरे ओकर देह सिहरि जाइत छैक, मनमे कएक तरहक आशंका उत्पन्न
भऽ जाइत छैक.
लघुकथा 'उड़ल सूगा' आ 'घृणित'मे सूगा आ कुकुरक कथा कहबाक
बहन्ने जहाँ कथाकार मनुखक कुचालि आ दुर्गुण पर पैघ व्यंग करैत छथि ओतहि
'टाइम पास'मे लोक द्वारा कयल लिंग-भेद अंतर सेहो देखबैत छथि. भाइकेँ एकटा
छौड़ी संग घूमैत देखि बहिन पूछैत छैक जे ओ के रहै. भाइ ओकरा टाइमपास बतबैत
छैक ताहि पर बहीन कहैत छैक जे ओहने टाइम पास यदि हम करऽ लागि तँ. आ आगाँ
तँ अहाँ बुझिते छी जे एहने टाइमपास जौं कोनो बहीन करैत छैक तँ कतेक बवाल
होइत छैक.
मिथिलेश जी गाम-घरक छोट-छोट गप्पकेँ बहुते सूक्ष्मताक संग
लिखैत छथि. से अपनेक संग्रहक लघुकथा -मौगियाह, गोड़लगाइअक फेरा, हमरे
सप्पत, तराजू, टीस, जाति, बिलाड़िक काटल बाट, साँप-छुछुन्नरि, झीक, हाथीक
दाँत आदि पढ़लासँ बुझना जाएत.
एहनो नै छैक जे मिथिलेश जी खाली गामे टाक कथा लिखैत छथि. ओ
अपने महानगर कलकत्तामे रहैत छथि आ ओतुका अनुभव सेहो अपन कथामे बाॅचने छथि.
उदाहरण स्वरूप देखल जा सकैछ लघुकथा 'महानगर-संस्कृति' ,जाहिमे अहाँकेँ
महानगरक असल रूप भेंटत. एकटा एहन जगह जाहि ठाम मनुक्खकेँ खाली अपने टा सँ
मतलब होइ छै, जाहि ठाम समाज नामक कोनो चीज नै होइ छै. आस-पड़ोसमे घटल
पैघसँ-पैघ घटनासँ ककरो मतलब नै होइ छै.
लघुकथा संग्रह 'टीस' मिथिलेश जीक पहिल पोथी छनि. स्वभाविके छै
जे लेखकक पहिल प्रयास छनि तें विभिन्न तरहक चीज सेहो खटकैत अछि. खासकेँ कथा कहबाक शैली पर हिनका एखन बहुत काज करऽ पड़तनि. पोथी एहन नै छै जे
सालो-साल अपनेक अलमारीमे बनल रहए किंतु लघुकथाक रूपे लेखकक प्रयासकेँ
अस्वीकार नहि कयल जा सकैछ. जौं मैथिली लघुकथामे अहाँक रूचि अछि तँ ई पोथी
अपने जरूर पढ़ि सकैत छी.
- बाल मुकुंद पाठक.
(पोथी मैथिली साहित्यिक एवं सास्कृतिक समिति मधुबनीकेँ द्वारा प्रकाशित अछि)
नीक लिखल अछि. अंतिम पैराग्राफकें कनेक आओर बढ़ा सकैत छलहुं.
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