आइ-काल्हि कविता पर खूब काज कऽ रहल छथि मनोज शांडिल्य. जल्दीए हिनक काव्य संग्रह सेहो बहरायत. आइ ई-मिथिला पर हिनक किछु टटका कविता देल जा रहल अछि. एहि कविता सभमे समाजमे व्याप्त भुखमरी, हिंसा ,आत्महत्या, अत्याचार'क प्रति कविकेँ दर्द साफ देखल जा सकैछ. अहाँ सेहो पढ़ू - माॅडरेटर.
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अपन मखमली सिंघासन पर
टांग पर टांग चढ़ा
हमरा दिस तकैत छथि, आ
मुख पर अनैत छथि
कुटिल मुस्कान
देखि कऽ सोझाँ
आजुक टटका शिकार..
कोटि-कोटि मनुक्खक शिकार
महामहिमक साम्राज्यमे सगरो
कहाँदन प्रतिबंधित छैक जानवरक शिकार
तें एहि कंक्रीटक जंगलमे
हमरा सन जीवान्तरित जानवरक शिकार
करैत छथि महामहिम
आ करैत छथि तृप्त
अपन प्राचीन रक्त-पिपासाकेँ..
उपटल-धाङल खेत-पथार
आनंदित करैत छनि महामहिमकेँ
नहि रंगय पड़ैत छनि अपन हाथ
रक्तसँ प्रत्यक्ष
दोष सबटा मढ़ा जाइत छैक प्रकृति पर
रौदी-दाहि-मेघ-बिहाड़ि
होइत अछि श्रापित ओकरेसँ
जे अनायासे बनि जाइत अछि
महामहिमक शिकार
गाछसँ लटकैत कृषकक देह
फड़-फूल सन तोड़ि लैत छथि महामहिम
आ चिबबैत छथि सुआदि-सुआदि
सुखायल फड़-फूल
अखरोट-बदाम जकाँ..
फँसल छी हम
उठै छथि महामहिम
अपन रक्त-सिक्त सिंघासनसँ, आ
हमरहि चामसँ बनल जुत्ता
धँसा दैत छथि हमर छातीमे
आ करैत छैथ अट्टहास
हाड़क कड़कड़ संगीत सुनि
गबैत छथि आदंकक गीत
हमर फड़फड़ाइत लहासक ताल पर..
आमजनक
सामूहिक शिकारक अनुबंधमे
हमर-अहाँक
जरैत देहक चिराइन सुगंधमे...
अंग प्रत्यंगमे
छुरा घोंपि-घोंपि
जे केने छल रक्तपान
से आन कहाँ
किओ अपने छल..
कठकीड़ा सन
आस-भरोसक
जे बनबैत रहल बुकनी
से आन कहाँ
किओ अपने छल..
अग्निकुण्डमे
हमर सोनित ढारि
जे करैत छल हवन
से आन कहाँ
किओ अपने छल..
मूड़ी मचोरि
ध्वनिरोधी बन्न कोठलीमे
जे केने छल अट्टहास
से आन कहाँ
किओ अपने छल..
एकदिसाह आरोप सुनि
कलमक नोंक तोड़ि
जे सुनौने छल हमर फैसला
से आन कहाँ
किओ अपने छल...
माथ पर
एक ढाकी पाथर लदने
चलि जाइत छलि ओ
निर्निमेष
उज्जर आँचरसँ पोछैत
जेना पोछि रहल हो
अप्पन नहि
हमरे मुँह पर लागल
कारी गन्हाइत कादो
रंगहीन आवरण
गट्टा सुन्न
भीजल आँखि
सुखायल ठोर
दृष्टि/सांस/जीवन
सब किछु सुन्न
अंतहीन पथ पर
तबधल बालुकेँ धङैत
निष्प्राण
माथक भितरका भार
बना देने सहज
माथ परहक बोझकेँ
तूरक फाहा सन
वैधव्यक भार
समाजक कतबो विकसित
तराजू
तौलि सकलइए
आइ धरि?
कौखन माटि सनैए
कौखन ढाकीक-ढाकी
काँच-पाकल पजेबा
उघैत फिरैए
ई वीरांगना!
एकर प्रखर रूप-रंग
देखियौ ने केहन ओज छैक
केहन तेज छैक चमकैत मुँहेठ पर
एम्हरसँ ओम्हर
ओम्हरसँ एम्हर
जेना सौर्य-ऊर्जासँ अविराम चलैत होइ
एकर देह सन प्राणयुक्त मसीन..
ई खन-खन / ई टन-टन
भेटल छैक एकरे घामसँ
जाहिसँ सना क'
सुन्नर लाल पाथर भेल माटि
बिहुँसि रहल अछि
अनमन ओहिना
जेना बिहुँसैत अछि नवजात शिशु
अपन आनन्दमयी मायकेँ देखि
अपन सौभाग्य के पाबि...
हैदराबाद
09866077693
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