अंतिम निशानी आ किछु अन्य लघु प्रेम कथा

प्रवीण_कुमार_झा

 प्रवीण कुमार झाक किछु लघु प्रेम कथा ::


१). अंतिम निशानी 

आइ फेर हुनक स्मृति दुःख देलक। असल मे सपना मे आयल छली ओ...।

मोन पड़ि गेल ओ पुरना भेंट। कोनो रेलवे स्टेशन पर एसगर, सिमटल आ सकुचायल बैसल छलथि ओ। लागल तँ जेना ओ वैह थिकी मुदा सोझाँ सँ नहि देखि पयबाक कारणे किछु संशय सेहो छल। एहि सँ पहिने जे हम किछु मेहनति करितहुँ एकटा अधवयसू सज्जन केँ हुनका लग आबि बैसैत देखलहुँ। ओना दुन्नु गोटे संगे-संग कनेक्ट नहि क' रहल छल मुदा बैसबाक सहजता आ निकटता हमरा ई बुझा देलक जे दुनू गोटे संगहि छथि।  

हमर संशय जीवनक सुखे सन अधिक काल नहि रहल। माथ पर घोघ चढ़ेबाक काल हम हुनक 'कलाई' देखल आ निश्चिन्त भ' गेलहुँ। मुदा की ई समय उपयुक्त अछि अहाँ से बात करबाक लेल ?... सोचैत ठमकि गेल रही हम। 

मोन कहीं तन केँ कहियो चलय देलक अछि जे हम अपना पर संयम रखितहुँ। पुछि देलियैक - "अहाँ सब कतहु के यात्रा पर छी की ? हमरा अपन सवालक बाद केँ क्षण मात्रक चुप्पी असहज भ' गेल छल मुदा हुनक आभा देखि ई बुझा गेल जे ओ हमरा चीन्हि गेली। ओ कनेक असहज अवस्था मे बजली - "हँ, हम सब अपन गाम जा रहल छी।" 

एहि असहजता पर मलहम लगेबाक प्रयास मे हमर तन अपन बोझिल मोन केँ अपना उपर लादि घटनास्थल सँ कनेक दूर क' लेलक। 

हम अपना दयनीयता पर दुखित होइत रही आ कि दू टा घटना एक्कहि संग भेल। एम्हर फोन पर घर सँ घंटी आयल आ ओम्हर कान्ह पर ककरो हाथक स्पर्श भेल। एम्हर फोन पर बेटाक अवाज - "पापा आप कहाँ हो" आ ओम्हर पाछाँ सँ हुनक मृदुल स्वर - "कैसे हो प्रफुल्ल ?"

...ओ अधवयसु हुनक पति छलथि। हम कनेक अचम्भित भेलहुँ मुदा ताधरि ओ कहि चुकलीह जे हम सब कॉलेज मे संगे रही आ संगहि चुकी पढ़बा मे ठीक रही तँ लोकप्रिय रही हम। जे-से, हाल-चाल भेलैक। ओ कोनो काजे उठला तँ चलबा मे होइत दिक्कत देखि हुनक डाँढ़  मे किछु समस्या स्पष्ट भेल। हम कहलहुँ - "आप बैठिए न, मैं चाय लाता हूँ आपलोगों के लिए" जवाब भेटल - "नो, आइ एम नोट टेकिंग टी।" 

परिस्थिति केँ देखैत बात आगाँ केनाइ आवश्यक छल। हम पूछल - "बच्चे कहाँ हैं नीता ?" मुदा कनेक कालक अवधि मे ई सवाल हमर तेसर गलती साबित भेल। ओ जवाबक बदला फेर सँ पहिने सकुचयलीह आ फेर अपना पति सँ आंखि मिलौली, फेर झुकल नजरिए हमरा दिस देखि पैरक आँगुर सँ जमीन खोदय लगलीह। कनेक काल फेर ओहि ठाम शांति छल... मुदा आब हमरा मे हिम्मत नहि छल। ट्रेनक समय रहितो ओ सब ओहि ठाम सँ चलि गेलनि। 

कनेक काल मे हम हांफैत, दौगैत हुनका पाछाँ गेलहुँ - "अरे निम्मी, तेरी घड़ी छूट गयी थी वहाँ बेंच पर, शायद कलाई से गिर गयी थी।" हुनक हाथ ओ घड़ी निश्चय ल' लेलक मुदा आँखि जेना हमरा कहि रहल छल - "तुम्हारी आख़िरी निशानी तुम्हें लौटाने को जानबूझकर छोड़ आयी थी..." 




२). प्रेम मे न्यूट्रॉन

ब्याहक बाद...बेसीकाल ओ प्रेमक बात करैत छली आ हम अपन कथित जिनगी सँवारय लेल नोकरी पर ध्यान गरौने रही। ओ एहिना बात करैत रहली आ हम ध्यान गराबय मे लीन रहलहुँ। ने ओ रूकली आ नहिएँ हम। 

समय बीतल...किछु समयोपरांत ओ चुप भ' गेली... ताधरि हमहुँ जिनगी सँवारि चुकल रही समाजक मोताबिक। मुदा एहि चुप्पी आ सँवरय मे हमरा दुनू के बीच आब रिक्तता मात्र भरि गेल छल। हुनक प्रेम बांचल तँ छल मुदा ओकर केंद्र आब धीया-पूता मात्र। एम्हर हम दाबल-पीचल आ लजायल सन आब प्रेम तकबाक इच्छुक रही। 

एहि इच्छाक चक्कर मे जखन-जखन हम न्यूट्रॉन सँ प्रोटॉन बनबाक प्रयास कएल, मुदा हुनक प्रेमक सबटा इलेक्ट्रॉन बाल-बच्चा रूपी प्रोटॉन ताकि अपन विन्यास पूरा क' लैत छल। 

समयक ई बदलाव एखनो हमरा केंद्र मे तँ रखने छल मुदा एकदम निष्क्रिय...असग़रुआ...न्यूट्रॉन जकाँ।




३). भकलोल आ बुधियारि

- अच्छा... तँ फेर की लगैए ?
- की ?
- यौ आब जखन की ने अहाँ के हम पसिन छी आ नहिए हमरा अहाँ...
- तँ... कथी ? 
- कथी की ? आब की एहिना बांकी जिनगी एक-दोसराक झेलैत रहब ? 
- की कएल जाय तँ ?
- अहाँ तँ बड़का आइडियाबाज छलहुँ, निकालू ने कोनो हल एकरो।
- नहि अछि कोनो आइडिया हमरा लग।
- अच्छा चलू...अहाँ हारि मानलहुँ तँ हम बताबैत छी एकर समाधान।
- इह.... अबस्से पगला गेलहुँए अहाँ बुझना जायए हमरा।
- नहि यौ। की बुझना जायए जे अहीँ टा के दिमाग अछि ? देखियौ, जखन हम-आगाँ एक दोसरा केँ चाहने रही ... प्रेम मे रही तँ अपने दुनू गोटे किछु आर रही।
- ई की सब बाजि रहल छी अहाँ...किछु आर रही ? कुकुर बिलाय रही की ?
- धु... यौ ओहि समय हमर-अहाँक आदति जे छल...बात-विचार - असल मे प्रेमक कारण से मात्र छ्ल।
- अच्छा... तँ आब की भ गेलैक ? 
- आब ? आब अहाँ दफ़्तर केँ दबाव मे आ हम घर-दुआरि व धीया-पुताक चक्कर मे अपना-आप केँ बिसरि गेल छी। ई नब हालात हमरा-अहाँ के आदति, बात विचार आ पसिन-नापसिन बदलि चुकल अछि।
- तँ की अहाँ आब आर ककरो सँ प्रेम करबै की ?
- नहि यौ हमर भकलोला दास... अपना सभ केँ एक-दोसर मे बदलल मनुष्य सँ प्रेम करबाक छै।
- अरे वाह...अहाँ तँ सत्ते बुधियार छी यै। मुदा एक टा बात कहि दी... ?
- से की ?
- अहाँक नाक आइयो ओतबी सुन्नर अछि... लाउ कने क़टि ली... 
- भक्क... धीया-पुता छै घर मे...अहूँ केँ एकटा बात कहि दी ?
- की ?
- कनिए टा बात लेल परेशान होइ बला आदति अहूँक नहि गेल एखनधरि।
- इह... बुधियारि नहितन रे!
- भकलोल नहितन!

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प्रवीण कुमार झा सोशल मीडिया पर एक गोट चिन्हल-गुनल नाम छथि आ विगत समय मे अपन टिप्पणी, विचार आदि सँ निरन्तर दृश्य मे छथि। हिनक निबंध आ लघुकथा विभिन्न ठाम प्रकाशित होइत रहलनि अछि, तथापि मैथिली मे प्रायः बहुत अल्प लेखन आ प्रकाशन। सामाजिक संजाल, ब्लॉग आदि पर निरन्तर लेखन कार्य कएनिहार आ स्पष्ट दृष्टि रखनिहार प्रवीण जँ गम्भीरतापूर्वक मैथिली मे अपन निबंध आदि लिखथि तँ विविध विषय-वस्तु पर जे कन्टेंटक एकटा समस्या अछि से सोझरा सकैत अछि। हिनका सँ praveenfnp@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। प्रयुक्त दुनू सांकेतिक छवि गूगल सँ साभार प्रस्तुत। 
अंतिम निशानी आ किछु अन्य लघु प्रेम कथा अंतिम निशानी आ किछु अन्य लघु प्रेम कथा Reviewed by emithila on जून 11, 2020 Rating: 5

5 टिप्‍पणियां:

  1. मैथिली मे 'लप्रेक' पसिन पड़ल हमरा। अहिना लिखैत रही अहाँ, सएह अभीष्ट।

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  2. बहुत समय बाद लप्रेक पढ़ल । प्रेमक तीन विशिष्ट अभिव्यक्ति !

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  3. आहा ! खूब रूचिगर ! खुब नीक बिचार

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  4. अति सुंदर तिनु रचना उत्साहित कैलक

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  5. रमेश चन्द्र झाशनिवार, फ़रवरी 10, 2024

    तीनू पढ़लहुँ, पहिल (अंतिम निशानी) ते कमाल लिखने छी,👌🏻👌🏻 तेसर (भकलोल आ बुधियारि) सेहो बढ़िया अछि, मुदा, दोसर (प्रेम मे न्यूट्राॅन) केँ कने आओर समारितियै ते ओहो उत्कृष्ट बनि सकैत छल 😊🙏🏻

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