|| ललितक किछु उद्धरण ||
चयन आ प्रस्तुति : विकास वत्सनाभ
'पृथ्वीपुत्र' मैथिलीक जीनियस कथाकार ललितक एकमात्र प्रकाशित उपन्यास छनि। 'पृथ्वीपुत्र' वर्ग संघर्ष, प्रेम आ जिजीविषाक एकटा सम्यक त्रिकोण ठाढ़ करैत अछि। कोशीक ग्राम्य जीवनक पृष्ठभूमि मे पटुआक खेती कएनिहार श्रमिक लोकनिक कथानक पर लिखल ई उपन्यास मैथिली मे 'क्लासिक्स'क दर्जा रखैत अछि। एहि उपन्यास मे आएल चरित्र, भाषा आ एकर गति एहि उपन्यास केँ आद्योपांत मनलग्गु बनबैत अछि। ललितक मान्यता रहनि जे 'आर्ट' केँ पॉपुलर बनओनाइ सँ श्रेयस्कर थिक पब्लिक केँ 'आर्टिस्टिक बनओनाइ। 'पृथ्वीपुत्र' मैथिली कथा साहित्यक एकटा एहने घटना अछि जे मैथिली पाठक केँ आर्टिस्टिक बनबैत मैथिली कथाक 'आर्ट ' केँ सेहो एकटा नवीन दृष्टि सँ संपोषित कएलक। प्रस्तुत अछि ललितक एहि सुचर्चित उपन्यास 'पृथ्वीपुत्र' सँ किछु उद्धरण—
लोकक जनम भेलइए काज-उद्यम क' क' गुजर करबा लेल, ने कि अनकर धन-माल हरन करबा लेल। इमानदारी सँ खेती-बेबसाय क' जीवा लेल। जँ काज-उद्यम छोड़ि सभ चोरी-डकैती करए लागत तँ चोरि करबा जोगर चीज कतए भेटतैक।
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बेटी की स्वर्गे नीक कि सासुरे।
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जे पसिन्न नहि होइ छैक तकर प्रेम आर कष्टदायी होइछ।
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कोशीक बाढ़ि सँ मारल बाँझ धरती केँ चाँछक प्रयास मे कहिआ ने अन्न आ दवाइक बेत्रेक मरि गेल रहितै ई सब। पहिने जिबैत रहब जरूरी छैक। तखन पर-पंच आ कि लोक समाज।
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मुसहरीक लोक बुते हेतै जमीन जोतल। भरि दिनुका खरची घर मे रहतैक तँ बोनिओ ने जेतै कमाइ लेल।
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राति केहन निसबद्द छैक। सन्न-सन्न करैत। हमरा होए रातिओ बजै छैक। एकदम चुप्प रहि क' बजै छैक।
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मउगीक जिनगी महाग विचित्र होइत छैक । ओकरा नीको मोन पड़ै छै या अधलाहो मोन पाड़ैत नीक लगै छैक। आब सोचै छियै जे ओ जेहन छैक ताहि मे ओकर कोनो दोख नहि। हमहूँ जेहन छी तइ मे हमरो कोनो दोख नहि ।
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पछतेनाइ बेकार थिक। लोक जे किछु करैए अपना जानि क' नीक लेल जरूरी बूझि करैए। ओकर फल अधलाह कोना हेते? बूझ तँ जे फल होइत छैक ताही द्वारें लोक कोनो काज करैए। अनका नजरि मे भने ओ अधलाह हौक मगर ओइ आदमीक मोनक जोगरे होइ छैक।
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बिजली ओकर हृदयक समस्त कोमलभाव नेने अवतीर्ण भेल रहै। ओकर हृदयगत जे किछु कोमल आ मधुर रहैक बबूरक कोमल फूल; दूर्वादलक श्यामता, मेघक गहन गम्भीरता - सभ जखन मीलि जाइक तँ ओकर बेटी बिजली भ' जाइक।
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मउगी केँ एक सँ दुइए मे लाज की संकोच, तकरा बाद जेहने तीन तेहने तीस।
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सब माल पगहा तोड़ि नै पड़ाइ छै। सब गाछ केँ बिहाड़ि नै तोड़ि-मोडोड़ि दै छैक। बहुत गाछ बिहाड़िक दोगे-दोगे बाँचि जाइत अछि। फड़ि-फुला क' सुखा जाइत अछि । मुदा कतेक अभागल गाछ बिहाड़िक बाट पर ठाढ़ झमारल जाइत अछि, बेर - बेर मचोड़ल जाइत अछि।
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कतबो पैघ घटना घटो ने किएक, लोक मुदा खेपिए लैत अछि। ककरो बेत्रे संसार नै रुकै छैक।
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असल मे धरती जोतनिहारक थिक। हरबाह थिक जे धरतीक असल बेटा थिक । जेँ अपन पसेना सँ धरती - माता केँ पूजै अछि । कय दिन मालिकक हाथ मे हरक लागनि देखलहक अछि ?
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की तँ हम सब परसू अपन पटुआ काटि आनब नै तँ खेत पर कटि जाएब । आ हँसेरीक गप्प जे कहै छैक काका, से प्राण सभ केँ एकेटा होइ छैक। हाथो अपना लेल सबके दुइएटा होइ छैक । दूटा हाथ आ एकटा प्राण ल' क' सब गोटा लड़ैए।
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भय जकाँ साहसो संक्रामक थिक।
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भीड़ बनि हुले-ले कयनाइ बड़ सहज, मुदा भीड़क लेल कोनो योजनाक रूपरेखा प्रस्तुत केनाइ बड़ कठिन।
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गेनिहार टा खाली चलि जाइत अछि। जे बचैत अछि से जिबीते जाइत अछि। जेना खाली जिबैत रहब सब सँ जरूरी काज हो।
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ई भाइ-बहिन एके सोनितक दूटा ठोप थिक, एके जारनि सँ छूटल दुइठा खुहरी थिक। जे अलग ने कएल जा सकैए।
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बिआहक गप्प पर सभ केँ लाज होइ छैक । बिआह करैत काल सभ कुमारिए जकाँ निर्मल भ' जाइए।
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हमरा सभक पसेना ओकरे सन-सन लोक केँ फलै छै ने। एखन हम सब बबूरक छाहरि तर औले मरइ छी आ ओकरा दू-दूटा पंखा लागल हेतइ । एकटा चानि पर आ एकटा सोझाँ मे छोटकिनमी ....हाँइ - हाँइ बसात ! आ असल जे मरओ -खटओ से मरिए जाओ।
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जकर नाक बड्ड पैघ होइक से कहि दै चिकरि क' लोक केँ जे ई हमर बेटी नै, ई हमर बहिन नै। हम अपन संसार देखब।
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सुबधी बाजलि नहुएँ— गे काकी, सुनलिअइए जे कलमबाग मे एकटा मचकी बन्हलकैए आ दीने-देखारे दुनू पर झुलैत रहैक। बिजलिआ सिनेमाक गीत गबैत रहै आ कलपू साथ दैत रहैक। तोहर किरिया, सत्तम बात। बुधनी अपना आँखि सँ देखलकै। बुझलें गे।
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माय कहलकै— तोरे खातिर ई पंच बैसइ छै। आबो लाज कर। ई जनितउँ ने तँ सोइरिए मे नोन चटा क' मारि दितिऔक।
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एक एक टा उद्धरण हृदय के छूबि जाइछ । प्रस्तुति लेल साधुवाद !
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