दाँतक गऽह मे एगो भाषा


रवि भूषण पाठकक किछु कविता ::


1). ब्रह्मराक्षसक खतिआन

गंगा कात आ बागमती कात मे गारल पितामह लोकनिक आनंदे अलग
अखारक झीसी, साओन भादवक मूसरबुन्नी अलगे-अलग
आ एखन नेपाली हिमालय, तिब्बती हिमालय केँ जबरपानि अलग
जेना स्वर्गसरोवर मे पनिझूला
साराऽक माटि-माटि बहि गेलै तिरमुहानी मे
राखहड्डी तक गंगा होइत गंगा सागर मे
बचल की यौ पितामह?
की अछि अइठाम?
जमीन तक भारत सरकारक
खतिआन मे नाओं, कुनो फरजीए सही
मुदा गंगा कातक आनंदे अलग
चौमास मे इंद्रवरुण संग दौड़ादौड़ी
तीन-तीन कोस तक हेलौनी
सोंइस-घड़ियाल संग मजाक, बिठुआ कटौनी
कखनो-काल नावक मलाह आ स्टीमरक ड्राइवर संग ठट्ठा
शीतकाल मे एक सँ एक मेला झूला
पीपही, बरी-कचरी
कातिक असनान मे भाबौह पुतौह लेल घाट बनेनाइ
आ छठि मे सूर्यदेव संग जबरदस्ती
जल्दी जाउ आ समय सँ आउ
किसानक हर कें हल्लुक बना नीक चास
आ पनपियाइक रोटी-तीमन रामपास
गरमी मे सूर्यदेवक मुंह चीर 
सब गरमी गहुम दिस ढ़ारैत
आ लू मे  चऽर मे प्रेतच्छाया करैत
बौआ ई आनंद खतिआनक जमीन मे ?
एक खानदान, एक परिवारक मुंह ओगड़ैत एक सहस्राब्दी
अइठाम नै कुनो भेद, आरक्षण
बरबरना त्रैलोकिक आनंद

2). दाँतक गऽह मे एगो भाषा

दलालक दाँत, बधिकक दाँत आ महालोभीक दाँतक बीच मे फंसल एक टा भाषा
आ चारु दिस जय जय केर महानाद
अहाँ केँ हिसाबे की हेबाक चाही?
हमरा हिसाबे सर्वप्रथम बधिकक दंतच्छेद
फेर दलालक शल्यक्रिया
आ अंत मे लोभी लेल किछु कांटकुश
जत्ते लेल तैयार होए ओकर अंतरी

3). असर्ध

असर्ध बात बजैत बजैत
सभ दाँत खिया गेलेन
पायरिया, दंतकीड़ी आ दंतखधाड़ि
सभ गारिक पिलुआ संग बढ़लै
रह दियौ जांच-रिपोट
बरहऽ दियौ खाधिक परिधि
बनऽ दियौ पोखरि
चुभकऽ दियौन बाले-बच्चे
ढ़ारऽ दियौन अर्ध्य देवगण कें
तिरपित होमऽ दियौन पूर्वज सभ कें

4). कहिया तक पाथ

पहिले मोन भेल जे चुप्पे रही
बजला सँ, बघरला सँ की सिद्धि?
से दाबने मुंह, बैसेने दांत पर दांत, चौआ पर चौआ
मुदा कहिया तक मुरुत, कहिया तक पाथर बौआ
मुदा कहले सँ की?
नालिशे की, डिगरिए की?
सिंहासने की?

5). महाकवि विद्यापति

(क).

युवाकवि विद्यापतिक पुरूषपरीक्षा
कवि सँ बेसी ओइ जुगक मांग
पुरूषार्थ आ ओइ पौरूषक प्रशंसा
ओइ दरबार आ बूढ़रसिक समय केर छन्‍द
तैयो ओइ कवि के शत्रु साओन बिढ़नीक छत्‍ता
केओ किताब चोराबै, केओ पांड़ुलिपि पोखरि मे फेंकि दै
कतेको चेतावनी, रस्‍तारोकी, छीनाछोरी
विद्यापति जानैत रहथिन
कि पुरनका पोथी बिसरले सँ नवपोथीक आगमन
पुरूषपरीक्षा लिखै काल हुनकर बैठकी भरल रहै
वेद-पुराण, व्‍याकरण, न्‍याय-स्‍मृतिक ग्रंथ सँ
जयदेव, वात्‍स्‍यायन आ भामहक भार सँ दाबल
पाणिनी आ पिंगलक बान्‍ह सँ पिसाइत कल्‍पैत युवाकवि
सब सँ पहिले फेंकलखिन पुराण आ स्‍मृति
तखने प्रकट भेलखिन कीर्तिलता आ कीर्तिपताका
मुदा एखनो संतोष नइ
एहि कीर्ति के तुच्‍छ बूूझैत बढ़ि गेलखिन आगू कवि विद्यापति
फेर फेंकलखिन छंद-काव्‍य आ दर्शनक शताधिक पोथी
फेकैतो काल प्रणाम करैत ओइ पोथी सभ कें
महल आ बैठकी कें त्‍यागि
आबि गेलखिन जन आ जनपदक मध्‍य
जनपदक संगे-साथ चिन्‍ह' लागलखिन जनमन
तखने तन दुख‍हि जनम भेल, दुख‍हि गमाओल
एहि दुख केँ गमिते उदित भेलखिन महाकवि
महाकविक कविता राजा जनकक नइ
आरक्षित बस जनजनक लेल
जइ कविताक छाती मे धुकधुकाइत रहै मिथिलाक श्‍वास
ई अमर क‍विता तुरूकक कागज पर लिखाइ सँ बेसी अमर भ' गेलै
कोटिजनक ह्रदय मे, रक्‍त मे, माटि मे।

(ख).

हयौ साहेब
अहाँ केँ एखनो एहने सन लागैए कि विद्यापति बाभनक कवि
आ विद्यापति कें जियेने रहलनि बाभन सब
अपनेने आ माथ पर चरहेने रहलनि बाभन सभ
हयौ महराज
विद्यापति तँ भ' गेलखिन चारू लोक सँ बाहर
महराजक दरबार सँ
पंडितक चुटपांति सँ
शास्‍त्रार्थक झूठ-अखाड़ा सँ
अहाँ नीक-हमहूँ नीक सँ
मुदा महाकविक कविता जीयत रहलै
माथ पर सम्‍हरल बोझक हुंकारी सँ
काशी आ नेपालक व्‍यापारी सँ
जहिना प्रिय असोम आ बंग मे
तहिना अराकान आ अंग मे
महाकवि बरहैत गेलखिन
महफा उठेने कहारक पदचाप संग
मखान तोड़ैत मलाहक अलाप संग
महाकवि आगि भ' गेलखिन
अगहन-पूसक घूर मे
महाकवि पाथर भ' गेलखिन
दुसाधक दुख संग
महाकवि गामबदर
डोम-हलखोरक टोल-टापरि मे
अधमरू महाकवि कें आश्रय भेटलेन नारीजनक कंठ मे
दुख आ कष्‍टबोधक जांता-गीत बनि
मुदु प्रतिशोधक उक्‍खडि-समाठ छंद मे
महादुख पर लेपैत सोहरक लेप मे
महाकवि जी गेलखिन विषम-विवाहक व्‍यंग्‍य मे
महाकवि जी गेलखिन बूढ़-छिनारक ललैठी धरबा लेल
सभ पोथी-पतरा फेकैत 
पुर्नजीवित महाकवि
बस रूकि गेलखिन मैथिलानीक लोर संग
यैह लोर शालिग्रामी, बागमती कें भरैत
कोशी, गंडक कें तोड़ैत
सभ साल दहबै-दहाबै छै मिथिला के।

6). बलहा हाट

बलहा शनि हाटक कुनो विकल्‍प इतिहास मे नइ रहै
आ रस्‍तो वैह एक टा आचार्यक बामेबाम सिंगराही पोखरि बाटे
मुदा काबिल आदमी साइकिलक घंटी टूनटूनबैत उत्‍तर आ दक्षिण सँ सेहो
सब सँ शार्टकट रस्‍ताक आदमी आ आडि फिक्‍स रहै
फिक्‍स रहै कि लंठ सभक आडि बाटे आ नीक लोकक बीचे-बीच रस्‍ता छैक
रस्‍ता मे फलां झा, चिल्‍लां कमती सभ एकात लेल भागैत रहथिन चारू दिशा मे
ओहिना गुंहकीड़ी सभ जाइत रहै गर्वोन्‍नत माथ केने
अपन-अपन हिस्‍साक पृथ्‍वी कें उठेने
आडि ओहिना छुवाइ, जेना ब्रह्माण्‍ड नापल गेलै
पहिले पोखरि एलै, फेर तड़बिन्‍नी, तखन लोकपैरिया
दूरे सँ देखा गेलै बलहा हाट
दूरे सँ सुना गेलै हाटोचित हल्‍ला-हुंकार
ओहिना जक्‍क-थक्‍क रहै बलहा हाट
दोकनदार सभ बोरासन धेने अपन-अपन डंडी वला तराजूक संग
पूरा दुनिया केँ बेचै-खरीदै लेल उद्यत
नीक समान आ गारंटीक वैह रंगबिरही अवाज
खरीदार सभ सेहो चौकस
अपन-अपन बुद्धि अनुभवक संग
सभ सँ कम दाम मे सभ सँ नीक सौदाक उलटबांसी
एहि हफ्ताचर्या मे आदमी, जानवर, देवता आ भूत सबहक सौदा रहै
ओहिना जाम रहै करियन, बाघोपुर, फत्‍तेपुर आ एरौत जाइ वला रस्‍ता
ओहिना नजरि गड़ेने रहै उचक्‍का सभ जाइ-आबै वला पर
ई ने गाहक रहै, ने दोकनदार
ने दलाल, ने पैरोकार
ओहिना पिहकारी मारैत रहै बीच-बीच मे
टिटकारी तेज होइत जाइ नीक लोक कें देखि-देखि केँ
ई सभ बात होइत रहै दुनियाक सब सँ मीठ भाषा मे
ठहक्‍का संग सब सँ बेधक गारि फेंकल जाइत रहै फलां ठाकुरक भाषा मे
मुंहठूसल पानक प्रभाव सँ चारू खना चित्‍त रहै ई गौरवशाली भाषा
आ बस हाट सँ सौ हाथ पच्छिम खोराघाट रहै
ओत' जरैत रहै एकटा अधफूकल लहास
बगले मे कतौ छलै आचार्यक समाधि सेहो।
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रवि भूषण पाठक मैथिली आ हिंदी लेखनक क्षेत्र मे समान रूप सँ विगत दशक भरि सँ फाजिल समय सँ सक्रिय छथि। 'रिहर्सल' शीर्षक सँ एकटा मैथिली नाटक प्रकाशित तथा एकटा हिंदी उपन्यास प्रकाशनाधीन छनि। एकरा अतिरिक्त देेेशक विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकादि मे नियमित रूप सँ रचना प्रकाशित-प्रशंसित। इतिहासक छात्र रहलनि अछि। एखन सम्प्रति बदायूं मे सहायक प्राध्यापक छथि। हिनका सँ rabib2010@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। 
दाँतक गऽह मे एगो भाषा दाँतक गऽह मे एगो भाषा Reviewed by emithila on जनवरी 05, 2020 Rating: 5

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