प्रत्येक डेग एकटा संभावना थिक


मैथिल प्रशान्तक किछु कविता ::


1). अलहनि पूसक राति

धरतीपर पसरल 
ई अलहनि पूसक राति 

अकासक सितलपाटीपर 
भकुअएल बैसल चान 

कुहेस मे सनएल 
ठिठुरैत इजोरिया 

चारुभर अबारा छौड़ा सभ जकाँ रभसैत 
अबंड बसातक अदंक 

ठोप-ठोप चुबैत ओसक परतापे 
सिहरैत सिहकैत दूभिक अंग-प्रत्यंग 

आहारक खोजी सँ झमारल 
चिड़ैक जोड़ 
खोंता मे एकदोसरा मे सन्हिएल 

निःशब्द 
अपन स्थान मे खुटेसल गाछ-बिरिछ 

अपन परिमितिमे 
गुम्मी लधने बैसल पोखरिक सर्द-हेमाल पानि

भनसाघरक चिनमार पर 
गुम्मी केँ भँगैत छुच्छ बासनक 
दारिद्रीय कन्नारोहटि 

हमर गोठुला घर केँ दफानने 
पिलिया कुक्कुरक केंकिआइत नवजात 

मुदा,
एहनो अपतकालमे 
घूर त'र बैसल लोक 
उष्मा पबैत अछि एक ठेहुरी धधरा सँ
पत्नीक पहिल आलिंगन जकाँ 
आ 
खौंत फूकि दैत छैक 
ओकर जिजीविषा केँ...। 

2). विचार धारा 

विचार धारा 
बहैत अछि, मनुक्खक बस्ती केँ बेरबति काते-कात 
बर्दास्त नहि छैक मनुक्खक गन्ह 

अगुताइ मे अछि सभ नव सिद्धांत 
समय सँ पहिनहि सभ्यता होयबाक लेल 
वैचारिक गति, सुस्त, औंघाएल, अनमनएल सन अपन उदगम सँ फराक होयबाक उत्सव मे अलोपीत अछि 
मुदा उत्साह सेरा गेल छै माड़ जकाँ 

विचार,  विचार-धारा एकत्व प्राप्तिक किर्तन मे लीन 
स्वयं केँ ठाढ़ करैत अछि एकटा प्रतिमान जकाँ 
गढ़ैत अछि किंवा गढ़बाक यत्न करैत अछि एकटा प्रतीक 
परस्पर विपक्षक कोनो स्तुप सँ पैघ, निस्सन, अजोद्ध 

धाराक धार सँ युक्त एकटा हथियार 
छैक विपक्षक खेमा मे सेहो, बेस ललितगर, बेस चोखगर 
पाँगि देमय चाहैत छैक एकहक ठारि 
अनकर छाहैर के बर्दास्त करैत अछि एहि कनकनी मे 

वैचारिक हारि जन्म दैत अछि 
एकटा शोणिताम भेल युद्धक 
राजधानीक सभ चौबटियापर टाँगल जाइत छैक लहास 
नारा लगाबैत अछि शाकाहारी गीद्ध सभ - अपन पौराणिक ग्रंथक कोनो ऋचाक 

अभिजातीये श्रेष्टताक पिठियौटापर बनाओल चेन्ह-चाक सँ 
स्वयं केँ जोड़बा लए बिर्त्त 
लोकक धरोहि पुनि चानन-ठोप करैत अछि रक्तचंदन सँ 

राजधानी सँ दूर 
स्मार्ट सिटी सँ दूर
मारिते रास लोक सीरौर मे धरिआबैत अछि गहुमक बिआ 
विचारक धारा मध्धम भ' गेल अछि गाम अबैत-अबैत 
एकटा धारा छै एतय, इज्जति कोना बाँचत 
कोना हेतै कनेदान 
कोना हेतै दौनी, ओसौनी 
कोना हेतै साँझुक घूरक वेवस्था-बात 
गिरहस्थीक ससरफानी मे ओझराएल हमर गाम केँ 
नहि चिंता छैक कोनो आन्दोलनक 

आइयो, 
हँ आइयो,
गामक एकमात्र चौकक मूल बहसक मुद्दा छैक 
भलम्माक बेटी - किए उढ़ैर गेलै 
फलल्माक बेटा नहि उजिएलै 
चर्चाक बिषय इहो छै - बेनीपट्टी हरलाखीक बाट बनि रहलैए 
आब देखा चाही - गाम शहर जाएत 
आकि,
शहर गाम आओत ? 

3). चेन्ह-चाक 

अहाँ केँ हिचुकी अबैत अछि ? 
अबिते हएत
कटिस क' लेला सँ
संवाद चनकैत छै
चेन्ह-चाक थोड़बय मेटाइ छैक। 

4). किछु निर्माल 

अहाँक अंतःवस्त्रक अढ़ सँ 
अकसरहाँ हुलकी मारैत हएत 
हमर दाँतक छाप 
जकरा भने सभ सँ नुका रखने हएब अहाँ 
मुदा स्मृतिक पुरबा मे 
कनकनाइत हएत 
सगबगाइत हएत, 
सिहैक उठैत हएत 
अंतरंग क्षणक किछु निर्माल।

5). ओहि सभसँ आगाँ 

जत' अहाँ ठाढ़ छी - ओतय सँ जतेक दूर धरि अबैत अछि नजरि। ओतबी टा नहि थिक धरती, ओतबी टा नहि थिक संसार, ब्रह्माण्ड। एखन धरिक देखल, भोगल सँ फाजिल देखबा लए, भोगबा लए, असोथकित विन्दु केँ करहे पड़त चौरस। ओहि सभ सँ आगाँ चलहे पड़त, भोगहे पड़त। छोड़हे पड़त भोगल कालखण्डक मोह।

संभव छैक बड़ किछु अहाँ, अपन हाथ सँ टोबने होयब। संभव छैक अहाँ बहुत किछु अपन आँखिक जोत सँ टोबने होयब। अहाँ बहुत किछु सुनने होयब। पढ़ने होयब इतिहास, भूगोल, विज्ञान। मानल बहुत रास वस्तु - जात केँ, अहाँक हाथ क' देने अछि अपैत। मुदा तेँ कि बाँचल नहि अछि निरैठ ? हम गछैत छी अहाँ चिन्हैत होयब मारिते रास गन्ह - सड़ैत लहासक गन्ह, फूलक गन्ह, मनुक्खक गन्ह जानि नहि कतोक प्रकारक गन्ह सँ नकमानि भेल छी अहाँ। तेँ की बाँचल नहि अछि किछु अन्भुआर सन गन्ह ? मारिते रास सुआद केँ जब्बहक' अछओं अछि अहाँक जीह, रेहल-खेहल अछि तीत-मीठ, नोनगर - चहटगर। तेँ की ओतबी अछि जीवनक सुआद ? 

अहाँ धँगने छी ओतबी धरती, जतबा क्षेत्रफल अछि अहाँक तरबाक। अहाँ केँ बुझल अछि मातरे अहाँक प्रस्थान विन्दु। 
अहाँ केँ गमल अछि मातरे अहाँ द्वारा चलित दूरी आ तरहत्थीपर अछि मातरे एकटा विस्थापन। आरंभक चौखटिपर ठाढ़, एकटा यात्रा अहर्निश करबाक अछि।

अरजलहा बौद्धिक बखारी सँ, नहि भरबाक चाही माथ। शेष थिक एकटा विस्तृत अकास। यात्राक क्रम मे छुतिया जाइत छै, पुरान जग्गह, पुरान लोक। संग रहि जाइत छै, बाकुट भरि भाववाचक संज्ञा। आ ओहो समयक ढ़ेकी मे कुटाइत, छटाइत अवशेष भ' गिरहस्थीक व्याकरण मे सर्वनाम जकाँ उपयोग होइत रहैत छैक, बेर-कुबेर। 

संघर्षक महिखा मे रहरहाँ कबिलौतीक बलि देबय पड़ैत छैक। पाकल कदिमा जकाँ कतोक बेर भंगए पड़ैत छै। नव स्वरुप अखतियार करबा लए भंगएब आवश्यक छैक। ब्रह्माण्डक कोन कारक द'ढ़ अछि, के साबूत अछि एतय ? दू फांक शिव छथि, तखनहि प्रकृति अछि। अजस्र खण्ड सुरुज भेला उत्तर चमकैत अछि - धरा मंगल आदि ग्रह। धरा स्वयं दू हिस थिकीह, तखनहि चान छथि।

प्रत्येक क्षण एकटा अवसरि थिक। प्रत्येक डेग एकटा संभावना थिक। अथबल नहि थिक समय। अथबल केँ नहि होइत अछि भविष्य। हम चलब - ओहि सभ सँ आगाँ, जतेक हम चलि चुकल छी।
●●●

मैथिल प्रशान्त चर्चित युवा कवि छथि। हिनक गणना मैथिली कविताक भविष्यक एकटा नीक संभावनाक रूप मे कएल जाइत छनि।  'अखरा चान' आ 'समयक धाह पर' शीर्षक सँ हिनक दू गोट काव्य-संकलन दृश्य मे छनि एवं 'घाम होयबाक अकुलाहटि' शीर्षकक एकटा सँग्रह प्रकाशनक बाट मे छनि। एकरा अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकादि मे नियमित रचना प्रकाशित-प्रशंसित आ एलबम आदिक लेल गीत लेखन। 
हिनका सँ maithil.pb@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। 
प्रत्येक डेग एकटा संभावना थिक प्रत्येक डेग एकटा संभावना थिक Reviewed by emithila on जनवरी 03, 2020 Rating: 5

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.