हमर अहाँक राजकमल : मुकुंद मयंक

राजकमलक अपन एकटा कविता मे कहैत छथि : कविता हमर काँचे रहि गेल /एहि जारनि सँ उठल कहाँ धधरा। से  ई धधरा तँ उठल मुदा  राजकमल देखि नहि सकला ! जेना जेना समय बढ़ैत अछि एहि धधराक पसार बढ़िए रहल अछि। काल्हि राजकमल जयंती पर समकालीन अभिव्यक्तिक विराट मंच 'फेसबुक' एहि धधरा सँ चहुदिस प्रकाशित छल। वस्तुतः रचनाकारक दू गोट जीवन होइत छैक। ओकर दोसर जीवन तखन आरम्भ होइत छैक जखन ओ मात्र अपन रचना मे जिअब आरम्भ करैत अछि। एहि सन्दर्भ मे हम फूल बाबू केँ एखनहुँ मैथिलीक आँगन मे कतहुँ भरि मुँह पान खएने जुआन होइत देखैत छियनि। मैथिली-हिन्दीक अप्रतिम शब्दशिल्पी राजकमल अपन साहित्यिक प्रगतिशीलता ,आधुनिक चेतना तथा समाजक यथार्थवादी चित्रणक सामर्थ्य सँ एखनहुँ भोरुकबा तरेगन सन प्रेरणाक अहर्निश स्रोत बनल छथि। कृति राजकमल हुए अथवा व्यक्ति राजकमल , ई दुनू दंतकथाक एकगोट एहन संगोर अछि जाहि मे वर्जना नव वितानक संग परिभाषित होइत अछि । ई मिथिलाक एहि प्रस्तुति मे आउ पढ़ी एहि युगद्रष्टा साहित्यकारक मादे नवतुरिया सृजक  'मुकुंद मयंक'क विचार  : विकाश वत्सनाभ। 



आई दिसम्बर महिनाक तेरह तारीख अछि।  हम साल केँ दु टा दिन जल्दी नहि बिसरति छी, दिसम्बर महीनाक तेरह तारीख आ जून महिनाक उन्नीस तारीख।  बिसरल कोना जा सकैत अछि  ?  हिंदी आ मैथिली साहित्यक  सरोवर केँ "राजकमल" के  सम्बन्ध जे छनि एहि दुनू  दिन सँ।  नागार्जुन एक ठाम लिखैत छथि -

  बिम्बग्राही तुम स्वच्छ स्फटिक तुम प्रभा तरल , 
भासित जिसमे सित- असित, मलिन एंव उज्ज्वल

   तुम चर्चाओ के केन्द्रबिन्दु , तुम नित्य नवल ,

इस-उस पीढ़ी के लिए विरोधाभास प्रबल 

     बाहर छलमय, भीतर भीतर थे निश्छल , 

तुम तो थे अदभुत व्यक्ति, चौधरी राजकमल ।

राजकमल चौधरीक परिचयक  लेल यात्री जी केँ ई चारि पाँती बहुत हद तक सहायक होएत अछि राजकमल अर्थात राजकमल चौधरीराजकमल अर्थात वीर विक्रम फूल बाबू राजा मणीन्द्र नारायण मधुसूधन दास चौधरी राजकमल अर्थात मणीन्द्र राजकमल अर्थात फूल बाबू। अझुके दिन 1929 ई के राजकमल चौधरी के जन्म अपन मामागाम रामपुरमे भेल छलनि ओना हिनक पैतृक गाम मिथिलाक महिमामण्डित संस्कृतिनिष्ठ मण्डन मिश्रक गाम आ जगत जननी माँ उग्रताराक सुप्रसिद्ध पीठ महिषी छलनि । हिंदी आ मैथिली साहित्य के अपन कलम सँ समृद्ध कर' वाला राजकमल अपन व्यक्तिगत जीवन केँ कहियो समृद्ध नहि क' सकला । विवाह उपरांत राजकमल अपने अपन परिस्थिक दारुन चित्रण एकठाम 'हितोपदेश' शीर्षक कवितामे कहनहु छथि -
     

राति खन भोजन काल कहलनि सतमाय 

बाउ, बहराउ कविताक कोहबर सँ 
नौकरी-चाकरिक करू उपाय 
अहाँ असकरे नहि छी 
एकटा कन्याक हाथ छियै धएने 
नहि चलत काज 
कालिदास बाणभट्ट विद्यापति कएने 
विक्रमादित्य ,श्रीहर्ष, लखिमा ठकुराइन सभ 
भए जाउथ स्वाहा 
जाइ छी, फोलब पान-बीड़ीक दोकान दरभंगा 
टावर-चौराहा
   
क्रमशः हिंदी आ मैथिली साहित्य मे जे आधुनिकता के प्रयोगक संग संग मौलिकता सँ पूर्ण अपन समय सँ बहुत आगा के रचना जाहि तरहे राजकमल कएलनि भरिसके कतोह और भेटत । और एहि कारण राजकमल भीड़ सँ एकदम अलग साहित्यक आकाश में ध्रुव तारा जकाँ चमकैत छथि । जहिना राजकमलक कृतित्व प्रभावित करैत अछि तहिना राजकमल क'  आकर्षक व्यक्तित्व छल ।एहि बातक प्रमाण एहि सँ भेटैत अछि जे हम सभ जखन हिनक विषय मे सुनैत छी/ पढ़ैत छी तँ एतेक आकर्षित होएत छी तँ राजकमल के प्रत्यक्ष दर्शी कतेक आकर्षित होएत हेतैक एकर अनुमाने टा लगाओल जा सकैत अछि । स्वछंद प्रविर्तीक लोक, राजकमल स्वभाव सँ बहुत जिद्दी छलाह कारण कहियो भावावेशमे बाजल छलाह जे एहन पिताक (अपन पिता के मादे) मृत्यु भेला पर संस्कारो मे उपस्थिति नहि होएब आ से 10 जनवरी 1967 कँ जखन हिनक पिताक मृत्यु भेलनि तँ समाद आयला बादो अंतिम संस्कार मे शामिल नहि भेला हँ मुदा पाछा श्राद्ध कर्म कएलनि । राजकमलक मोन मे एक बेर जे भाव उत्पन्न भेल से अंत धरि बनल रहैत छल ।जँ राजकमलक रचना सभकेँ गप्प करी तँ स्वयं व्यंगसम्राट हरिमोहन झाक ई उदगार छनि जे - 

   सुकुमार काव्यकेर ताजमहल 

    प्रतिभाक पुंज हे राजकमल 

     वाणीक दिवंगत पुत्र सबल 
    अगणित मानसमे रहब बनल 
      हे अमर ! हमर शुचि राजकमल ।

तहिना मैथिली के दोसर विद्वान श्रीशजी कँ कथन  छनि -"प्रतिभाक धनिक राजकमल मैथिली साहित्यक आकाशमे प्रज्वलित धूमकेतु जकाँ अपन प्रतिभाक दाह क्षण भरिक हेतु अंकित कए विलीन भ' गेलाह"राजकमल एकहि संगे कवि, कथाकार ,समालोचक तँ छथिहे संगहि उपन्यासकार सेहो छलाह ।रामनुग्रह झा एक ठाम ठीके लिखने छथि जे ई निर्णय करब बड़ कठिन की छलाह ? कवि ,कथाकार ,उपन्यासकार,समीक्षक, वा सम्पादक । 
 राजकमल जीवते दन्तक कथा के नायक बनि गेल छलाह ,मातृहीन, घरनिकलुआ ,भृमणशील अपन ऊपर आस्था रखनाहर , तर्कवादी , घनघोर नास्तिक संगहि मनुष्य मे जतेक प्रकारक दुव्यर्सन होएत अछि ओ   सबटा हिनका मे छलनि ।



  ताहि हेतु हिनका सम्बन्ध मे किछु लिखब एतेक आसान नहि । तन्त्रनाथ झा कहैत छथिन  भुट्ट लोक जे यदि बाँहि उठा क' गाछक फुनगीपरक गोपी तोड़ चाहय तँ, ओ जेहेन उपहासक विषय हेतैक सैह स्थिती राजकमल चौधरी के विषय मे लिखबा काल हमरा होएत अछि । ओना कहलो गेल छैक - हरि अनंत हरि कथा अनन्ता । तखन एकटा गप्प और छैक जे कोनो ने कोनो गुण, विशेषता राजकमल मे एहन अवश्य छलनि जे मात्र अड़तीसे बर्षक अल्पायु मे अपन तीव्र आलोक सँ साहित्यक तिमीराच्छन्न गगन मे एहन नक्षत्र जकाँ उदभासित भेलाह जे ककरो-ककरो चिंतन मनन करबाक लेल अवश्य कए दैत अछि ।



                                                                                                                                                                     बस एतेबा कहब जे राजकमल रचना आइयो ओतबे प्रसांगिक छथि जतेक की ओहि समय मे छल होएत । आइ जखन फेसबुकक दौर मे जखन इनबॉक्स मे लोकक मोनक अन्हार उतकरबाक गप्प सामान्य भ' गेल अछि ताहि समय मे राजकमल कनिये बेसीये मोन पड़ैत छथि , ओ राजकमल जे वर्जना के भाषा सँ मुक्त  राख' चाहैत छला । जँ आइ राजकमल जीवित रहितथि तँ बस एतबे प्रश्न करितोह जे कोना एहेन व्यक्तित्व बनेलीये , कोना के एहेन कृतित्व रचलीये । मुदा कियाक अपन जिम्मेदारी सँ भगलिये ???

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मुकुंद मयंक सम्प्रति पटना रहैत छथि आ मैथिली पोथीक ऑनलाइन स्टोर 'सेप्पीमार्ट'क संचालन करैत छथि। अपन भाषा साहित्यिक आग्रही एहि नवतुरिया सृजकक रचना सभ समय समय पर प्रकाशित होइत रहैत अछि। हिनक एकगोट लघु प्रेम कथाक सहयोगी सङ्कलन 'प्रेमक टाइमलाइन' सेहो प्रकाशित भेल छनि। 

हमर अहाँक राजकमल : मुकुंद मयंक हमर अहाँक राजकमल : मुकुंद मयंक Reviewed by Unknown on दिसंबर 14, 2017 Rating: 5

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