दीप नारायण 'विद्यार्थी'क किछु कविता

दीप नारायण 'विद्यार्थी'क गजल सभ त' बराबर पढ़ैत-सुनैत छलहुँ, मुदा हिनक किछु कविता सर्वप्रथम पटनाक 'साहित्यिक चौपाड़ि' मे सुनने रही. पहिलुक बेर मे बेस प्रभावित भेल रही ओही कविता सभ सं. जकरा बाद मे पकबा धरि पढ़लहुँ. हिनक एहि कविता सभ मे प्रचुर भावात्मक उपस्थिति अछि, जे की प्रत्येक कविताक मूल मे रहबाके चाही. जकरा बुझबाक लेल व्यक्त भाव कें लग सं देख' आब' कें चाही. दीपनारायण कें ई कविता सभ ओना त' छोट स्पेस सं बहरा रहल अछि, मुदा एहि कविता सभक नजरि बेस व्यापक आ नितांत आवश्यक चीज सभ पर अछि. पढ़ल जाउ .. 

बजाहटि
सम्बन्ध, हम
नहि तोड़लहुँ अछि
अहाँसँ
आउ
जौं आब' चाही त'
आउ
हमर हृदयक चाँचर
एखनो अछि परती
अहीँक लेल ।

 हमरा गेलाक बाद-१

अहाँकेँ मोन पड़त
हमर आदति सभ
हमर स्पर्श, हँसी,चलनाइ
सभ दिन विदा होइत काल
घुरिक' तकनाइ
कखनो कालक' हमर
झगड़ा आ नखरा सेहो
अहाँकेँ मोन पड़त
देखिक' ओ कुर्सी
जाहि पर हम बैसैत छलियै
ओ टेबुल जाहि पर हम लिखैत छलियै
अहाँकेँ मोन पड़त
अहाँकेँ लागत हम एतहि छियै
एतहि कतौ छियै
गेल छियै चौक दिस
'फोटो स्टेट' कराब'
कि किरानाक कोनो समान लाब'
वा 'सेन्ट्रल बैंक' पर कोनो काजसँ
हम एबे करबै एखने
किछुए कालक बाद
अहाँकेँ लागत
हम टहलैत छियै एखनो 'फिल्ड' दिस
बैसल छियै कि ठाढ़ बरामदा पर कतौ
आ कि ओहि कमरा मे
खिड़की पर हाथ ध'
देखि रहल छियै बाहरक परिदृष्य
सभसँ बेसी पड़ब मोन
ओहि दिन हम अहाँकेँ
जहि दिन अनचोके!
अहाँक बैग मे
कि टेबुलक दराज मे
कि गोदरेजक कोनो खाना मे
आ कि कोनो 'रजिस्टर' मे
भेटत कागतक कोनो टुकड़ी
जहि पर लिखल रहत
हमारे अक्षर मे कोनो शब्द
कि कविताक किछु पांति
आ उदास भ' जाएब अहाँ
फेर अहाँ सोचब
कि कहियो सोचने ने रहियै
एक दिन ऐना भ' क' सभ किछु बदैल जेतै
जकरा देखिक' जीवै छलियै
ओ छोड़ि क' हमरा चलि जेतै
बहय लागत आँखिसँ धार
फाटि जाएत अहाँक करेज
अहाँ बीनु मरै छी हम
रोज एकटा मृत्यु
अहुँ थोड़े जीबै छी जिनगी
जीबै जका...
हमरा गेलाक बाद ।

 हमरा गेलाक बाद-२

अहाँकेँ बुझल अछि ?
समुच्चा संसार सँ
हेराइत-भूतलाइत
अहीँक आँचर मे भेटल रहैक
हमरा ठौर
मिसिया भरिक खुशी
एक औंजरी जिनगी
जे एतहि रहि जइतैक आब
जिनगी भरिक लेल
हमरा गेलाक बाद ।

अहाँक गेलाक बाद-१
अहाँक गेलाक बाद
ई कि भ' जाइए हमरा
डेग-डेग पर भेटैत अछि
दू पेरिया
नहि बुझाइत अछि जिनगी
पहिले जकाँ असान
शब्दक ओ अर्थ सेहो
नहि रहि जाइत अछि
जे अछि शब्दकोश मे
अक्षर केँ गढ़ैत
महसूस करैत छी हम
ओकर पीड़ा
माँटि अपन पहिचान बिसरि जाइत छैक
रंग अपन रंग
कोशी-कमला संगीत
कोइली बिसरि जाइत छैक गीत
आब कि कहु अपन हाल
सौँसे दुनियाँ लग' लगै छै
उजड़ा भांङ
अहाँक गेलाक बाद ।

अहाँक गेलाक बाद-२
नहि !
किछु नहि हेतैक
कि हेतैक?
अहाँक गेलाक बाद
इनार-पोखरि सुखा जेतैक?
पहाड़ ढहि जेतैक?
सुरुज उगनाइ बन्न क' देतैक?
आ कि पृथ्वी उनैत जेतैक?
नहि!
एहन सन किछु नहि हेतैक
नहि बदलतै
मिसियो भरि ई दुनियाँ
मुदा, हमर दुनियाँ-
एकदम बदैल जेतैक
अहाँक गेलाक बाद ।

 मृत्यु
कयने रहै
लाड़-दुलार हमरासँ मृत्यु
लगौने रहै छातीसँ
कयैक  बेर
हम सुतय चाहने रहि
मृत्युक कोरामे निचैनसँ
अपना लग नहि ल' जयबाक हठमे
झमारिक' उठा देने रहै हमरा
आइ जखन की
हम पढ़ि रहल छी
मृत्युक महाकाव्य
हमरा देहसँ निकलि अत्मा
नि:शब्द भ' सिरमा मे बैसि
क' रहल अछि हमरा फेर लाड़-दुलार
हसोथिक' छातीसँ साटि लइए बेर-बेर
अमरत्व प्राप्त करय बला मृत्यु
बहबैछ नोर हमर मृत्यु पर
हमर देहके छुबैत अछि
आ हम सिहरि जाय छी
एकटा स्पर्श मात्र सँ।

(बतबैत चली जे, एमकी साहित्य अकादमीक युवा पुरस्कार दीप नारायण विद्यार्थी कें हिनक गजल संग्रह 'जे कही नहि सकलहुँ' लेल देबाक घोषणा कयल गेल छैक आ हिनका अकादमी दिस सं ई पुरस्कार आगामी २ दिसंबर कें त्रिपुराक राजधानी अगरतल्ला मे प्रदान कयल जेतनि, एहि लेल दीपनारायण कें बहुत-बहुत बधाइ आ शुभकामना. )



दीप नारायण 'विद्यार्थी'क किछु कविता दीप नारायण 'विद्यार्थी'क किछु कविता Reviewed by बालमुकुन्द on अक्तूबर 28, 2016 Rating: 5

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