गजल
(१)
शालीनता सभतरि घटल छै
अश्लीलता आदति बनल छै
कठिनाह अनुशासित रहब बड़
उद्दंडता राखब सरल छै
छै भेल शोणित पानि सनके
नहि लाज ककरोमे बचल छै
मिथिलाक झंडा हाथमे धरि
हिय-माथमे मगही धँसल छै
सभ बेच रहलै मैथिलीकें
आ पेट एहिसँ भरि रहल छै
ककरा कहब आ के सुनत गप
कबिलाठ सभ अपने "नवल" छै
मात्राक्रम : २२१+२२२+१२२
(२)
शहरक जिनगी नामक छै
रीत अजब एहि ठामक छै
गंगाजल सन मदिरा लागै
मोल नञि शोणित घामक छै
कारी मोन भरल दुर्गुणसँ
बनल पुजगरी चामक छै
प्रीत निमाहब कठिन कते
सभ भूखल बस कामक छै
चारक शोभा सुन्दरता बड़
घर-घर दुर्गति खामक छै
उस्सर परती सोन पड़ल
होइत ओगरिया तामक छै
"नवल" नगर
गेलै से गेलै
बिसरल ममता गामक छै
*सरल वार्णिक
बहर / आखर-११
बाल गजल`
(१)
इसकुलकें बस्ता छै भारी हम नहि टंगबौ टांगै तू
पानिक थरमस हमरा चाही ई नहि भैया मांगै तू
मोरक चित्र बनाबै लेल देलनि हमरा मैडम जी
माँ फोटो तू पाड़ि दे लेकिन सुन ओकरा नै रांगै तू
छिट्टा तरमे नुका कऽ धेने भनसाघरक कोठीपर
पाकल कोआ संग सोहारी खेबय कटहर भांगै तू
ओलतीक काते-काते हम ठाढि गुलाबक रोपने छी
धान पसारय ओरिया कऽ माँ गाछ ने फूलक धांगै तू
"नवल" छोट
नै आब ओते काज अढा तूं हमरो किछु
दऽ दे हमरा हाथ पघरिया माँ जारनि नहि पांगै तू
*सरल वार्णिक
बहर; आखर-२०
(२)
दूधक लोटा ओ ओन्घरेलकौ हमरापर तमसाय छिही
चिन्हा गेलयं तों आब गै बुढिया तों बस ओकरे माय छिही
बेटा लाट्सहाब बनल छौ हम बेटी छी तएँ छी निरसल
अपना कोखिसँ जनलैं हमरा लागै धरि सतमाय छिही
ओकरा देलहिन मोट ओछेना हम सूतय छी अखरेपर
गेरुओ छीन रहल अछि भैया तइयो नै खिसियाय छिही
ओ पढतौ अंगरेजिया इस्कुल हमर नाम सरकारीमे
ओकरा लेल बड़ टाका-नमरी हमरा पढ़ा बिकाय छिही
चूल्हिमे ध' क' कंठ दबा कऽ बात-बातमे मारयं सभदिन
एहिसँ नीक तऽ कोखे मरितौं रहि-रहि जे कन्हुआय छिही
धिया आ पूतक बीच ई मिथ्या भेद ने जा धरि दूर हेतय
"नवल"
समाजक समृद्धिपर फुसियाहें अगराय छिही
*सरल वार्णिक
बहर/ आखर-२२
हजल
(१)
ओ कहती चुप तऽ चुप रहू आ बाजू तऽ भूकैत रहू
काग स्वर सुनु हुनक आ कोइली बनि कूकैत रहू
कपडाक मोटरी छै पड़ल अहाँ धोबै नै तऽ धोत के
ओरियान करियौ भानसक आ चूल्हिकें धूकैत रहू
अनलहुं जे किछु टका कमा अहाँ घामसँ नहा-नहा
श्रृंगारकें ओरियानमे बस पानि बूझि बूकैत रहू
जूती पहिड़ने हीलकें चलती कने थमि-थमि कऽ ओ
हुनके डेगक संगे-संग चलैत रहू रूकैत रहू
"नवल"
हुनक अनुरोधकें आदेश बुझि लिअ अहाँ
ओ चलती सीना तानि कऽ अहाँ दास बनि झूकैत रहू
*सरल वार्णिक
बहर/ आखर-२०
(२)
हौ दैव किएक बिआह केलौं जिनगी अपन तबाह केलौं
भने छलहुं मस्तीमे मातल बूझि-सूझि कष्ट अथाह केलौं
कतेक अनोना कबूला पातरि कीर्तन आर नबाह केलौं
कनिआँ-कनिआँ रटि-रटिक' मोनके किएक
बताह केलौं
आन्हर भेल छलौं नै सूझल की नीक कथी अधलाह केलौं
मधुघट पीबा केर चक्करमे जिनगी खौलैत चाह केलौं
रहि-रहि मुँह फुलाबैथ ओ घुरि-घुरि हम सलाह केलौं
स'ख-श्रृंगार
पुड़ाबय पाछू खटि-खटि देह अबाह केलौं
लेर खसल किए लड्डू लेल किएक मोन सनकाह केलौं
घर-घरारी लागल भरना जानि क' जिनगी बेसाह केलौं
खीर नै ओ घोरजौर छलए मधुरिम मोन खटाह केलौं
देखि कतहु मउहककें थारी "नवल" अनेरे डाह केलौं
*सरल वार्णिक
बहर / आखर-२२
संपर्क :-
नवलश्री
"पंकज"
सुगौना, मधुबनी, मिथिला
इमेल :- nawalshreepankaj@gmail.com
मोबाइल:- 09852534709
चाबस !
जवाब देंहटाएंवाह ... सब एक पर एक ... !!
जवाब देंहटाएंपंकज नवलश्रीक गजल पहिल बेर देखल ! गजल बिधा पर त गप कियो एक्सपर्टे करता ! बाकी पढय मे नीक लागल खास कय बाल गजल !
जवाब देंहटाएंNaval shri k rachna huma badd naval lagal aa mithila s durgun hatewak hinkar ikshha seho prabal lagal...
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