कथा
|| तानपूरा : अशोक ||
विनोद बाबू सरकारी लोक छथि। सरकारी अधिकारी। वित्त अंकेक्षक। काज मे काज रहनि सरकारी ऑफिस सभक ऑडिट केनाइ। खर्चा आ आमदनीक हिसाब-किताब देखनाइ। नियम-कानूनक आधार पर ओकर जाँच करब। एहि लेल कार्यक्रमक अनुसार विभिन्न सरकारी कार्यालय जाए पड़ैत छनि। बस-ट्रैन सँ यात्रा कर’ पड़ैत छनि। विभिन्न स्थान पर ठहर’ पड़ैत छनि। अकच्छ भ’ जाइ छथि। अकच्छ ओ अपन काजो सँ छथि। एक त' ई काज हुनका बोर टाइप केँ काज बुझाइ छनि। दोसर, एहि मे झँझटि सेहो लगै छनि। ऑडिट सँ ल’ क’ यात्रा धरि मे झँझटिए... ओ झँझटि सँ छीह कटैत रहै छथि। जेना अपन स्वभाव सँ लाचार भ’ गेल छथि ओ। मुदा झँझटि केँ एहि सँ की लेना-देना छै। ओहो अपन स्वभाव सँ लाचार अछि। ई झँझटि विनोद बाबू केँ कत्तहु, कोनो ठाम उपस्थित भ’ जाइत छनि। कोनो रूप मे उपस्थित भ’ जाइत छनि। अपन मुख्य कार्यालय मे जत’ ऑडिट करैत रहै छथि, ऑडिटक दरमियान जत’ ठहरल रहै छथि। बस मे, ट्रैन मे, टीशन पर, बस स्टैंड पर, सड़क पर आ घर मे त' सहजहिं। घरक झँझटि हुनका लेल जनमारा भ’ जाइत अछि। सभ ठाम सँ थाकि-हारि जखन घर अबैत छथि त' चाहैत छथि जे कने आराम हुअए। अबितहि पैंट-शर्ट खोलि लुंगी पहीरि पड़ि रहै छथि। डेरा पहुँचला पर जँ हुनका पैंट-शर्ट खोलैत देखब त’ हुनकर स्वभाव छने मे बुझि जाएब। पैंट-शर्टक बटन सभ ओहि काल मे हुनकर बड़का शत्रु भ’ जाइत अछि। तैं अक्सर अही काल मे हुनकर कपड़ाक बटन सभ टुटैत छनि। बटन सभ केँ धराशायी करबाक विजय-बोध मुदा बेसीकाल रहि नइं पबैए। पत्नीक तामस सदेह उपस्थित भ’ जाइत अछि आ एहि प्रकारेँ पुनः एक नव झँझटि बजरि जाइए।
-आहि रे बा, फेर आइ बटन तोड़ि देलिऐ?
-तोरबै नइं त’ की। अकच्छ केने रहै अछि। जल्दी खुजिते नइं रहैए।
-त’ एहि मे बटन के दोष छै?
-बटन के दोष छै नइं त’ की हमर दोष अछि? अहाँ त’ सदिखन हमरे दोष देब।
-अहाँक दोष नइं अछि त’ ककर दोष छै? एतेक खीचि-तोड़ि क’ कतहु बटन खोलल जाइ। सभटा तामस ओकरे पर झाड़ि दैत छिऐ।
-हमर तामस सँ अहाँ केँ की लेना-देना अछि?
-की लेना-देना अछि? बटन हमरे लगब’ पड़ै अछि ने। कहियो अपने लगबैत छी अहाँ? एक दिन लगा क’ देखियौ ने त’ बुझबै।
-की बुझबै? हमरा बुते लगौल नइं हैत की? हमरा अहाँ एतेक अपटु बुझैत छी?
-आब हम से कोना कहू? बटन लगाइयो लेब त’ सौंसे आँगुर सुइ भोंकि लेब।
-एहि मे अहाँकेँ की हैत? हमरे कष्ट हैत ने? हमर कष्ट त’ अहाँ केँ नीके लगैत अछि।
विनोद बाबू आ हुनक पत्नी मायाक एहि तरहक वार्तालाप घर मे बेसी काल सुनल जा सकैत अछि। एहन गप्प-सप्प होइते रहै अछि। एही क्रम मे मायाक मोन कहियो फाटि जाइत छनि त’ कहियो विनोद बाबूक दिमाग सुन्न भ’ जाइत छनि। दुनूक बीच मुहाँबज्जी बन्द भ’ जेबाक प्रबल सम्भावना सेहो उपस्थित होइत रहै छनि। बन्दी आ हड़तालक अवधि एक घंटा सँ ल’ क’ चारि दिन धरि एखन तक रहल अछि। कोनो ने कोनो प्रकारेँ फेर समझौता भइए जाइत अछि। आब ई समझौता जेना हुअए। जत्ते काल टिकए। एहि पूरा प्रकरण मे सभ सँ बेसी कठिन समय विनोद बाबूक लेल तखन होइत छनि, जखन माया कान’ लगैत छथिन। मायाक कननाइ हुनका सभ दिन बरदास्त सँ बाहर बुझाइत छनि। हुनका लाग’ लगैत छनि जेना बीच बाजार मे क्यो हुनकर इज्जति उतारि रहल होनि। ओ बेइज्जत भ’ रहल होथि। अपन इज्जत नुका क’ रखबाक चक्कर मे ओ बहुधा बेइज्जत होइत रहै छथि। हुनकर धर्मपत्नी माया, नोर चुबबैत रहै छथिन। मायाक नोर तेजाब सन हुनकर देह-मोन केँ गलबैत रहैए। तेहन स्थिति उत्पन्न नइं हुअ’ देबाक चक्कर मे सेहो ओ विखिन्न रहै छथि। तैं झँझटि केँ कतियबैत रहै छथि। टारैत रहै छथि। आर बेसी लाचार होइत रहै छथि।
आइ मुदा घर पहुँचला पर हुनकर मोन प्रसन्न रहनि। पुरैनियाँ सँ ऑडिट क’ कए घुरल रहथि। ट्रांसपोर्ट ऑफिसक ऑडिट रहै। बेस स्वागत-सत्कार भेल रहनि पाँच दिन धरि। भोजन-साजन। बर-विदाइ। डेरा धरि विभागीय गाड़ी सँ पहुँचा देने रहनि। आनन्द मे छलाह। कोनो पुरनका गीतक भास गुनगुनाइत घर मे प्रवेश केलनि त’ माया ड्राइंगरूम मे बैसल छलखिन। पति केँ देखि अकचकेली ओ। एहि दुआरे नइं जे अकस्मात् आबि गेल छलखिन। एहि दुआरे जे ओ गुनगुना रहल छलाह। ओ गुनगुना रहल छलाह ओहि गीतक भास, जे बियाहक बाद सभ सँ पहिने माया केँ सुनौने रहथिन। ‘बनके चकोरी गोरी झूम-झूम नाचो री।’ माया केँ धक्क सँ मोन पड़ि जाइत छनि। माया केँ मुसकुराइत तकैत छथि। मुदा माया पर एकर कोनो असरि नइं होइत छनि। हुनकर मोन केँ आइ दोसरे चिन्ता घेरने छनि। पन्द्रह वर्षक बेटाक चेहरा बेर-बेर मोन पड़ि अबैत छनि। तैं ओ गम्भीर बनल रहै छथि। मुदा विनोद बाबू त’ आइ मस्त छलाह।
-श्रीमती जी, अहाँ केँ मोन अछि, ओ जे हम पहिल बेर अहाँ केँ सुनौने रही? आह, की गीत छै? आ हे, ओ गीत जखन हम सुनबैत रही तखन जे अहाँ नीचाँ ताकि क’ हँसी, से जे सुन्दर लगैत छल।- विनोद बाबू आबेस सँ माया केँ देखि रहल छलाह। मुदा माया किछु नइं बजलीह। ओहिना गम्भीर भेल बैसल रहलीह। विनोद बाबू केँ कोनादन लगलनि। आइ ओ प्रसन्न छलाह। ई अवसर कहियो काल अबैत छलै, जखन ओ एतेक प्रसन्न होथि। अपन प्रसन्नता मे ओ पत्नीक सहभागिता चाहैत छलाह। मुदा जखन ओ सम्मिलित नइं भेलखिन, त’ हुनकर मोन लोहछि गेलनि।
-की बात छै? किऐ आइ घुघना लटकौने छी? कने हँसब-बाजब से नइं?
-हँसब-बाजब हमर करम मे रहए तखन ने। कखनो अहाँ हँसी छीनि लैत छी, कखनो बेटा छीनि लैत अछि। सेहो सभटा अहीं दुआरे।
-से की? हमरा दुआरे की? की कहै छल गौतम?-विनोद बाबू गम्भीर हुअ’ लागल छलाह।
-कहै छल जे पापा केँ पाँच मास सँ कहि रहल छिअनि जे हम संगीत सीख’ चाहै छी, मुदा ओ ध्याने नइं दै छथि। ताहि पर हम कहलियै जे पढ़ाइ-लिखाइ करबह से नइं। ई संगीत सिखबाक कोन धुनि सवार भ’ गेल छह? एहि बात पर तमसा क’ की-की ने कहलक। कहै छल जे पापा बेर-बेर ठकि दै छथि। हमरा बड़ क्रोध भेल। आइ, दू थापड़ मारबो केलियै अछि बहुत दिन पर।
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सांकेतिक छवि |
विनोद बाबू आब गम्भीर भ’ गेलाह। गौतमक संगीत सिखबाक जिद्द हुनका पसिन्न नइं छलनि। ओना ई फराक बात जे ओ अपनहु कहियो संगीत सिखबाक कोशिश केने छलाह। किछु दिन सिखनहुँ छलाह। मुदा अन्त मे छोड़ि देने रहथि। तहिया विनोद बाबूक पिता जूट मील मे काज करैत छलखिन। मीलेक एकटा क्वार्टर मे हुनकर डेरा रहनि। जूट मीलक ई नोकरी हुनका तीन-चारि टा काज-धन्धाक बाद भेटल छलनि। एकटा मारवाड़ी सेठक ओहि ठाम नोकरी केने रहथि। बच्चा सभ केँ पढ़ाबथि। एक दिन सेठानी बाजार सँ तरकारी आनि देबाक लेल कहलकनि त’ ट्यूशन छोड़ि देलनि। कोनो बाबू साहेबक ओहि ठाम सेहो खेती-बारीक व्यवस्था देखबाक लेल नियुक्त भेल छलाह, मुदा एक दिन बाबू साहेब कोनो बात पर बिगड़ि क’ पजेबाक एकटा खण्ड उठा क’ फेकलखिन, त’ नोकरी केँ लात मारि अएलाह। किछु दिन गाम पर खेती-बारी केलनि। संयुक्त परिवार रहनि। चारि भाइक भैयारी। खूब मेहनति करथि। मेहनतिक बल पर अन्न उपज’ लगलनि। एतेक धान हुअ’ लगलनि जे बखारी बान्ह’ पड़लनि। परिवारक स्थिति-पात नीक भेलनि। जाहि परिवार के बेसाह पर गुजर चलैत छलै, से भरि वर्ष अपन खेतक अन्न खा जीब’ लागल। मुदा ई स्थिति बेसी दिन नइं रहि सकलनि। भैयारी मे भिन्न-भिनाउज भ’ गेलनि। खेत जमीन बँटाएल त’ हुनकर मोन टूटि गेलनि। बँटाएल जमीन पर गुजरो सम्भव नइं छलनि। गाम छोड़ि पुनः शहर अएलाह। जूट मील मे नोकरी शुरू केलनि। मिडिल पास रहथि। अँग्रेजी आ हिसाबक नीक ज्ञान रहनि। मेहनतिक बल पर लेखा-शाखा मे किरानी भ’ गेल रहथि। बहुत खट’ पड़नि। मुदा लेखा पदाधिकारी केँ कहियो कोनो शिकाइतक मौका नइं देलखिन।
मील काॅलोनीक बगले मे राधाकृष्णक एकटा भव्य मन्दिर रहै। दरभंगा राजक रानी लक्ष्मीवती बनबौने रहथिन। ओहि मन्दिर पर झूलन मे खूब गीत-नाद होइ। राशि-राशि के गबैया सभ जुटए। राति भरि पकिया गाना सँ ल’ कए लोकगीत धरि श्रोताक मोन केँ झुमा दिअए। जूट मीलक कर्मचारी, मजदूर ओहि श्रोतामण्डली मे बेसी संख्या मे रहै छल। विनोद बाबू बारह-तेरह वर्षक रहथि। हुनका भेल रहनि जे गबैया बनितहुँ। पिता केँ कहलखिन- बाबूजी, हम गबैया बन’ चाहैत छी।-पिता कने काल चुप्प भ’ गेल छलखिन। ई हुनकर आदति छलनि। कोनो बात आ प्रस्ताव पर ओ तुरन्त सहमति-असहमति व्यक्त नइं करै छलाह। कने कालक बाद बजलाह- अहाँ केँ गीत गाब’ अबै अछि?
-हँ, सुना दी?-विनोद उत्फुल्ल भेल रहथि।
-सुनाउ।-पिता कहलखिन। विनोद एकटा गबैया द्वारा गाओल जे गीत हुनका मोन छलनि, सुनाब’ लगलाह-
गौरा तोर अँगना
बड़ अजगुत देखल तोर अँगना
गौरा तोर अँगना।
खेती ने पथारी शिव केँ गुजर कोना?
जगतक दानी थिका, तीन भुवना
गौरा तोर अँगना।।
पिता केँ गीत सुनि हँसी लगलनि। मुदा भेलनि, जे कण्ठ नीक छनि विनोदक। ओ कहलखिन जे-ठीक छै। व्यवस्था करैत छी।-विनोद प्रसन्न भ’ गेल छलाह। पिता अपन पत्नी सँ विचार केलनि। पत्नी कहलखिन जे-गबैया बनबाक मोन होइत छै त’ एहि मे की क्षति छै। हमर मामो त’ गबैया छथि।-पिता विचार केलनि जे गबैया नहियो बनत, तैयो संगीत त’ किछु सीखिए लेत। एहि मे कोन बेजाए छै? जीवन लेल संगीत त’ जरूरी छै। संगीत जीवन केँ उस्सठ नइं हुअ’ दैत छै। ओ विनोद केँ संगीत सिखेबाक लेल एकटा गुरुक खोज मे लागि गेलाह। लोक सभ सँ पुछलखिन। पता चललनि जे बंगाली टोला मे एकटा किओ घोष बाबू छथि। ओ बच्चा सभ केँ संगीत सिखबै छथिन। स्थानीय स्कूल मे संगीतक टीचर छथि। घोष बाबू सँ सम्पर्क केलनि। ओ बेस आदर सँ स्वागत केलखिन। कहलखिन जे हम साँझ मे दू घण्टा सिखबै छिऐ। मास मे बीस टाका फी बच्चा लै छिऐ। विनोदक पिता असमंजस मे पड़लाह। बीस टाका हुनका लेल छोट राशि नइं छलनि। काटि खोंटि कुल्लम एक सए सत्तरि टाका भेटै छलनि दरमाहा। ताहि मे पाँच व्यक्तिक परिवार। दू बेटा, एक बेटी। जेठका बेटा दसमा मे पढ़ै छलनि। ओहि सँ छोट विनोद सतमा मे, आ बेटी दूसरा मे। सभक खर्चा-बर्चाक अतिरिक्त गाम पर रहैत माइ केँ सेहो तीन मासक खर्चा दिअए पड़नि हुनका। चारू भैयारी मे तीन-तीन मासक पार रहनि। हुनका विनोद केँ संगीत सिखाएब कने कठिन बुझेलनि। ताहि पर सँ एखन हारमोनियमक व्यवस्था सेहो कर’ पड़तनि। मुदा मास मे बीस टाकाक अतिरिक्त व्यवस्था अथवा नियमित खर्चा मे कटौती त’ हुनका करहि पड़तनि। ओ ओभर-टाइम करबाक मादे सोचलनि। अपन पान खाएब बन्द करबाक मादे सोचलनि। सोचलिन जे तमाकू पर काज चला लेताह। आ ओ निश्चय क’ लेलनि। घोष बाबू केँ कहि देलखिन जे अगिला मास सँ विनोद संगीत सीखत अहाँ सँ। आब हारमोनियमक समस्या रहनि। घोष बाबूक ओहि ठाम सिखबाक लेल त’ हारमोनियम रहै। मुदा घरो पर रियाज आवश्यक छलै। तैं एकटा अपन हारमोनियम एकदम्मे जरूरी रहै। दिक्कत ई रहनि जे ओत’ हारमोनियम भेटै नइं छलै। लोक कहलकनि जे कलकत्ता अथवा पटना मे भेटत। दाम द’ पता लगौलनि त’ ज्ञात भेलनि जे नीक, डबल रीडक हारमोनियम डेढ़ सए सँ कम मे नइं भेटत। दू सए धरि लागि सकैए। आब ई दू सए कत’ सँ आबए? सम्भवे नइं छलनि। पता लगब’ लगलाह जे कतहु ककरो ल’ग मे कोनो पुरना हारमोनियम छै की नइं? पता लगलनि जे राजहाता मे मिसरजी ल’ग एकटा पुरना सिंगल रीड केँ हारमोनियम छनि। हुनका सँ सम्पर्क केलनि। ओ सहर्ष देबाक लेल तैयार भ’ गेलखिन। किऐ त’ हुनका आब एकर कोनो काज नइं रहि गेल छलनि। विनोदक पिता हारमोनियम बजा क’ देखलखिन। आवाज ठीक नइं रहै। घून कैक ठाम भूर क’ देने रहै। मिसरजी कहलखिन जे एकर मरम्मति भ’ सकैत अछि। एहि छेद सभ केँ मोम सँ भरि देल जाइ त’ काज चलि जाएत। विनोदक पिता हारमोनियम डेरा पर अनलनि। भूर सभ केँ मोम सँ भरलनि। हारमोनियम बाज’ लागल। विनोद संगीत सीख’ लगलाह। डेरा पर हारमोनियम बजा क’ रियाज करथि त’ सभ केँ कौतूहल होइ। नीक लागै। एवम प्रकारेँ विनोद हारमोनियमक पटरी पर हाथ बैसब’ लगलाह। सरगम सीख’ लगलाह।
सम्पूर्ण परिवार केँ नीक लागि रहल छलै। ई क्रम दू-तीन मास धरि चलैत रहल। मुदा अकस्मात् एक दिन विनोद मुँह लटकौने आपस भेलाह। कहलखिन-गुरुजी कहैत छथि जे हम संगीत नइं सीखि सकैत छी। गायक नइं भ’ सकैत छी। हमर आवाज हारमोनियमक सुर सँ मेल नइं खाइत अछि। गुरुजीक कहब छनि जे हम गबैया नइं, हारमोनियम मास्टर भ’ सकै छी। खाली हारमोनियम बजा सकैत छी।-पता लगौला पर विनोदक पिता केँ ज्ञात भेलनि जे विनोद मे लगन के अभाव छनि। मेहनति नइं क’ पाबि रहल छथि। आगू नइं बढ़ि रहलाहे। पिता कहबो केलखिन। लगन सँ मेहनति कर’। मुदा विनोदक हृदय टूटि गेल रहनि। आब मोन नइं लगैत छलनि। क्रमशः संगीत सीखब छोड़ि देलनि। तहिया जे छुटलनि से छुटले रहि गेलनि।
मुदा छुटलाहा ओएह संगीत फेर सँ आइ सोझाँ ठाढ़ छलनि। जाहि संगीत सँ हुनकर आकर्षण-विकर्षणक सम्बन्ध छलनि से पुनः समस्या उत्पन्न क’ देने रहए। एहि बेर अपना सिखबाक नइं छलनि। बेटा केँ सिखबाक व्यवस्था करबाक छलनि। मुदा ओ पिता सन नइं छलाह। विनोद बाबू केँ पिता जकाँ पाइ कौड़ीक अभाव नइं छलनि। तैयो गौतमक संगीत सिखबाक विचार हुनका मे तनाव उत्पन्न क’ देने छल। ओ बेटा सँ आशा लगा नेने रहथि। पढ़ि-लीखि क’ बड़का हाकिम बनत। खूब पाइ कमाओत। पाइ हुनका बेसी जरूरी बुझाइत छलनि। पाइक अभाव मे ओ सेहन्ताक काज सभ नइं क’ सकल छलाह। बहुत रास सुख-सुविधाक वस्तु नइं जुटा सकल छलाह। एकटा नीक मकान। एकटा नीक रंगीन टी. वी. आ वी. सी. पी. लेबाक सेहन्ता बहुत दिन सँ दबा क’ रखने रहथि। अपन मकान मे एकटा शीशावला वार्डरोब बनब’ चाहैत छलाह, जाहि मे राशि-राशिके अँग्रेजी-फ्रेंच शराब सभ सजा क’ राख’ चाहैत रहथि। अपन मोन माफिक दोस-महिम संग कहियो काल बैसि क’ पीब’ चाहैत छलाह। उत्तेजक फिल्म देखबाक इच्छा अक्सर जोर मारैत रहनि। अँग्रेजी सिनेमा सभक चर्चा सुनथि। उमिरक एहि ढलान पर अँग्रेजी सिनेमा हुनका मे गुदगुदी उत्पन्न कर’ लागल छल। कहियो काल सिनेमा हाल मे जा क’ भिनसुरका सिनेमा देखि आबथि। मुदा पत्नी संग देखबाक जे सुख छै से सुख उठेबाक हिम्मति नइं होइन। माया केँ ल’ क’ सिनेमा हाॅल मे नइं जा पाबथि। एक बेर मोन जोर केलकनि त’ माया लग प्रस्तावो रखलनि-सुनै छी?
-की?
-उमा मे ‘कोल्ड स्वीट’ लागल छै। भिनसर मे दस बजे सँ होइत छै। चलू ने एक दिन देखि आबी।
-धौर, ई अंग्रेजी-तंग्रेजी सिनेमा हमरा नइं नीक लगैत अछि। ई की फूरि गेल अए अहाँ केँ?
-अरे, अहाँ सभ दिन एहिना रहि जाएब। अँग्रेजी सिनेमाक सीन सब, आह, की सुन्दर होइत छै? देखबै तखन ने!
-नइं, नइं, हमरा बुते नइं हैत। खलनायक देख’ गेल रही त’ लोक सभ कोना आँखि फाड़ि क’ देखै छल।
विनोद बाबू केँ हँसी लागि गेल छलनि। माया दिस ककरो तकैत देखि हुनको क्रोध होइत छलनि। तैं वी. सी. पी. कीन’ चाहैत छलाह। घर मे देखबाक सुविधा भ’ जेतनि। मुदा तकर जोगार नइं भ’ रहल छलनि। राँची दिस पोस्टिंग भ’ जेतनि त’ सम्भव भ’ सकैत छलनि। मुदा राँची पोस्टिंग लै लए जे खर्चा छलै से जुटिए नइं पबै छलनि।
तैयो एहि सँ देखबा-सुनबाक लालसा कम नइं भ’ रहल छलनि। आर बढ़िए रहल छलनि। एहि लालसा-लोभ मे विनोद बाबू धीरे-धीरे परेसान रह’ लागल छलाह। कोनो काज मे मोन नइं लगैत छलनि। काज नइं करबाक कतेक रास बहाना आब ओ ताक’ लागल रहथि। एहि लेल कतेको बात ओ गढ़ि नेने रहथि।
-आब काजक वातावरण नइं रहि गेल छै।
-काज केला सँ की हेतै? कोनो इनाम छै काजक?
-कतेक लोक त’ बिना कोनो काजक दरमाहा उठबै अछि। के पुछैत छै?
-एहि राज मे काज क’ क’ की हेतै? कोनो इज्जति छै?
-परिश्रम सँ ऑडिटे क’ कए की होइत छै? क्यो घूरि क’ ऑडिट नोटो पढ़ैत अछि?
-ककरो पर कोनो एक्शन थोड़े होइत छै? अनेरे देखार होउ।
-अरे, अहिना चलैत छै दुनिया। हमरा कएला सँ किछु हेतै थोड़े?-लोक केँ कहबाक लेल आ अपना केँ बुझेबाक लेल हुनका लग मे बहुत रास बात छलनि। मुदा आब ओ थाकि रहल छलाह। सभ बात मे झंझटि बुझाइत छलनि। ओ निचेन सँ रह’ चाहै छलाह। चैन तकैत रहै छलाह। बाहर जाथि त’ घर दिस भागथि। घर आबथि त’ बिछान पर पड़ि रहथि। बिछान गर’ लागनि त’ गप्प लड़बै लेल कोनो दोस महिमक ओहि ठाम पड़ाथि। कतहु चैन नइं भेटनि।
एहि मे गौतमक संगीत सिखबाक लगन हुनका एकदम्मे उत्तेजित क’ देने रहनि। संगीत सिखबाक इच्छा हुनका निरर्थक आ लक्ष्यहीन जीवन जीबाक लौल बुझा रहल छलनि। बालहठ सन लागि रहल छलनि। जेकरा कहुना, कोनो प्रकारेँ टारि देबा पर ओ तुलल रहथि।
-बड़ जिद्दी भ’ गेल अछि गौतम। पढ़ाइ-लिखाइ मे ओकरा मोन नइं लगैत छै। संगीत सीख क’ की हेतै? गबैया बनत! इस्स, ई कीड़ा कोना ओकर माथ मे आबि गेलै?-विनोद बाबू तमतमा गेल छलाह। माया हुनका बुझेबाक चेष्टा केलनि।
-मुदा आब ओकरा ठकल नइं जा सकैए। बहुत दिन अहाँ अनठौलिऐ।
-अरे, हमरा होइत छल जे कनिएँ दिन मे बात बिसरि जाएत। एहिना मोन मे ई सभ उजाहि अबैत रहै छै। एखन बुद्धिए की भेलै अछि?-ओ किचकिचा रहल छलाह।
-ओ नइं मानत। सीखबे करत। कहैत छल जे मल्लिकजी आश्वासन देने छथिन। पाँच मास सँ लगातार हुनका ओहि ठाम जा रहल अछि। आइ सभटा कहैत छल। तानपूरा कीनबाक छै ओकरा। तकरे जोगार मे लागल अछि।
-गदहा अछि ओ। ई मल्लिकजी ओकरा दूरि क’ रहल छथिन। हमरा बिना पुछने किऐ ओ मल्लिकजीक ओहि ठाम जाए लागल। आब’ दियौ, बिगड़ैत छिऐ।-विनोद बाबू खिसिया रहल छलाह। बड़बड़ा रहल छलाह...
-आब ट्यूशन फीस दिअ’ पड़त। हारमोनियम कीन’ पड़त। तानपूरा कीन’ पड़त।
-से त’ कीनहि पड़त। कते दिन ठकबै ओकरा। तीन-चारि मास सँ कहि रहल अछि जे एकटा तानपूरा कीनि दिअ’। मुदा अहाँ ध्याने नइं दैत छिऐ। कतेक बेर कहबै जे अगिला मास पाइ भेटला पर कीनि देब। टी. ए. भेटत त’ कीनि देब। एखन ऑफिस मे बड़ काज अछि। आन-आन खर्चा सभ अछि। लगैए आब ओ बूझ’ लागल अछि जे अहाँ ओकरा संगीत नइं सीख’ देबै।-माया कने रोष मे आबि गेल छलीह।
विनोद बाबू आब कने मोलायम भेलाह। माया केँ बुझबैत कहलखिन-अहाँ बात बुझबाक कोशिश करियौ। हम कोनो ओकर दुश्मन छिऐ? बापे छिऐ की ने? अपन बेटा केँ दूरि होइत हम कोना देखि सकैत छी। संगीत सीखला सँ की होइ बला छै? बड़का ओस्ताद बनत। मुदा आइ. ए. एस. तँ नइं होएत, पैघ लोक त’ नइं होएत। हाकिम नइं कहाओत। अहाँ केँ नीक लागत की? आब विनोद बाबू मायाक मर्मस्थल केँ छूबि लेबाक चेष्टा क’ रहल छलाह।
-से हमरा किऐ नीक लागत? हमहूँ त’ ओकर माइ छिऐ। ओकर नीक चाहबे करबै-माया बजलीह।
-सएह त’ हमहू कहैत छी। आर किछु दिन धरि जँ हम सभ अनठा देबै त’ ओ क्रमशः जिद्द बिसरि जायत। फेर पढ़बा-लिखबा मे मोन लगाओत। एहि लेल जँ कने हम अहाँ ठकिए देबै त’ की भ’ जेतै।- कने विचारैत सन विनोद बाबू बजलाह।
डेरा प्रवेश कालक मानसिकता क्रमशः हुनका घेरि रहल छल। अप्रत्याशित रूपें माया आइ एहि मामिला मे पतिक संग एकमत भ’ रहल छलीह। विनोद बाबू आब मायाक लग सहटि आएल छलाह। अन्ततः दुनू बेकती केँ स्वर साधबाक लेल कोनो तानपूराक प्रयोजन जेना एकदम्मे नइं रहि गेल छलनि।
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अशोक मैथिलीक सुप्रतिष्ठित कथाकार-आलोचक छथि। त्रिकोण, ओहि रातिक भोर, मातबर आदि शीर्षकक कथा-सँग्रह दृश्य मे छनि। एकर अतिरिक्त कविता संग्रह, यात्रा-संस्मरण, आलोचना-सँग्रह आदि सेहो प्रकाशित। सन्धान, घर-बाहर आदि पत्र-पत्रिकाक सम्पादन। बाकी अपन कथाकर्म सँ एतेक चर्चित जे लोक हिनक नाम धरि मे कथाकार लगा देने छनि- 'कथाकार अशोक'।
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