मिथिला-मैथिलीकेँ बंद पौतीसँ बहार करबाक प्रयोजन

विभूति आंनद | क्लिक : अविनाश श्रोतिय
सीता जगज्जननी छथि. सीता शक्ति छथि. माता छथि सीता. जगन्माता छथि. ई एक आध्यात्मिक मान्यता थिक. मुदा लोक-मान्यताक अनुसार सीता जनकक बेटी छथि. जनक मिथिलाक राजा रहथि. तेँ सीता केँ मिथिलाक बेटी कहल जाइत अछि.

सीतेक नाम जानकी अछि. मैथिली अछि. मिथिला मे प्रचलित जे भाषा अछि तकरा तेँ मैथिली कहल जाइत अछि. कहल जाइत अछि जे वर्तमानक जे मिथिला क्षेत्र अछि तकर संख्या लगभग 4.5 करोड़ अछि. सभक भाषा मैथिली छैक. एतऽ सभ धर्मक लोक बसैत अछि. सभक अपन धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यता कराक-फराक छै.

एहना स्थिति मे सीता केँ भगवती रूप मे मिथिला क्षेत्र मे परसब, हमरा जनैत, भाषा बजनिहारक हित मे नहि अछि. किएक तँ एहि क्षेत्र मे सभ धर्मक लोक बसैत छथि आ सभ मैथिली भाषी छथि. जखन सीता केँ अर्थात मैथिली केँ हम एक खास धर्मावलम्बीक देवता घोषित करैत छी, तँ शेष धर्मक लोक प्रश्न कऽ सकैछ जे जखन सीता भगवती छथि, तखन हमर देवता तँ नहि भेलीह. हमर देवता तँ अंग्रेजी अथवा अरबी-फारसी-उर्दू अथवा गुरूमुखी बजैत छथि - एहन मान्यता अछि. एहन तर्क कयनिहार लोक भेटैत रहैत छथि, टोकैत रहैत छथि. हम चुप रहि जाइत छी.

एक स्थिति आर अबैत अछि, जखन हमर बकार बन्द भऽ जाइत अछि. एम्हर दरभंगा-मधुबनी क्षेत्र मे जे मैथिली सँ संबंधित कोनो कार्यक्रम होइत अछि, तँ ओकर आरंभ 'जय जय भैरवि' भगवती गीत सँ होइत अछि. एतबे नहि, हद तँ तखन होइत अछि, जखन गीत आरंभ होइते उपस्थित समस्त लोक उठि कऽ ठाढ़ भऽ जाइत छथि. हुनक मुखमंडल आध्यात्मिक भाव बोध सँ दीपित होइत रहैत छनि.

हम जहिया दरभंगा रहबा लेल अयलहुँ तँ हमरा ई व्यवस्था बड़ अधलाह लागल. हम ठाढ़ नहि भऽ विद्यापति गीतक आनंद लैत रहलहुँ. हम ओतऽ एसगर ओहन व्यक्ति रही जे बैसल रही. स्वाभाविक रहै, जे सभक नजरि, जे देखि सकैत छलाह, हमरा पर पड़लनि. हम अपन प्रति सभक नजरि मे घृणा भाव देखलियनि.
बाद मे, एकाध जे हमर पूर्व परिचित रहथि, हमरा पूछि देलनि. हमहूँ प्रतिप्रश्न कयलियनि -'किए ? '
-एहि लेल जे हम सब एकरा मिथिलाक राष्ट्रीय गीत मानै छी ! ओ कहलनि.
-मुदा ई तँ भगवती गीत छै !एक खास विचारक गीत ! ' हम फेर अपन बात कहलियनि.
-'से की ?' ओ हमर बात केँ नहि बुझैत प्राय: , फेर पूछलनि.
एहि पर हम हुनका वैह तर्क कहलियनि जे पूर्व मे कहि चुकल छी.
ओ हमरा कोनो स्पष्ट उत्तर नहि दऽ 'कम्यूनिस्ट' घोषित कऽ देलनि.

एक दशक पूर्व भेल ई विवाद एखनो चलिए रहल अछि. हम अपन तर्क पर कायम, ओहो अपन अंध आस्था पर अडिग. वर्तमान स्थिति अछि जे मैथिली समटल जा रहली अछि. सभा सोसाइटी मे भक्तगण ठाढ़ होइते छथि. हमहूँ अपन मान्यता पर स्थिर रहितो , कुमोने ठाढ़ होएबा लेल विवश होइते रहै छी. एकरो एक कारण अछि. एक बेर लहेरियासरायक नागेन्द्र झा महिला काँलेज मे साहित्य अकादमीक एक कार्यक्रम मे 'जय जय भैरवी' मे ठाढ़ होएबाक विरोध करबा पर पटना विश्वविद्यालयक एक वरीय प्रोफेसर केँ दरभंगाक एक सम्मानित व्यक्ति काॅलर पकड़ि अग्रेतर व्यवहार करबा पर उतरि गेल रहथिन. अस्तु.

दोसर चिंता आर, जे हमरा लगैत अछि जे जानकी नवमीक अवसर पर 'जन्मोत्सव' मनयबाक प्रचलन आरंभ अछि, संभवतः ओहि मानसिकता सँ चालित अछि. एहि जन्मोत्सव मे सीता, भगवती रूप मे पूजित होइत छथि. एम्हर दू-एक साल सँ एहि भावना केॅ आर पुष्ट करबाक अभियान चलल अछि. पछिला एकाध साल सँ सीता केॅ एकटा कल्पित चित्र बजार मे आयल अछि. ओ चित्र देखिते हमर मोन एकाएक चिहुँकि उठल. मोन पड़ल राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ द्वारा स्थायी रूपेॅ प्रचारित भारत माताक चित्र ! हुनकर हाथ मे एकटा लाठी छनि आ ओहि मे तिरंगा झंडा फहराइत देखाइत छैक. हम मनहि मन हुनकर हाथ सँ तिरंगा-लाठी हटा, धनुष थम्हा देलियनि आ तखन सीताक प्रचलित चित्र सॅ मिलान कयलहुॅ तँँ फेर चिहुॅकि उठलहुॅ. एनमेन ओकरे प्रतिरूप. बाद मे पता लागल जे एहि तरहक चित्रक परिकल्पक, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघक समर्पित कार्यकर्ता आ मैथिलीक अंध-समर्थक छथि. हम माथ पकडि बैस गेेेेेलहुँ. एखनो बैसल छी.

आइ जानकी महोत्सव मनाओल जा रहल अछि. हमर गाम शिवनगर(मधुबनी) मे सेहो ई पछिला 22 मइ 1983 इसबी सॅ अनवरत रूपेॅ आयोजित भऽ रहल अछि. हमरा स्मरण होइत अछि, ओहि समय मे भारतीय जनता पार्टी सम्पूर्ण उत्तर बिहार मे जानकी नवमी मनयबाक अभियान चलौने छल. बहुत ताम-झाम सँ, बहुतो ठाम एकर आयोजन भेल. हमरो गाम मे मूर्ती पूजा भेल. एखनो होइत अछि. एकर अगुआ एही मानसिकताक लोक रहथि. हम सेहो ओहि मे सम्मिलित होइत छी. ई आयोजन दुदिना होइत अछि. ओतऽ आब एक मंदिर बनि गेल अछि जकरा माधव मण्डप नाम देल गेल छथि. एकर उदघाटन पहिल बेर तात्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद कयने रहथि. हुनक मुख्यमंत्री बनलाक बाद पहिल सार्वजनिक सभा छलनि. भाजपा नेता आ हमर ग्रामीण आब स्वर्गीय पं ताराकांत झा , जे तहिया अपन दलक उपाध्यक्ष रहथि आ उत्तर बिहारक प्रभारी सेहो, हुनका आमंत्रित कऽ अनने रहथि. पहिल संयोजक हुनक अनुज श्री अयोध्या नाथ झा समाज सेवाक व्रत लऽ कऽ गाम मे रहि रहल रहथि. दुदिना समारोह मे दिन मे पूजा आ राति भरि चलै गीत संगीतक रसधार. एखनो चलैत अछि सेहो विशुद्ध मैथिली मे.

ओहि सँ जुडैत एक टटका धटना मोन पड़ि गेल अछि. तत्कालीन एनडीए सरकार जानकी नवमीक अवसर पर अवकाश धोषित कयलक. तहिया,  जहिया लालू जी पहिल बेर मुख्यमंत्री भेल रहथि, तहियो हुनका संग भाजपा छल.

एहना स्थिति मे हमर चिंता आर बलबती भऽ उठैत अछि. हम सोचैत रहैत छी जे एहि सँ मिथिला-मैथिलीक हित-चिंता कयल जाइत अछि, आ कि सूप महक भाॅटा बना गुड़काओल जा रहल अछि ?

स्थिति बहुत नीक नै अछि .युवा मानसिकता भाषा मोह सँ बहुत दूर भऽ गेल अछि. तथापि हम सभ आशावादी लोक , आशा करैत छी जे एखनो समय अछि, जे मिथिला-मैथिली केॅ बन्द पौती सँ बाहर  करू आ ओकरा नव हवा पानि सँ सरोकार बनाबऽ दिऐ.


(प्रथमतः पूर्वोत्तर मैथिल, सम्पादक - शरदिंदु चौधरी; मे प्रकाशित)
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विभूति आनंद मैथिलीक प्रख्यात कवि-कथाकार छथि।  कथासंग्रह 'काठ' लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त।   छात्र जीवनमे आंदोलन। कतिपय  पत्र-पत्रिकाक संपादन।  अभिनय। कथा , कविता , नाटक , उपन्यास , आलोचना , बाल कविता , लप्रेक, चरिपतिया आ अन्य-अन्य विधा मे लेखन।  दर्जनो भरि सँ बेसी पुस्तकक प्रकाशन आ लम- सम ततबे अप्रकाशित सेहो। 7903228695 पर सम्पर्कक सम्भावना।  



मिथिला-मैथिलीकेँ बंद पौतीसँ बहार करबाक प्रयोजन मिथिला-मैथिलीकेँ बंद पौतीसँ बहार करबाक प्रयोजन Reviewed by बालमुकुन्द on अप्रैल 22, 2015 Rating: 5

4 टिप्‍पणियां:

  1. भाषा केँ संस्कृति सँ फराक नहि कएल जा सकैत अछि। जानकी हिंदू नहि जनकपुत्री छलीह, जय-जय भैरवि 'सहज सुमति' देबाक लेल बंदना अछि, धर्मयुद्धक घोषणा नहि। उनटा चिंतन मौलिकता नहि भ' सकैत अछि।

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