करमी झील


कथा ::

|| करमी झील : जीवकान्त ||


राति मे पानि पड़ए लगलै। बड़का-बड़का बुन्न। चारू कात झील मे पानिक बुन्न शब्द करए लगलै, जेना हजार टा बजनियाँ अपन-अपन मिरदंग ल’ क’ एक सम बन्हने होइ।
बीकोक आँखि मे निन्न कहाँ? ओकरा बरखाक डर होइत छलै। बरखा जोर करतै तँ ओकर छहर टूटि जेतै, ओकर दरबज्जा आ बाड़ीक माटि खँघरि जेतै। ओकर पूँजी भासि जेतै। परुकाँ बीच साओन मे कदाचित् एहने बरखा मे ओकर छहर टूटि गेल रहै। पचीसो गाड़ी माटि ल’ क’ पानि भागि गेल रहै।
गोहालीक मचान सँ ओ उठल। मचानक खुट्टा मे लटकाओल रहै ओकर चारि बैटरी बला टाॅर्च। तकरा कात मे रहै ओकर फरसा। बरसाती रहै, से माथ पर लेलक आ दरबज्जा पर आबि एक बेर ओ छहर पर इजोत देलक। पानि पड़ैत रहै। छहर जेना सीझल जाइत रहै। छहरक उत्तर मे जोड़ल पजेबाक देबाल पर बुन्न खसै, तँ सहस्सर टुकड़ी मे टूटि छोटका बुन्न भ’ ऊपर मुँहें उड़ि जाइ...।
बीको केँ सन्तोख भेलै। कोनो आदमी नहि, कोनो मूस-तूस नहि। छहर सुरक्षित। ओकर माटि सुरक्षित।
एक बेर ओ झीलक पानि पर टाॅर्चक इजोत देलक। बुन्न सँ पानि पर छिटका छुटै। हलुआइ जेना बुनियाँ छनैत होइ, आ कड़ाहीक तेल जेना छन-मन करैत होइ।
आ, जेना एक सए मिरदंग ल’ बजनियाँ सभ सम बन्हने होइ।
किसनीगंज सँ देवघारा गाम होइत रमपुरा धरि झील बनि जाइत छै, तीन मास, चारि मास। छहर नहि टुटलै, तँ एहि बेर छओ मास झील मे पानि नहि सुखएतै। कतहु-कतहु करमीक लत्ती चतरि जाइत छै। जाड़ मे बेसी ठाम सेमार ध’ लैत छै। ओ एहि झील केँ देखि मुग्ध होइत अछि। ओकर नाम ओ देने छै-करमी झील। तीन गामक एहि बाध मे धान नहि होयतै, करमी होयतै। लोक कहैत छै बीको पानि बन्हने छै। पानि ओ ठीके बन्हने छै। मुदा, ओ की करतै? धान नहि होयतै, तँ ओ की करतै?
बुन्न किछु कालक बाद बन्न भेलै। ओ अपना मचान धरि आएल। घोघी उतारि क’ मचानक एक खुट्टा पर ध’ देलक। टाॅर्च एक कात मे रखलक। ओ करओट देलक।
आँखि मुना जाइ आ ओ आँखि भक द’ ताकि दिअए। ओकरा होइत छै जे चोर लागल छै, बान्ह काटि देतै। बान्हल पानि हहुआ क’ बह’ लगतै। ओकर दरबज्जा आ बाड़ीक माटि पानि संगें बहि जेतै।
ओकरा मोन पड़ैत छै। नेना रहए, तँ एहि ठाम द’ तीन मास पानि बहैत रहै। पानि हेलि कए लोक अद्भुतनाथ महादेवक मन्दिर जाए, गामक पछबरिया बाध जाए। से आब लोक सुखले जाइत अछि।
पश्चिम मे छै महादेवक मन्दिर। अद्भुतनाथ महादेव। चकरडीहा बजारक सेठ ओहि ठाम गौरी मन्दिर बना देलकै अछि। एक टा धर्मशाला से जोड़बा देलकै अछि। दू-तीन गामक भगत एहि ठाम अबैत छै। पूजा-पाठ करैत छै। साल मे तीन बेर अष्टयाम आ नवाह कीर्तन होइत छै।
मन्दिर छै ऊँचका टिहुली पर। त’र मे पुरना छोटका ईंटा भेटैत छै। कहैत छै कोनो राजाक गढ़ छलै।
मन्दिर सँ नीचाँ कोनो धार छलै। तकर नासी तीन साल पहिने धरि बहैत रहै। नासी पर पुल नहि रहै। भदवारि मे नासी मे पानि बहैक। बाट पर झबका भ’ जाइक।
नासीक बाद रहै टोल। ओकर टोल किसनीगंज। टोलक बाद पूबमे रहै कोसीक बान्ह। बान्हक पूब भुतही बलानक एकटा नासी बहैत रहै। बान्ह मे फाटक रहै, सुलूस गेट। किछुए दिन मे भुतही बान्हक भीतर भरि क’ बाध केँ ततेक ऊँच क’ देलकै जे सुलूस गेट बन्न। सभ दिन लेल जाम।
टोलक बीच देने रेलबी सड़क। दरभंगा सँ रेलगाड़ी अबैक आ निरमली जाइक।
तीन गामक पानि एहि नासी दने बहैक। देवघाराक पानि, फेर रमपुराक पानि, ओहि सँ पहिने बेलहीक पानि। लोक कहैत छै बेलही मे आर तीन गामक पानि एकट्ठा होइ, आ किसनीगंजक एहि नासीक बाटें रेलबी खत्ता मे खसि पड़ै। रेलबी खत्ता देने ओ देवघारा गामक पश्चिम पी. डब्लू. डी.क सड़कक पुल मे खसैत छलै आ आगाँ ओ रेलबी पुल तर दने भगैत छलै। तकरा आगाँ ओ गहुमा नासीक पानि मे मिलि जाइत छलै। ई सभटा आगाँ जा क’ कमला बलान मे खसैत छलै।
एहि साल ई पानि बन्न छै।
किसनीगंजक बाध, देवघाराक एकटा बड़का बाध पानि मे डूबल छै।
बीको करौट फेरि लेलक।
तीन साल मे एहि बाध मे बहुत परिवर्तन भ’ गेल छै। चालीस बर्ख पहिने कोसी बान्ह बन्हने रहै। एहि बाधक पानि बहबा लेल कोसीक इंजीनियर सभ एकटा फाटक देने छलै, सुलूस फाटक। बान्हक भीतर बहैत रहै भुतही बलान। से ओकरा जाम क’ देलकै। एहि कात छोटकी नासी सँ पानि बहैत छलै। तकरा ओ बन्न कएलक अछि। जे छल बाधक सोंसा, से बन्न भ’ गेलै। एहि तीन साल मे जनमलैक अछि एकटा झील। करमी झील।
बीकोक टोलक लोक महीस पोसैत अछि। खेतीक बाद महीस रहै छै आ पाड़ाक पैकारी रहै छै। ओ समर्थ भेल, तँ पाड़ा ल’ क’ आसाम गेल। पाड़ा कीन’ लागल आ बेच’ लागल। बहुत कारबार पसरि गेलै।
फेर देखलक आसाम मे तंग कर’ लगलै। पाइ छीन’ लगलै। लोक केँ बन्हकी बना लै। आसाम मे कमाइ बेस रहै। मुदा, क्यो देखनिहार नहि। ओ आसाम छोड़ि देलक।
गाम मे जमीन लेलक। गाम मे देखनिहार छै। सोचलक गरीबो रहत, तँ आब गाम मे रहत।
फेर ओकर ध्यान गेलै एहि नासी पर। एहि टोलक लोक केँ पानि हेलि क’ मन्दिरक पच्छिम बला गाछी आ परती दिस आब’ पड़ैक।
नासी बला जमीन भरि साल खसल रहै। कोनो साल किछु भ’ जाइत रहै, सएह बहुत। परते रहै, से कहब ठीक हेतै।
ओ खोज कएलक तँ ओ पाँच कट्ठा नासी रहै देवघारा गामक माल बाबूक। ओहि गाम मे माल बाबूक बहुत जमीन रहै। सभ बाध मे जमीन रहै। एहने दोग-दाग मे, खसल-पड़ल, परती-पराँट जमीन बेसी रहै। एहेन जमीन किनबा काल सस्त मे भ’ जाइत छै। ओ लेबाक बात कएलक। ओ जमीन ओकरा भ’ गेलै। ओकरा आश्चर्य भेलै जे जमीन ओकरा पैरि लागि गेलै।
सत्ते, ओहि जमीनक लेबाल नहि रहै। ने तँ बस्तीक कात मे, बाटक कात मे, ई जमीन ओकरा नहि होइतै।
माल बाबू मरि गेल रहै। ओकर ओलादि सभ जमीन बेचि देलकै। पैसा ल’ लेलकै। जमीन रजिस्ट्री क’ देलकै।
फेर ओ साले-साल ओकरा भरओलक। दू साल पहिने ओ ओहि ठाम गोहाल ल’ अनलक। सतरह हाथक घर छै। पाड़ा कीनि क’ अनैत अछि। रखैत अछि, फेर बेच दैत अछि। आब अपने सिंहेश्वर थान मेला धरि जाइत अछि। आसाम नहि जाइत अछि।
ओकरा आँखिक आगाँ सभटा बात घुमैत छै। नासीक पानि। डुबलहा रस्ता। आसामक जंगल आ पहाड़। रजिस्ट्री आफिस। एहि जमीनक माटि भराइ। पछिला साल छहरक टूटब। माटिक भासब।
फेर रेलगाड़ीक इंजिन पुक्की देलकै। भदबारी मे रेलक आवाज बढ़ि जाइत छै। आश्चर्य छै, गाड़ी कोना चलैत छै। पानि लागल छै दुबगली। कतोक बेर लाइन टुटि जाइत छै। गाड़ी बन्न भ’ जाइत छै।
तीन बजे भोरुका पसिन्जर गाड़ी थिकै ई। आब जाग भ’ जएतैक। उबेर... चरवाह महीस केँ पस्सर चराबए बहार करतैक। जाग भेल छै।
भोरुकबा उगल छै। आब के चोर अओतैक? के बान्ह कटतैक?
बीकोक आँखि लागि गेलै। भोरुका हवा ओकरा ठोकि-ठाकि क’ सुता देलकै।

पछिला साल एक्के बरखा मे बाध डूबि गेलै। झलक’ लगलै बाध। कोसी बान्हक पच्छिम रेलबी लाइन सँ किसनीगंज, देवघारा आ रमपुराक बाध धरि चानी पीटि देलकै।
ओकर भरलहा माटि पर पानि चढ़ल नहि रहै, मुदा लगै जेना आब चढ़लै, तब चढ़लै। भरलाहा माटिक उत्तर मे पजेबाक देबाल जोड़ा देने रहै, आ ओ चैन सँ देखैत रहए।
ओकर पित्ती बीदो काका आबि क’ कहने रहै-बिकरम्मा, ई पानि बड़ कड़गर छौ, अदौ सँ ई पानि एही बाटें बहैत छै। ई पानि मानतै? ई पानि नहि मानतै।
ओ कहने रहै-पानियोक बान्ह-छेक होइत छै बीदो काका।
बीदो कहने रहै-पानि बन्न भ’ जेतै। एतेक टा बाध खसल रहि जेतै। हजारो आदमीक मुँह मे जाबी लागि जेतै।
बीको जवाब नहि देने रहै। ओ माटि केँ सरिअबैत रहए, जे भरलहा बाड़ी पर पानि नहि चढ़ै।
एक राति साँझ सँ भोर धरि मेघ झहरैत रहलै। ओहो बुझैत रहए, जे दसोटा जन रखने पानि केँ बान्हल नहि जा सकैत छलै। पछबारी कात सँ पानि चढ़ब शुरू भेलै। ओ उठि-उठि क’ देखैत रहल। पानि अपन बाट बना लेलक। पानि बह’ लागल रहै। फेर पानि वेग ध’ लेलकै।
एक बेर आवाज भेलै। उठि क’ ओ देखलक पजेबाक देबाल कटि क’ खसल रहै।
भोर मे उठि क’ देखने रहए, पानि बहैत रहै, ओकरा संग माटि खँघरैत रहै। बहुत रास पजेबा पानि संग घिचा गेल रहै। लगै जेना पजेबा केँ जन लगा क’ छिटबा देने होइ।
बाट ओ जे बना देने रहै, से टुटि गेल रहै। फेर अद्भुतनाथ महादेवक मन्दिर धरि जेबाक बाट मे पानि रहै, झबका रहै।
ओ बुझने रहए जे ईंटाक देबाल गिलेबा पर जोड़ल छल, तैं टुटि गेल रहै। ओ पछिला साल निश्चय कएने रहए जे ओ आगाँ सिमटी पर पजेबा जोड़ओत। आ जँ गिलेबे पर जोड़ाओत, तँ सिमटीक टिपकारी जरूर करा देत।
पछिला साल ओ बहुत बात देखने रहए। कतबा पानि अबैत छै, आ कोना अबैत छै। सभटा देखने रहए।
जखन ओकर बाड़ीमे भरलाहा माटि बहुत धोखड़ि गेल रहै, आ पानि नासी मे दिन-राति बहए लगलै, तँ ओ बात अनठा देने रहए। ओहि बीच देवघारा गामक दू गोट छोट-छोट गिरहत एहि दने टपल रहै। साइत घासक बोरा माथ पर नेने टपैत रहै। ओ दुनू गोटे बात करैत टपैत रहै। बाद मे जखन ओकर ध्यान गेलै, तँ ओ बुझलक जे ओ दुनू गोटे ओकरे बारे मे बात करैत छलै।
जागे बाबू कहने रहै-ई जमीन जा धरि अपना गामक माल बाबूक पल्ला मे रहै, ओ पानिक बहनारि रहए देने रहै।
ओकरा जवाब मे भाले पण्डित कहने रहै-जागे बाबू, पहिलुका लोकक विचार दोसर रहै। माल बाबू बूझथि जे पाँच कट्ठा जमीन मे कतेक उपजा हेतै? पानिक निकासी जँ छूटल रहतैक, तँ पाँच सए बीघा मे एहि च’र मे धान उपजतै आ हजारो गोटा केँ आहार भेटतै।
जागे बाबू कहने रहै-समय बदलि गेल छै। जे धरती माल बाबूक पल्ला मे रहै, से धरती आब खढ़भुसिया लोकक हाथ मे आबि गेल छै। लोक आब एहिना बाट-घाट बन्न क’ देतैक। फड़फड़ा क’ सभ मरत।
भाले पण्डित कहलकै-लोक एखन की चण्डाल भेल अछि, आगाँ आर चण्डाल हैत। लोक लोक केँ खा जाएत।
गपक क्रम मे जागे बाबू कहने रहै। नासी टपि गेलाक बाद कदाचित् बाजल रहै। भ’ सकैछ जीह दाबि क’ बाजल होइ। कहने रहै-भगवान कतहु गाम गेलखिन-ए? महादेव उद्भूतनाथ अपन महिमा देखा देलखिन। राता-राती पानिक बाट खोलि देलखिन आ डूबल बाध केँ जगा देलखिन।
बीको सुनने रहए आ कठुआ गेल रहए।

फेर एहि साल जेठ मासक बात थिकैक। बीको ज’न लगा क’ माटि भरबैत रहए। पछिला साल सँ हाथ-दू हाथ ऊँच क’ माटि भरा देने रहए। फेर नव पजेबा मँगा क’ देबाल जोड़ौलक। सिमटी-बालु पर देबाल देलक।
बीदो काका आबि क’ बैसल रहै, बड़ी काल धरि बैसल देखैत रहलै। कहने रहै-बीको एहि बेर खूब भरले हें।
-एहि बेर सिमटी पर पजेबा जोड़बा देलिऐ, काका।
-आर सभ तँ ठीक छौ बीको, पानिक बहनारि बन्न भ’ जेतै।
बीको चुप भ’ गेल।
बीदो काका जखन जाए लगलै, तखन बीको परास्त भाव सँ कहने रहै-बीदो काका, तों छह, तैं कहैत छियह-किसनीगंजक लोक, की देवघारा गामक गिरहत सभ कत’ गेल अछि? ककरो किऐ ने देखाइत छै ई देबाल, एहि देबालक सिमटी?
एहि साल फेर बेसी काल राति केँ पानि होअए लगलै। एहिना ओ राति भरि जागि क’ आ दिन मे ओगरि क’ पहरा देअए। बीको केँ प्रसन्नता होइ जे एहि बेर एखन धरि देबाल पानि केँ अड़ओने छै।
भोर मे ओ अबेर दबा क’ उठल रहए। बीदो काका आएल रहै। ओ देखने रहै जे ओकर पित्ती बहुत उदास आ बौक रहै।
ओ पुछने रहै-बीदो काका, आइ देखैत छियह, बहुत उदास छह।
-पुछलें, तँ कहैत छिऔ, बिकरम! पछिला राति हमर उतरबरिया घर खसि पड़ल।
-पुरान भीत छलै, कका।
-नहि हौ, पानि फूलल जाइत छै। से पानि भीतक दाबा मे लागि गेल छलै।
कनेक काल बीको चुप रहल।
थोड़बा काल बीदो कका चुप रहलै। बीदो कका फेर गप शुरू केलकै-बीको, पछिला दू दिन मे अपना टोल मे पाँच-सात टा भितघरा खसलै-ए।
बीको चुप रहि गेल।
फेर बीदो कका कहलकै-मलहटोली वला बान्ह छै, जे बड़का बान्ह पर जाइत छै, ताहि पर ठेहुन भरि पानि लागि गेल छै।
बीको मसखरी सँ बाजल-कका, एहि ठाम सँ ओहि ठाम धरि पानिए पानि देखाइत छै। एहि झीलक नाम हम रखलिऐ अछि, करमी झील।
कका फेर बजलै-देवघारा गाम दिस जाए वला जे बान्ह छै, कोसी बान्ह सँ निच्चाँ से ढहि-ढहि क’ कटि गेल छै। ह’र-ज’न केँ हेला भ’ रहल छै।
बीको सुनलक आ चुप भ’ गेल।
कनेक काल बीदो कका चुप रहलै। फेर ओ गप शुरू केलकै-देवघारा गामक गिरहत सभ चाहक दोकान पर चर्चा करैत छै। कलक्टर केँ दरखास्त देतै। सी. ओ.केँ पकड़ि क’ अनतै।
बीको गोहाली मे पैसल आ अपन फरसा उठा क’ बाहर अनलक।
बाँसक फट्ठा केँ पट क’ रखलक, ओहि पर बालु देलक आ फरसा केँ पिजाब’ लागल।
ओ सोचैत रहल आसाम मे ओकरा देखनिहार क्यो ने छलै। ओ आसाम छोड़ि भागि आएल। एहि ठाम ओकरा देखनिहार छै। कमी नहि छै। मुल्की लोक छै। एक टोल गोतिया छै। सात टोल मे ओकरे जाति छै जे जह-जह करैत छै।
ओ फरसा उठा क’ गोहाली मे मचान पर ध’ आएल आ ओकरा गमछा सँ झाँपि देलक।
बीदो कका करमी झील दिस बौक भेल तकैत रहै। ओ बाजल-कका, एक बात कहिय’, आसाम मे लोक छै से दोसर रंगक छै। साँझ होइ, की अन्हार होइ, चारि गोटे अबै छै, चारू कात सँ घेरि क’ किछु कहै छै... कोनो दसगर्दा काज लेल कहै छै। जरूरी भेल, तँ कपनटी मे बन्दूक सटा दै छै। एम्हरुका लोक सँ ओ सभ सात कच्छे नीक छै।■

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जीवकांत (1936 - 2013) मैथिलीक समादृत कवि-कथाकार उपन्यासकार छथि। नाचू हे पृथ्वी, धार नहि होइछ मुक्त, तकैत अछि चिड़ै, खाँड़ो, पानिमे जोगने अछि बस्ती, फुनगी नीलाकाशमे, गाछ झूल-झूल, छाह सोहाओन, खिखिरिक बीअरि (सभ कविता-संग्रह), एकसरि ठाढ़ि कदम तर रे, सूर्य गलि रहल अछि, वस्तु, करमी झील (सभ कथा-सँग्रह) आ दू कुहेसक बाट, पनिपत,, नहि, कतहु नहि,, पीयर गुलाब छल, अगिनबान (उपन्यास) हिनक प्रकाशित कृति सब छनि। वर्ष 1998 मे कविता-संग्रह 'तकैत अछि चिड़ै' लेल साहित्य अकादमी। एतय प्रस्तुत कथा, सँग्रह 'करमी-झील' सँ एतय साभार प्रस्तुत। 
करमी झील करमी झील Reviewed by बालमुकुन्द on जनवरी 31, 2015 Rating: 5

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