अपनहि लिखल भ' गेल अछि अपठनीय


अनुराग मिश्रक किछु कविता ::

अनुराग मिश्र मैथिली कविताक नव्यतम पीढ़ी सँ संबद्ध कवि छथि । अनुरागक किछुए कविता एखन प्रकाश मे अएलनि अछि आ एहि क्रम मे ओ पाठक लोकनि केँ अपन भाषा आ काव्य चेतना सँ आकृष्ट कएलनि अछि । इतिहास पढ़ैत भविष्यक चिंता करैत ई कवि वर्तमानक सूक्ष्म विश्लेषण करैत छथि। एहि कविक संभावना मैथिली कविताक भविष्यक आश्वस्ति अछि। ई-मिथिला पर अनुरागक स्वागत । पढ़ल जाए अनुरागक किछु कविता :

1). स्मृतिलोप

सोचैत छी कखनहुँ-काल
जे हारल मनुक्खक लेल
कतेक सुखद होइत छैक स्मृतिलोप.

हटा कए सबटा दुख
मेटा कए सबटा विषाद
नीप सबटा संताप
पोति सबहक अधलाह
उपटा दैत अछि सबटा ‘तीत’ अतीतक
आ ठाढ़ कए दैत अछि मनुक्ख केँ –
एक गोट एहन बाट पर
जकर पथिक होइत अछि
प्रायः ओ एकसरे.

2). प्रेम घाटी सभ्यता

एतेक आगाँ बढि गेलैक जिनगी
वा हमहीं रहि गेलियै पाछाँ
एतेक नूतन भए गेलैक युग
वा भए गेलियै पुरातन हमहीं
जे हमरा देमय पड़ि रहल अछि जोर
अपन मष्तिकपर ई मोन पाड़' मे
जहिया रोज एक बेर केँ भए जाइत छल
प्रेम हमरा अहाँसँ। 

स्मृति छोड़ि रहल अछि संग 
एतेक धरि जे
नै लागल अछि बरख मुदा
बूझि पड़ैछ नै जानि
कतेक ईसा पूर्व पहिने
भेल रही आलिंगनबद्ध अपनालोकनि। 

भसिया गेलै ओ सबटा पाण्डुलिपि
जाहिपर टंकित छल
हमर अहाँक प्रेमक 'रोजनामचा'
अपनहि लिखल भ' गेल अछि अपठनीय
जेना लिखल होअय 
ओ कोनो कीलाक्षर लिपि मे। 

नहुँए नहुँए भेल जा रहल ई संबंध
आब विषय पुरातत्वक
की आओत कोनो पुराविद हमर हृदयक टीलादिस, 
की हएत हमरो अंतःस्थल उत्खनित, 
की चलाओत ओ कोदारि हमर कामनाक परतीपर, 
की हेतैक हमरो वेदनाक कार्बन डेटिंग? 

एहन असंख्य प्रश्नाकुलताक मध्य
धँसल जा रहल अछि रोज एक फुट
हमर नेहनगरी
भए सकैछ जकर नाम 
राखि दैक क्यो
प्रेम घाटी सभ्यता।

3). संक्रमण 

प्रगतिशीलताक धाह मे जरैत आबि रहल अछि संस्कारक देह अदौसँ,
ओहिना जेना सुखायल जारनि आगि पबिते बनि जाइछ दावानल लगले
कहलनि बाबा, हौ गेलियै बिसरि मंत्र दूर्वाक्षतक
शब्द मंत्रक अछि भीत जकाँ ढहि गेल ओहिना
जेना सतासीक बाढि मे भसिया गेल छल दक्षिणबरिया घर हमर
छथि स्तब्ध ओ अपना चिनबार पर देखि एहि उपनिवेशन केँ, 
देखलनि बहुत ओ आक्रमण शक, हूण, कुषाणक,
मुदा कोना बना लौथ ओ गृहस्वामिनी बेचन मड़रक नातिन केँ, 
लागल ठकमूडी बूढहा केँ मात्र ई सोचिते, 
चार पर खपड़ा छाड़ैत ओ चरित्र 
आ समधिभोजले बिझहो करेबाले कल जोड़ैक मुद्रा
कहलनि ओ, कर' बरू कतबो आँठि उफहँत तोँ सब समाज केँ, 
बकसि दे हमरा, लोटा महँक अछिंजल सेहो सूखा गेल हमर देखि ई तमाशा, 
नै गाम लेखेँ ओझा आ ने ओझा लेखेँ गाम, 
आब तँ सौंसे संसार लागि रहल बताह हमरा। 
                              
4). गोहारि

माय! आइ तोँ जेबहीक
जाइते छिहीक सब बेर
कहाँ एना होइत छैक कोनो बेर
जे तोँ रहि जाइत छिहीक
सब दिन लेल।
मुदा नै जानि किएक
एहि बेर हमरा लगै छौक
जे तोरा अपन यात्राक स्थगनक
आदेश द' देबाक चाहियौक।
तोहर उपस्थिति आ अनुपस्थितिक मध्य जे एकात्म रहैक
से छैक आब? नै छैक! 

देखलहिक नै, कोना सह-सह करैत रहौक
चण्ड मुण्ड सब तोरा आँगन मे
आइ महिखासुर स्वयँ तोहर पूजेगरी भेल छौक
कतेको शुम्भ निशुम्भ मास्क लगा
अर्घ्यी पंचपात ल' बैसल छौक
जकर मास्क तोहर जतराक बाद जेतैक खूजि
आ रक्ताभ हुअय लगतैक समूच्चा परिदृश्य
आइ जखनि तोहर चाल मे सहस्त्रो कान्ह लगतौक
तँ ओहि मे बहुतो लोकक मष्तिष्क मे बान्ह तोड़ि,
कल्हुका घिनायल पटकथा लिखा रहल हेतैक
तेँ हे माय! गोहारि छौक तोरा सँ
जे आइ जखनि तोरा ल' उतरबौक पानि मे
तँ तोँ नै छोड़बिहीन हाथ हमर
अपन पुत्र-पुत्रादिक अस्तित्वक रक्षार्थ
तोँ रोकि दिहीक प्रस्थान अपन।

 5). टोकन

बैंक मे पाइ भेटबा सँ पहिने
भेटैत छैक टोकन
जकरा जेबी मे राखि, लोक परतारैत अछि मोन केँ
एहि अजस्त्र हेंज मे छी हमहूँ एकटा प्रत्याशी

ओहि टोकन केँ देखि-देखि
मनुक्ख घोरैत अछि आशाक नेबाड
बनबैत अछि भविष्यक मारिते रास चित्र
रोपैत अछि नेहक गाछ
सजबैत अछि सुखक बंदनवार

अहाँ हमर ओहने ‘टोकन’ तँ छी.

6). अध्यादेश

ओना तँ बहुतो कारण गिना सकैत छी हम
एहि गप्पक समर्थन मे जे 
एहि सृष्टिक समस्त कार्यवाही 
तत्काल प्रभाव सँ स्थगित कएल जेबाक चाही 
मुदा से जँ नहियो भ' सकैछ संभव 
तँ एतेक गोहारि करब हम अबस्से 
ओहि सृष्टिनियंता ब्रह्मा सँ
जे ओ स्त्री निर्माणक फैक्ट्री
बन्न क' लैथ किछु दिनक लेल
मारि देथुन ताला वात्सल्यक 
ओहि कोठली मे 
प्रेम भ' जेबाक चाही अदृश्य
समस्त परिदृश्य सँ 
अलोपित भ' जाइ करूणा ओहिना 
जेना सूर्यक उपस्थिति मे अन्हार 
प्रतिबंधित भ' जाइक 
यत्र नार्यस्तु बला फूसियाहा मंत्रजाप
मनुक्ख अर्जित कएलक अछि 
धराक स्त्रीहीन होएबाक श्राप
आबहुँ ई अध्यादेश शीघ्रहि 
जे भेलीह पृथ्वी आइ सँ स्त्रीरहित
एहि सँ बढि केँ मातृऋण सधएबाक उपक्रम
की भ' सकैछ आजुक समय मे आर कोनो?
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अनुराग मिश्र सँ anuragmishra75492380@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। 

अपनहि लिखल भ' गेल अछि अपठनीय अपनहि लिखल भ' गेल अछि अपठनीय Reviewed by emithila on जनवरी 02, 2020 Rating: 5

1 टिप्पणी:

  1. बहुत नीक। वास्तविकता एवं काल्पनिकता क अभूतपूर्व समावेश। कविता तपस्या थिक आ कवि अपन जीवन मे अनेकानेक अनुभव सँ संचित एवं सिंचित भोगल क्षणक साक्षी होइत छथि। शुभकामनाक संग आशीर्वाद।

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