त्याग पत्र

Ushakiran-khan

कथा :

 त्याग पत्र : उषाकिरण खान 


विलास बाबा आइ पैंतीस बरिसक उपरान्त मुखिया नहि रहलाह। मुखियाक पद ओ स्वेच्छा सँ त्यागि देलनि। आब मोन घोर भ’ गेल छलनि। गामक समस्या सुरसाक मुँह जकाँ बढ़ल चल जा रहल छलै। दस गामक मुखिया तँ छलाहे, दिशान्तर मे सेहो पर-पंचैती कर’क लेल बजाओल जा रहल छलाह। अपन हित-कुटुमक बाँट बखरा होइ, कि जाति बन्हनक कोनो मामिला, विलास बाबाक गप्प लोक सुनै; लछुमन-रेखा जकाँ तीन डरीर पाड़ि क’ ओ जे कहथिन से लोक हँसी-खुसी मानि लै।
बाल बच्चा सभटा कब्जा मे छलनि विलास बाबा केँ, पत्नी कहल मे रहनि। पाँच टा बेटा मे सभ सँ छोटका बेटा बालुक पैकारी करैत छलनि, अपने पर-पंचैती आ गामक डाक्टरी करैत छलाह। आर. एम. पी. के सर्टीफिकेट छलनि। माँझिल बेटा आ जमाइ ताहि मे संग-साध देब’ लागल छलखिन। साँझिल दू टा सहायक संगें ल’ क’ बेनीपुर मे गाय महीसक बथान खोलि नेने छलाह। नीक कमाइ होइ छलनि। ताहि सँ पैघ भाइ गूड़क व्यापार करैत रहनि, आ सभ सँ पैघ बेटा अमीन छलनि, जे कतहु दक्खिन मे सरकारी क्वार्टर मे रहै रहनि। सभक परिवार गामे मे रहनि। चैघरा हवेली छलनि। दुआरि पर माल-महीस, कथूक कमी नहि। गामक स्कूल मे पोता-पोती पढ़ैत रहनि। विलास बाबा केँ बूझल छलनि जे अजुका समय मे बेटी केँ सेहो पढ़ाएब जरूरी छै। नहि तँ ब’र-घ’र नहिएँ टा भेटतै।

एके रंग समय विधना कहाँ ककरो लिखने रहै छथिन। विलास बाबाक सरकारी अमीन बेटा बीमार पड़ि गेलखिन। पहिने तँ अधिक ख्याल नहि करै गेलखिन। पछाति भेलनि कि कोनो असाध्य रोग छै। तखन बड़का डाक्टर सँ देखौलखिन। तावत रोग हाथ सँ बहार भ’ गेल छलै। रुपैया पैसा आ डाक्टर वैद्य काज नहि अएलनि। बेटा हाथ सँ चल गेलनि। विलास बाबाक शोक सांघातिक छलनि, मुदा ओ दीन-दुनिया देखने छलाह, बुझनुक लोक छलाह। सभटा काज छोड़ि सरकारी ऑफिसक चक्कर काटए लगलाह। अनुकम्पाक आधार पर अमीन साहेबक बेटा केँ सरकारी नोकरीक कागज भेटि गेलै। एकटा काज सम्पन्न भेलनि। सवा बरिसक दौड़ा-दौड़ी काज देलकनि। बहुतो दिन बाद कतेक काल धरि विलास बाबा दलानक चैकी पर अपन आश्वस्त मुद्रा मे चितंग भेल पड़ल रहलाह। मोन मे जड़िआएल पीड़ा आँखि बाटे बहए लगलनि। जाहि पैघ बेटा पर हिनका सभ सँ बेसी भरोस छलनि, से एना चैरस्ता पर छोड़ि क’ चल जेतनि, कहाँ जनै छलाह! गामे-गाम डाक्टरी करैत रहै छलाह, आ अपना करेजक टुकड़ीक गोर रंग पीयर भेल जा रहल छलनि, से नहि बुझल भेलनि। दलानक एक मुँह आँगन मे सेहो छलै। ताहि दुरूखा बाटे अमीन साहेबक जेठकी बेटी प्रकट भेलनि आ कहलकनि-बाबा, खाइ ले आँगन चलबै, कि एत्तहि आनू?
कने काल धरि बेबूझ जकाँ पोती केँ तकैत रहलखिन। फेर कहलखिन-चलह, आइ आँगने मे खाएब।
आँगन जेना अनभोआड़ भ’ गेल छलनि। दुआरि पर बैसल विलास बाबा देखलखिन-बूढ़ी बड़ लटि गेल छथिन। नेना सभ पैघ भ’ गेल छै आ ई अमीनक दुनू बेटी चम्पा आ चमेली समर्थ भ’ गेल छै। आब तँ एकर सभक कन्यादानक सेहो जोगाड़ कर’क हैत।
-ई भानस के केलक?-बाबा पोती सँ पुछलखिन।
-छोटकी आ नबकी काकी।
-तों सभ नहि करै छह?
-ई सभ इसकूल जाइ छै। लिखिया पढ़िया सँ पलखति हेतै तखन ने।-बूढ़ी बजलखिन।
-तइयो, घर आश्रमक काज सीख’क चाही।
पोती सभ नजर नीचाँ कएने ठाढ़ि रहलनि। बाबा एखन ने कतहु पंचैती मे बैसथि आ ने दवाइक दोकान पर। राति दिन पोती सभक बियाहक चिन्ता करैत रहथि। नव-नव तथ्य सभ बाबाक सोझाँ उजागर होमए लगलनि। जेठकी चम्पा, अइ बेर मैट्रिकक परीक्षा मे बैसलनि। पास सेहो क’ गेलनि।
-बाबा, हमरा काॅलेजो मे नाम लिखा दैह।
-कत’ हए?
-किऐ, बेनीपुर मे।
-कोना जएबह?
-बहुत लोक जाइ छै। पछबारि टोलक तीन टा लड़की जाइ छै। अइ बेर फेर दू टा जएतै।
-अच्छा?-बड़ अचरज भेलनि विलास बाबा केँ। ई तँ नहि खेआल केलखिन कहियो। अपना गामक कामति आ पासवानक बेटी सभ काॅलेज जाए लगलै? नीक भेलै। जौं चम्पा जाए चाहैत अछि, तँ कोन बेजाए। बेटा केँ कहलखिन चम्पाक नाम काॅलेज मे लिखा देब’ लेल।
-किऐ, कोन काज छै आगू पढ़बाक? कह’क सिलाइ स्कूलक ट्रेनिंग लेतह।-छोटका बेटा विचार देलकनि।
-एकरा आगाँ पढ़बाक मोन छै, पढ़ए दहक। की हेतै।
-नहि बाबू, काॅलेज मे की पढ़ाइ होइ छै आ कोन फर्स्ट डिविजन सँ पास केलक अछि। थर्ड डिवीजन बाली की करतइ आगाँ पढ़ि कए। घर मे काज सीखए आ सिलाइक ट्रेनिंग ल’ लिअए।
-तों तँ बड़ विचित्रा गप्प कहै छह। तोहूँ बी. ए. पास क’ कए बालुक बेपारी भेल छह कि नहि? ई बी. ए. क’ घर मे रहतै तँ की?
-बाबू काॅलेज सभ फार्स छै। पढ़ाइ नहि होइ छै। खाली विद्यार्थी सभ एक ठाम जमा भ’ अड्डाबाजी करैत छै।
-नेना कहलक अछि। बाप नहि छै। आइ रहितै तँ अपना संग राँची ल’ जैतै। हमरा उचित नहि बुझि पड़ैत अछि बरजब। नाम लिखा दहक। पछवारि टोलक बचिया सभक संगें जएतै।
पिताक तर्कक सोझाँ बेटा चुप भ’ गेल। चम्पाक नाम काॅलेज मे लिखा गेलै। चम्पा बेनीपुरक काॅलेज जाए लागल। एम्हर विलास बाबा गामे गाम ब’र तकैत घूरि रहल छलाह। एक ठाम एक टा ब’र पसिन पड़लनि। प्राइमरी स्कूल मे ओ मास्टर छलै। सरकारी नोकरी छलै। बेटा सभ केँ बजा पठौलनि।
-बाबा-चम्पा छलनि।
-की?
-हम एखन बियाह नहि करब।
-किऐ?
-ओहिना!
-बताहि नहितन, तोहर बियाह करब तँ हमर कर्तव्य अछि।
-बाबा हम आगू पढ़ब। बी. ए. पास करब।
-तँ पढ़िते छें, के मना करै छौ?
-बियाह करब तखन...।
-पढ़ुआ वर छौ, मास्टरी करैत छौ। तोरा पढ़’मे कोनो बाधा नहि रहतौ।
-ताहि सँ की, हम किन्नहुँ नहि करब।-पएर पटकैत चम्पा चल गेलै।
विलास बाबा अवाक।
-हूँ, ई छौंड़ी बड़ जिद्दी अछि। ककरो कहल की बूझै छै। जे कहलक से कहलक, हिनको बुझेने नहि बुझतनि। आब की करताह।-बूढ़ी दुरूखा मे ठाढ़ि सभटा सुनैत रहथिन से बजलखिन।
-ऐं?-विलास बाबा सोच मे पड़ि गेलाह। अपन अति व्यस्त जिनगी आ सद्यः सोग हिनका ककरो दिस तकबाक पलखति नहि देने छलनि। आब की करताह? बेटा सभ केँ बजौने छथि। ओएह सभ किछु विचार देन्हि तँ देन्हि। कका सभ बेसी नीक जकाँ बुझा सकै छै। ई ब’र छूटि जेतै तँ फेर भेटनाइ मसकिल। पीठहि पर चमेली छै। ओहो अइ बेर काॅलेज जाए लागल अछि। राति भरि नीन नहि अएलनि। दोसर दिन बेरूक पहर तक चारू बेटा आ जेठका पोता दन-दन क’ जूमि गेलनि। बाबाक चिन्तित चेहरा देखि बेटा सभ कने ठमकि गेलाह। फेर मोन मे अएलनि, आइ पहिले पहिल बेटा सभ सँ मंत्राणाक बेर उपस्थित भेलनि अछि, आ ताहि मे जेठ जन नहि छथिन, से विचारि बाबू उदास छथि।
-बाबू की गप्प छै?-छोटका पुछलखिन।
-हँ, ताही लेल तँ बजौलियह। कुसीपुर गामक ब’र तकने छी। दस बीघाक जोत छै बाप केँ। छह बहिनिक बियाह भ’ गेल छै। सरकारी प्राइमरी स्कूल मे मास्टर छै। विचार करह, की करबह?
-जे ब’र-घ’र अहाँ केँ पसिन भेल, ओ कोनो काटैबला हेतै? अहाँ हमरा सभ केँ आज्ञा करिऔ। जे कहबै-माझिल छलै।
-बाउ, हमरा बूझल छल। तोरा लोकनि इएह गप्प कहब’। तैयो बजाएब हमर कर्तव्य छल, मुदा आब एकटा आर समस्या ठाढ़ भ’ गेल अछि।
-की बाबू-छोटका मुहलगुआ छलनि।
-चम्पा कहैत अछि जे ओ बियाहे ने करत, ओ बी. ए. पास करत।-छोटका केँ छोड़ि सभ बेटा भकुआ जकाँ मुँह ताकए लगलनि। छोटका हँसए लगलनि।
-हौ बाबू, हम तोरा पहिने कहने रहियह। ओकरा गाम सँ बाहर काॅलेज कथी लए पठौलह। आब भोगह।
-मत्तोरी, काॅलेज तँ नितदिन जाइत अछि आ चल अबैत अछि, ताहि मे कोन...।
-इएह ने तों नहि बुझबहक।

ओम्हर चम्पा चमेलीक गप्प भ’ रहल छलै। चम्पा मुँह चढ़ओने छल। चमेली पुछलकैक-आब? आब तँ सभटा काका आबि गेलै। छोटका काका केँ जखन किछु-किछु बूझल हेतै, ओ तोहर भेद खोलि देतौ। रहि जएबें मुँह बबैत।
-चमेलिया, तों हमर संग देबें से नहि, उनटे कपार खाइ छें।
-की संग दिअउ?
-बाबू आ कका सभ केँ कहि दही जे मुखियाक बेटा विजय सँ चम्पा केँ बियाह करक मोन छै।-चमेलीक सगर शरीर बसात मे डोलैत भालरि भ’ गेलै। कने काल बकार नहि फुटलै।
-कहि अबै छही की नहि।
-नहि।
-किऐ?
-हमरा लाज होइत अछि आ डर सेहो।
-तोरा किऐ लाज होइ छौ? चम्पाक सोझाँ चमेली दबल-दबल रहै। ओकरा किछु नहि फुरैत रहै। विजय संगें चम्पाक मेल जोल देखि ई तेहन ने ठिसुआएल रहए, जेना चोरनी हो। चम्पा, अपन प्रेमक व्याख्या भाँति-भाँति सुनबए, चमेली केँ। आ स्वयं ओ ई सब विजय सँ सीखए। भारी स्वर मे चम्पा पर विजयक कएल प्रेम रसक आलेपन तेहन भ’ गेल छलै जे ओ आगाँ-पाछाँ नहि विचारै। ओकरा विजयक अतिरिक्त कहाँ किछु बुझाइत छलै।
-तों जा क’ बाबा केँ कहुन। नहि तँ हम स्वयं जा क’ कहबनि।-चम्पा आवेश मे आबि गेल छल।

बाबा, सभ बेटाक मुखाकृति एका-एकी देखि बुझि गेलाह जे हिनका सभ सँ कोनो समाधानक आशा नहि कएल जा सकैत अछि। ई सभ आइ धरि कोनो स्वतंत्र निर्णय नहि नेने छथि। मुदा छोट जन बाजल-बाबू, चम्पा सँ पुछहक बजा क’, किऐ जिद धएने छह।
चम्पा संग चमेली दलान मे आबि जूमल। साओनक बरखा अपन सुर-ताल पर छम-छम बरसि रहल छलै। चमेली थर-थर कँपैत ठाढ़ि छलै।
चम्पा सोझे-सोझे बाबा आ कका सभ दिस तकैत बाजल-कोन अतराहति बीति रहल अछि हमरा बियाहक। एखन हम अठारहम बरिस पार नहि कएलहुँ आ अहाँ सब बैलाबए चाहै छी। दू बरिस आर अपन घर मे रहए नहि देब बाबा-छओ मुण्ड आ बारह आँखि चम्पाक मुँह पर ताकए लागल। निर्वाक। चमेलीक थरथरी थम्हि गेलै; ओ निसाँस छोड़लक। चम्पा काते-कात निमहि गेल।
-आब जखन तों एहन गप कहलह तँ हम तोरा दू बरिस नहि टोकबह।-सब हरे हरे क’ उठि गेलाह। मुदा छोट जन अपना मोपेड सँ बेनीपुर काॅलेजक जखन-तखन चक्कर काटए लगलाह। चम्पा आ विजयक प्रेम काॅलेजक हत्ता मे कहाँ भेल छलै। ओ तँ गामहिमे, नेनहि सँ फुलाइत छलै। विजय चम्पा सँ दू बरिस पहिनहि मैट्रिक पास कएने छलै, मुदा काॅलेज पढ़ए नहि गेलै। गंजक गंज किताब पढ़ए, गामे गाम मिटिंग करैत घुरए। चम्पा केँ कहैक जे तोंहूँ दिन-दुनियाक खबरिक वास्ते नीक जकाँ प’ढ़-लिख। किछु अपन पढ़एबला किताब ओकरा दै, मुदा चम्पा लेखें ओ किताब जेना अरबी-फारसी होइ। एक्कोटा शब्दक अर्थ ओकरा नहि बुझाइ। ओकरा विजय नीक लगै आ विजय केँ चम्पा।
-विजय, देख तँ, हमर ई नब कर्णफूल केहन लगलौ।-चम्पा कहैक। विजय देखि क’ हँसि दै।
-हँसै किए छें?
-नीक छौ, चम्पा खूब पढ़ि-लिखि क’ डिग्री ले, आ अपना केँ तैयार कर। हमरा संग चल’क छौ तँ अपना पर ठाढ़ हो। तखन दुनू गोटा संग भ’ क’ असमानता समाप्त करबै समाजक।
-धुर, से कतौ भेलै अछि।
-हेतै, सभटा हेतै।-विजय उत्साह मे जे किछु कहै से अइ सम्पन्न विलास बाबाक पोती केँ नहि बुझाइक। ओकरा ओकर मुद्रा, भंगिमा आ ओजपूर्ण स्वर नीक लगै। सम्पूर्ण अस्तित्व रोमांचित भ’ जाइ।
-विजय-एक दिन चम्पा ओकरा कहलकै-बाबा आ कका सब हमर विवाह करएबाक तैयारी मे छथि।
-हूँ, ककरा सँ?
-अपना मे गप करैत रहथि, हम सेहो बीचहि मे जूमि गेलिअनि तँ हमरो सँ गप भेलनि।
-की गप्प?
-हम कहलिअनि जे हम बी. ए. पास कएलाक बाद बियाह करब।
-ठीक, सही कहलें।
-विजय, तोहूँ तावत कोनो रस्ता पकड़ि लेबें।
-हम? हम कोन नब रस्ता पकड़ब? हमर तँ सुनिश्चित गन्तव्य अछि। आ से तुरत कत्तए भेटए बला? हमरा स्वयं सम्पूर्ण जीवने संघर्ष बुझि पड़ै अछि। बुझलें?-चम्पा केँ नाक पकड़ि डोला देलकै विजय।
-तखन बियाह कहिया करबें?
-कहियो नहि चम्पा, कहियो नहि। हमरा लेल बियाह बनले नहि छै।
चम्पाक आगाँ धरती आकाश घुमए लगलै। ओकरा मोन भेलै जे ओ विजय केँ भरि पाँज केँ ध’ लिअए आ कहै-तों एहन गप्प किऐ करैत छें। हम तँ तोरे बल पर अपना बाबाक सोझाँ ठाढ़ भ’ गेलौं। हम तँ जागल, सूतल तोरे सपना आँखि मे बन्न कएने रहै छी।-चम्पा एकटा सोझ गामक कन्या, ओकर सपना बिछिया-पायल पहिरि मात्रा बियहुती होमक। ओ की जानए गेलै, जे बनैया आगिक उड़ैत चिनगी सँ स्थायी प्रकाश नहि होइत छै। ओकरा आँचर मे समटल नहि जा सकैत अछि।
-चम्पा की भेलौ, बड़ गुम-सुम छें।-चमेली ओकर मन्हुआएल चेहरा देखि पुछए लगलै। चम्पा चुप्पे रहल। कोनो ने कोनो लाथ लगाए काॅलेज सेहो नहि जाए। विलास बाबा कैक बेर पुछलखिन, किछु जवाब नहि। चमेली केँ बजा क’ पुछलखिन। ओहो जवाब नहि देलकनि। पोखरि पर जामुन गाछ तर बैसि क’ गप्प करैत कैक दिन छोटका कका विजय आ चम्पा केँ देखने छलै, मुदा विजयक प्रकृति जानि ओ कोनो प्रकारक भाव नहि बुझि सकल छलै। एक दिन चमेली केँ नहि रहल गेलै, आ ओ कहि देलकै, जे चम्पा विजय सँ बियाह करए चाहैए। एखन की भेलैए से ओ नहि जनै अछि। छोटका कका केँ तरबाक लहरि मगज पर फेकि देलकै। ओ सोझे दलान पर जूमि गेलै।
-बाबू, आर सहकाबहक छौंड़ी केँ, ओ ओइ दहियरबा सँ बियाह करत’।
-ऐं?
-ऐं की?
-ऐं की के की मतलब? कहबह तखन ने बुझबै।
-की कहब’, ओइ सुमिरन दहियारक बेटा विजइया, चम्पा सँ बियाह करत। किसनौत मे की लड़िकाक अकाल भ’ गेल छै। सिनेमा बुझि लेलक गाम केँ?
-हूँ-विलास बाबा मूड़ी नीचा क’ कए विचारए लगलाह।
-की विचारै छह, बाप दुधीक दही बेचि गुजर करैत छै आ बेटा गामे गाम कमैटी बैसौने रहै अछि। जाइ छिऐ आइ हम ओकर कपार...।
-हौ बाउ, एना आगुताबह जुनि; तों आइ काल्हुक लोक छह, हम पुरान भेलहुँ। एहन कतोक पंचैती कैने छी। चम्पा केँ बुझा सुझा क’ देखहक। ओ जिद्दी अछि। जिदपनी मे कोनो ऊंच-नीच भ’ जेतैक। अपयश होएतहु।
-तों करह पूछा-पूछी, हम ओइ छौंड़ा केँ देखए जाइ छी।
-सुनह, अगुताह नहि।
-चम्पा कहतह आ जिद करतह तँ ओकरा सँ बियाहि देबहक।
-की हेतै, दहियार छै तँ। आइ-काल्हि तँ किसनौत सभ मे बियाह करैत अछि। सुुकुर मनाबह, जौं परजाति होइतै तखन?
-बाबा, तोहूँ जुलुम कैलह। ओइ विजैयाक ओतए सुपारी ल’ क’ जेबह!
-की हेतै?
-बाबा-चम्पा आबि क’ ठाढ़ि भ’ गेलै। उदास आ पीयर मुख सँ। सभक दृष्टि ओम्हरे चल गेलै।
-बाबा, ई चमेली अनेरे कहलक। हम विजय सँ बियाह कर’ लेल उताहुल रही, ओ नहि। ओ तँ कहलक जे ओ कहियो बियाह नहि करतै, ओकर रस्ता अलग छै।
-बाबा, हमर बियाह जत्त’ ठीक करै छलौं तत्तहि क’ दिअ’, अही शुद्ध मे।-नहूँ नहूँ मुरछल सन चम्पा आँगन चल गेलै। बियाह दान हेबाक छलै, भेलै। चम्पा सासुर गेल।
एहन केस? बिनु वादी-प्रतिवादीक, बिनु फैसलाक केस मरि गेलै। विलास बाबा मुखियागिरीसँ त्यागपत्रा द’ देलनि। आब ओ खाली छथि।
•••

उषाकिरण खान  लब्धप्रतिष्ठित लेखिका छथि। मैथिली-हिंदी दुनू मे समान रुचि आ गति सँ लेखन। काँचहि बाँस, जाइ सँ पहिने, अनुत्तरित प्रश्न, दूर्वाक्षत, हसीना मंजिल, भामती, सिरजनहार, फागुन, एकसरि ठाढ़, मुस्कौल बला, हीरा डोम आदि प्रमुख कृति प्रकाशित। चर्चित मैथिली उपन्यास भामती लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। भारत-भारती पुरस्कार आ साहित्यक क्षेत्र मे उत्कृष्ट योगदान लेल भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान सँ सम्मानित। प्रयुक्त छवि, भरत एस तिवारी केर सौजन्य सँ एतय साभार प्रस्तुत।
त्याग पत्र त्याग पत्र Reviewed by emithila on अक्तूबर 24, 2019 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.