फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल

हरेकृष्ण झा | क्लिक : गुंजनश्री

|| हरेकृष्ण झाक किछु कविता ||


१).  किएक मुदा एहिना

माइक कोखि तँ कोनो बेर बदलल नहि हेतनि !
खून मे ममताक सोह
एके रंग चलल हेतनि -
मोन मे सपनाक लहरि सेहो एके रंग !!

तरेगन सभक संग तालमेल क’ क’
ओगरने हेताह अहाँ केँ ओहिना
चन्द्रमा ओ सूर्य
जेना अहाँक आन कोनो भाइ कें-;
जीव नेह सँ चपचप करैत सत्त भुवनक
रचने होएत सभ गोटए कें
एके तरहक गाढ़ अनुराग सँ;
झहरल होतए अन्तरिक्ष मे सोहर
सभक बेरमे एक रागभासमे !!

एके गोसाउन सँ मँगैत छी
सहज सुमतिक वरदान-
एके बीजी पुरूख सँ पबैत छी नाम-गाम-ठाम;
एके माटिपानिमे करैत छी
अपन-अपन जीबाक ओरिआओन !!
जखन ई भुवन होइत रहैत अछि लहालोट
बिलहैत सौंदर्यक शुभंकर सनेस-
कोना लगैत अछि पसाही सभक नस-नस मे
एक दोसराक लेल-
चमकैत अछि भालाक नोक कोना
सभक एकेकटा धड़कन मे-?
-अरे होइत एलैक अछि भैयारीमे एहिना अदौ सँ
कहैत छथि पकठोस बुधियार सभ गामे-गाम-
पूछि क’ देखिऔ तँ एको बेर अहाँ
पूछि क’ देखिऔ तँ एको बेर
अपन आलाक निविड़ एकान्त मे-
किएक मुदा एहिना ?

२). जिमूतवाहन

 अपना डीह पर सँ निकली हमरा लोकनि
कि बहराइ अपन गामक सिमान सँ 
तखनहि टा मूड़ी हमरा सभक कटि क'
झाँपल रहत लाल पीयर साड़ी तर 
जितियाक डाला पर, 
से कोनो जरूरी नहि छैक 
कोनो टा जरूरी नहि छैक से।
 कोठली मे रहितो,
जागल कि सूतल मे, 
नहाइत कि खाइत काल, 
कि अपन बच्चा के कोरा मे खेलबैत काल
 से भ' सकैत अछि।

बसात मे भाला चलैत रहैत अछि सदरि काल, 
रौद मे फरसा चमकैत रहैत अछि,
 अन्हार मे अंगोर बरसैत रहैत अछि।

भादबक राति 
हमर अहाँक माय 
आँखिये मे काटि दैत छथि, 
मुदा डाला परहक जाहीजूही, 
भगवतीक सीरे मे झरकि जाइत अछि, 
एकरंगा कपड़ा खकस्याह 
भ' जाइत अछि।

एक चुरू पानियो धरि 
पिबैत नहि छथि हमर अहाँक माए 
चौबीस कि छत्तीस घंटा धरिः
 मुदा जे भँगैत छी डाला परहक नारिकेर 
हमरा सभ अगिला दिन,
 त उजरा फरक बदला मे बहराइत अछि तेलिया साप 
ओहि मे सँ।

कतय छथि जिमूतवाहन, 
कतय छथि?

३). भीठ पर

साबिके सँ बहराइत अछि
ई बानी
सारंगीक तार सँ
ओएह टा बनि सकत
पुंकेसर थलकमलक,
जे जुटियो क’ सभ किछु सँ
हहाइत आबेसक संग,
कनेक फराक भेल रहत;
ओएह टा डगमग करैत रहत अर्थ सँ
ताड़क अजोह कोआ जकाँ, 
जे सहटल रहत
अर्थक अनर्थ सँ;
ओएह टा पबैत रहत मोक्ष,
हाथ जकर
आकाशक डीह भेल रहत।
कतए सँ अबैत अछि ई बानी
सारंगीक तारमे ?
आम किंवा लीचीक मज्जर सँ,
जाहि पर फागुनक महुआएल रौद
खूब चपकारि क’
औंसल रहैत छैक !

जिनगीक पेनी छनैत अछि
ई बानीः
निस्संग लागिक भीठ पर
भकरार होइत अछि जीवन।

४). बान्ह-छान्ह 

उषा विभोर होइत छथि सेब मे
धरतीक चम्पइ रस सँ अभीभूत:
कतेक विभोर होइत छी हमरा लोकनि ?

सेब खएबा काल
कतेक छिटकैत अछि
ओकर कांति
शोणित मे?

दुखित पड़ैत छी
तँ कनेक टुटैत छैक
ओकर बान्ह छेक
हमरा सभक लेल,
वा कोनो पाबनि-तिहार
अएला पर।

मुँह चलैत अछि,
आँत धरि पहुँचैत अछि
ओकर रस,
मुदा आत्मा कें औंसवा सँ पहिनहि
छेक लेल जाइत अछि।
बहुत नमहर छेक छैक
एहि बान्ह छान्हक,
जे बहुतोक लेल 
कहिओ नहि टुटैत छैक।

छिटकल रहि जाइत अछि जीवन सँ
धरतीक लेल आकाशक ओ अनुराग
जे रूप धरैत अछि सेब मे
निरसल रहि जाइत छैक ओकर ललक
हमरा लोकनिक अंतरंग होएबाक।

५). फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल 

फार सँ छिटकैत अछि
कनखा इजोतक,
भक टूटि जाइत अछि ।
सोझाँ अबैत अछि
अर्घासनक कोहा
चर्बी सँ उमसाम,
एकटा कुंजी
चकरी मारने बीचोबीच ।
बामा हाथ रखैत छी
हरीस पर
हरबाहक बाम हाथक संग,
दहिना हाथ सँ धरैत छी लागनि,
ताव लैत छी
खपटी पेट सँ,
मारैत छी जोर
हरक नास पर
ठीकोठीक कुंजीक सीक मे ।
फार सँ छिटकत आब
बेलीक फूल हरबाहक माथ पर
हट्ठा सँ घुरैत काल,
पिजा गेल अछि माटिक
प्राण-शक्ति सँ ।

६). कनोजरि 

अक्षत आ फूल
बहराइत अछि वर्णमाला सँ
खलसैत अछि कपूरक लौ भीतर मे
इजोतक कनोजरि फूटैत अछि
एहि मुसहर नेना सबहक आंखि मे
फूटैत अछि कुहेस
कनेक कनेक कटैत अछि पाप
एकरा सबके नित्तह
ककहारा सिखबैत काल

७). अमिर्त

कइएक आसिन सँ अबैत अछि आवाज
धानत खेत सँ: अमिर्त, अमिर्त,
भ’ जाउ बिर्त;
मुदा एहि बेर अनघोल भेल अछि,
इजोतक किलोक भेल अछि।

कतहु छाप-छिप
तँ कतहु ठेहुन भरि पानि होएत
बाध मे,
बीटक बीच-बीच मे छाप होएत
जनक तरबाक
ताप मेटबैत साल भरिक,
ओकर अंक मे होएताह चन्द्रमा
ऐनमेन चनरमा जकाँ,
हुनक अंक मे हुलबुल
करैत होएत माछक चिलका सभ
गोल बन्हि क’।

आकाश नेहाल,
बसात नेहाल,
ओसाक सम्पति नेहाल, चन्द्रमा किर्तकिर्त,
धरती जनक संगति मे
अमृतक लेल बिर्त
कइएक आसिन सँ अबैत अछि आवाज:
अमिर्त, अमिर्त, भेल रहू बिर्त;
मुदा एहि बेर
अनघोल भेल अछि,
इजोतक किलोल भेल अछि:
मिसाइलक अन्तहीन निसाफक बीच,
अताइ सभक स्थाई आजादीक बीच।

८). हीर सँ 

कहकह आगिक रसों मे पागल
गुलकंद
गुड़कैत रहल
ओहि डिब्बाक
यात्री सभक खून मे।

सितलहरीक राति:
कठुआ क’ शरण
लेम’ चाहैत छल अंग-अंग
अपन प्राणक
बचल-खुचल ऊष्मा मे:
आर कोनो ठहार नहि।

आ राति भरि गबैत रहल
राम-जानकी विवाहक गीत
रामनामी सभक एकटा गोल
हलफी काटक लेल।

की सँ की युक्ति
बहराइत छैक
मनुक्खक भीतर
जीवनक हीर सँ:
हेमाल होइत
साँस सँ बना लेत ओकरा
अपना भीतर जोगाओल
आदिम आगिक रासें मे !

●●●
हरेकृष्ण झा मैथिलीक समादृत कवि-अनुवादक छथि. कोइलख, मधुबनी निवासी हरेकृष्ण झा दसेक वर्ष धरि मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवादी आंदोलन सं जुड़ल रहलनि. हिनक ‘एना तं नहि जे’ शीर्षक सं एकगोट काव्य संकलन प्रकाश मे छनि. एकरा अतिरिक्त हिंदी मे ‘धूप की एक विराट नाव’, ‘राजस्थानी साहित्यक इतिहास’, वाल्ट विटमैनक कविता सभक मैथिली अनुवाद ‘ई थिक जीवन’ शीर्षक सं तथा बाढिक समस्या पर दिनेश कुमार मिश्रक  पोथीक अंग्रेजी अनुवाद ‘लिविंग विद द  पोलिटिक्स ऑफ़ फ्लड्स’ शीर्षक सं प्रकाशित  छनि. 

फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल Reviewed by बालमुकुन्द on मार्च 29, 2017 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.