हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे


|| निक्की प्रियदर्शिनीक किछु कविता ||


१). हम छी तँ

बिनु वेग नहि उठैत अछि संवेग मन मे
जौं भरि ली हुंकार, संग त्रेण मन मे
बदलि सकैत छी नभ आओर धरा कें, विश्वक मानचित्र मे
हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे

हम करैत छी आह्वान सभ सँ कल्पनाक संग मे
विश्वक एक कोटि एक जाति एक रूप मे
हमर इच्छा ई सदिखन हो समर्पित जीवन मे
हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे

नव चेतना, नव जागरण सँ उद्वेलित धरा मे
रस भाव सँ भरल पूरित समाज मे
कि सुनब अहाँक राग आ द्वेष कंठ मे
हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे

किएक देखैत छी भरिकए भोगक ज्वाला आँखि मे
हमहुँ क' सकैत छी, विरोध आ प्रतिरोध जग मे
गर्जन क' सकैत छी, जेना बिजुलि हो गगन मे
हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे।

२). अहाँ अहीं सन 

अहाँ अहीं सन
छोट, कोमल आ शांत ह्रदय सन
सुन्दर आ सौम्यता सँ प्रस्फुटित पुष्प सन
अमावस्याक घोर अन्हार गुज्ज राति सन
दुख आ विवशता सँ भरल घैल सन

अहाँ अहीं सन
क्रोध आ निर्दयताक अग्नि मे जरैत काठ सन
सजीव रहितो निर्जीव वस्तु सन
जानकी, मंदोदरी आ उर्मिलाक त्याग सन
माँ, बेटी, बहिन, पत्नी आ प्रेमिकाक स्वाभाव सन

अहाँ अहीं सन
आधुनिकता आ पौराणिकताक धुरी वा लटकैत पिंड सन
कुल आ मर्यादाक कहार सन
नदीक दू किनार सन
बढ़ैत आ घटैत गंगाक धार सन

अहाँ अहीं सन
मनोरथक लेल बलिदानक निरीह छागर सन
जीवन आ मृत्युक अनुभव करैत संसार सन
ह्रदय, करुणा आ प्रेमक महासागर सन
सम्पूर्ण जगतक मातृत्वक भण्डार सन
अहाँ अहीं सन।

३). दर्द आँखि मे नहि मन मे

आँखि संबोधक अछि तँ मन विचारक
आँखि प्रश्न अछि तँ मन उत्तर
आँखि मे आशा अछि तँ मन मे संवेदना

दर्द आँखि मे नहि मन मे होइत अछि
दर्द कें देखि आँखि तँ बंद भ' जाइत अछि
मुदा मन मे ओ अविस्मरणीय जकाँ समा जाइत अछि
आँखिक सीमा सीमित अछि
मुदा मनक सीमा नहि जानि कतेक

परंपरा आ आधुनिकता एक दोसराक पूरक अछि
आधुनिकताक देखि आँखि
ओकरा मे समाहित भ' जाइत अछि
मुदा मन परम्पराक विचार करैत  रहैत अछि

मन चंचल अछि आ आँखि अति चपल
तें आवश्यकता अछि प्रेम करुणा आ सौहार्दक
ताकि मन विचलित नहि होए
आ आँखि स्थिर नहि।

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निक्की प्रियदर्शिनी मैथिली कविताक नव्यतम पीढ़ी सँ सम्बद्ध कवियित्री छथि एवं वर्तमान मे मैथिली साहित्यक परिदृश्य मे जे किछु युवा स्त्री स्वर सभ अभरैत छथि ताहि मे हिनक नाम प्रमुखताक संग लेल जाइत अछि। कविताक संग-संग गद्य-लेखनक क्षेत्र मे सेहो निरन्तर सक्रिय निक्कीक एकटा निबंध-संकलन 'देखल जा सकैछ' शीर्षक सँ दृश्य मे छनि। एकर अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिका मे नियमित कविता, निबंध आदि प्रकाशित आ सम्पादकीय सहयोग। संस्कृत-निर्मली, सुपौल निवासी निक्की सँ nikky0283@gmail.com पर सम्पर्क कएल जा सकैत अछि। 
हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे हम छी तँ युग अछि आओर इतिहास जग मे Reviewed by बालमुकुन्द on अगस्त 04, 2016 Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. औखन पहिलुक बेर हिनक कविता पढ़ल ! कविता मे बिंब आ शिल्प दुहू बेस प्रभावित केलक अछि ! अतुकांत कविता रहितो कविता सबमे एकटा अनुखन प्रवाहक उपस्थिति हिनका सहजहि फराक करैत छनि ! कहवाक बृहद कैनवास अओर शब्दक अपन विशिष्ट कोश हिनक कविता सबकें बहुयामी आवृति दैत अछि जाहि मे मात्र स्त्री समाजक चित्रण नहि अपितु एकटा समग्र परिवेशक अजस्र धार निकसैत अछि ! संग्रह कें प्रतीक्षा करैत हिनका अनेकानेक शुभकामना !!

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  2. निक्की जीके कबिता बड्ड निक लागल ओना साहित्यके बिद्यार्थी के नातास कह लेल मोंन आतुर अछि की उनका साहित्यके प्रगति लेल अनेक अनेक सुभकामना अछि तीनो कबिताक बिम्ब संग प्रस्तुती सैली एकदम प्र्खर्ताक त निखार संन देखा रहल अछि

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