गुंजनश्रीक किछु कविता ::
1). एकटा बात कहू अहाँ
एकटा बात कहू अहाँ
की अहाँ बिसरि गेलहुँ ?
अप्पन ओ साजो-सिंगार,
जे अहाँक,
अतुल्य धन छल ?
आइ अहाँक आतंरिक व्यक्तित्व पर,
बाहरी दिखावा भारी पड़ी गेल।
प्रिये !
कहू ने ?
कोना एहन भ' गेलहुँ अहाँ ?
2). अहाँ कहने रही एक दिन
अहाँ कहने रही एक दिन
यौ, अहाँ बिनु नै होइत अछि निन्न,
आउ आ आबि क’,
ल’ जाउ हमरा
अहाँ नै बुझब तँ
के बुझत हमरा !
फेर अहाँ तमासाइत कहलहुँ
पुरुखक जाइत होइते छैक पाथर
आ उपमा देलहुँ अहाँ,
भँवरा सँ हमरा,
अहाँ फेर कहलहुँ,
“बाजू ने यौ-
बौक कियैक भेल छी"
किछु तँ ने बाजि सकलहुँ हम
अपने मोन मे अपने सँ,
ओझराइत रहलहुं हम.
आँइठ छोड़ल चाह सन,
सेराइत रहलहुँ हम
प्रिये ! की कहू हम
ओहि दिन हमर,
हालति नहि छल किछु कहबाक
आइ अनुमति नहि अछि किछु बजबाक
परिस्थितिवश हम-अहाँ,
आइ फराक छी जगती के आँगन मे
अहाँ केँ देखि संतोख करैत छी,
अपन मन-आँगन मे,
ठीके, परिस्थिति मन्नुख के,
नचनी-नाच लगा दैत छै...
3). किछु दिन भेल
किछु दिन भेल
दिल्ली सँ पटना लौटैत रही
मोनहि मोन एकटा बात सोचैत रही
ताबत एकता अर्धनग्न बच्चा सोझा मे आयल
आ कोरा मे अपनों सँ छोट के लेने,
चट्ट द’ सोझा मे औंघरायल,
हम सोचिते रही जे आब की करी,
बच्चा बाजल-
साहेब अहाँ की सोचि रहल छी?
हम तँ आब अपनों सोचनाइ छोड़ि देने छी
जँ मोन हुए तँ दान करू,
हमरा हालति पर सोचि क’ नै हमर अपमान करू
बात सुनि ओकर जेबी मे हाथ देलहुं,
आ ओकर तरहत्थी पर किछु पाइ गानि देलहुं,
डेरा पहुँचि क’ सोचलहुँ की हम ई नीक केलहुं,
या एकटा निरीह नेन्ना के भिखमंगीक रास्ता पर आगू बढ़ा देलहुं...
प्रण केलहूँ अछि जे आब ककरो भीख नहि देब,
भगवान अहाँ हमर प्रण के लाज राखि लेब
जा हम तँ अपने भीख मांगि रहल छी भगवान सँ
जो रे भिखमंगा....छी :
4) . सिहरि गेल मोन
सिहरी गेल मोन
चौंकि गेलहुँ हम
चेहा उठल स्मृति
मेज पर राखल टेबुललैंप
बेजान सन
भुकभुकाइत रहल
आ हम,
एही भुकभुकी मे
ताकि लेलहुँ
अपन जिनगी
आ जिनगीक सब रंग केँ
अबधारि लेलहुँ
हमहुँ आब मशीन जकाँ
स्विच सँ ऑन आ ऑफ
होइत रहैत छी,
जखन-तखन
बीति जो रे जिनगी
नहि अछि सहाज
आब बस...
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गुंजनश्री मैथिली काव्य-जगतक युवा पीढ़िक अग्रगण्य नाम सभ मे गानल जाइत रहलनि अछि। साहित्य, संगीत आ रंगकर्म मे समान रूप सँ सक्रिय गुंजनश्री आइ-काल्हि पटना मे रहैत छथि, पढ़ितो छथि, पढ़ाबितो छथि। गीत-संगीत मे सेहो बेस रुचि आ सक्रियता छनि, तहिना सुंदर गाबितो छथि आ संगीत सेहो अरेंज करैत छथि। विभिन्न नाटक सभ मे संगीतकारक रूप मे योगदान। एकरा अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकादि मे कविता, कथा, निबंध प्रकाशित-प्रशंसित। सम्पर्क सूत्र : gunjansir@gmail.com
आइ अनुमति नहि अछि किछु बजबाक
Reviewed by बालमुकुन्द
on
मार्च 24, 2015
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गुंजनक कविता अपन विशिष्ट शिल्प आ संवादक कारने पाठक पर विशेष प्रभाव राखैत अछि आ हम कोनो समाज सं बाहर नहि छि,तें हमरो......
जवाब देंहटाएंई सब त' बहुत पुरान कविता सब छैक| आभार ई-मिथिला आ विकास|
जवाब देंहटाएंसभ कविता सुन्दर आ मार्मिक भावसँ भीजल अछि जे मानसिक पटल पर एकटा फराक चित्र प्रतिबिम्बित करैत अछि। खूब बधाई संगहि एहि क्रमकेँ निरंतरता भेटैत रहए ताहि लेल कविकेँ आत्मीय शुभकामना! 💐💕🙏🙏
जवाब देंहटाएंसभ कविता सुन्दर आ मार्मिक भावसँ भीजल अछि जे मानसिक पटल पर एकटा फराक चित्र प्रतिबिम्बित करैत अछि। खूब बधाई संगहि एहि क्रमकेँ निरंतरता भेटैत रहए ताहि लेल कविकेँ आत्मीय शुभकामना! 💐💕🙏🙏
जवाब देंहटाएंएहिमे किछु कविता सभ पहिनेसँ पढ़ल अछि। सोझा-सोझी संवाद करैत हिनक काव्यशैली प्रभावित करैत अछि।
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