(१) प्रश्नचिन्ह
जीवनक वास्तविकता पर
एक कण सँ ल' क'
ब्रह्माण्ड, समस्त ग्रह पर्यन्त पर
जीवनक छोट सँ छोट उदाहरण सँ ल' क'
मनुक्खक कोशिकाकेँ भीतर व्याप्त
अणु-परमाणु पर्यन्त
एहि मायाजालक
जाहि मे ओझरायल अछि
हमर विचार-शक्ति
तर्क-शक्ति
विश्लेष्णक शक्ति
कुंठित भेल अछि मानव
शरीर सँ, मोन सँ
अपन अस्तित्वक मादे
कहाँ छैक एकर आदि
कतय छैक अन्त
मुदा
छी घेरायल एहि वृत्त मे
अग्निवृत्त मे
हम स'ब
जरि रहल अछि मोन
शरीर, भावना, विश्वास
संगहि
कतेको सहस्राब्दिक देन
ई सभ्यता आ संस्कृति
स्वाहा भ' रहल अछि
एहि अग्निकुंड मे
एहि जीवन के
प्रेम सँ
मुदा मिटा जाइत छैक
क्षणहि मे
कोना ल' लैत छैक प्राण
एकटा जीव दोसराक?
वा पश्चातापो ओकर मोन मे?
से नहि कहि
से नहि कहि
कोमल आ चटख रंग
चमकैत बाटक कात मे
आकर्षित करैत
दृष्टि आ नेत्रकेँ एकहि संग
काँटों मे बहरायत फूल
भेल बड्ड हर्षित
आँखि भरल हुलसैत गाछ
अपन जयगाथाक प्रतीक
करैत प्रदर्शित
काँटक बीच छल
ओहिना मुस्काइत
जेना एकटा थाकल किंतु
बिहुसैत मायक कोरा मे
नेना अछि खेलाइत
बीहड़ कंटक बोन
पसरल चारू कात
ओहि मे फुलायल
प्रकृतिक चमत्कार
कएलहुँ आत्मसात
ईश्वरक रूप देखल
बाट-घाट मे चलिते चलिते
कएल आइ यैह सूक्ष्म संधान
पाबि सकैत छी परमसुख
संसार के देखिते सुनिते
शारदा झा
हैदराबाद
jhasharda@gmail.com
Reviewed by बालमुकुन्द
on
जुलाई 24, 2015
Rating:

बहुत बढ़िया कविता।
जवाब देंहटाएंDhanyvaad!
हटाएंशारदा एक बेहतरीन शख्सियत !! एक बेहतरीन कवियत्री !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें .........मित्र !!
Dhanyvaad!
हटाएंपरिस्थितिवश प्राकृतिक चरिrत्र-चित्रण अति-उत्तम/परंचichaar - प्रथम कविता के सम्बन्ध में हमर विचार जे- सिद्धान्त के बजाय- अगर प्रायोगिक वातावरण बनाओल जाय, तखने फलदायी बूझू ??
जवाब देंहटाएंलेखनीक छेनी सँ संधानल बड़ जुगुत सँ तराशल शब्द-समूह निर्मित कविताक भव्य -दिव्य मूर्ति।
जवाब देंहटाएंBadhiya.
जवाब देंहटाएं