जनकविताक कालजयी शिल्प : भगैत


जनकविताक कालजयी शिल्प : भगैत

|| परिचय : रामबहादुर रेणु ||
|| पाठ : बद्री पँजियार, बीजो मरर, भूमी सदा ||

भगैत मिथिलाक एक अद्भुत धार्मिक ग्राम्य-गायन-शैली थिक। एहि मे नाट्य-तत्व सेहो पाओल जाइछ। एकर भाषा मैथिली थिक। मानल जाइछ जे एहि प्रकारक गायन आ एहि मे समाहित नाट्य-तत्वक आरम्भ 19 म शताब्दी सँ पूर्वहि भेल छल। भगैत, जकरा भगतै सेहो कहल जाइछ, एक पारम्परिक लोक-शैली थिक। एकर आयोजन मिथिला मे पूजाक रूप मे होइत अछि। आधुनिक बुद्धजीवी ग्राम्य-जीवनक एहि अटूट विश्वाश आ धार्मिक प्रयोजन केँ मनोरंजनक एक साधन मानै छथि, मुदा मिथिलाक ग्रामीण जन केँ भगैत मे अपन देवपुरुषक अप्रत्यक्ष रूप सँ उपस्थित हेबाक पूरा विश्वाश रहै छनि आ ई आयोजन भक्तिभाव आ सात्विक मानसिकता सँ कएल जाइत अछि। स्वच्छता आ पवित्रताक सीमा धरि एहि शैली केँ अपन प्रयोजनीयता बनौने राखल देखल जा सकैछ। मिथिलाक अलावे भगैत नेपाल आ पश्चिम बंगालक कतिपय क्षेत्रक ग्राम्य-जीवन मे अपन लोकप्रियता कायम कएने अछि। 

भगैतक कथ्य पूर्णरूपेण धार्मिक शब्दावली आ भावना सँ ओतप्रोत होइत अछि। एहि मे ओहि महापुरुष लोकनिक गाथा गाओल जाइछ जे अपन जीवनकाल मे अद्भुत क्रियाकलापक माध्यम सँ अपन महत्ता कायम केलनि आ अपन जन्म केँ सार्थकतापूर्वक अलौकिक बना देलनि। ओ लोकनि अपन प्रभुत्व आ पराक्रम सँ समाजी लोकनि केँ जीवन-दान देलनि, कष्ट सभक निवारण केलनि, अपन योगबल आ सत्यवचनक कारण अनुकरणीय आ प्रशंसनीय बनलाह। हुनका लोकनिक परीक्षा देवता लोकनि धरि लेलनि आ अनेक प्रकारक वरदान देलखिन। एहि महापुरुष लोकनिक जीवन परम् दृढ़ आ आमजन सँ एहि अर्थ मे भिन्न रहलनि जे ओ लोकनि समस्त जगतक दुर्भावना केँ त्यागि जगत-कल्याण मे अपन सम्पूर्ण जीवन व्यतीत क' देलनि। ओ लोकनि पहिने तँ अनुकरणीय बनलाह आ तत्पश्चात हिनकालोकनिक गाथा जगह-जगह गाओल जाए लागल। एही क्रम मे एहि गाथा केँ गायनक स्वरूप भेटल आ ओ लोकनि देवपुरुषक रूप मे स्मरण कएल जाए लगलाह। भगैत सँ जुड़ल समाजी हिनका लोकनि केँ अपन देवता आ पूर्वज दुनू मानै छथि। एहि प्रकारक देवपुरुषक संख्या दू दर्जन सँ बेसी अछि। धर्मराज, ज्योति, कारू महराज, बेनी, बिसहैर, खिरहैर, कालीबंदी, बरहम, हरिया डोम, गहील, अन्दू बाबा, मीरा साहेब आदि देवपुरुषक जीवन-गाथा भगैतक गायन के मुख्य आधार थिक। 

भगैतक तीन अंग मानल जा सकैत अछि- (1) गायन (2) नाट्य आ (3) दर्शक। एहि प्रकारक आयोजन मे संवाद केँ गाबि क' प्रस्तुत कएल जाइछ, मुदा बीच-बीच मे गद्य मे सेहो अभिव्यक्ति होइत अछि। भगैतक गीत सभक कोनो लिखित प्रमाण नहि अछि। भगैत-मंडली ओकरा अपना तरहेँ तैयार क' क' प्रस्तुत करैत अछि। मंडली मे जे आगाँ-आगाँ गबैत अछि, ओहि व्यक्ति केँ पँजियार कहल जाइछ। बाकी गायक सभ भगैतिया कहबै छथि। भगैतक गीत-गायन-गति तेज तथा सुर ऊँच होइत अछि। एकर संगीत अति तीव्र आ कोलाहल उतपन्न करबाक संगहि विशिष्टप्रभावी सेहो होइत अछि। संगीत आ ध्वनि-प्रभावक हेतु ढ़ोलक, झालि, खँजरी, डुगडुगी आदिक प्रयोग कएल जाइछ। सम्पूर्ण गायन-प्रक्रिया धार्मिक भाव मे सम्पन्न होइत अछि। 

ओना तँ नाटकक अभिप्राय वास्तविकताक भ्रम उत्पन्न करब थिक, मुदा भगैतक नाट्य केँ सम्बंधित व्यक्ति लोकनि वास्तविक मानै छथि। हुनका लोकनिक दृष्टि मे संदेह कर बड़ भारी पाप थिक। हुनका लोकनिक मानसिकता एक खास तरहक मजगूत विश्वास सँ सराबोर रहैत छनि। संसार भरि मे कम्मे शैली प्रायः एहन हएत जकरा प्रति एहन अटूट विश्वाश आ दृढ़ धारणा देखल जाइत हो। 

आयोजनक समय भगैतिया लोकनि कोनो पवित्र स्थान केँ कार्यक्रमक हेतु चुनि क' गोलाइ मे बैसै जाइ छथि। पँजियार गोलाइक अंदर बैसैत छथि। आगोजनक दौरान जाहि व्यक्तिक शरीर मे वर्णित देवपुरुषक प्रवेश होइछ, ओ भगता कहबैत छथि। भगैत शुरू भेला पर भगैतिया लोकनि बीच-बीच मे अपन कान मे अँगुरी द' क' बहुत ऊँच स्वर साधै छथि, जाहि सँ एक विशिष्ट प्रकारक मुद्रा बनैत अछि। गायनक क्रम मे भगताक शरीर मे वर्णित देवपुरुषक प्रवेश होइछ तँ भगताक शरीर काँपय लगैत अछि, क्रियाकलापक छटा अद्भुत आ असामान्य भ' जाइत अछि। ओ देवपुरुषक रूप मे अपन व्यवहार अभिव्यक्त करए लागैत छथि। हुनका आगू मे धूप-दीप, अक्षत-बेलपात, फल-फूल-मधुर आदि राखल रहैत अछि। उपस्थित जन-समूह केँ भगता भभूत, तुलसीपत्र, बेलपात, फूल आदि द' क' कल्याणक आश्वासन दृढ़तापूर्वक दै छथि। कोनो-कोनो भक्त सँ ओ अपन अप्रसन्नता सेहो व्यक्त करै छथि आ कानय सेहो लागै छथि। उपस्थित दर्शक ओहि काल भगता केँ अपन देवपुरुषक रूप मे देखै छथि। मानल जाइछ जे भगताक लेल योग आ उपासनाक विशेष महत्व होइत अछि। देवपुरुषक रूप मे अपन विश्वसनीयता देखेबाक हेतु भगता अपना मुँह मे आगिक गोला ल' लै छथि, दीपक आँच मे अपन जीह तपाबै छथि, हाथ मे अंगोरा ल' क' खेलै छथि, आगि पर चलै छथि। एहि प्रकारक अद्भुत ओ रोमांचक क्रिया प्रायः प्रत्येक भगैत-कार्यक्रम मे देखबा मे अबैत अछि। ई सभ बात असत्य प्रतीत भ' सकैछ, मुदा एहन होइत अछि। ई चाहे ओहि व्यक्तिक शारीरिक-मानसिक कारण सँ होइत हो अथवा आन कोनो अज्ञात कारण सँ। 

भगैतक आयोजन मे उपस्थित श्रोता आ दर्शक भक्तक रूप मे आनन्द प्राप्त करैत छथि। ओ आत्मिक शांतिक अनुभव करैत छथि। भगैत मे दर्शक एकर अंग बनि जाइछ। एहि शैलीक एक फुट विशेषता इहो थिक जे एहि मे दर्शकक उपस्थितिक अनिवार्यता नहि अछि। बिना एको दर्शकक सेहो भगैत घन्टो धरि चलैत रहैत अछि। जँ दर्शक अछि तँ सेहो भगैत मे अपन सहभागिता कायम करैत छथि आ एहि समूचा प्रक्रिया मे दर्शक दर्शक नहि 'परफॉर्मर'क रूप मे संलग्न भ' जाइत छथि। भगताक प्रदर्शन मे मुख्यतः दर्शक आ भगताक बीच गद्य-सम्वाद चलैत अछि। तखन दर्शक भक्त आ भगता देवताक रूप मे होइत छथि। 
गायनक ई आश्चर्यजनक शैली अद्भुत रूप सँ जाति-वर्ण सँ ऊपर उठि क' अपन अस्तित्व कायम केने अछि। ई एक पारम्परिक, धार्मिक, उच्च, भावुक, पवित्र सम्वेदनाक शिष्ट रूप थिक। भगैत मंडली मे कोनहुँ वर्गक, धर्मक, जातिक लोक शामिल भ' सकै छथि। ज्ञातव्य हो कि भगैतक देवपुरुष लोकनि मे डोम जातिक हरिया डोम आ मुसलमान सम्प्रदायक मीरा साहेब सेहो छथि। भगता लोकनि एहि मे सँ कोनो ने कोनो देवपुरुषक उपासक होइतहि छथि। भगैत गायकक रूप मे मुनेश्वर यादव, नटाय पँजियार, भोलन यादव, दुखीचन्द यादव, रेवती भगत, अर्जुन यादव, बेनी साह आदि प्रख्यात छथि। हिनका लोकनिक स्वर अत्यंत मधुर आ सधल-साधल होइत छनि। पारिश्रमिक ल' क' कार्यक्रम प्रस्तुत करबाक व्यवसायिक रेबाज हिनका लोकनि मे नहि छनि। 

सांस्कृतिक दृष्टिकोण सँ भगैत गायनक एक प्राचीन शैली थिक। भगैतक धुन आ ताल केँ वर्तमान रंगमंच-संदर्भ सँ जोड़बाक कोनो प्रयास एखन धरि नहि कएल गेल अछि। विभिन्न पारंपरिक शैलीक अनुकरण कए रंगमंच अपन खूब समृद्धि केलक अछि, मुदा भगैत सन गायन-शैली, जाहि मे नाट्य तत्व तँ अछिए, कंसन्ट्रेशनक चरम बिंदु सेहो अछि, केँ आत्मसात कए एक नवीन प्रयोग आ नवीन कल्पनाक चेष्टा एखनधरि नहि भेल अछि। भगैत पर आइ धरि किछु खास लिखलो नहि गेल अछि। आइ आधुनिकताक चद्दरि ततेक नमरि गेल अछि जे ई अद्भुत शैली अपन अस्तित्व आ अस्मिता केँ ल' क' चिंतित अछि। संभव अछि जे दस बरखक बाद भगैत गौनिहार क्यो नहि बचय आ ई अद्भुत लोक गायन शैली लुप्ते भ' जाय। 

भगैतक अध्ययन क' क' हमरालोकनि अपन सांस्कृतिक धरोहर आ अस्मिताक पहचान मे एक आर कड़ी जोड़ि सकैत छी। एकर विस्तृत संदर्भक खोज कए आधुनिक रंगमंच लेल एकर उपयोगिता बहार क' सकै छी। भगैतक देवपुरुष लोकनि पर नाट्यलेख तैयार करा कए तकरा वर्तमान सामाजिक सन्दर्भ मे व्यापक आयाम देल जा सकैछ। तखन भगैतक लुप्तिकरण-प्रक्रिया तँ रुकबे करत, भारतीय रंगमंच केँ एक नवीन संस्कार सेहो प्राप्त हएत।




भगैत
|| मीरा साहेबक भोजन प्रसंग ||


बरबा बर गै खसीया कनिया केँ नौतए ने गौ
छोट गे मुरगा दुलहिन गे हलाल केलकैए
कनिया परचा गोस लेलकै दुलहिन गै बनाय
हे गै रचिये रचि कए कनिया बनाबए लागलैए
कनिया जे बनबैए खाना छप्पन परकार ने गौ

किछु जोगे मगन सै भुजिया कनिया जे भुजाइए लेलकै
दुलहिन जे कबाब बनेलकै ने गौ
किछु जोगे गोस के सिरुआ झोर झोड़ाइए लेलकै
बनाइए लेलकै कनिया खाना छप्पन परकार ने गौ

ऐसन-ऐसन खाना कनिया डिल्ली मे बनाबए लागल ने
कनिया के खाना सौरभ करैए डिल्ली गमागम
खाना जे गे बनाए गए कनिया जोगे तैयार भेलै
कनिया गे रिकमी दुलहिन खाना लेलकै परोसि ने गौ

बधना जोगे मे गंगाजल दए कए उठाय लेलकै
कनिया जोगे खाना केँ रुमाल सँ गे झंपाय लेलकै
खाना उठाए कए कनिया तरहथ पर लेलखिन उठाय ने गौ
दुलहिन बधना के जल हाथ मे लेलखिन लगाय ने गौ
चलिए जोगे देलखिन रिकमी स्वामी जी के रनवास ने गौ

सासू जी के जे मोन दुलहिन केँ पड़ि गेलै हौ भइया
मोने-मोने दुलहिन करैए विचार ने गौ
पहिने जे खाना हम्मे सासूजी केँ खिलाय लेबै
हो खोदाइ बाबा, त'ब जेबै स्वामी जी के रनवास ने गौ

सासूजी के खाना कनिया परोसि लेलकै हौ भइया
खाना लेलकै जोगे रुमाल सँ झंपाय ने गौ
बधना के जल कनिया हाथ केँ लगाय लेलकै
चलिये देलकै सासूजी के रनवास ने गौ

रमकल झमकल कनिया चलि देलकै भइया
चलिये देलकै सासूजी के रनवास ने गौ
कनिया के बेबहार बीबी देख लेलकै हौ भइया
मामा हँसैए मोने-मोन मुसुकाइ ने गौ

मामा केँ हँसैत कनिया देख लेलकै हौ भइया
लाज सँ सरमेलै कनिया सरमाइए गेलै ने
की ए मामा टांग-पीठ उघार देखलक हौ भइया
की ए देखलक कुलच्छन बेबहार ने हो

मोने मोन सोचैत दुलहिन चलि देलकै हौ भइया
चलिये देलकै सासूजी के रनवास ने हो
घड़िये पलक मे दुलहिन जूमि गेलै हौ भइया
जूमिये गेलै सासूजी के हजूर मे हो

बोलिया बोलैऐ कनिया बोलै छै हौ भइया
दुलहिन जोगे सासू जी केँ समझाइ ने हो
एक रिकमी खाना बीबी पाबि लहो हौ भइया
खाना केरी सौरभ तोंहें पाबि लहो हे मामा
त'ब जेबै बियहुआ केरी रनबास ने हो

कनिया के कहनिया मामा सुनि लेलकै हौ भइया
तरबा के गोस्सा मगजिया चढ़ि गेलै ने हो
बोलिया बोलैऐ मामा बोलै लागलै हौ भइया
दुलहिन केँ कहैए जोगे समुझाय ने हो

छोटका खन्दान के बेटी छोटहा छें गै कनिया
छोटे सन तोर बुधि आ गियान छौ गे की ?
तोहरा जे राज मे हे दुलहिन उनटल की बेबहार होइ छौ
औरत के जूठ खाना मरद खाइ छौ गे की ?

|| गहीलक शिकार कथा ||


कौने बोन बोलै मैया कारी कोइलिया हे
मैया, कौने बोन बोलै छै हे मजूर
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

बाबा बोन बोलै मैया कारी कोइलिया हे
मैया, भइया बोन बोलै छै मजूर
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

कथी केरी तिरबा मैया कथी के धनुषिया हे
मैया कौने बोने खेलबह आ हे शिकार
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

सोना केरी तिरबा मैया रुपा के धनुषिया हे
मैया, बीजू बोन खेलबह आ हे शिकार
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

एक कोस गेलह मैया दुइ कोस गेलह हे
मैया, तीने कोस बीजू बोन हे शिकार
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

एक बोन जोहलह मैया दुइ बोन जोहलह हे
मैया, तीने बोन जोहलह आ हे शिकार
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

हरीनो ने मारह मैया बघबो ने मारह हे
मैया, बीछि-बीछि मारै छह हे मजूर
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

हकलो जे कानै मैया बोन के मजुरनी हे
मैया, भरल भेस भरलह आ हे सिनुर
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

बकसह बकसह  मैया सीथ के सिनुरबा हे
मैया, भरल बेस हरह नै हे सिनुर
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

जब हम्मे आ गे मजुरनी सिनुर बकसबौ गै
मजुरनी, की ए देबै हमरा केँ इलाम ?
जगदम्बा मैया राज घुमती हे

जब तोहें आ हे मैया सिनुर बकसबह हे
मैया, भरी राति नाच हम्मे देखाएब हे
जगदम्बा मैया राज घुमती हे


बाबा कारू खिरहरि स्थान

|| धर्मराज-जोतिक-संवाद : जोतिक के लिलसा ||


माया केर जे मायारूपिया केने
माया के केलखिन दैव हौ विस्तार
अपन रूप केँ छोड़ैए हौ अनरूपिया

धए लेलकै ब्राह्मण केर हौ सरूप
आठो अंग सँ शरीर मे अनरूपिया
बाबा बिभूत लेलखिन जे लगाय
हौ गेरुआ रंग जे बस्तर अनरूपिया
अंग मे दैव लेलखिन जे लगाय
माँझे आबली लिलार मे निरमोहिया
कैए लेलखिन तिलक ने हौ
तेरह ताग जनऊआ गोसाईं हौ
कन्हा पर जे लेलखिन हौ लटकाय
आ हौ साब नीक पोथिया छलिया गोसाईं जी

बाबा बगली मे लेलखिन जे लगाय
मधुरी बोल हौ बोलैए गोसाईं बाबा
चलू चलू हौ बीर पबनबीर
चलू बरैला - सन हौ च'र

बाट जे धेने पबनबीर
आबै छै बरैला - सन हौ च'र
हौ आगू जे आगू रामक दूत पबनबीर
पाछू दुलरुआ बाबू कालीदास
आ हौ घड़िये छन पलक मे नारायन
जूमि गेलै बरैला - सन हौ च'र

सुनह सुनह हौ जोतिक दुलरुआ
सुनि लैह सबद हौ हमार
आ हौ करह करह जोतिक खेलौनमा
कैए लेहो भेंट हौ मुलकात

बेर सँ जे कुबेरिया भेलै हौ बाबा भोग मे
बेर के लौटनिया लौटी गेल
देब-पितर मोर भूखल छै हौ बाभन
भुखले छै हौ पुत्र सन के सुग्ग'र
केना हम्मे मिलबह हौ बाभन
केना करबह भेंट ओ मुलकात

धरती के हम देब छियै ब्राह्मणदेब
सेहो तोहर मुलकात लेली ठाढ़
धरम केर माया तोरा छौ हे हौ जोतिक
कैए लेहो भेंट ओ मुलकात
आ हो गछी लेहो धरमक तूं बेबहार

हम्मे हे हौ जोतिक ओछ जाति ब्राह्मण जी
छियै जे हम डोम हौ धरिकार
सुग्गर - मांकड़ के गोस हम्मे खेलियै हे हौ बाबा
हम्मे आ हौ पौंपीपुर न'ग'र
केना गछबह बाबू हौ ब्राह्मण जी
केना गछबह धरमक हौ बेबहार

जाती के फिकिर नै तूं करह हे हौ जोतिक
माया केरी रूप जे अपरूप
धरम केर मतिया बाबू तोरे मे हे दुलरुआ
तेरह तागक बाभन यै ने बेकार हौ ने
मन के संताप तोहें तियागह हे हौ दुलरुआ
पथ गछह बरैला - सन हौ च'र

सत करह तूँ पहिने हे हौ बिपरा
सत करह ने बरैला - सन हौ च'र

एक सत जे करै छियह दुलरुआ
सत दोसर जे तोरे संग मे आइ
हौ तेसर सत जे करै छी हौ जोतिक
हम्मे तोहर संग मे हौ साथ
सत सँ बेसत हेबै हौ जोतिक
हम्मर धरम जेतै हौ बेरबाद

सुनह सुनह हे हौ बाबू ब्राह्मण जी
सुनि लेहो लिलसा हे हौ हमार
तोरहि सन के काया बाबा बिपरा
हमरा देहो बाबा हे हौ निरमाय
तब हम्मे गछबह बाबा बिपरा
गछबह हे हौ तोहर जे बेबहार

जेहने काया हम्मर छै जोतिक हौ
ओहने देबह तोहर हौ निरमाय
पथ गछह हौ बाबू जोतिक 
पथ गछह बरैला - सन है च'र


|| जोतिक : केदली बोन हौ बास ||


कंचन काया तोड़ि कए हौ गोसाईं जी
कैए देलकै कोढ़िया के हौ शरीर
उठलो क'ल नै हौ आब
बैठलो क'ल नै हौ आब
अरबे-अरब फोका होइ छै नारायन
चलै शरीर सँ अगिनिया केरी हौ बान
नैना सँ नोर जे गिरै छै जोतिक केँ
बाबा पोंपीपुर हौ न'ग'र
कानिये हौ कानि कए शब्दैए बाबू जोतिक
आमा केँ कहैए समुझाय

बाभन नै ऊ रहौ हे गे आमा
रहौ दुलरुआ बाबू कालीदास
गै दैब केरी फभकी मे पड़ि गेलियै आमा
मैयो हे गै पोंपीपुर न'ग'र

बारह बरख के लिखनी लिखलकै हे गै आमा
दैब हमरा कदली बोन गै बास
बिन अन्न आ जल के गै आमा
बिन जूरी के गै बिन छाहरि केरी गै बास
धरमक कौल हम्मे पुरबै ले' गै आमा
चलि जेबै केदली बोन गै बास
जैनी के बेरिया गै आमा
हीतमन समाज केँ गै बजा

हमरा तोहें मरै दैह जोतिक हौ
मुख मे अगिया दिहो लगाय 
तब तूं जइह जोतिक हौ
धरम केरी कौल जे हौ पुराय
उसर भूत जे हम होबै जोतिक हौ
बाबू हे हौ पोंपीपुर जे न'ग'र
बत्तीसो सुआ दूध हम्मे पियेलियह हौ जोतिक
साड़ि लेलियै सोइरीघर मे जाय
दूधहि के दाम तूं चुकाय दै हौ जोतिक
तब जइह केदली बोन हौ बास

दूनू मुक़ा मारैए मन्दोदरि
छाती मारै मैयो अज गे मारि
कानए लागलै हाबी हाबी जोतिक केरी आमा
कानैए गै रोदना हौ पसारि
कानिये जे कानि कए गै आमा
कहैए जे दैब केँ समुझाय

मांगल-चांगल हमरा देलहो ने गोसाईं हौ
देलहक तूंहे एके बेटा जोतिक
उहो बेटा केँ आइ हरि लेलह गोसाईं हौ
केकरा देखि कए बान्हबै हौ धैरज

डेरा-डेरा दौड़इए जोतिक केरी आमा
हितमन केँ कहैए हौ समुझाय
सुनह सुनह हीतमन समाज हौ
सुनि लेहो परेम के हौ बात
हौ हमरो जे बेटा जोतिक, समाज हौ
जाइए केदली बोन हौ बास
माँगे छह जे भेंट-मुलकात समाज हौ
चलह चलह हम्मर हे हौ दुआरि

जाही दिन मे बेटा के सुदिन रहौ गे आमा
सन्मुख रहौ दाता हौ निरायजन
मैयो पोंपीपुर गे न'ग'र
निरधन केँ जे धन देलकौ बेटा तोहर
मरोछनी केँ जे कोखिया
निपुत्र केँ जे पुतफ देलकौ गै आमा
तहिया तूं नै कहलें चलह चलह हौ हितमन
आइ किए जेबौ तोहर हे गे दुआर ?
आइ जब दीन तोर दुरदिन भेलौ आमा
दैब जे बेमुख भेलौ बाबू कालीदास
कंचन-काया केँ हरि लेलकौ आमा
काया देलकौ कोढ़िया के गै शरीर
कोढ़ियो गैत पर दैब लिखलकौ गे आमा
लिखिये देलकौ बारह बरस बनबास
चीन्हल लोक जे अनचिन्ह केलकौ गे आमा
हितमन कए देलकौ गै बीरान
भने कोढ़िया जाइ छौ गे आमा
जाइ छै गामक हे गे बलाय

नैना नोर जे झरै छै गे आमा
भूम पर गिरैए मैयो ओंघराय
कलपिए कलपि कानै छै गे आमा
मैयो हे गै पोंपीपुर न'ग'र...




|| कोइली - जोतिक - संवाद ||

हमरा तेजि क' भागल जाइत छह गुरु
जाइ छह बिपत के बन हौ गुरु बास
बड़ी ही जतन सँ हमरा पोसलह हौ गुरु
पोंपी मे दूधभात हमरा खिलाय
आ हौ तोहरे जे संग हमहुँ जैबह हौ गुरु
करबह हमहुँ केदली बोन हौ बास
भूख तोरा लागतह हौ गुरु बाबा
दूबि तोरि मुँह मे देबह लगाय
चोंच सँ जे जल आनि कए हौ गुरु
मुख मे देबह हम्मे तोरा पियाय
चढ़ैत मास बैसाख जे हौ गुरु
होइ छै रोहनिया - सन हौ नक्षत्र
तर धरती तबिये जाइ छै हौ गुरु
ऊपर तबिये जाइ छै असमान
कोढ़िया गैत मे रौदा लागतह गुरु
छन छन करतह तोहर हे हौ शरीर
जाहाँ जाहाँ रौदा तोरा लागताह हौ गुरु
पंखिया सँ करबह जूरी छाँह
तोरे सेवा कए कए मरबै हम्मे गुरु
हमहुँ केदली बोन मे हौ बास

गे कोइली 
नै जो नै जो संग - साथ हमर गै कोइली
सेवा कर तूं आमा केर गै ठाम 
बिना बेटा के ऊआलिस के जे कोइली
छोडलहुँ लखिमा बूढ़ी गे माय
बिपती के बोन जे भागल जाइ छी कोइली
हम्मे केदली बोन के गै बास
बेटा के बदला तूं बेटा बनिहें गे कोइली
आमा के तूं पोंपीपुर न'ग'र
जत्ते करबें आमा के तूं सेवा गे कोइली
तते सुफल हैत केदली केर गै बोन

हौ गुरु महराज
आमा के देखबैया दैब छै पितर छै
तोरा नै छह अप्पन कोई समांग
चीन्हल लोक तोरा अनचीन्ह केलकह गुरु
आमा केँ छै बाबू कालीदासक आस
बोन केरी हम पंछी छी हौ गुरु
हम्मे नै छी लोक आहौ मनुख
बिपती के बेर नै हम छोड़बह हौ गुरु
जैबह तोरे संग केदली बोन
तोरा जे दरसन बेगर हौ गुरु बाबा
पोंपी मे तेजि देबह हम्मे परान
ई बध लागताह तोरे हौ गुरु महराज

हमहुँ जैबह केदली बोन हौ बास
मधुरी जे बोलिया कोइली बोललै रोदन मे
एतना बोलैत गेलै हौ लटुआय
खोलिए जे देलकै पिंजरबा जोतिक हौ
कोइली केँ साथ लेलखिन हौ लगाय। 

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सौजन्य : श्री बद्री पंडित पँजियार (बनगाँव), श्री बीजो मरर (सतरबार), श्री भूमी सदा (महिषी) तथा मध्यप्रदेश लोककला परिषद, भोपाल। प्रस्तुत सामाग्री एतए 'देशज' (सम्पादक : तारानन्द वियोगी आ अविनाश) सँ साभार प्रस्तुत अछि। 


जनकविताक कालजयी शिल्प : भगैत जनकविताक कालजयी शिल्प : भगैत Reviewed by emithila on मार्च 08, 2020 Rating: 5

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