मन्दाकिनी


कथा :: मन्दाकिनी : प्रभास कुमार चौधरी

सुतली राति मे गर्द मचल छलै।
बरबज्जी ट्रेनक पुक्की गामक लोक सुनने छलै, तकर कनियेँ कालक बाद रातुक निस्तब्धता केँ चीरि पिहकारी आ ठहक्काक स्वर सभ चारू कात पसरऽ लगलै। ओही गर्दमगोल पर मनोजक निन्न टूटि गेलै।
बीच आँगन मे चैकी पर चितंग पड़ल छल। गुमार बेसी छलै। आँगन मे राखल चैकिये पर माइ बिछौन करबा देने छलै। गुमारक द्वारे सभक बिछौन आँगने मे लागल छलै। आँगनक मड़बाक उतरबारी कात ओकर चैकी छलै जकर पौथान लग राखल चैकी पर ओकर माइक संग दीयर आ सुधा सूतल छलै-ओकरा सँ छोट बहिनक बेटा-बेटी। मड़बाक पुबारी कात राखल चैकी पर प्रदीप सूतल छलै। पाँच भाइ मे ओएह टा गाम रहै छै आ गामे सँ कॉलेज जाइत छै। छोटकी बहिन मुन्नीक बिछौन पुबारी घरक पछबरिया ओसारा पर छै आ मड़बाक माँटि पर निभेर सूतल छलै ओकर चरबाह गेनमा। उतरबरिया घर मे काका रहै छथिन, जकर पछबरिया अलंग झड़ि गेल छै। आ मात्र एकटा कोठली फूसक कहुना ठाढ़ छै। दछिनबरिया घरक तीन कोठली मे भाइक परिवार रहै छनि।
आँगन मे इजोरिया छिड़िया गेल छै। मनोज जखन आँगन आएल छल, नीक जकाँ अन्हरिया जमकल रहै। सभ सूति रहल छलै। खाली माइ जागल छलै, मुदा ओंघाइत एकटा चैकी पर बैसल छलै। थारी परसैत कहलकै-बड़ राति भऽ गेलौ। कतऽ छलऽ अन्हार मे?
माइक ओइ बात पर ओकर मोन पाछाँ... बहुत पाछाँ उधिआए लगलै। छोट... बहुत छोट होइत चल गेल ओ। अधिक काल साँझ पड़लो पर आँगन घुरबा मे देरी भऽ जाइक। मुदा, गामक जइ कोनो आँगन मे रहए आ चाहे जतबा अबेर होइ, आँगन दिस जएबा लेले जखन बिदा होबऽ लागए... लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै। ओकरा देखि अनेरो मनोजक मोन लोहछि जाइ। चरवाह ओकर मोनक बात जेना बुझि जाइ।-हमरा पर किए बिगड़ै छी बौआ? मालिक नइं मानलनि। कहलनि-ताकि लबहुन जतऽ होथि। अन्हार मे कोना घुरताह?
आ, तामसें मुँह धुआँ कएने जखन मनोज अपन घर दिस विदा होअए, दरबज्जे पर लालटेम नेने टहलैत भेटि जाथिन दादा(पिता)। हुनका देखि ओकर क्रोध आर बढ़ि जाइ। दादा ओकर मोनक बात नइं जानि कोना बुझि जाथिन-अनेरो तमसैला सँ की हेतऽ? समय पर नइं घूरि सकैत छऽ तऽ कम सँ कम टाॅर्च लऽ कऽ जा। सेहो नइं होइ छऽ तऽ कहि कऽ जा जे कोन आँगन मे रहबऽ? घरे-घर ताकऽ तऽ नइं पड़तैक एना।
अही घरे-घर तकनी पर ओकर मोन लोहछि जाइ। जेना ओ कोनो दुध-पिब्बा नेन्ना रहए। प्रात भेला पर ओकर तामस आर बढ़ि जाइ। जेम्हरे जाए, सभ पूछऽ लगै-राति कहाँ चल गेल रही मनोज! चरवाह हमरो आँगन ताकऽ लेल आएल रहौ।
मुदा मनोज कतबो तमसाए, दादाक व्यवस्था मे कोनो अन्तर नइं होइत छलनि। साँझक बाद गामक कोनो आँगन मे रहए वा धार पार पेठिया-बजार मे अँटकि जाए, जखने विदा होइत छल लालटेम नेने चरबाह ठाढ़ रहै छलै। आ, अपन दलान लग दोसर लालटेम नेने दादा टहलैत रहै छलखिन। माइक बात पर मनोज केँ ओ पुरना बात मोन पड़ि गेलै। आब ने ओ गाम मे रहै अछि, ने घरे-घर क्यो लालटेम नेने ठाढ़ रहै छै। दलान-दरबज्जा सुन्न रहै छै। दादा नइं छथिन आब। ओकर संग ओकर छोटका भाइ सभ सेहो बाहरे रहै छै, गाम मे रहै छै-माइ, एकटा छोट भाइ, एकटा छोट बहिन आ भागिन-भगिनी...
आइ दिने मे गाम पहुँचल छल। दलान सुन्ने छलै। आँगन मे पैसि गेल छल। भनसा घर मे व्यस्त माइ देखिते दौड़ि कऽ आँगन आएल छलै आ हाथ पकड़ि शम्भूनाथ केँ भगवतीक घर लऽ गेल छलै। ओकरा खाली हाथ प्रणाम करैत देखि ओकर आँजुर मे किछु फूल आ दूटा टाका राखि देने छलै। भगवतीक बाद माइ केँ प्रणाम कऽ आँगन आएल ता उतरबरिया घर सँ काका बहार भेलखिन-कखन अएलऽ? ने कोनो समाद, ने चिट्ठी। कुशल-क्षेम कि ने!
ओ पैर छूबैत कहलकनि-ऑफिसक काज सँ दरभंगा आएल रही। एक दिन लेल गामो चल अएलहुँ।
-एक्के दिन लेल?-काकाक स्वर उदास भऽ गेलनि-एतुक्का हाल तऽ देखिते छी। पचहत्तरि बरखक बूढ़ आ जीर्ण रोगी। आब ई बबासीर एक्को क्षण चैन नइं लेबऽ दैत अछि।-एतबा कहि ओ शोणित सँ भीजल धोती देखबऽ लगलखिन।
ताबत माइ पछबरिया ओसारा पर बिछौन कऽ देने छलै। चैकी पर आबि कऽ जहिना बैसल, गेनमा पंखा हौंकऽ लगलै। कनेटा हाथपंखा। ओकरा फेर एकटा पुरना गप्प मोन पड़लै। दादाक व्यवस्था आ हुनकर नियम। जहिना शहर सँ क्यो आएल कि बड़का पंखा लऽ गेनमाक पित्ती टुनमा ठाढ़ भऽ जाइत छलै। अढ़ाइ हाथक डण्टा लागल बड़का पंखा! टुनमाक हाथ तैयो लगातार चलैत छलै-घण्टो।
पछबरिया घरक ओसारा परक चैकी पर जखन चाह पीबि, आ जलखै कऽ पड़ि रहल, बहुत रास पुरना बात मोन पड़लैक। भाइ गाम मे नइं छलखिन। दक्षिणबरिया घर जा भौजी केँ प्रणाम कऽ अएलनि। धीया-पूता सभ स्कूल-कॉलेज चल गेल छलै। माइ भनसाघर मे भानस-भात मे व्यस्त छलै। असगर चैकी पर पड़ल ओकर मोन बौआइत रहलै।
आँगनक सभटा चीज चीन्हल, मुदा तैयो नवे सन लगै। ओना, नव होएबाक सती सभ चीज पुरनाए गेल छलै आँगन मे। पछबरिया कोठे टा नव छलै, जकर ओसारा पर राखल चैकी पर ओ पड़ल छल। मुदा, ओकरो दुनू कोठली आ सौंसे ओसारा मे एखनो माँटिए-माँटि छलै। कोठली ओसाराक संग भनसाघर केँ सेहो सीमेन्ट करबा देबाक दादाक बड़ इच्छा रहनि, आ ओहू सँ पैघ इच्छा रहनि पछबरिया घरक कोठा पर चढ़बा लेल सीढ़ी बना देबाक। माइ कहियो काल दाबल स्वरेँ बजैत छै-एतबो नै पार लगैत छऽ तोरा सभ केँ। अपना नइं काज छऽ, मुदा बापक आत्मा केँ शान्ति भेटतह, हुनको लेल तऽ एतबा करबा लैह। ओ एकसर एतेक कऽ गेलखुन, तोरो लोकनि तँ पाँच छऽ...
सत्ते, ओकरा बुते किछुओ कहाँ सम्भव भेल छै? पछबरिया घरक सीढ़ी आ सीमेन्टक कोन कथा, पुबारि घरक मरम्मति पर्यन्त पार नइं लागल छै। चारू कोठली बरसात मे पोखरि बनि जाइत छै-एक्को बुन्न बाहर नइं। ओहो पक्के देबाल छै, मुदा छत मे टीन पाटल छै।
दादा सभ वर्ष ओकर नट-बोल्ट बदलि, पोलटिस लगबा दैत छलखिन... बीच-बीच मे कोनो चदरा बदलबा दैत छलखिन। आब वर्षक वर्ष भऽ जाइत छै। पुबारि घरक उतरबरिया आ दछिनबरिया कोठलीक देबाल वर्षाक पानि सँ अलगि गेल छै। देबाल टेढ़ भऽ गेल छै, कहियो खसि सकैत छै! दुनू बिचला कोठलीक आसमानी रंगक देबाल पर पानिक टघार सँ विचित्रा-विचित्रा रेखाकृति बनि गेल छै। पुबारी कातक ओसारा जे दलानक काज करैत छै, एकदम बदरंग भेल छै। किरमिची रंग धोखड़ि गेल छै आ फर्श परक सिमटी ठाम-ठाम उखड़ि गेल छै।
मुदा, माइ आब एकर सभक चर्चा नइं करैत छै ओकर गाम अएला पर। पहिने करैत छलै। ओइ चर्चा पर ओ उत्साहित भऽ सभटा बजट बना लैत छल। सीढ़ीक बजट, सिमटीक बजट, मरम्मतिक बजट। फेर गाम सँ चल जाइत छल। अगिला बेर फेर बजट बनैत छलै। मुदा आब ओकर चर्चा नइं होइत छै। माइ केँ दोसरे चिन्ता छै-जेहो खेत बाँचल छऽ, परतिए रहतह। तोरा लोकनि देखबह नइं, तऽ हम आँगन सँ कतेक की देखबइ! एकटा बड़द सँ कतहु खेती भेलै अछि? भाँजवला बड़ झँझट करैत अछि। गाम मे पाइयो देला पर आब हऽर लेल क्यो बड़द नइं दैत छै। दाउन करबा लेल बड़द नइं होइत छै। सभ झरबा लैत अछि बोझा केँ।
माइक इहो बात कैक बेर सुनने छल मनोज आ ओकरो बजट बनल छलै। तकर बाद तीन खेप गाम आएल अछि। ने माइ चर्चा करैत छै, ने ओ मुँह खोलैत अछि।
पछबरिया घरक ओसारा पर पड़ल-पड़ल मनोज इएह सभ सोचि रहल छल। माइ एक बेर आरो चाह दऽ गेलै। ओ तैयो ओहिना पड़ल छल। दोसर बेर भनसे घर सँ माइ टोकलकै-एना पड़ल किए छऽ! नहा-सोना कऽ गामक लोक सभ सँ भेट कऽ आबऽ।
तैयो ओ ओहिना पड़ल रहल। नहएला-खएलाक बादो बिछौने पर पड़ल रहल। किम्हरो जएबाक इच्छा नइं भेलै खएला-पीलाक बादो। माइयो आबि कऽ ओही ओसारा पर पटिया बिछा बैसि गेलै। ओकरा ओहिना पड़ल देखि पुछलकै-नोकरक कोनो इन्तजाम भेलऽ की नइं।
ओ मूड़ी डोला देलकै। माइ चिन्तित होइत कहलकै-तखन तऽ बड़ झँझट होइत हेतनि। चिलकाउर छथि, दुनू नेन्ना छोट छनि। ऊपर सँ एतेकटा परिवारक भानस-भात। ऐ गाम मे तऽ आब आगि लागल छै। क्यो छोटका लोक बाते नइं सुनैत अछि। क्यो तैयारो भेल जएबाक लेल तऽ ओकर पट्टीक मालिक झट बहका दैत छथिन-खबरदार जौं गेलें। बसबें हमर जमीन मे आ काज आन पट्टीक। एहन-एहन पट्टीदार सभ छथुन। तोहर पट्टी तऽ सफाचट छऽ। लोके कम्म, ओ जेहो छऽ से बाहर जाइ लेल तैयार नइं। गाम मे भुखले रहत, मुदा बाहर नीक-निकुत नइं जुड़तैक। एकटा तैयार भेल छथुन। छथि तऽ ब्राह्मणे, मुदा भानसक संग अइंठ-कूठ सेहो करऽ लेल तैयार छथि। पछिलो बेर तोरा कहने रहिअऽ।
-ककरा दऽ कहै छें?-मनोज मोन पाड़ैत पुछलकै।
-ओएह, मन्दाक बेटा...।
मनोज केँ मोन पड़ि गेलै। पछिला बेर माइ चर्चा कएने छलै। मन्दाक नाम सुनि ओ चैंकल छल। मन्दाकिनी ओकरे गामक छलै, ओकर संग खेलाएल छलै। ओकरा बेटाक नाम सुनि ओकरा आश्चर्य भेल छलै-मन्दाक बेटा किऐक भनसीयाक काज करतै! ओकर वर तऽ कलकत्ता मे कमाइत छै। सासुरो मे खेत-पथार छै।
माइ कने घृणा सँ कहलकै-सभटा अपन चालि आ कर्म। वर छोड़ि देने छै, घरो सँ निकालि देने छै। चारिटा धीया-पूता छै। वर्ष दिन सँ बापक लग पड़ल अछि। गरीब बाप-माइ अपने बेटा सभ पर आश्रित छै। चारि गोटेक पेट कोना भरतैक? दुनू जेठका मजूरी करैत छै-अपनो ढहनाएल फिरैत अछि, चालि सुधरै तखन ने?
सूनि कऽ आश्चर्य आ दुःख भेलै। मन्दा ओकरा सँ जेठ छल वयस मे। कनियाँ-वरक खेल मे कहियो काल ओ ओकरो कनियाँ बनैत छल। ओना बेसी काल ओकर कनियाँ बनैत छल मोना। ओ जेहने सुन्नरि छल, तेहने शान्त। कनियाँ बनि खपटाक बासन सभ मे काँच बालु आ तरकारीक बतिया सभ राखि ओकरा लेल भानस करैत छल आ फेर स्कूलक कोठलीक माटि मे ओकर कनियाँ बनि चुपचाप ओकरा संग सूति रहै छल।
मन्दा सुन्दर नइं छल। रंग ओकर कारी नइं, तऽ गोरो नइं छलै। केश भुल्ल छलै जकरा कतबो तेल-कूड़ दैत छलै, भुल्ले रहै छलै। आँखि छोट-छोट छलै, मुदा शैतानी सँ नचैत। ने बेसी दुब्बर, ने मोट। चालि फुर्तिगर छलै, हरदम बुझाइ जेना पड़ाएल जाइत होअए। गाल फूलल-फूलल आ लाल पातर ठोर रहै, जकरा अधिक काल ओ बिचकाबैत रहै छल। ओ जहिया ओकर कनियाँ बनैक, अकच्छ करऽ लगै। जाहि कोठली मे सभ कनियाँ-वर पड़ल रहै, ततऽ नइं सुतैक। कहियो कोनो झोंझ मे, तऽ कहियो कोनो कोनटा मे लऽ जाइ आ बुझनुक जकाँ बजैक-वर-कनियाँ कतौ सभक सामने सुतलैक अछि संगे!
मुदा संग सुतैत देरी ओ तंग करऽ लगैक-एना कल्ल-बल्ल की पड़ल छें! वर-कनियाँ एना नइं पड़ल रहै छै चुपचाप।
-तऽ गप्प करऽ ने कोनो! मोना तऽ कतेक रास गप्प करैत अछि।
-ओ बकलेल अछि। वर-कनियाँ खाली गप्पे करैत रहि जाएत तऽ बिआह कथी लेल करत, संगे किऐ सुतत?-मन्दा बुझनुक जकाँ बजैक।
-तऽ तोहीं कह, वर-कनियाँ की करैत छै!
झिक्का-झोरी होबऽ लगै। कहुना अपन पैण्ट सम्हारैत ओ उठि कऽ पड़ाए तऽ मन्दा खूब हँसैक-लाज होइ छै मौगा केँ।
पड़ाइत मनोज केँ मोना भेटैक तऽ मुँह कनौन आ आँखि मे नोर-हम नइं बनबैक कमलेशक कनियाँ! नंगरियाबऽ लगै अछि। ओकर कनियाँ मन्दा बनतैक। हम तोरे कनियाँ बनबौक।
मुदा बीच-बीच मे मन्दा शैतानी करैक आ मोना केँ कमलेश लग पठा दै आ अपने मनोजक संग लागि जाइ-हम एकरे कनियाँ बनबै, मौगा केँ लाज होइत छै।
आ, एकसर होइत देरी ओ झट पैण्ट खोलि, फ्रॉक उनटि लैक आ मनोज लंक लऽ कऽ पड़ाए।
मुदा, ओही फ्रॉक उनटाबऽवाली मन्दाक जखन विवाह भेलै, चारिटा मौगी टांगि कऽ कोबर घर लऽ गेलै आ सभक नूआ चिरी-चोंत कऽ देलकै आ मुँह-कान नछोड़ि लेलकै।
आ, ओहि मन्दा केँ वर घर सँ निकालि देलकै आ बेटा मजूरी करैत छै, से सुनि ओइ दिन मनोज स्तब्ध रहि गेल छल। माइ केँ तत्काल कोनो जवाब नइं दऽ सकल छल। साँझ खन मन्दा अपने आएलि छलै। माइ कोम्हरो गेल छल। मन्दा लग आबि ठाढ़ि रहलै, कहला पर बैसलै नइं। एकटा फाटल नूआ मे सौंसे देह झाँपल। दोसर कोनो वस्त्रा नइं। आंगियो नइं। शरीर सुखाएल, आँखिक नीचाँ कारी छाँह आ ठोरो करिआएल। मनोज केँ मोन पड़लै जे मन्दाक ठोर कतेक पातर आ लाल रहै। ओकरा एकटक देखैत देखि मन्दा कहलकै-की देखै छें एना! अनचिन्हार लगै छियौ हम?
-नइं... से बात नइं! देखै छलियौ जे तोहर ई हाल किऐ भेलौ? केहन तऽ सुखी छलें अपन घर मे!
मन्दा हँसलकै-से तों कोना जानऽ गेलें जे सुखी रही। विवाहक बाद की पहिनो घुरि कऽ कहियो पुछलें जें कोना छें मन्दा? नेना मे पैण्ट खोलि दैत छलियौ, ताहि डरेँ जे पड़ाइत छलें, से डर भरिसक लगले रहि गेलौ।
मनोज केँ लाज भेलै। मन्दा ठीके कहैत छै। ओकरा नइं जानि मन्दा सँ किऐ बाजि नइं होइत छलै। मन्दा जखन कने पैघो भेलै, ओकर चारू कात घण्टो बौआइत रहै छलै। पोखरिक जाहि घाट पर ओ नहाइत छल, ठीक ओकरे नहएबाक समय सभ दिन ओ पानि मे पैसि घण्टो चुभकैत रहै छलै। मनोज हेलि कऽ जाठि लग सँ भऽ आबए, मुदा ओ ओहिना छाती भरि पानि मे डूबल घण्टो ठाढ़ि रहै। जाहि आँगन मे ओकर ताश-कौड़ीक अड्डा जमए, मन्दा ओही ठाम भेटि जाइ। मुदा वर-कनियाँक खेल मे जे ओकरा सँ डेराएल, से डेराएले रहल मनोज।
मन्दा ओही बात पर हँसी कएलकै आ मनोज केँ लाज भेलै। अपना केँ स्वभाविक बनएबाक चेष्टा करैत कहलकै-से बात नइं छलै मन्दा। तोहर हाल तऽ बुझिते छलियौ, जा धरि गाम मे रही। आब तऽ अपने गाम अनचिन्हार भेल जाइए। कहियो काल अबै छी। मुदा तोरा दऽ सुनि कऽ बड़ दुख भेल। मिसरक मति एना किऐ खराब भेलनि? एहि वयस मे, धीया-पूताक संग किऐ त्यागि देलखुन तोरा? झगड़ा भेल छलौ?
मन्दा फेर हँसलै-संग रहिते कहिया छलौं जे झगड़ा होइत? ओ कलकत्ता, हम गाम। कहियो काल वर्ष मे एक बेर, पाँच-सात दिन आबि जाइत छलाह। झगड़ो करबाक बेर कहाँ भेटेत छल?
-तखन की भेलौ?-मनोजक प्रश्न पर ओ फेर हँसल, गामक लोक एखन धरि नइं कहने छौ? सभ केँ बूझल छै। जकरे सँ पुछबही, सएह कहि देतौ-हम कुलटा छी, किदन छी। एही कलंकक संग घरसँ विदा कएने छथि। मुदा हम तऽ कहियो नइं कहने रहिअनि जे पतिवरता आ सदवरता छी।
मनोज केँ अवाक देखि ओ आगू बाजलि-तोरा कहबा मे लाज नइं! तोरा लग मे नेन्ने मे अपन फ्रॉक उघारि लैत रही आ तों पड़ा जाइत रहें। सभ पुरुष तोरे सन नइं होइत अछि। जहिया गामक सभ स्त्राीगण उठा कऽ हमरा कोबरा मे ठेलि देने छल, तोहर मिसर केँ बड़ हड़बड़ी भऽ गेल रहनि। जहिया कहियो वर्ष दू वर्ष पर गाम अबैत छलाह, एक्के क्रियाक हड़बड़ी रहै छलनि। तकर बादे किछु।
मनोज रोकैत कहलकै-तऽ एहि मे कोन हर्ज छलै! स्वामीक अधिकार छलै ओ। एहि मे घर सँ निकालबाक कोन बात भेलै?
मन्दा फेर हँसलि-बात तकरे बाद भेलै। ओ सटल रहि पाँच-सात दिन मे चल जाइत छलाह। आँगन मे एकसर हम स्त्राीगण! ने सासु, ने ननदि। कतेक बेर कहलिअनि-हमरो कलकत्ता लऽ चलू, मुदा नइं लऽ गेलाह। लऽ कोना जैतथि? बापक माथ पर भार छलिअनि। कहुना छुट्टी पौलनि। जमाइ अनलनि मूर्ख, ऑफिस मे दरबान। घर रहनि तखन ने लऽ जैतथि कलकत्ता! मास-दू मास पर मनीआर्डर पठा निश्चिन्त भऽ जाइत छलाह।
मनोज फेर टोकलकै-ई तऽ भेलै नौकरीक विवशता। टाका तऽ पठा दैत छलखुन, तखन फेर की भेलौ?
मन्दाक हँसी आर बढ़ि गेलै-तखने तऽ असली बात भेलै। सुन्न आँगन मे एकसर मौगीक खोज-खबरि लेबऽवला, सहानुभूति देखाबऽवलाक संख्या बढ़ैत गेलै। पहिने अएलाह एकटा पितिऔत देयोर। भौजी-भौजी करैत एक दिन नइं छोड़लनि। फेर परकि गेला। हमहूँ परकि गेलहुँ। मुदा हुनका रोकलकनि अपने स्त्री। तखन आएल गामक सम्बन्धे एकटा जाउत। काकी-काकी करैत ओहो ओहने...।
मनोज बीच मे रोकि देलकै-आ तोरा नीक लगैत गेलौ, परिकल गेलें। तखन तऽ वाजिबे निकालि देलखुन तोरा। कोनो पुरुष सैह करैत!
ओकर आँखि क्रोध सँ भभकि उठलै-ठीके कहै छें! सभ पुरुष एहिना करैत अछि। ओकरा दूरि कऽ किम्हरो चलि दैत अछि, आ मौगी एकसर ओकर बाट देखौ, अपना केँ झाँपि-तोपि कऽ राखौ। हमहूँ झाँपि-तोपि कऽ रहै रही। मुदा चारू कात सँ हाथ लपकल। मुदा से उघार होएबा लेल तऽ नइं निकललहुँ ओइ घर सँ। निकलल छी ओइ घर मे पच्चीस वर्ष बिता कऽ, जखन हमरा संग रहबाक इच्छा तोहर मिसर केँ नइं होइत छनि। ओ एकटा नव राखि नेने छथि, कलकत्ते मे। कमाइयो बढ़ि गेल छनि। आब हमर काज नइं छनि। चालीसक वयस पार भेलाक बाद, पन्द्रह वर्षक बेटाक माइ बनलाक बाद हम छिनारि बनि गेल छी। आब चारू मे कोनो सन्तान हुनकर नइं छनि, ओ ककरो बाप नइं छथिन। सभ अनजनुआक जनमल आ टूअर अछि। बड़का केँ राखि लही तों, सभ काज कऽ देतौ। ने तऽ हमरे राखि ले, भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ कऽ देबौक, तोहर नेन्नो सभ केँ खेला-खुआ कऽ पोसि देबौक।
मनोज कोनो उत्तर नइं दऽ सकलै। तावत माइ आबि गेलै। ओ माइयो केँ एक बेर फेर विनती कएलकै आ चल गेल। माइ ओकर जाइते पुछलक-की कहैत छलऽ तोरा?
-ओएह अप्पन बेटा केँ, चाहे अपने राखऽ दऽ कहैत छल। भानस-भात, टहल-टिकोरा सभ गछैत छल।
माइ एकदम्म निषेध कएलकै-एहन काज किन्नहु ने करिहऽ! बेटा केँ रखबह तऽ राखि लैह। मुदा अपना नइं। प्रमोद लऽ गेल छलखिन अपना संग धनबाद। भारी काण्ड मचि गेलनि। बड़का अड्डा बनि गेलनि डेरा। कनियाँ सँ नित्य झगड़ा होबऽ लगलनि। हारि कऽ पठा देलखिन।
आ अइ बेर गाम अएला पर माइ फेर कहलकै-ओ जाएब गछैत छथि, ओएह मन्दाक बेटा।
माइ केँ तखनो कोनो जवाब नइं दऽ सकलै। साँझ धरि ओहिना पछबरिया घरक पुबरिया ओसारा पर पड़ल रहल। धीया-पूता सभ स्कूल सँ घुरि गोड़ लगलकै।
आँगन सँ बाहर आएल तखन अन्हार नइं भेल रहै। उतरबरिया घरक दरबज्जा पर काकाक संग लाल काका बैसल छलखिन। गोड़ लगलखिन तऽ आशीर्वाद दैत कहलखिन-अखन रहबऽ ने!
-नइं काका। काल्हिए चल जाएब। छुट्टी नइं अछि।
मनोजक जवाब पर लाल काका पैघ साँस लैत कहलखिन-नीके करैत छऽ। ई गाम आब रहबा जोगर छऽहो नइं! हमरा लोकनि बूढ़-अथवल, जकरा कोनो उपाय नइं अछि, पड़ल रहै छी। लऽ चलऽ हमरो सभ केँ! दू साँझ खएबह आ धीया-पूता केँ खेलबैत पड़ल रहबह। किताब-पत्रिका जमा कऽ दिहऽ पढ़ैत पड़ल रहब।
मनोज हँसैत कहलकनि-तऽ चलू ने लाल काका! अहाँ तऽ सब बेर एहिना कहैत छी, मुदा माया छोड़ैत अछि? अबितो छी कहियो काल, तऽ दोसरे दिन सँ मोन मे हल्दिली पैसि जाइत अछि-गाम मे कोना की हैत! पड़ा अबै छी लगले।
लाल काका ओहिना पैघ साँस लैत कहलखिन-ठीके कहै छऽ हौ! कहाँ छोड़ैत अछि माया? ई गाम रहबा जोगरक अछि आब? नर्क सँ बत्तर। ने सभ्यता, ने शिष्टाचार। नवका छौंड़ा सभक उद्दण्डताक कथे कोन, बुढ़बो लोकनिक आचरण देखि दंग रहै छी। इएह, मोन नइं लगैत अछि तऽ भाइ लग आबि बैसैत छी। आर कतहु जाइ छी हम! देयर आर ब्रोथेल्स इन योर भिलेज नाउ!
लाल काकाक बात पर मनोज चैंकल नइं छल। ओकरा पछिलो बेर ई बात सुनल छलै। उतरबारि भीड़ पर घरे-घर राति केँ अड्डा जमैत छै। सेठ मुरली मिसर केँ सभ घर नोत होइत छनि। अही गाम मे रहै छथि आब मुरली। अपन घर नइं जाइत छथि। भोला झाक विधवा बेटी हुनका स्वामी मानि नेने छथिन, गामो मानि नेने छनि, मुदा खाली भोला झाक बेटी सँ सेठ मुरलीक मोन नइं भरैत छनि। टोलक सभ घर मे हुनकर अड्डा जमैत छनि। गामक नीक-नीक लोक ओइ बैसार मे शामिल होइत छथि। लाल काका केँ बर्दाश्त नइं होइत छनि।
मुदा, गामक लोक केँ सभटा रुचैत छै! बूढ़ सभक संग छौंड़ो सभ ओइ बैसार सभ मे हुलकी दैत अछि। सभ भोरका ट्रेन सँ दरभंगा जाइत अछि कॉलेज, आ कहियो सतबज्जी, तऽ कहियो बरबज्जी गाड़ी सँ गाम अबैत अछि। छुट्टी आ शानि-रवि केँ गामे मे हल्ला-गुल्ला कएलक, पिहकारी मारलक आ राति-विराति चोर-चाहर आ छिनरपन कएलक! कथूक लेहाज नइं छै। लाल काका पछिलो बेर कहने छलखिन।
ओकरा कोम्हरो जएबाक मोन नइं भेलै। बेसी ठाम एहने गप्प, ने तऽ गोलैसी आ पाटा-पाटीक गप्प! ओ सोझे लाइब्रेरी दिस गेल। ओतऽ साँझ सँ ब्रिजक खेलाड़ी सभ जुटैत अछि! पेट्रोमेक्स जरा कए, ने तऽ लालटेमो लेसि कऽ ओहो बाजी पर बाजी खेलाइत चल गेल।
जखन घुरल, सौंसे गाम निसबद छलै। आँगनो मे कोनो सुगबुगी नइं। खाली एकसरे जागलि माइ ओंघाइत बैसल छलै! परसि कऽ थारी आगू मे दैत कहलकै-बड़ अबेर भेलऽ। कतऽ चल गेल छलऽ अन्हार मे?
आ, ओकरा बहुत रास बात मोन पड़लै। दादा मोन पड़लै आ मोन पड़लै आँगने-आँगन लालटेम लऽ कऽ तकैत अपन चरवाह। ओही स्मृति मे भोतिआएल आँखि लागि गेलै।
बरबज्जी ट्रेनक पुक्कीक किछुए कालक बाद गाम मे कचबच-कचबच होबऽ लगलै। ओकर निन्न नीक जकाँ टूटि गेलै। बीच आँगन मे चैकी पर चितंग पड़ल छल। ऊठि कऽ आवाजक अख्यास कएलक। बुझएलै जेना बहुत रास लोक पुबारी दिस आबि रहल होइ। ओ ऊठि कऽ आँगन सँ बाहर आएल।
भीड़ ओकरे दरबज्जा दिस आबि रहल छलै। बड़का ठहक्का लागि रहल छलै आ बीच-बीच मे पिहकारी। मनोजक उत्सुकता बढ़िते गेलै।
भीड़ लगले नइं पहुँचलै ओकर दलान पर। सभ आँगन मे गेलै आ अन्त मे ओकर दरबज्जा दिस बढ़लै। दृश्य देखि ओ अवाक रहि गेल।
दू टा छौंड़ा दुनू दिस सँ मन्दाक बाँहि मोड़ि पकड़ने छलै। ओ ओकरा धकिया-धकिया आगू ठेलि रहल छलै। मन्दाक आँखि मे ने नोर छलै, ने याचना। एकटा विचित्रा सन पथराएल दृष्टि, जेना जे किछु भऽ रहल छलै, तकर कोनो ज्ञान नइं होइ ओकरा। कोना यंत्राचालित पुतला जकाँ भीड़क संग आगू ठेला रहल छल। छौंड़ा सभक संख्या गोड़ दसेक। तकरा पाछाँ किछु गामेक लोक भीड़क तमाशा देखबा लेल संग भेल।
मन्दाक हाथ मोड़ने ठाढ़ रमेश आ दीनू केँ मनोज डँटलकै-छोड़ि दहक हाथ! एना क्यो स्त्रीगणक संग व्यवहार करैत अछि! लाज नइं होइत छौ तोरा लोक निकेँ?
दुनू ओकर हाथ छोड़ि देलकै आ आर आगू आबि दीनू बाजल-हमरा सभ केँ किऐ लाज हैत? लाज तऽ एकरा हेबाक चाही। अपना संग गामक इज्जति बजार मे नीलाम करैत अछि। आइ हमरा सभ केँ सतबज्जी ट्रेन छूटि गेल। बरबज्जीक आसा मे रही कि देखैत छी एकरा प्लेटफार्म पर एकटा मोछियल बुढ़बाक संग टहलैत। दुनू एकटा घर मे पैसल। हमहूँ सभ पछोड़ धऽ लेलिऐ। पकड़ि लेलिऐ ठामहि। ओतहि सँ सभ केँ कहैत आएल छिऐक। गामो मे घरे-घर सभ ठाम लऽ जा कऽ कहलिऐ। मुदा, देखू, एकरा। लाज छै कोनो गत्रा मे? एक्को बुन्द नोर छै पश्चात्तापक कतहु?
सत्ते, से नइं छलै कतहु! मुदा जे छलै से देखि मनोज डेरा गेल। ओ सर्द... भावनाहीन आँखि दिस देखैत ओ सिहरि गेल। तैयो साहस कऽ कहलकै-किऐ करै छें एना मन्दा? तोरा कनियो लाज नइं होइ छौ सत्ते?
ओकर बात पर मन्दाक स्थिर आँखिक पुतली कने हिललै! सोझे मनोजक आँखि मे तकैत कहलकै-सत्त कहियौ! ठीके हमरा कनियो लाज नइं होइए। ओ तऽ कहिया ने मरि गेल। मरि गेल देहक भूख! सभटा सुखा गेल। मुदा पेटक भूख नइं मरल। ओ अखनो लगैत अछि। तखन ई देखबाक फुरसति कहाँ रहै अछि जे बुढ़बा मोछियल अछि कि निमुच्छा छौंड़ा? नइं होइ छौ विश्वास तोरा? हम करा देबौ विश्वास तोरा, लाज हमरा कनियो नइं होइत अछि। एही छौंड़ा सभ मे देख ने! बेसी हमर बड़का सँ कनिये छोट पैघ हैत! मुदा हमरा एकरो सभक संग लाज नइं। भूख हमरा अखनो लागल अछि। पाइ आ अन्न हमरा चाही। जकरा सँ ई हमरा भेटत, तकर नाम-धाम, मुँह-कान नइं देखैत छिऐ हम। ठाम-कुठामक ध्यान नइं रहै अछि। हमरा लेल बन्न कोठली आ गामक एहि बाट मे कोनो अन्तर नइं। आबि जो, जकरा मोन होउ!
आ, सभ केँ आश्चर्य सँ विस्मित करैत मन्दा ओही ठाम माँटि पर चित्ते पड़ि रहलि। बहादुर छौंड़ा सभ भागऽ लागल। भागि गेल! मुदा मन्दा ओहिना पड़लि छल, सुन्न अकाशक नीचाँ, गामक सड़क पर छिड़िआएल इजोरिया मे ओ चितंग पड़लि छल! निर्विकार! ओकर आँखि मे कोनो भाव नइं छलै! ने वासना, ने आमंत्राण, ने कातर-याचना। सम्पूर्ण भावविहीन छलै ओकर आकृति आ आँखिक पुतली स्थिर छलै-ऊपर आकाश दिस उठल।
मनोजक मोन कोनादन कऽ उठलै। ठेहुनियाँ दऽ ओकर मुँह लग बैसैत कहलकै-उठ मन्दा! झाँपि ले अपन देह! सभ पड़ा गेलौ, खाली हमही टा छियौ।
मन्दा केँ जेना होश भेलै! स्थिर पुतली हिलऽ लगलै आ नइं जानि कहाँ सँ बाढ़ि आबि गेलै ओइ मे? अपन देह झँपैत उठि बैसल। मनोजक आँखि मे नोर देखि हँसबाक चेष्टा करैत कहलकै-तों कोना ठाढ़े रहि गेलैं रौ? तों तऽ हमरा एना देखि कऽ नेन्नो मे पड़ा जाइत छलैं।
मनोज कोनो जवाब नइं देलकै! कने काल दुनू आमने-सामने ठाढ़ छल-निःशब्द! तखन मनोज कहलकै-तों अपन आँगन जो मन्दा! भोर मे बड़का केँ पठा दियहि। अपना संग पटना लऽ जएबै।
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प्रभास कुमार चौधरी (02 जनबरी,1941 - 22 फरवरी,1998) मूर्धन्य कथाकार- उपन्यासकर छथि। कथा-प्रभास, प्रभासक कथा, नव घर उठय पुरान घर खसय, दिदवल (कथासंग्रह), अभिशप्त, युगपुरुष, हमरा लग रहब, नवारम्भ, राजा पोखरिमे कतेक मछरी (उपन्यास) प्रकाशित। सँग्रह प्रभासक कथा, लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार सँ सम्मानित।
मन्दाकिनी मन्दाकिनी Reviewed by emithila on जनवरी 02, 2020 Rating: 5

1 टिप्पणी:

  1. पेटक आगि मिझेबा लेल अपना के बेचैत स्त्री, ओह गरीबी आ बेबसी, निशब्द छी

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