हम तँ दाबल छी इतिहासक पन्ना मे


डॉ.राम चैतन्य धीरजक किछु गीत::

1). अँगना मे

कौआ कुचरि बैस अँगना मे।
पानि देबौ, पिड़ही देबौ, पहिल सनेस हम तोरे देबौ
जँ प्रियतम परदेशी औता तोरा सजायब गहना मे
कौआ कुचरि बैस अँगना मे। 

कहिया गेला पिया परदेश
देलनि नै चिट्ठीयो सन्देश
सूत धीचलक आँखिक हम्मर बाट तकैत ई रैना मे
कौआ कुचरि बैस अँगना मे।

झूमि रहल-ए फूलक गाछ
भौंरा केर गुनगुनी निनाद
शीतल शीतल पवन बहै-ए कोढ़ फटै-ए अहिना मे
कौआ कुचरि बैस अँगना मे।

ब'र अबै अछि सखि सभ केर
देह जरै-ए मुँह लै छी फेर
झूर-झमान तखन होइत छी, मुँह देखै छी अयना मे
कौआ कुचरि बैस अँगना मे।

आब की सहब कतेक दिन भेल
भगवानो नै हमरा लेल
मोन पड़ै-ए राति सोहागक नोर भरै-ए नैना मे
कौआ कुचरि बैस अँगना मे।

बनि जो कौआ हमर दूत
मेघ बनल जेना यक्षक दूत
विरह दशा प्रियतम सँ कहिहें औता जहिना-तहिना मे।

2). मखौल करै छै

कोना अँगना मे कौआ किलोल करै छै
पिया औता एतेक तेँ घोल करै छै।

अयना लग ठाढ़ कखनहुँ दौड़ी दुआर पर,
रहि-रहि आँखि हमर जाइ-ए चार पर,
सत्ते कुचरै छै आ कि मखौल करै छै
पिया औता एतेक तेँ घोल करै छै।

राति आ ने दिन चैन बाट ताको टकलक
तेल बिन डिबिया केर मोन करै धकधक,
मारि बिरहा केर मोन हमर हौल करै छै
पिया औता एतेक तेँ घोल करै छै।

फूलक पराग कोना गमकै छै गमगम
उठि-बैसि भौंरा तँ गीत गाबै भन-भन,
देखि ताकि-ताकि हमरा दिस चौल करै छै
पिया औता एतेक तेँ घोल करै छै।



3). गीत

गीत गाबी, अहीं के कोर मे
हे प्रकृति ! जगै छी भोर मे।

जखन चिड़ै चुनमुनी चहचहाबैत ये
जखन पछबा बसात गीत गाबैत ये
गुनगुनाबैत ये भोर बड़ी जोर मे।

हमर सिनेह मे दुनिया बेहाल अछि
जीबाक उमंग मे सभ खुशहाल अछि
मोन राखै छी हम चितचोर मे।

सभ कियो बियादि सँ अपने मरै ये
अपन बिखाह मोन अपने जरै ये
छी चिमनीक धुआँ सँ नोर मे।

ईश्वर अहाँ केँ सुंदर बनौने ये
चिड़ै चुनमुनी सभ अहाँ केँ सजौने ये
ई मनुक्ख मुदा ये मुठभेड़ मे।

सपना मे एकटा बात अनुखन घुमैए
स्वच्छ समाज हो मोन केँ छुबै ये
हम डुबकी लगाबी हिलकोर मे।

4). गजल

मृत्युक कोरा मे बैसल ई दुनिया छै
एटमबम पर धाख जमौने खुनियाँ छै

कानि रहल ये विश्व सभ्यता एकरे सँ
शोकक धुन मे बाजि रहल हरमुनियाँ छै

साम्राज्यक लिप्सा मे बैसल जीतै लए
ओकरे देशक सुख मे कानैत दुनिया छै

नाग देश लए बैसल अछि चकभाउर देने
नक्सा पर राखल प्रकाल आ गुनियाँ छै

सौंसे विश्व केँ नापि रहल ये मनमौजी
ओकरे पाछू देश हमर सगुनियाँ छै

हम तँ दाबल छी इतिहासक पन्ना मे
गोरका चमड़ीबाला आब जमुनियाँ छै।
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डॉ राम चैतन्य धीरज (जन्म 4 फरवरी 1957) सुचर्चित कवि, गीतकार, भाषाविद छथि। आचार्य धीरज नाम सँ ख्यात धीरज जीक एखनधरि द्विपर्णा (गीत-गजल संकलन), भाषा विचार आ मैथिलीक प्राचीन साहित्य, मुक्तिगीत (दीर्घ कविता), मैथिली भाषाक वैचारिक अस्मिता संग्रह दृश्य मे छनि। संगहि हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषा मे सेहो पुस्तक प्रकाशित। एकर अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिका सभ मे निरन्तर रचना प्रकाशित-प्रशंसित। मैथिली पत्रिका 'चिनगी'क सम्पादन। तिरहुत साहित्य सम्मान, हैदराबाद सँ सम्मानित। 

हम तँ दाबल छी इतिहासक पन्ना मे हम तँ दाबल छी इतिहासक पन्ना मे Reviewed by emithila on अक्तूबर 22, 2019 Rating: 5

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