हू वाज विद्यापति : बदलैत परिवेश सँ उपजैत प्रश्न

मनुष्य जहिया पहिल प्रश्न पुछलक, मानवता तहिये परिपक्व भए गेल छल। प्रश्न पुछबाक आवेगक अभाव भेने समाजक गतिशीलता समाप्त समाप्त होबए लगैत छैक। तें एकटा जागृत समाजक चेतना संपन्न लोक केँ प्रश्न करबाक चाही। ओकर उत्तरक मादे चिंतनशील तथा क्रियाशील होएबाक चाही। ई प्रश्न सभ तखन विशेष मौलिक होइत छैक जखन ई माटि-पानि केँ सरोकार सँ उठैत छैक आ एहि तरहक अनुभव सँ उठल प्रश्न लोक समाज केँ चेतन बनौने रहैत छैक। किछु एहने प्रश्नक श्रृंखला आइ काल्हि मुकुंद मयंक बनौने छथि। ई प्रश्न सभ हिनक उद्द्यमक बाट मे उपजल प्रश्न थिक जे सहजहिं ग्राह्य होइत अछि। एहि श्रृंखला बद्ध प्रश्न सँ समाज मे किछु सार्थक होएबाक मुकुंदक ई प्रवृत्ति अवश्य अकानल जएबाक चाही। अस्तु ,एकाकार होइ एहि प्रश्न सबसँ ...

विद्यापति के छथि? सॉरी, के छलाह ? पहिल बेर ई नाम सुनल 'विद्यापति पर्व समारोह' वाक्य सँ (कारण प्राथमिक वा माध्यमिक स्तर पर तँ कोनो एहेन व्यवस्था छैक नहि जाहि सँ पता चलैत जे विद्यापति नामक कोनो प्राणी कहियो भेल छला) । समारोह केहन ? जाहि ठाम सबटा गायक-गायिका सब आबैत छथि? जकरा हम अहाँ भरि राति फ्री मे देख-सुनि सकैत छी ।बाद मे कोनो-कोनो समारोहक सम्मारिका देखल-पढ़ल । जाहि सँ पता चलल जे ओ कवि छलाह । लेखक छलाह । साहित्यकार छलाह। जिनका दोसर भाषाक लोक जबरदस्ती अपना भाषाक लेखक कहैत छल। ओ तँ धन्यवाद कही ग्रियर्शन केँ जे साबित केलनि जे हुनक लिखल भाषा मैथिली छल।
सामा भसेबा दिन विद्यापति केँ किछ भेल छलैन (कार्तिक महीना के पूर्णिमा दिन ई गप्प बाद में बुझल )।जन्म वा मृत्यु ?अखनो नहि बुझल अछि ठीक सँ। ककरो सँ पूछ पड़त ।
समारोह पहिने सिमित संस्था सब द्वारा होइत छल आ ख़ास क' कार्तिक पूर्णिमाक दिन । मुदा आब प्रायः देशक सब प्रमुख शहर में कहियो कियो मना लइत अछि । समान्यतः ई आयोजन शनि दिन के कएल जाएत ।( हमरा सभ नहि बिसरि जे शनि -रवि दिन के लोक केँ छुट्टी रहैत अछि आ लोक सभ एहि दिन मनोरंजन के मूड में रहैत छथि । )

समान्यतः समारोह केँ आमंत्रण कार्ड पर गायक-गायिका के फोटो रहत ।आब तँ लाखो मे खर्च कएल जाएत अछि। साहित्यकार सब केँ बजाएब कवि के बजाएब कविता आदि पाठ कराएब ई सब तँ बुझु जे अनसोहात बाला गप भ' गेल । जँ (गलती सँ) बजायो लेल गेल वा कार्ड पर नाम द' देल गेल ताहि के बाबजूद मंच पर उचित समय नहि देल जाएत अछि ।हालाँकि एहेन बहुत कम जगह होइत अछि ,मुदा होइत अछि खैर जे जेना ...
एहि ठाम पंडित गोविन्द झाक एकटा फेसबुक पोस्ट पर ध्यान दी -आइ विद्यापति स्वर्ग मे सोचैत होएताह, जँ बंगाल मे जनमल रहितहुँ तँ हमर डीह पर मेला लगैत आ कोनो महान् मुखर्जी अपना हाथें दीप बारितथि। आओर जँ पागधारी आ तागधारी नहि होइतहुँ तँ पूछू नहि। संतोष मात्र एतबे जे हमर श्राद्धक भोज खूब जमि रहल अछि यत्र -तत्र -सर्वत्र, बिसफी टा कें छोडि।
महत्वपूर्ण ई छै जे जाहि भाषा के लेखक केँ नाम पर एतेक रमन-चमन ताहि भाषाक कोनो पोथी ठीक सँ 200 - 300 प्रति किएक नहि बिका रहल अछि । मैथिली मे कोनो फूल टाइम लेखक किएक नहि अछि ? कोनो प्रकाशक किएक नहि अछि जिनक रोजी रोटी मैथिली सँ चलै ? विद्यार्थी सभक शिक्षा के माध्यम मैथिली किएक नहि ? रोजगारक माध्यम मैथिली किएक नहि ? हमरा सबकेँ रोजगार वास्ते घर सँ एतेक दूर किएक रह पड़ैत अछि ? हम्मर भाषा किएक पछुआयल अछि ? हम्मर सभक क्षेत्रक विकास किएक अवरुद्ध अछि ? एहि सब पर विचार आवश्यक बुझना जा रहल अछि । मुदा करत केँ ? हम सब करब और के करत ?
बेसी नहि करब मास मे मात्र 20 टाका के मैथिली पोथी कीनब , आब तँ बहुत आसान भ' गेल पोथी कीनब । बच्चा के अंग्रेजी स्कुल पढाऊ मुदा मैथिली सेहो सिखाउ , फ्रेंच बजनाय सिखाउ मुदा मैथिली सेहो सिखाउ।
मखान केँ खेती नहि क' सकब मुदा मिथिला क्षेत्र मे उपजल मखान तँ प्रयोग कए सकैत छी , बच्चा सब सँग छः मास साल भरि मे एक बेर तँ गाम आबिये सकैत छी। ई सामाजिक आ आर्थिक दुनु दृष्टि सँ लाभदायक छैक । मिथिला पेंटिंग विश्व भरि मे पहुँच गेल मुदा हमरा अहाँ के डाइनिग हॉल मे नहि पहुँचल अछि।

हम सब बेसी पाय वाला नहि तँ कम सँ कम सस्ता वाला पेंटिंग्स तँ कीने सकैत छी। एही सँ कतेक बच्चा सब लिव इन रिलेशन सीप बुझ लागल अछि ओकरा सबके मधुश्रावनी ,जरौर और बहुत किछ छै तकरा बतेबाक-बुझेबाक बेगरता छै । एहि सब सँ हटि क' जे सब सँ बेसी जरुरी मुद्दा अछि जे हम सब ई सोंची जे मिथिला क्षेत्रक किसान के भलाइ कोना हेतै ? ओ सभ कोन काज करता जाहि सँ हुनका सबकेँ नीक आमदनी भ' सकत । मिथिला क्षेत्रक युवा कोन तरहक शिक्षा ग्रहण करय जाहि सँ ओकरा सबकेँ नीक रोजगार भेटै।
मिथिला क्षेत्रक कोन-कोन एहन वस्तु-विचार छैक जाहि माध्यम सँ हम सब अपना आपकेँ विश्व मानचित्र पर स्थापित क'सकी ओ वस्तु -विचार के खोजबाक खगता छैक
एहि सन्दर्भ मे हम बहुत प्रश्न कएल। कोनो प्रश्न एहि मे नवीन नहि। तखन हम प्रश्न केलहुँ किएक ? आ एकरा मादे हम की प्रयास कय रहलहुँ अछि ? ई सभ पुनः बहुत रास प्रश्न सबकेँ जन्म देत। तेँ एतबे जे जखन सक्रियता सँ एहि मादे हम वा अहाँ साकांक्ष होएब तँ प्रश्न अहूँ केँ मोन मे उठत। प्रश्न एहि लेल नहि जे अपन समस्या गनाबी , प्रश्न एहि लेल जे एहि प्रश्न सँ बहुत गोटे आओर प्रश्न करैथ। ताहि क्रम मे उत्तर सेहो बहरायत। जखन हम प्रश्न करब तँ उत्तर दिस सेहो अग्रसित होएब। आखिर सबहक समाधान कर तँ पड़त हमरे अहाँकेँ । तँ कहिया करब ? एहि अंतिम प्रश्नक उत्तर केँ हम बाट ताकब ...
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एहि आलेख मे वर्णित विषय वस्तु पूर्णतः लेखक केर व्यक्तिगत विचार छनि। एहि सँ सम्बद्ध कोनो तरहक संवादक लेल लेखकक ईमेल mukundjee.mayank@gmail.com पर संपर्क कएल जएबाक चाही। 

हू वाज विद्यापति : बदलैत परिवेश सँ उपजैत प्रश्न हू वाज विद्यापति : बदलैत परिवेश सँ उपजैत प्रश्न Reviewed by Unknown on मई 08, 2017 Rating: 5

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