दुनिया बुन्न-बुन्न शोणितक हिसाब मंगै छै


।। रूपेश त्योंथ केर किछु शीर्षकहीन कविता ।।


रूपेश त्योंथ केर पत्रकारिता सं हमरा सभ गोटे परिचित छी. हिनक दू गोट पोथी सेहो प्रकाशित छनि. एक कविता-संग्रह 'एक मिसिया' तं दोसर व्यंग्य-संग्रह 'खुरचनभाइक कछमच्छी'. मुदा हिनक पहिल क्रश आरम्भे सं कविता रहलनि अछि, सेहो स्कूलिए समय सं. 'ई-मिथिला'क एहि प्रस्तुति मे हिनक किछु शीर्षकहीन कविता सभ प्रस्तुत कएल जा रहल अछि. ई कविता सभ कथ्य आ शिल्पक स्तर पर तँ प्रभावित करिते अछि, मैथिली काव्य कर्मक जे अपन छइब-छटा छैक तकरा विचारक संग मिज्झर कए, संवेदनाक कॉकटेल बना पाठकक हृदयतल सं जेना को-रिलेट करैत अछि ई सेहो स्वयं मे नोटिस लेबा योग्य चीज़ अछि.

१).

ई दुनिया 
बुन्न-बुन्न शोणितक 
हिसाब मंगै छै 
आ जखन सुखाइ छै शोणित 
तँ फेर डाहि दै छै 
खोचाड़ि-खोचाड़ि 

२).

जकर चिंता मे 
टटाइत रहलहुं 
जकरा लेल 
करैत रहलहुं कबुला 
तकरा 
सांझ सं विहान धरि 
खेत सं दलान  धरि 
तकैत रहलहुं 
आ ओ भेटल 
बसबन्नी मे 
बनबैत फरकी 
हमर अंतिम यात्राक 

३).

बात अहांक होइत छल 
ता ठीक सब किछु 
बात हम्मर उठिते 
ओकासी आबि गेल 
आ अहांक पेट रिक्त 
भभाइत छल व्यंजन 
कौर हमर उठल 
भात बासी आबि गेल !
बात छल ने किछु 
बात बढ़िते गेल 
बिन बाते भाला 
गरासी आबि गेल 
आ जिनगी हमर 
ढूसि सदिखन लेलहुं 
मुइल देखिते किए कानन 
भोकसी आबि गेल. 

४).

जिनगी मे जखन किछु भेटै छै 
ठीक तखनहि किछु छुटै छै 
भेटबाक हर्ष मे 
भने छुटबाक दुख 
दबि जाइ छै 
मुदा ओ दुःख 
संजोगल  रहैत छै हिरदय मे 
बेर पर ओ फनफनाइत  छै, दुखाइत छै 
एकर कोनो दबाइ नै छै 
ओ घाओ सुखाइ नै छै 
बस दुखाइ छै 
चिरकाल धरि 

•••

रूपेश सँ rupeshteoth@gmail.com पर संपर्क कएल जा सकैत अछि.

दुनिया बुन्न-बुन्न शोणितक हिसाब मंगै छै दुनिया  बुन्न-बुन्न शोणितक हिसाब मंगै छै Reviewed by बालमुकुन्द on जून 10, 2016 Rating: 5

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