वसंत मे अभिसार


शिव कुमार झा 'टिल्लू' केर किछु गीत


१). वसंत मे अभिसार 

एलथि पाहुन वसंत
कत' छथि हमर कंत!
अभि-स्वागत लेल नयना पसारि बैसलहुँ
सिनेह उपटल की मोने मे मारि बैसलहुँ...

भाव भौतिक लग क्षीण
धनक सेज कोना नीन !
हुनक प्रेम छनि.. व्यापार
सिनेह लागनि...... उधार
काढ़ल कांचन सँ आँचर सम्हारि बैसलहुँ...

एहि अभिसारक अर्थ
अर्थयुग मे अछि व्यर्थ
रति अर्पण बेकार
रमा पसरलि बजार
हिया माने ने तैयो थथमारि बैसलहुँ...

यज्ञ सिया बिनु हेतै
कनक मूरति एतै
राधा वृन्दावन नाच
कृष्ण गीता केर बाँच
पौरुख धर्मक लग अपना के हारि बैसलहुँ...

आर्य रक्षहि वैराग
धम्म कांता केर त्याग
ध्रुव वचनक ने मोल
मौन ! अर्चनाक बोल
कर्म साधक पथ नोर सँ बहारि बैसलहुँ...

नारी एक्के दिशि ध्यान
राखब सावित्री मान
कत' प्रियतम अकान
वसंत चढ़लै अवसान
श्रीङ्ग सरसक आवरण केँ उतारि बैसलहुँ...

२). ई अंतिम चिठ्ठी अहाँक नाम 

यौ-यौ वसंत फेरो घुरि आउ 
पछवा कें पुरवा सन सिहकाउ 
नवका कोमल अहिवातक संग 
पुरना पुरहरि मे दीप जराऊ ...

अछि राग सिनेहक मिलन एत' 
एही ठां भोगक अनुरागी 
सभ सुरभि सुगंधक बात करथि 
नवयौवन हो वा वैरागी 
भासल किछु पिरही बीच लहरि 
हुनको हमरे संग कात लगाउ...

अछि बाहुबलक सम्बल जग मे 
हमर बल शांतिक संदेशी 
इन्द्रधनुष जकाँ साकार लिप्त 
एक्के पाँति बैसल विविध भेशी 
टूटय नहि कखनो घौर हमर 
एकटा मधुलस्सा एहेन बनाउ ...

ई अंतिम चिट्ठी अहाँक नाम 
हमराक बाद केँ  ध्यान देत 
मधुरी उपवन हुअए आर दीब 
गप्प छोट बूझि  केँ  ज्ञान देत 
अचकेमे उपवन सांसल लागय 
पुनि सिनेह सुवासित वात बहाउ ...

३). मोरंग सँ मऊ धरि एक बनाउ

सुनू औ मीत
प्रीतिक संगीत
अपन संस्कृति केर अलख जगाउ
कर्ण संग विदुर
भीष्म एक्के सुर
दिक्भ्रम मे नहिये छिड़िआउ...

हमरे गज आ हमर नवीन
हमरे राज आ हमहीं दीन !!!
वियोगी -हासमी- अमर -प्रवीण
एक मैथिल टा जाति बनाउ...

विहंगम वयना लाज बचौलनि
उषा साँझ मे किरण देखौलनि
भोगी तारा सोहर गौलनि
कर्पूरी विदेहक पूत कहौलनि
सगरो सलहेसक अनुराग
लक्ष्मीनाथ गोसाईं राग
करियन- महिषी सम संभाग
ललित बलिदान ने व्यर्थ गमाउ...

वज्जि सेहो छथि देहक अंग
तंत्रक भ्रम सन्देश अनंग
विदेहक नहि करू आसन भंग
यौ- हौ - हो कें एक बनाउ...

सिया संग बहुरा हमरे बेटी
रेशमा आब ने लागथि घेंटी
सभ सम कर्मभाव केर पेटी
कवि कोकिल कें नहि भरमाउ...

कीर्ति -शेफाली- इला -प्रवासी
सभ छथि मिथिला केर अधिवासी
हमर सिमरिया जेना छथि काशी
मोरंग सँ मऊ धरि एक बनाउ ...

४). करू नेहक संग भावक संगोर सजना

करू नेहक संग भावक संगोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना

भेल उष्मित उत्ताप बनल प्रीति क्षीर भाप
रीति उफनल अक्षोह डगर गुमकल संताप
गहन विपदाक राति -कोना भोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना...

सुमन सद्यः अलोपित अछि भखरल पराग
कोना गँथत पुष्पहार मात्र बाँचल अछि ताग
मेघ पावस अवांछित बिनु मोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना...

नृपी श्याम घनन सुन्न कांता त्रासल बिनु बुन्न
मुदा हहरल नहि प्रेयसि सबल आशा अक्षुण्ण
अलभ्य साओनमे मिलनराग जोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना...

कर्म चेतनाने कात - सकल उचिते ई बात
गृहस्थ धर्मक बिनु कोनाने हहरै अछि गात
मत्त जामिनी-मुदा सुक्खल ठोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना...

दीप्त रजोगुण ल' आउ सत्व भावक अलगाउ
संग बिसरल विमुख क्षोह दूर छोड़ि आउ
देखत वर्णाञ्जलि चान आ चकोर सजना
हमर जीवनमे विरहक अंगोर सजना...

५). कत' गेलहुँ औ हमर कलाम

अचल बाट पर स्थायी विश्राम
नियतिक कोपें अंतिम आयाम
आशक धवल इजोरिया द' क'
कत' गेलहुँ औ हमर कलाम
दोसर बेरि जन आशा तोड़लक
कर्महीन सभ हियाकेँ जोड़लक
कखनहुँ कोनो पदक कोप नहि
सभ अप्पन कियो अछोप नहि
निज तनसँ एक्को बेरि नहि रंजन
सभ नेना थिक देशक दुःखभंजन
कामुक लिप्सा आहि कतहु नहि
सम्मानक परवाहि कतहु नहि
पंथक फेर सगरो बूझि अकिंचन
सदिखन मानव धर्मक सिंचन
निर्माणक लेल मिशाइल बनेलहुँ
कहियो नहि युद्धक गुण गेलहुँ
मुलायम उरसँ कयल वरन
अटल करै अछि अंतिम नमन
निर्णय लग ककरो सुनलहुँ नहि
ग्रहणक डाला कहियो बुनलहुँ नहि
अछि प्रमाण ई सम्प्रदाय देश नहि
मातृभक्ति बहुरुपिया वेश नहि
ककरोसँ कोनो पीड़ा क्लेश नहि
निज अर्थक कोनो उद्देश्य नहि
एहने सपूत बनि फेरसँ अबितहुँ
तमिल संग देशक लाज बचबितहुँ
लालकिलासँ ध्वज पुनि फहरबितहुँ
हिन्द गौरव बनि विश्व जगबितहुँ
हे जैनुल आबदीनक संतति लाल
हे भारत मायक पूत कमाल
दोसर बेरि करियौ खलकमे भूचाल
कर्म पथिक छी नहि जाल जंजाल
सम्यक दृष्टि एक्केरंग राम रहीम
जेहने हरिराम तेहने कलीम
विज्ञानक संग गीता कुरान
बाइबिल गुरुग्रन्थ आर पुराण
विद्या वैभवक अंतिम दिनमान
हुअए सभमे निरपेक्ष्यक संज्ञान
सम अंशक सुत लाल ललाम
भारतक हियमे बसब कलाम !!!!!

६). झूला

झूला मिथिला अवधक संगम टांगल जनकदेश मे ना
माता अपने नायिका रूपेँ रघुवर नायक वेश मे ना...

कतेक जतनसँ धनुषभंग भेल
सेंथु कुमारीक रक्त रंग भेल दानक उद्देश्य मे ना
साओन घुरतीक मान मनाओल नोरकधार शेष मे ना....

नागपंचमी केर दुई दिन बाँचल
घुरतीक भार कौशिल्या सांचल सभ पेशोपेश मे ना
सासुक हिय नवकनिया लागलि आँखि सरयू अशेष मे ना...

नैहर अबिते नवल मुदित मन
श्यामल मेघ गर्जना घनघन नहि कोनो क्लेश मे ना
वाटिका डोलय शक्ति भक्तिसँ रमा विभोर सुरेश मे ना...

कालक गति कियो बूझि सकत की
दुःख बिनु नश्वर खलक रहत की उदासी पुरी देवेश मे ना
जानकी बिनु बिचुकय झूलामन नोर नैन महेश मे ना...

ब्रह्म स्वयं रिक्त झूला नचाओल
जानकी अवतारक रहस्य बुझाओल सर्वशक्ति परेश मे ना
एहि साओन विश्वासक झूला अर्चिस दिनेश मे ना...

७).  की करब विदेशमे घूरि आउ गाम

की करब विदेशमे घूरि आउ गाम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम
चौड़ीक धनखेत्ताक विहनि रहल कानि
कतबो पटाबी मुदा हियाने मानि
मड़ुआ आ कोदोक हहरल ललाम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम.....
सीता उपासलि त' टका की चिबायब
उसरठि परती ल' क' नाओं की कमायब
प्रवासी जीवनकें आब दिऔन विराम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम....
की उदयन की मंडन दोसर माटि गेलथि
अंतिम घड़ीमे यात्री मिथिले एलथि
कोकिल सलहेसक संग गांथब आयाम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम.....
तखने विकास जखन देशक पतवारि
उत्प्रेरक हएत अपन भितही दुआरि
मिथिलेक अर्चिससँ टिमटिमाइट माम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम.....
देखू ने पैंजाब शस्य गहत खेत
सभ किछुसँ भरल पुरल ओक्कर समवेत
लोकेँसँ काँपत विमुख तंत्रक उद्दाम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम....
स'र समाज मिलिजुलि क' बोरिंग गड़ायब
तृप्ति हेती धरती पथारे सजायब
तखन परक धनक कोन लिप्सा ने काम
सड़ि रहल शरीफा सभ दूरि भेल लताम....

८). समदाओंन 
  (विदाइ कालक गीत)

रास भाट समदाओंन गाओल नैन भिजाओल हे
माय हे सुरभि कहार कहरिया ल' क' अवध सँ आओल हे...

रतन जड़ित नव वसन सँ मैथिली सजाओल हे
माय हे हर्खित नोर मयना रानी कि ओलती खसाओल हे...

रघुवर हेरि नृप जनक केँ हिया सँ लगाओल हे
माय हे तात सुत मिलि चारु आँखि सँ गंग बहाओल हे...

उर्मि श्रुति मांडवी रूप देखि नृप गदराओल हे
माय हे देवगन अनंत गगन सँ सुमन बरसाओल हे...

धरतीरानी हहरलि कानलि ज्वार उठाओल हे
माय हे सिया धिया कहुना क' धरती के मान मनाओल हे...

बहुआसिन रूप देखि तीनू माय मोन जुराओल हे
माय हे दशरथ पगपग आल- पीत ध्वज फहराओल हे...

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शिव कुमार झा 'टिल्लू' (11 दिसम्बर 1973) सुचर्चित कवि-गीतकार-समालोचक छथि। क्षणप्रभा (काव्य-संकलन) आ नव अंशु (समालोचना-संग्रह) शीर्षक सँ हिनक दू गोट संग्रह प्रकाशित छनि। एकर अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकादि मे नियमित रुप सँ रचना प्रकाशित-प्रसंशित।  कइएक एल्बम लेल गीत-लेखन। हिनका सँ shiva.kariyan@gmail.com पर सम्पर्कक सम्भव। 
वसंत मे अभिसार वसंत मे अभिसार Reviewed by बालमुकुन्द on अगस्त 01, 2015 Rating: 5

1 टिप्पणी:

  1. सब गीत नीक लागल मुदा 'बसंत में अभिसार' हमरा मोहि ललक। बधाई टिल्लू जी के।

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