शारदा झा केर दूटा कविता

 मैथिलि साहित्य मे पुरुष लेखकक तुलना मे महिला लेखिकाक कतेक खगता रहल अछि ई गप्प ककरो सँ नुकायल नहि अछि। एम्हर बहुत दिनक बाद कोनो नवोदित महिला लेखिकाक सुंदर कविता पढ़बा मे आयल।शारदा जीक  ई दुनू कविता मोन मे कयैक तरहक प्रश्न उत्पन्न करैत अछि।  बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयक  छात्रा रहि चुकल शारदा झा केर स्वागत करैत हिनक कविता साझा कयल जा रहल अछि, एहि आशक संग जे ओ मैथिलि कविता मे पैघ समयावधि तक अपन योगदान करैत रहतीह -मॉडरेटर

(१) प्रश्नचिन्ह 

प्रश्नचिन्ह लागल छैक
जीवनक वास्तविकता पर
एक कण सँ ल' क'
ब्रह्माण्ड, समस्त ग्रह पर्यन्त पर
जीवनक छोट सँ छोट उदाहरण सँ ल' क'
मनुक्खक कोशिकाकेँ भीतर व्याप्त
अणु-परमाणु पर्यन्त
किएक भेलै उत्पति एहि संसारक
एहि मायाजालक
जाहि मे ओझरायल अछि
हमर विचार-शक्ति
तर्क-शक्ति
विश्लेष्णक शक्ति
कुंठित भेल अछि मानव
शरीर सँ, मोन सँ
अपन अस्तित्वक मादे
केहन छैक इ वृत्तपरिधि
कहाँ छैक एकर आदि
कतय छैक अन्त
मुदा
छी घेरायल एहि वृत्त मे
अग्निवृत्त मे
हम स'ब
सम्पूर्ण मानव जातिक
जरि रहल अछि मोन
शरीर, भावना, विश्वास
संगहि
कतेको सहस्राब्दिक देन
ई सभ्यता आ संस्कृति
स्वाहा भ' रहल अछि
एहि अग्निकुंड मे
होइत छैक उत्पति
एहि जीवन के
प्रेम सँ
मुदा मिटा जाइत छैक
क्षणहि मे
कोना ल' लैत छैक प्राण
एकटा जीव दोसराक?
तापो होइत छैक की नहि
वा पश्चातापो ओकर मोन मे?
से नहि कहि
से नहि कहि

(२) चमत्कार 

देखलहुँ आइ 
नागफणिक सुन्दर फूल
कोमल आ चटख रंग
चमकैत बाटक कात मे
आकर्षित करैत
दृष्टि आ नेत्रकेँ एकहि संग
जन्महुँ कियो ने सोचलक
काँटों मे  बहरायत फूल
भेल बड्ड हर्षित
आँखि भरल हुलसैत गाछ
अपन जयगाथाक प्रतीक
करैत प्रदर्शित
ओ फूल 
काँटक  बीच छल
ओहिना मुस्काइत
जेना एकटा थाकल किंतु
बिहुसैत मायक कोरा मे
नेना अछि खेलाइत
नागफणिक छिरिआएल
बीहड़ कंटक बोन
पसरल चारू कात
ओहि मे फुलायल
प्रकृतिक चमत्कार
कएलहुँ आत्मसात
ज्ञान चक्षु सँ
ईश्वरक रूप देखल
बाट-घाट मे चलिते चलिते
कएल आइ यैह सूक्ष्म संधान
पाबि सकैत छी परमसुख
संसार के देखिते सुनिते

शारदा झा
हैदराबाद
jhasharda@gmail.com
शारदा झा केर दूटा कविता शारदा झा केर दूटा कविता Reviewed by बालमुकुन्द on जुलाई 24, 2015 Rating: 5

7 टिप्‍पणियां:

  1. शारदा एक बेहतरीन शख्सियत !! एक बेहतरीन कवियत्री !!
    शुभकामनायें .........मित्र !!

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  2. परिस्थितिवश प्राकृतिक चरिrत्र-चित्रण अति-उत्तम/परंचichaar - प्रथम कविता के सम्बन्ध में हमर विचार जे- सिद्धान्त के बजाय- अगर प्रायोगिक वातावरण बनाओल जाय, तखने फलदायी बूझू ??

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  3. लेखनीक छेनी सँ संधानल बड़ जुगुत सँ तराशल शब्द-समूह निर्मित कविताक भव्य -दिव्य मूर्ति।

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