आबो तेजु ई कोकनल बुधि



विकास वत्सनाभक पाँच गोट कविता

1.) कोकनल बुधि

खुँटेस दिअ हमरा
पारि दिऔ चौखटि धरि
लछमणक डाँड़िह
गरोसने रहू हमरा
मंगल सूतक गरदानी मे
किएक होयत हमरा अजगुत
हम जन्मलहुँ किएक ?
अहीँक खबास बनबा लेल !
किएक होयत सेहन्ता
हमरा घोघ हटेबाक
पहिरबाक बुसट आ जींस
कोना करब ई उतकिरना
भजारक संग टहलब हाट
बहिनपाक संग निधोख
करब नैन मटक्का
नहि नहि !
हमरा रखबाक अछि
अहाँक नाक-टीक
बरु घोंटि ली अपन जिनगी
मुदा अबाद रहे अहाँक चिनगी
धुर !
आबो तेजु ई कोकनल बुधि
बहराउ अकाबोन सँ
पुरू हमर बाँहि
मिलाउ कन्हा हमरा संगे
जँ अहाँ बीस तँ हमहुँ उनैस नहि।

2.) निस्तब्ध

पोखरिक मोहार पर
ओसैत छथि शीत
घमायल ललौंच सूर्य
डम्हरस सिनुरिया सन
घुरि रहल अछि हेंजक हेज
चराउर परक माल-जाल
टुनटुनबैत
गरदानी केर झुनझुना
आबि गेल अछि चिड़ै चुनमुन्नी
अपन खोंता मे
घोघ मे भरने चिल्हाउरक कलउ
मेसा गेल अछि सौँसे
धुमनक सुगंध,
माटिक सोहनगर गंध
अभर' लागल अछि
अकासक ह्रदय कुहर मे
सहसह तरेगन
आ की छीटि देने होय
मुट्ठी भरि भगजोगनी
मकानक फुनगी धऽ बैसल
निस्तब्ध
हेरैत छी अहि रम्य साँझ केँ
हूँकि रहल अछि पछबा
हमर विछोहक दरेग
कल्पनाक व्योम मे हम
हुनक उजोतक टेमी पर
निछा रहल छी
दीप परक फनिगा जकाँ
देखैत छी चानक मुँहठोर
कनेक मलिन, कनेक विहुँसल
पूछि रहल हो किंवा यक्ष प्रश्न
जाहि प्रतिउत्तर मे
आइ धरि तकैत छी
अपन चानक मुहँठोर
निस्तब्ध
मकानक फनगी धऽ बैसल।

3.) पर्यावरण दिवस

आइ भोरे
गेलहुँ गमेसरि गाछी
पुछबाक लेल कुशल-क्षेम
बतियेबाक लेल नीक बेजाय
नजरि परल
बूढ़ बिज्जू आमक गाछ
सिसोहल ओकर चाम
झहरैत गाढ़ भेल नोर
व्यथित क्रंदित
ओ कहलक निजगुत
फुलैत अछि दम हमर
कोना लिअ स्वांस हम
छीटि देलक अछि बसात मे माहुर
कसाय मनुक्ख
निरीह भेल जा रहल छी
देखहक तैयो
अपन घोघ मे देने छियै बास
मारिते रास चुट्टी-पिपरी केँ
सह सह खोंता देखहक चिड़ै-चुनमुन्नीक
मुदा प्रतिफल की भेटैत अछि
आ भऽ गेल चुप्प
ढबसि गेल नोर हमरा
की दितियै मंगलकामना
ओकरा नहीं बुझल रहैक
लोक मनबै छैक ओकरा नामे
अपना खातिर
पर्यावरण दिवस।

4.) जेठक दुपहरिया 

जेठक दुपहरिया
उगिल रहल अछि
आगि !

भोरे
झाँझनक फ़ाँक सौं
बिहुंसैत अछि
सुरुजक किरिन
तप्पत करैत अछि
पानि-बसात।
कौखन
अकछा दैत अछि
आँजुर भरि पानि लेल
कौखन
आफद करैत अछि
निकसब गेह सँ।

एहि दुपहरिया मे
उपटैत अछि डीह
टौआइत अछि
माल-जाल
दहकैत अछि
गाछ-बिरीछ
झौंसा गेल अछि
इनार-पोखरि।
बीअनि हौंकैत
बूढ-जुआन
सब तकैत छथि
छाहरि
अपस्याँत भेल
झरकी सँ।

ई चंडाल सन
दुपहरिया
डाहि देलकैक अछि
बसातक करेज
मुआ देलकैक अछि
कतेको जिनगी
तैयो अकरल अछि
भखरल नहि
ई जेठक दुपहरिया।

5.) यौ बुद्ध 

यौ बुद्ध !
अहाँ कोना जितलहुँ
मोनक द्वन्द युद्ध
कोना नहि टिसलक अहाँ केँ
अपन कोंखक वियोग
यशोधराक भोग
कोना भ' गेलहुँ
आकार धेने निर्विकार
बड्ड गुनैत छी हम
अहाँक जिनगीक भोर-साँझ
कचोट अछि हमरा
अहाँक केलहा अधलाहक
बरु श्रापि दिय हमरा
मुदा नहि कहि सकब हम
अहाँ केँ साधू
कृत्य अहाँक पतित अछि।


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विकास वत्सनाभ मैथिली काव्य-जगतक युवा पीढ़ी सँ सम्बद्ध सुपरिचित कवि छथि। हरिणे, हरलाखी, मधुबनीक रहनिहार विकास वृति सँ इंजीनियर छथि आ विगत किछु समय मे मैथिली काव्य-जगत मे अपन सक्रियता आ काव्य-प्रतिभा सँ एकटा फराक परिचिति बनयबा मे सफल रहलनि अछि। हिनका सँ vikash51093@gmail.com पर सम्पर्क कयल जा सकैत अछि। 




आबो तेजु ई कोकनल बुधि आबो तेजु ई कोकनल बुधि Reviewed by बालमुकुन्द on जून 16, 2015 Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar aa samsaamyik ..
    Dhirendra Jha

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  2. विकासजी क कविता मिथिलाक आत्मा के छुबि रहल छैन्हि कहि सकैत छी जे भारत कर आत्मा के सेहो। नीक बात जे मैथिलीक ठेठ शब्द हिनक कविता में बनल छैन्ह। बहुत नीक कविता ।

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